Aunty Sex Storyपड़ोसी की चुदाई

बारिश में मिली आंटी की गरमागरम चूत

पढ़ें एक सच्ची सेक्स कहानी, जहाँ बारिश के मौसम में एक कॉलेज लड़के को मिला अपनी हॉट आंटी के साथ नशीला अनुभव। कैसे एक पेड़ के नीचे शुरू हुई बात बेडरूम तक पहुँची, और दोनों ने पार की सारी हदें। पूरी कहानी में रोमांच, उत्तेजना और हुस्न का जादू।

यह मेरी पहली और सच्ची कहानी है—मेरा पहला अनुभव, जो आज भी मेरे दिल और जिस्म में आग की तरह धधकता है। मैं मध्यप्रदेश का रहने वाला हूँ, और दोस्तों, मेरा एक सपना था—एक ऐसा सपना जो हर नौजवान के दिल में कहीं न कहीं छुपा होता है। मैं हमेशा से चाहता था कि मुझे किसी हॉट आंटी या भाभी के साथ वो नशीला मौका मिले, जहाँ जिस्म से जिस्म टकराए और सारी हदें पार हो जाएँ। और यकीन मानिए, उस बारिश भरे दिन मेरी किस्मत ने मुझे वो मौका दे ही दिया।

बात दो साल पहले की है। मैं उस वक्त कॉलेज में पढ़ता था। बारिश का मौसम था—हवा में ठंडक, आसमान में बादल, और धरती पर पानी की फुहारें। एक दिन मैं अपने कॉलेज जा रहा था। मेरा कॉलेज मेरे रूम से करीब दस किलोमीटर दूर था। मैं बाइक पर सवार था, हवा मेरे चेहरे से टकरा रही थी, और मन में कॉलेज की कुछ अधूरी बातें चल रही थीं। अभी एक किलोमीटर बाकी था कि अचानक बादल फट पड़े। बारिश की बूँदें तेज़ी से गिरने लगीं, मानो आसमान ने सारा पानी एक साथ उड़ेल दिया हो। मैंने फटाफट बाइक सड़क किनारे रोकी और पास ही एक घर के सामने लगे पेड़ के नीचे खड़ा हो गया।

पानी की बौछारें मेरे कपड़ों को भिगो रही थीं। करीब पंद्रह मिनट तक मैं वहीं खड़ा रहा, बारिश के थमने का इंतज़ार करता हुआ। तभी मेरी नज़र पीछे गई। एक आंटी मुझे घर के दरवाज़े से देख रही थीं। उनकी आँखों में कुछ था—शायद उत्सुकता, शायद न्योता। बारिश और तेज़ हुई तो उन्होंने मुझे आवाज़ दी, “सुनो, भीग जाओगे, अंदर आ जाओ। बारिश बहुत तेज़ है।” मैंने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब उन्होंने दोबारा पुकारा, तो मैं गेट खोलकर अंदर चला गया।

जैसे ही मैंने उन्हें करीब से देखा, मेरे होश उड़ गए। वो कोई 35-36 साल की रही होंगी, लेकिन उनका जिस्म—हाय! ऐसा लग रहा था मानो कामदेव ने उन्हें अपने हाथों से तराशा हो। उनके चुचे भरे हुए, गोल और सख्त थे, जो उनकी साड़ी से बाहर झाँक रहे थे। और उनकी गांड—उफ्फ! जब वो चलती थीं, तो उनके चूतड़ ऐसे हिलते थे जैसे मुझे बुला रहे हों, “आओ, मुझे दबाओ, मुझे थामो।” उनकी कमर पतली थी, और चेहरा ऐसा कि बारिश की बूँदें भी उनके हुस्न के आगे फीकी पड़ जाएँ।

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उन्होंने मुझे एक टॉवेल थमाया। मैंने अपने गीले जिस्म को पोंछा, लेकिन मेरी नज़रें बार-बार उनके हुस्न पर अटक रही थीं। फिर वो मेरे पास आईं और पूछा, “नाम क्या है तुम्हारा? कॉलेज कहाँ है?” मैंने सोफे पर बैठते हुए जवाब दिया। फिर मैंने उनसे उनका नाम पूछा। “अंजली,” उन्होंने कहा, और बताया कि वो शादीशुदा हैं। उनके पति बाहर नौकरी करते हैं, और वो यहाँ एक निजी स्कूल में टीचर हैं। उनका परिवार दूसरे राज्य में रहता है, और बच्चे नहीं हैं। अंकल का ट्रांसफर दो साल पहले हो गया था। अब वो हफ्ते-पंद्रह दिन में एक बार शनिवार को आते हैं और रविवार को चले जाते हैं। यह कहते हुए उनकी आवाज़ में एक उदासी छा गई। मैं समझ गया—उनके दिल में एक खालीपन था, और शायद जिस्म में भी एक आग सुलग रही थी।

उन्होंने मुझसे चाय या कॉफी के लिए पूछा। मैंने कॉफी चुनी। वो रसोई में चली गईं, और जब कॉफी लेकर लौटीं, तो उनके हुस्न का जादू और गहरा हो गया। साड़ी में उनकी कमर की लचक, उनके कूल्हों का उभार—सब कुछ मुझे मदहोश कर रहा था। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे पूछा, “ऐसे मौसम में बिना रेनकोट के कहाँ जा रहे थे? गर्लफ्रेंड से मिलने?” मैं चौंक गया। मैंने इनकार किया, लेकिन उनके बार-बार पूछने पर बताया कि एक गर्लफ्रेंड थी, पर अब ब्रेकअप हो चुका है। फिर मैंने बात घुमाई और पूछा, “आपको अंकल की याद नहीं आती?” उनकी आँखें नम हो गईं। “अब अकेले रहने की आदत हो गई है,” उन्होंने धीरे से कहा। मैं समझ गया—यहाँ मौका था।

बातों-बातों में उनकी उदासी गहरी होती गई। उनके गालों पर आँसू ढुलक आए। मैंने पास जाकर उनके आँसू पोंछे और उनका हाथ थाम लिया। “मैं अंकल की कमी पूरी नहीं कर सकता, पर आपका दुख ज़रूर कम कर सकता हूँ,” मैंने कहा। “वो कैसे?” उनकी आवाज़ में काँपन था। मैंने उन्हें अपनी बाहों में खींच लिया। वो एक पल को अलग हुईं और बोलीं, “ये गलत है।” लेकिन मैंने उनके हाथ पर एक गहरा चुंबन जड़ दिया। वो दूसरी तरफ मुँह फेरकर खड़ी हो गईं। मैंने पीछे से उन्हें फिर से गले लगाया, उनकी कमर पर हाथ फेरा, और फिर उन्हें सामने करके उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

उनके होंठ—हाय! मानो मलाई और रबड़ी का मिश्रण, इतने नरम, इतने रसीले। मैं उन्हें चूमता रहा, और मेरे हाथ उनकी पीठ और कमर पर नाचने लगे। धीरे-धीरे मेरा एक हाथ उनके भरे हुए चुचों पर गया, और दूसरा उनकी मस्त गांड को सहलाने लगा। वो सिसक रही थीं, लेकिन उनकी साँसें तेज़ हो रही थीं। मैंने उन्हें उठाया और पलंग पर लिटाने की कोशिश की, पर उन्होंने इशारा किया कि बेडरूम में चलें। मैंने उन्हें अपनी गोद में उठाया और बेडरूम में ले गया।

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वहाँ बेड पर हम एक-दूसरे में खो गए। कभी मैं उनके ऊपर, कभी वो मेरे ऊपर। उनकी साड़ी को मैंने धीरे-धीरे खोला। उनके ब्लाउज़ से उनके चुचे बाहर आने को बेताब थे। मैंने उन्हें दबाना शुरू किया, और एक हाथ उनकी साड़ी के नीचे डालकर उनकी चूत को सहलाने लगा। वो कराह रही थीं, उनकी साँसें गर्म थीं। फिर मैंने उनका ब्लाउज़ और पेटीकोट उतार दिया। वो गुलाबी ब्रा और नीली पैंटी में थीं—मानो कोई अप्सरा मेरे सामने नंगी हो रही हो। उनके जिस्म की खुशबू मुझे पागल कर रही थी।

दस मिनट तक हम एक-दूसरे के जिस्म को चूमते रहे। फिर मैंने उनकी ब्रा और पैंटी भी उतार दी। अब वो पूरी नंगी थीं। उनके चुचे गोल, फूले हुए, और निप्पल सख्त—मैंने उन्हें मुँह में लिया और चूसने लगा। “आह्ह…” उनकी सिसकी निकली। मेरा एक हाथ उनकी चूत पर गया। वो पूरी गीली थी, और उसकी मादक सुगंध मेरे होश उड़ा रही थी। मैंने जीभ लगाई, उनका पानी पिया, और उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा। वो तड़प रही थीं, “उई माँ…” उनकी आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।

फिर मैंने अपना लंड उनके हाथ में दिया। पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन मेरे ज़ोर देने पर वो मान गईं। वो इसे ऐसे चूस रही थीं जैसे कोई भूखी शेरनी अपने शिकार को चाट रही हो। कभी-कभी मैं जानबूझकर ज़ोर से धक्का देता, और वो सिसक पड़तीं। फिर मैंने उसे उनके मुँह से निकाला, उन्हें लिटाया, और दो तकिए उनकी कमर के नीचे रखे। “जल्दी करो, नहीं तो मैं मर जाऊँगी,” वो चिल्लाईं। उनकी टाँगें फैली हुई थीं। मैंने अपना लंड उनकी चूत की दीवारों पर रगड़ा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। लंड आधा ही अंदर गया, और वो चीख पड़ीं। उनकी आँखों से आँसू छलक आए। मैंने उनके होंठों को चूमकर उन्हें शांत किया।

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पाँच मिनट बाद मैंने धक्के शुरू किए। “तीन महीने से लंड नहीं मिला,” उन्होंने सिसकते हुए कहा। मैंने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई। “उई माँ… मर गई…” उनकी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। तीस मिनट तक हम उसी पोज़िशन में रहे। फिर वो मेरे ऊपर आ गईं। दस मिनट तक वो मुझे चोदती रहीं। जब मैं झड़ने वाला था, मैंने पूछा, “कहाँ निकालूँ?” “अंदर ही,” उन्होंने कहा, “अंकल का तो पानी सा निकलता है, उनका छोटा लंड ढंग से खड़ा भी नहीं होता।” और फिर मेरा निकल गया।

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हम नंगे ही दस मिनट तक लेटे रहे। फिर मैंने कहा, “आंटी, एक बार गांड मारने दो।” पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन मेरे मनाने पर वो मान गईं। मैंने उन्हें घोड़ी बनाया, तेल लिया, और उनकी गांड के छेद पर लगाया। उंगली डालते ही उनका जिस्म काँप उठा। धीरे-धीरे मैंने लंड डाला। वो चीखीं, लेकिन दस मिनट बाद उन्हें मज़ा आने लगा। फिर मैंने स्पीड बढ़ाई, और 40 मिनट बाद मेरा फिर निकल गया।

हम थककर लेट गए और कब नींद लगी, पता ही नहीं चला। सुबह उठकर मैंने कहा, “आंटी, मेरा सपना पूरा हुआ।” उन्होंने बताया, “आठ साल की शादी में अंकल ने कभी इतना मज़ा नहीं दिया। मज़बूरी में मूली और बैंगन से काम चलाना पड़ता था। आज से मैं तुम्हारी हूँ।” फिर हमने नाश्ता किया, और मैं चला गया।

आज दो साल बाद भी हमारा रिश्ता कायम है। हफ्ते में 2-3 बार हम मिलते हैं। उनकी डॉक्टर सहेली और पड़ोस की लड़की को भी मैंने चख लिया है। तो दोस्तों, कैसी लगी मेरी कहानी?