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भाभी को चोदने का सपना पूरा हुआ-1

Bhabhi ko chodne ka Sapna pura hua-1

दोस्तो, मैं HotSexStory.xyz का पाठक हूँ और मैंने अभी तक दो सच्ची कहानियाँ भेजी हैं,

पहली

चाची के साथ सुहागरात

और दूसरी

भाभी के साथ होली

मुझे पहला सेक्स अनुभव चाची ने ही दिया इसीलिए उनका शुक्रिया अदा करता हूँ कि उनकी वजह से मैं चुदक्कड़ बन गया और आये दिन इसको-उसको चोदने के बहाने ढूंढने लगा।

दोस्तो, यह कहानी भी एकदम सच्ची है जो अभी मैं आपको बताने जा रहा हूँ।

चलो मैं आपको बता दूँ कि मेरा सपना क्या था और वो कैसे पूरा हुआ।

में मेरी बुआ के लड़के की शादी तय हुई तब मैं बुआ के यहाँ छुट्टियों में रहता था। मेरा भाई मुझसे सात साल बड़ा है। वो पेशे से इंजिनियर है और ठेकेदारी करता था, मैं भी इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में था। वो घर में बड़ा होने की वजह से उनके यहाँ की यह पहली शादी होने वाली थी। मैंने अपनी भाभी को अभी तक देखा नहीं था। रविवार को भाई को छुट्टी रहती थी ऐसे ही एक रविवार को भाई ने भाभी से मिलने की योजना बनाई।

उसने मुझे अपने साथ चलने के लिए बोला और मैं तैयार हो गया क्योंकि मैंने भाभी को देखा नहीं था। हम लोग उनके घर में गए तो भाभी की माँ घर पर नहीं थी और भाभी का छोटा भाई हमारे साथ बातें कर रहा था।

भाभी हमारे लिए अन्दर नाश्ता बना रही थी। 15 मिनट में नाश्ता तैयार हो गया और भाभी उसे लेकर आई।

जैसे ही भाभी बाहर आई उनको देखते ही मैं अपने होश खो बैठा। क्या बला की ख़ूबसूरत थी वो, गोरी चिट्टी, 5’3″ कद, पूरा भरा हुआ बदन, 36″ की चूचियाँ, 30 की कमर और 38 के चूतड़, ऊपर से सलवार कमीज में वो तो एकदम माधुरी दीक्षित नजर आ रही थी।

मेरा पूरा ध्यान तो उनकी चूचियों की गोलाई की तरफ था। उतने में ही वो मेरे पास आ गई और बोलने लगी- अरे नाश्ता लीजिये।

और आवाज सुनते ही मेरे होश ठिकाने आ गए।

हम लोग नाश्ता करने के बाद अपने घर वापिस गए। उस रात को मैं ठीक से सो ही नहीं पाया, बार-बार मुझे भाभी का चेहरा ही दिख रहा था, उनकी चूचियाँ ही नजर आ रही थी। रात भर सोच सोच कर ही दिमाग चकरा रहा था कि काश उनकी शादी मेरे साथ होती तो।

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और जैसे जैसे दिन बीतते गए, मैं भाभी को सोच सोच कर मुठ मारने लगा।

एक महीने के बाद शादी का दिन आ गया और शादी हो गई। वो रात उनकी सुहागरात थी और मैं और मेरे दोस्त भैया के लिए बेड सजा रहे थे लेकिन मैं पूरा नर्वस होकर ये सब कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे मुझे भाभी से प्यार हो गया हो, वो मेरी प्रेमिका है और मैं उसे किसी दूसरे के हवाले कर रहा हूँ।

रात के ग्यारह बज गए थे, भाभी को मेरी बुआ की लड़की ने कमरे में पहुँचा दिया।

“क्या गजब की सुन्दर दिख रही थी वो साड़ी में !”

काश ! आज मैं सुहागरात मना रहा होता !

वो अन्दर जाकर बेड पर बैठ गई और थोड़े ही समय के बाद भैया भी चले गए।

भैया मुझसे बड़े थे लेकिन मेरा उससे दोस्त के जैसा रिश्ता था इसीलिए जब वो अपनी सुहागरात मनाने के बाद सोकर उठे तब मैंने उससे पूछा- तूने कितनी बार चोदा भाभी को।

तो उसने बोला- चार बार चुदाई की तेरी भाभी की।

ऐसे ही समय बीतता गया और अगले ही साल उनकी एक बेटी हो गई। मैं अन्दर ही अन्दर घुट रहा था कि काश मुझे भी एक बार भाभी को चोदने का मौका मिल जाये। अब मेरा इंजीनियरिंग पूरा हो गया था और मैं जॉब करने के लिए जलगाँव चला गया।

मुझे जॉब करते करते तीन साल पूरे हो गए थे, इस बीच मैं कभी कभी अपनी बुआ के यहाँ आता जाता था तब ही भाभी से मुलाक़ात होती थी। सही बोलूँ तो मैं सिर्फ भाभी को ही देखने आता था।

ऐसे ही मैं अमरावती अपने बुआ के यहाँ आया था तो भाभी से मुलाक़ात हो गई, तब भाभी थोड़ी नर्वस लगी।

मैंने भाभी से पूछा- क्या हुआ भाभी, आप नर्वस क्यों हो?

भाभी बोली- इनको ठेकेदारी में नुकसान हुआ और अभी ये कुछ काम नहीं करते। इसकी वजह से इनको दारू की भी आदत पड़ गई है।

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मैं बोला- तो भैया को बोलो न कोई जॉब कर ले।

वो बोली- ये तो मेरी एक भी नहीं सुनते। आप ही बोलो शायद आपकी सुन लें।

उस रात मैं उनके यहाँ ही रुक गया और भैया से बात करके उसे अपने साथ जलगाँव चलने के लिए बोला।

दो दिन के बाद हम लोग जलगाँव चले गए और मैंने अपने ही कंपनी में भैया को इंजिनियर का जॉब दिला दिया।

अब मैं ज्यादा ही खुश रहने लग गया था कि भैया इधर मेरे पास है उधर भाभी अकेली है। मेरे दिमाग में फिर शैतानी दांव-पेंच आ रहे थे कि भैया को इधर ड्यूटी में व्यस्त रखने का और उधर मैं अकेला भाभी से मिलने जाया करूँगा और मौका देख कर अपना गेम जमा लूँगा क्योंकि भाभी को भी भैया से अलग रह कर बहुत दिन हो गए थे जिसकी वजह से उनकी चूत को भी लंड की जरुरत तो पड़ेगी ही। ऊपर से मेरा अहसान।

इसी प्लानिंग के साथ मैं बुआ के यहाँ आता-जाता रहा लेकिन सब लोग होने की वजह से मौका हाथ में ही नहीं आ रहा था। अब भाभी पहले से ज्यादा खुल कर बात करती थी।

ऐसे ही दिन बीतते गए लेकिन मौका हाथ में नहीं आ रहा था और मैं इसे सपना ही समझ कर भूल रहा था।

हम दोनों जलगाँव में एक बेडरूम के फ्लैट में रहते थे। एक दिन भैया ने बोला- जा और भाभी को इधर लेकर आ ! एक-दो महीने अपने साथ में भी रहेगी और खाने का भी बंदोबस्त हो जायेगा।

यह सुनते ही मैं खुश हो गया और छुट्टी लेकर भाभी को लेने के लिए अमरावती पहुँच गया। मैंने बस के दो टिकट बुक करवा दिए और दूसरे ही दिन मैं भाभी और भैया की एक साल की लड़की जलगाँव आने के लिए बस में बैठ गए बस में !

रात के तीन बज चुके थे, पूरा अँधेरा था, भाभी नींद में ही थी, उनकी बाजू की सीट पर मैं बैठा हुआ था, मुझे उस रात नींद ही नहीं आ रही थी, बस मैं भाभी के पल्लू को ही देख रहा था कि कब वो नीचे गिरे और मैं भाभी की चूचियों को देखूँ।

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अब भाभी का सर धीरे से मेरे कंधे पर आ गया जिसके वजह से मेरे शरीर में एकदम से करंट आ गया। अब मैंने भी अपना सर भाभी के सर के साथ टिका दिया, उनकी बेटी मेरे गोद में सोई हुई थी। मैंने धीरे से अपना दायाँ हाथ बाहर निकाला और भाभी को मेरे सर से अलग करके सीधा खिड़की की तरफ कर दिया।

अब मैंने अपना पूरा सर उनके कंधे पर रखा और धीरे धीरे उनकी गर्दन को अपने होठों से चूमना शुरु किया। अब मेरा लंड धीरे धीरे खड़ा हो रहा था। भाभी कुछ भी हलचल नहीं कर रही थी जिसकी वजह से मेरी हिम्मत और बढ़ गई थी। अब मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी चूचियों पर रखा और उसे ऊपर से सहलाने लगा। ऐसा लग रहा था मानों मैं मल्लिका शेरावत के वक्ष पर हाथ फेर रहा हूँ। बहुत ही कड़े लग रहे थे, शायद ब्रा की वजह से।

अब मेरी और हिम्मत बढ़ गई थी जिसकी वजह अब मैं और कुछ करने वाला था। मैंने उनकी साड़ी का पल्लू धीरे धीरे करके ऊपर करना शुरु किया, अब मुझे उनकी दोनों चूचियाँ पूरी तरह से दिख रही थी, ऐसे लग रहा था मानों ब्लाउज से निकलने ही वाली हैं। मैंने अपनी एक उंगली उनकी वक्ष-घाटी में डाल दी और गहराई नापने लगा तो मेरी पूरी उंगली पूरी अन्दर चली गई लेकिन गहराई का पता नहीं चला।

मैंने उंगली निकाल कर अब उनके उरोज दबाने शुरु किये, थोड़ी देर चूचियाँ दबाने के बाद भाभी को एकदम से होश आ गया, मैंने झटके से अपना हाथ खींच लिया लेकिन तब तक वो नींद से जाग गई थी और उन्हें पता चल गया था कि मैं क्या कर रहा था।

कहानी जारी है…..