भाभी के साथ होली और चुदाई -1
Bhabhi Sath Holi aur chudai-1
आपने मेरी पहली सच्ची कहानी holi bhabhi पढ़ी, जिसमे मैंने पहली बार अपनी चाची की चुदाई की थी उसके बाद पिछले 13 सालों से उसे चोदता आ रहा हूँ,जिसके वजह से मुझे सेक्स की आदत ही पड़ गई यानि मैं पूरा चुदक्कड़ बन गया !
उसके बाद मैं जिसे भी देखता उसको चोदने के बारे में ही सोचता ! वैसे हमारा खानदान बड़ा होने की वजह से मेरी करीब 14 भाभियाँ थी और तीन सेक्सी चाचियाँ भी थी। वैसे सभी एक नंबर की माल थी और मैं सभी को चोदने के तरीके ढूंढ रहा था लेकिन कोई हाथ नहीं आ रही थी। मैंने मेरी चाची को जैसे चोदा था (रात को साथ में सोने के बाद गर्म करके चोदने का तरीका) वही तरीका मुझे बेहद पसंद है लेकिन वो मौका मुझे इनके साथ मिल नहीं रहा था, अब नया तरीका सोच रहा था !
में मैं अमरावती में जॉब करता था लेकिन कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं रहा कि मैं गाँव में नहीं जाता था।
ऐसे ही मैं होली के त्यौहार के लिए गाँव गया हुआ था। रंगपंचमी की दिन सुबह उठा और मुँह-हाथ धोकर दोस्तों के साथ खेत में दारू पीने और रंग खेलने चले गया। दारू पीने के बाद धीरे धीरे नशा बढ़ने लगा और बातों बातों में दोस्तों ने चुदाई के किस्से सुनाने चालू किये जिससे मेरा लंड खड़ा होने लगा और मेरे दिमाग में चाची को चोदने की इच्छा हुई और वहाँ से उठ कर मैं वापस घर आ गया।
मैं चाची के यहाँ गया और चाची को चूमने लगा तो उसने बोला- अभी नहीं, घर पर सब लोग हैं, रात को जितनी मर्जी, उतना चोद लेना !
और मुझे उसने बाहर जाने के लिए बोला।
मैं बाहर तो निकल गया लेकिन मेरा लंड अभी भी तना हुआ था,बार-बार मुझे चोदने की इच्छा हो रही थी !
मैं चुपचाप ऐसे ही बैठा हुआ था कि मेरे दिमाग में भाभियों को रंग लगाने की बात आ गई और मैं उठ कर एक-एक करके सबको रंग लगाने निकला ! अभी तक मेरा लंड वैसे ही हिचकोले मार रहा था।
मैंने सोचा कि रंग लगाने के बहाने से भाभियों को छूने का मौका तो मिल ही जायेगा और मैंने एक-एक के घर में जाकर रंग लगाना चालू किया। उस समय हर किसी के घर में कोई न कोई मौजूद था जैसे किसी का पति तो किसी के सास-ससुर और यह देख के मेरा दिमाग और ज्यादा ख़राब हो रहा था क्योकि मेरे लंड को ठंडक नहीं मिल रही थी।
अब मैं अपने चचेरे भाई के यहाँ जा रहा था उसकी अभी तीन महीने पहले शादी हुई थी, उसकी बीवी यानि मेरी भाभी का नाम अरुणा था वो दिखने में थोड़ी सांवली थी मगर बदन को देखा तो किसी का भी लंड खड़ा हो जाये। उसका बदन 34-30-36 था, उसके चूचे तो दीवाना कर देते थे वैसे ही जब से उनकी शादी हुई थी तब से ही मैं उसको चोदने के लिए बेताब था।
उनके घर में उन दोनों के शिवाय कोई नहीं रहता था क्योंकि मेरे भाई के माता-पिता का देहांत हो चुका था। मैं अभी भी नशे में था लेकिन होश में था और यही सोच कर उसके घर जा रहा था आज मेरा भाई घर में न हो। मैं उनके घर के दरवाजे पर पहुँचा और सीधा अन्दर चले गया तब भाभी खाना बना रही थी। वो मुझे देखते ही समझ गई कि मैं उनको रंग लगाने के लिए आया हूँ।
भाभी बोली- अरे देवर जी, आप कब आये अमरावती से?
मैं बोला- कल शाम को आया भाभी ! अभी मैं आपको रंग लगाने आया हूँ।
वो बोली- मैं समझ गई थी कि आप होली खेलने के लिए आये हो लेकिन थोड़ा रुको, मुझे सब्जी का तड़का लगाने दो।
मैंने उनसे मेरे भाई के बारे पूछा तो वो बोली- आज कंपनी में काम होने की वजह से वो ड्यूटी पर गए हैं, शाम को 6 बजे आयेंगे।
वैसे ही मेरे दिमाग में ख्याल आया कि आज भाभी को तो चोदने का अच्छा मौका मिल गया है। देखते ही मेरा लंड फिर से तन गया और मेरे बरमुडे से बाहर निकलने लगा।
आज वैसे भी मैं बेफिक्र था क्योंकि अगर भाभी को बुरा लगा तो परिवार वालों को लगेगा कि दारू के नशे में रंग लगते वक़्त गलती से हाथ लग गया होगा।
उनके घर में दो कमरे थे, एक में मैं खड़ा था और दूसरे में वो खाना बना रही थी, उसी कमरे में उनका बेड भी था।
अब मैं उनके अन्दर के कमरे में चले गया और बेड पर बैठा उनके वक्ष को घूर रहा था।
क्या हसीन नजारा था, दो उभारों के बीच में पूरी खाई दिख रही थी। उसने लाल साड़ी और काला ब्लाऊज पहना था।
मैं धीरे धीरे अपने लंड को दबा रहा था, उतने में उनका ध्यान मेरी तरफ गया और मैंने फटाक से अपना हाथ अपने लंड से हटा लिया। उन्होंने ये सब देख लिया और अनदेखा करके सब्जी बनाने लगी।
वो मेरे से तीन साल से छोटी थी लेकिन रिश्ते में भाभी होने की वजह से मैं उनको आप आप कहता था।
फिर 5 मिनट के बाद वो वहाँ से उठी बोली- अब आप रंग लगा लो।
मैं उनके पास गया और पीछे से दोनों हाथों से उनके चेहरे पर रंग लगाना चालू किया।
अभी मैं उनके शरीर से दूर ही था, धीरे से मैंने अपना लंड उनके गांड से चिपकाया और जोर जोर से उनको रंग लगाना चालू किया जिससे उसको लंड के धक्के समझ में नहीं आ रहे थे।
मेरा दिमाग दूर का सोच रहा था कि अब समय बर्बाद करने में मतलब नहीं और ऐसा मौका शायद मिले।
मैं अपना मुँह नीचे करके उनके गर्दन के पास लाया और अपने होठों से उसको चूमने लगा तो वो एकदम चकरा गई कि यह क्या हो रहा है।
वो बोलने लगी- देवर जी बस हो गया रंग लगाना, अब छोड़ो !
लेकिन मैं कहाँ रुकने वाला था, मैंने फिर से कस कर उनको पकड़ लिया और गर्दन और पीठ की चूमना चालू किया। साथ में पीछे से लंड भी गांड को ठोक रहा था !
अब मैंने उनकी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया जिससे उसका ब्लाउज पूरा खुला हो गया। वो ना-नुकुर करने लगी…प्लीज छोड़ो ना… कोई आ जायेगा…प्लीज…
मैं यह सुनते ही समझ गया कि भाभी को यह सब अच्छा लग रहा है लेकिन वो डर रही है।
मैंने उनकी बातों को अनसुना करके अपने दोनों हाथों से ब्लाऊज के ऊपर से स्तन दबाना शुरु किया।
वाह ! क्या सख्त चूचे थे…. बहुत अच्छा लग रहा था ! अभी तक मैंने सिर्फ अपने चाची के ही चूचे दबाये थे जो बहुत ही नर्म थे !
अब मैं जोर जोर से स्तन दबा रहा था। वैसे ही भाभी की आवाज तेज हो रही थी वो सिसकारियाँ मार रही थी उसकी धड़कन भी तेज हो गई थी…आ…आ…हु…हु…आह्ह्ह.. ह्ह्ह….
कहानी जारी है…….