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भिखारी की दूध पिलाकर प्यास बुझाई: एक सच्ची कहानी

सभी पाठकों को नमस्ते! मेरा नाम ज्योति अग्रवाल है और मैं मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर की रहने वाली हूँ। यह कहानी तब की है जब मैं 28 साल की थी। मेरी एक 8 महीने की बेटी थी, जिसे मैं अपना स्तनपान कराती थी। दिन में मुझे उसे करीब 5 बार दूध पिलाना पड़ता था। लेकिन एक मजबूरी के चलते मुझे अकेले एक रेल यात्रा पर निकलना पड़ा। बेटी थोड़ी बड़ी हो चुकी थी, तो मैंने उसे घर पर परिवार के साथ छोड़ दिया और यात्रा पर चल पड़ी।

यात्रा की शुरुआत

मैंने उस दिन एक फिरोजी रंग की पारदर्शी साड़ी पहनी थी। मेरे पास खाने का कोई सामान नहीं था। उस वक्त मेरे बूब्स का साइज़ 36D था, जिसे मैंने एक साधारण ब्लाउज़ से ढक रखा था। ब्लाउज़ पतले कपड़े का था और मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। मेरे गहरे काले निप्पल हल्के से दिखाई दे रहे थे। यात्रा 12 घंटे की थी। घर से निकलने से पहले मैंने बेटी को दूध पिलाकर अपने स्तन खाली कर दिए थे।

शाम 6 बजे मैं ट्रेन में बैठी। ट्रेन लगभग खाली थी। रात के 10 बजते-बजते मुझे अपने स्तनों में सख्ती महसूस होने लगी। मैंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अंगड़ाई लेकर बैठने की कोशिश की। लेकिन रात 12 बजे तक मुझे एहसास हुआ कि गर्मी के मौसम में दूध ज्यादा देर तक नहीं रोक सकती। जल्द ही मेरे ब्लाउज़ पर निप्पल के पास गीलापन दिखने लगा—मेरा दूध अपने आप बाहर आने लगा था।

मजबूरी में लिया फैसला

मैंने सोचा कि टॉयलेट जाकर स्तन खाली कर लूँ। लेकिन वहाँ पहुँचकर देखा कि गेट के पास एक भिखारी बैठा था। उसने मुझसे खाने को माँगा, पर मेरे पास कुछ नहीं था। टॉयलेट में जगह भी नहीं थी कि मैं आराम से दूध निकाल सकूँ। फिर मैंने सोचा कि बाहर वॉशबेसिन पर ही यह काम कर लूँ, क्योंकि वहाँ भिखारी के सिवा कोई नहीं था।

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बाहर आकर मैंने उसकी नज़र अपने ब्लाउज़ पर महसूस की। मुझे अजीब लगा, लेकिन मैंने उसकी तरफ पीठ करके ब्लाउज़ खोलना शुरू किया। ट्रेन की हलचल में मेरा ब्लाउज़ पूरा खुल गया और मेरे बूब्स का साइड व्यू उसे दिखने लगा। मैं अपने स्तनों को दबाकर खाली करने लगी, पर यह आसान नहीं था।

तभी भिखारी बोला, “मैडम जी, मुझे ही पिला दीजिए। मेरी प्यास भी मिट जाएगी और मेरी भूख भी थोड़ी कम हो जाएगी।” मुझे शर्मिंदगी हुई, लेकिन सोचा कि मैं घर से इतनी दूर हूँ, कोई जानने वाला नहीं है। इससे उसकी भूख भी मिटेगी और मेरे स्तन भी हल्के होंगे।

एक अनजान भिखारी और मैं

मैंने उसे सीट पर बुलाया और पूछा, “क्या तुम्हारी शादी हुई है?”
उसने कहा, “नहीं, मैं भिखारी हूँ, मुझसे कौन शादी करेगा? मेरा नाम अकबर है।”
मैं मन ही मन सोचने लगी कि ये तो मुसलमान है, दूसरे मजहब का। फिर भी मैंने कहा, “मेरे स्तन खाली करने हैं। क्या तुम ये करोगे और किसी को नहीं बताओगे?”

ट्रेन का अगला स्टॉप 1 घंटे बाद था। मैंने ब्लाउज़ खोला और उसका सिर अपने स्तन से लगाया। वह छोटे बच्चे की तरह मेरे निप्पल को चूसने लगा। मैं सोच में डूब गई कि मैं, एक हिंदू पतिव्रता औरत, इस अनजान मुसलमान भिखारी से अपने स्तन चुसवा रही हूँ। हमारा धर्म कहता है कि भूखे को भूखा नहीं छोड़ना चाहिए। मैं वही कर रही थी, पर इस चक्कर में अपना स्त्री धर्म भूल गई।

वह मेरे स्तन को मज़े से चूस रहा था। शायद उसे सच में भूख लगी थी। उसने मेरे बाएँ स्तन को मुँह में लिया और फिर मैंने उसे दायाँ स्तन चूसने को कहा। उसने आज्ञाकारी नौकर की तरह दोनों खाली कर दिए। मुझे राहत मिली। मैंने उसे धन्यवाद कहा।

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एक नया मोड़

फिर मेरी नज़र उसकी पैंट पर गई। उसकी ज़िप टूटी थी और उसका लंड का टोपा बाहर झाँक रहा था। मेरे पति के लंड से बिल्कुल अलग—उसके आगे की चमड़ी नहीं थी। मैंने पूछा, “तुम्हारा टोपा इतना तना हुआ कैसे है?” उसने बताया कि वह जन्म से ऐसा है। उसे देखकर मेरे मन में चुदासी जागी।

उसने कहा, “मैडम, मैंने आपका काम किया, अब आप मेरा एक काम कर दो।”
मैंने पूछा, “क्या?”
वह बोला, “जैसे मैंने आपके स्तन चूसे, वैसे आप मेरा लंड चूस दो।”
मैंने कहा, “मैंने अपने पति का भी नहीं चूसा। तुम गंदे हो और ये मेरी मजबूरी थी।”

उसने गुज़ारिश की, “मेरी शादी नहीं हुई। पहली बार किसी औरत का स्तन चूसा है। मेरी मनोकामना पूरी कर दो।” उसकी बातों ने मेरी चुदासी को और भड़का दिया। मैंने ब्लाउज़ ठीक किया और झुककर उसका लंड मुँह में लिया। पहली बार था, और वह भी एक भिखारी का। उसकी गंध ने मुझे और उत्तेजित कर दिया।

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मैंने लॉलीपॉप की तरह चूसना शुरू किया। उसने मेरे बाल पकड़े और कुछ ही मिनटों में मेरे मुँह में वीर्य छोड़ दिया। मैंने पढ़ा था कि वीर्य में प्रोटीन होता है, तो मैंने उसे निगल लिया। स्वाद अच्छा था, पर तभी मुझे अपनी मर्यादा याद आई। मैंने कहा, “ये गलत हुआ। अब चले जाओ।”

आखिरी ख्वाहिश

अकबर बोला, “मैडम, अपनी चूत के दर्शन करा दो।” मैं समझ गई कि आगे बढ़ा तो वो मुझे चोद ही देगा। मैंने मना किया, पर उसकी जिद पर मैंने पेटीकोट उठाकर दिखाया। उसने कहा, “कितनी सुंदर है! एक बार चूस लूँ?” मैंने हाँ कह दी। उसने उंगली डाली और चूसने लगा। फिर मैंने उसे रोका, “बस, अब जाओ। किसी को मत बताना।”

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उस रात मैं 4 घंटे सो नहीं पाई। उस भिखारी के बारे में सोचती रही। सुबह गंतव्य पर पहुँची, पर वो रात आज भी याद है। मन में एक ख्वाहिश रह गई—काश उस रात मैं उससे चुदाई करा लेती।

अगर आपको मेरी ये Hindi sex story पसंद आई, तो बताइए। मैं और भी सच्ची कहानियाँ सुनाऊँगी।