भाई-बहन की चुदाई

चचेरी बहन का कौमार्य-3

Chacheri Bahan Ka Kaumarya-3

उसने कल वाले अंतर्वस्त्र उठा लिए, उनमे से एक को चुना और पैंटी को पहले पहनने लगी।

किन्तु उसको शायद वो कुछ तंग लगी, फिर उसने दूसरी पैंटी ट्राई किया मगर वही रिजल्ट रहा, अब उसने पैंटी छोड़ कर ब्रा उठाई लेकिन ब्रा में भी वही हुआ, उसकी चूचियाँ कुछ बड़ी लग रही थी, ब्रा भी फिट नहीं थी।

अब मुझसे बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था, मैंने अपनी जगह से खड़ा हो गया।

मुझे देख कर उसकी आँखें फट गई, वो इतना घबरा गई कि अपनी चूत या अपनी चूची छिपाने का भी ख्याल नहीं आ पाया उसको !

बस फटी हुई आँखें और मुँह खुला रहा गया।

मैं धीरे से चल कर उसके पास गया और कहा- कल अगर मेरी बात मान लेती और ट्राई कर लेती तो तुमको आज यह परेशानी नहीं होती।

अब उसको कुछ समझ आया तो जल्दी से तौलिया उठाया और लपेटने के बाद मेरी तरफ पीठ करके पूछा- भैया, आप कब आये?

मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा- मेरी सेक्सी बहना ! मैं तो तब से यहाँ हूँ जब तुम चाचा जी के रेजर से अपनी झांटें साफ़ कर रही थी।

मैंने ऐसे ही तुक्का मारा।

अब तो तौलिया उसके हाथ से छूटते बचा।

वो मेरी तरफ बड़े विस्मय से देखने लगी और मेरे चहरे पर मुस्कराहट थी क्योंकि मेरा तीर निशाने पर लग गया था।

मैंने उसके कंधे को सहलाते हुए कहा- तुमने कुछ गलत थोड़े ही किया है जो डर रही हो? इतनी सुन्दर चीजों की साफ़ सफाई तो बहुत जरूरी होती है। अब तुम्हीं बताओ कि ताजमहल के आसपास अगर झाड़-झंखार होगा तो उसकी शान कम हो जायेगी न मेरी प्यारी बहना?

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अब पहली बार वो मुस्कुराई और अपनी चूत की तारीफ सुन कर उसके गाल लाल हो गए।

अगले पल ही वो बोली- खैर अब आपने ट्रायल तो देख ही लिया, अब आप बाहर जाइए तो मैं कपड़े तो पहन लूँ !

मैंने कहा- प्यारी बहना, अब तो मैंने सब कुछ देख ही लिया है, अब मुझे बाहर क्यूँ भेज रही हो?

वो बोली- भैया, आप भी बहुत शैतान हैं, कृपया आप बाहर जाइए, मुझे बहुत शरम आ रही है।

अचानक मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर डाले और हल्का सा झटका दिया तो वो संभल नहीं पाई और उसकी चूचियाँ मेरे नंगे सीने से आकर टकराईं क्योंकि मैंने भी केवल तौलिया ही पहना हुआ था।

मैंने अपने हाथों के घेरे को और कस दिया ताकि वो पीछे न हट सके और तुरंत ही अपने होंठों को उसके गुलाबी गुलाबी होंठों पर रख दिया।

मेरे इस अप्रत्याशित हमले से उसको सँभालने का मौका ही नहीं मिला और मैंने उसको गुलाबी होंठों का रस पीना शुरू कर दिया।

वो मेरी पकड़ से छुटने के लिए छटपटाने लगी मगर मुँह बंद होने के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी।

थोड़ी देर उसके कुवांरे होंठों को चूसते हुए मेरे हाथ भी हरकत में आ गए, मैंने अपना एक हाथ तौलिये के नीचे से उसकी सुडौल गाण्ड पर फेरना शुरू किया और फेरते फेरते तौलिये को खीँच कर अलग कर दिया।

अब एक 18 वर्ष की मस्त और बहुत ही खूबसूरत लौंडिया बिल्कुल नंगी मेरी दोनों बाँहों के घेरे में थी और मैं उसके कुँवारे होंठों को बुरी तरह से चूस रहा था, अब मेरा हाथ उसके गाण्ड के उभार से नीचे की तरफ खिसकने लगा, उसकी छटपटाहट और बढ़ रही थी, मेरा हाथ अब उसकी गाण्ड के छेद पर था, उंगली से मैंने उसकी मस्त गाण्ड के फूल को सहलाया, तो वो एकदम चिहुंक गई।

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फिर मेरी उंगलियाँ गाण्ड के छेद से फिसलती हुई उसकी कुँवारी चूत तक पहुँच गई। मैं उसकी कुँवारी चूत के ऊपर अपनी पूरी हथेली से सहलाने लगा, मेरा तना हुआ सात इंच का लण्ड तौलिये के अन्दर से उसके नाभि में चुभ रहा था क्योंकि उसकी लम्बाई में मुझसे थोड़ी कम थी। उसकी आँखों से गंगा-जमुना की धार निकल पड़ी क्योंकि उसको शायद मेरे इरादे समझ आ गए थे और वो यह भी समझ गई थी कि अब पकड़ से छूटना आसान नहीं, शोर भी नहीं मचा सकती थी क्योंकि उसके होंठ मेरे होंठो में अभी तक कैद थे।

इधर मेरी उंगलियाँ अब उसकी कुँवारी चूत की फांकों को अलग अलग करने लगीं थी, मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के अंदर घुमा कर जायजा लेना चाहा पर उसकी चूत इतनी कसी हुई थी कि मेरी उंगली उसके अन्दर जा ही नहीं सकी।

खैर मैंने उसको धीरे धीरे सहलाना चालू रखा, जल्दी ही मुझे लगा कि मेरी उंगली में कुछ गीला और चिपचिपा सा लगा और मेरी प्यारी बहना का शरीर कुछ अकड़ने लगा, मैं समझ गया कि इसकी चूत को पहली बार किसी मर्द की उंगलियों ने छुआ है जिसे यह बर्दाश्त नहीं कर सकी और इसका योनि-रस निकल आया है

मैं तुरंत अपनी उँगलियों को अपने मुँह के पास ले गया, क्या खुशबू थी उसकी कुँवारी चूत की !

मेरा लण्ड अब बहुत जोर से उछल रहा था तौलिये के अन्दर से, मैंने अपने हाथ से अपने तौलिए को अपने शरीर से अलग कर दिया, जैसे ही तौलिया हटा, प्रिया को मेरे लण्ड की गर्मी अपने पेट पर महसूस हुई। शायद उसको कुछ समझ नहीं आया कि यह कौन सी चीज है जो बहुत गर्म है।

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खैर अब मेरे और मेरी प्यारी और सेक्सी बहना के बदन के बीच से पर्दा हट चुका था, अब हम दोनों के नंगे शरीर एक दूसरे का अहसास कर रहे थे। प्रिया की साँसें बहुत तेज चल रही थी।

अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने प्रिया के होंठों को आज़ाद कर दिया, किन्तु उसके कुछ बोलने के पहले ही अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख दिया और कहा- देखो प्रिया, आज कुछ मत कहो, मैं बहुत दिन से तुम्हारी जवानी कर रस चूसने को बेताब हूँ। और आज मैं तुमको ऐसे नहीं छोडूंगा, शोर मचाने से कोई फायदा हैं नहीं, घर में हमारे सिवा कोई नहीं है, तो बेहतर होगा कि तुम भी सहयोग करो और मजा लूटो।

वो प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखती रही, मुँह तो बंद हो था कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी।

आगे की कहानी अगले भाग में-