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गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ कुनबा 12

Gendamal halwai ka chudakkad kunba-12

कुसुम ने दो-चार बार अपनी ऊँगली चमेली की चूत के अन्दर-बाहर की और फिर अपनी ऊँगली निकाल कर देखने लगी। उसकी ऊँगली चमेली की चूत और राजू के कामरस से भीगी हुई थी, कुसुम का शक और बढ़ गया।

कुसुम- ये क्या है.. रांड़.. बोल क्या किया तूने उस छोरे के साथ? उसका लण्ड अपनी चूत में लेकर अब तेरा भोसड़ा ठंड हो गया हो गया ना?

चमेली- ये.. ये.. क्या कह रही हैं दीदी आप.. वो तो मेरे बेटे की उम्र का है।

कुसुम- हाँ जानती हूँ मैं तुझे साली.. ज़रूर बेटा.. बेटा.. कह कर उसके लण्ड पर उछल रही होगी.. बोल.. नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

चमेली- दीदी वो वो..

इससे पहले कि चमेली कुछ बोलती, कुसुम अपनी दो उँगलियों को चमेली की चूत में पेल कर अपने अंगूठे से उसकी चूत के दाने को ज़ोर से मसल दिया। चमेली एकदम से सिसया उठी और अपनी कमर को उछालने लगी।

कुसुम- देख साली कैसे अपनी गाण्ड उछाल रही है। ऐसे ही अपने गाण्ड उछाल-उछाल कर चुदवाई होगी ना तुम उस लौंडे से?

चमेली- दीदी ग़लती हो गई.. माफ़ कर दो, उसने मुझे संभलने का मौका ही नहीं दिया।

कुसुम- क्या उसने.. या तूने उसे मौका नहीं दिया.. जा री.. तेरी फुद्दी उसके लण्ड को देख कर लार टपकाने लगी होगी.. बोल साली.. मज़ा लेकर आई है ना.. जवान लण्ड का?

चमेली- अब बस भी करो दीदी.. कहा ना ग़लती हो गई.. आइन्दा ऐसा नहीं होगा।

कुसुम- चल साली जा अब.. आगे से उस छोरे से दूर रहना.. समझी।

चमेली बिस्तर से खड़ी हुई और कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।

चमेली तो चली गई, पर कुसुम की चूत में चमेली की चुदाई की बात सुन कर आग लग चुकी थी।

चमेली के जाने के बाद कुसुम ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपनी चूत को मसलने लगी।

कुसुम अपनी चूत को मसलते हुए अपनी चूत की आग को ठंडा करने के कोशिश कर रही थी, पर कुसुम जैसे गरम औरत को भला उसकी पतली सी ऊँगलियाँ कैसे ठंडा कर सकती थीं।

फिर अचानक से कुसुम के दिमाग़ में कुछ आया और वो उठ कर बैठ गई।

‘अगर वो साली छिनाल उस जवान लौंडे का लण्ड अपनी बुर में ले सकती है तो मैं क्यों अपनी उँगलियों से अपनी चूत की आग बुझाने की कोशिश करूँ… चाहे कुछ भी हो जाए..आज उसे नए लौंडे का लण्ड अपनी चूत में पिलवा कर ही रहूँगी।’

यह सोचते ही चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और वो उठ कर अपनी साड़ी पहनने लगी।

साड़ी पहनने के बाद वो अपने कमरे से बाहर आकर घर के पीछे की ओर चली गई।

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राजू बाहर ही चारपाई पर लेटा हुआ था और सुनहरी धूप का आनन्द ले रहा था।

कुसुम के कदमों की आवाज़ सुन कर वो उठ कर खड़ा हो गया और कुसुम की तरफ देखने लगा।

‘आराम कर रहे हो… लगता है आज बहुत थक गए हो तुम?’

कुसुम ने मुस्कुराते हुए राजू से कहा।

‘जी नहीं.. वो कुछ काम नहीं था, इसलिए लेट गया।’

कुसुम- अच्छी बात है, आज तुम आराम कर लो अभी.. क्योंकि रात को तुझे मेरी मालिश करनी है… समझे… थोड़ा वक्त लगेगा आज…

राजू सर झुकाए हुए- जी।

कुसुम पलट कर जाने लगी, वो अपनी गाण्ड आज कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, जैसे वो घर के आगे की तरफ पहुँची, तो मुख्य दरवाजा पर किसी के आने के दस्तक हुई।

कुसुम ने जाकर दरवाजा खोला, तो कुसुम के चेहरे का रंग उड़ गया। सामने गेंदामल की चाची खड़ी थीं, जो उसी गाँव में रहती थीं- और सुना बहू कैसी हो?

गेंदामल के चाची ने अन्दर आते हुए कुसुम से पूछा।

गेंदामल की चाची का नाम कान्ति देवी था।

कान्ति देवी शुरू से ही गरम मिजाज़ की औरत थी। भले ही अपनी जवानी में उसने बहुत गुल खिलाए थे, पर अब 65 साल की हो चुकी कान्ति देवी अपनी बहुओं पर कड़ी नज़र रखती थी।

आप कह सकते हैं कि उसे डर था कि जवानी में जो गुल उसने खिलाए थे, वो उसकी बहुएँ ना कर सकें।

कान्ति देवी को देख कुसुम का मुँह थोड़ा सा लटक गया, पर फिर भी होंठों पर बनावटी मुस्कान लाकर कान्ति देवी के पैरों को हाथ लगाते हुए बोली- मैं ठीक हूँ चाची जी.. आप सुनाइए आप कैसी हैं?

कान्ति अन्दर के ओर बढ़ते हुए- ठीक हूँ बहू.. अब तो जितने दिन निकल जाएँ… वही जिंदगी, बाकी कल का क्या भरोसा। कल इस बुढ़िया की आँख खुले या ना खुले।

कुसुम- क्या चाची.. अभी आपकी उम्र ही क्या है.. अभी तो आप अच्छे-भले चल-फिर रही हो।

कुसुम चाची को अपने कमरे में ले गई, कान्ति कुसुम के बिस्तर पर पालती मार कर बैठ गई- वो गेन्दा कह गया था मुझसे कि आज रात तुम अकेली होगी.. इसलिए मैं तुम्हारे पास सो जाऊँ, इसलिए चली आई।

कुसुम भले ही अपने मन ही मन बुढ़िया को कोस रही थी, पर वो उसके सामने कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी।

‘यह तो आपने बहुत अच्छा किया चाची… और वैसे भी आप हमें कब सेवा करने का मौका देती हो.. अच्छा किया जो आप यहाँ आ गईं।’

कान्ति- अब क्या बताऊँ बहू.. मुझे तो मेरी बहुएँ कहीं जाने ही नहीं देती, बस आज निकल कर आ गई।

कुसुम- अच्छा किया चाची जी आपने।

शाम ढल चुकी थी और कुसुम का मन बेचैन हो रहा था। वो जान चुकी थी कि आज फिर उसकी चूत को तरसना पड़ेगा।

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चमेली सेठ के घर से आ चुकी थी और खाना बनाने में लगी हुई थी और राजू भी घर के छोटे-मोटे कामों में लगा हुआ था।

राजू अपना काम निपटा कर पीछे अपने कमरे में चला गया।

चमेली की बेटी रज्जो भी आ गई, चमेली ने कुसुम और कान्ति को खाना दिया।

कुसुम और कान्ति देवी बाहर आँगन में बैठ कर खाना खा रही थीं।

चमेली ने उन दोनों को खाना देने के बाद राजू के लिए खाना परोसा और पीछे की तरफ जाने लगी।

कुसुम चमेली को पीछे के तरफ जाता देख कर- अए, कहाँ जा रही है?

चमेली कुसुम की कड़क आवाज़ सुन कर घबराते हुए- जी वो राजू को खाना देने जा रही थी।

कुसुम- तुम रुको.. ये थाली रज्जो को दे.. वो खाना दे आती है, तू जाकर ये पानी गरम कर ला… इतना ठंडा पानी दिया है.. क्या हमारा गला खराब करेगी।

कुसुम की बात सुन कर चमेली का मुँह लटक गया, उसने रज्जो को खाना दिया और राजू को देकर आने के लिए बोला और खुद मुँह में बड़बड़ाती हुई रसोई में चली गई।

रज्जो बहुत ही चंचल स्वभाव की थी, वो राजू को घर के पीछे बने उसके कमरे में खाना देने के लिए गई और अपने चंचल स्वभाव के चलते वो सीधा बिना किसी चेतावनी के अन्दर जा घुसी।

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अन्दर का नज़ारा देख कर जैसे रज्जो को सांप सूंघ गया हो, अन्दर राजू पलंग पर लेटा हुआ था।

उसका पजामा, उसके पैरों में अटका हुआ था और वो अपने लण्ड को हाथ में लिए हुए तेज़ी से मुठ्ठ मार रहा था, उसके दिमाग़ में सुबह की चुदाई के सीन घूम रहे थे।

रज्जो की तो जैसे आवाज़ ही गुम हो गई हो।

राजू बिस्तर पर लेटा हुआ अपने 8 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था और रज्जो राजू के मूसल लण्ड को आँखें फाड़े हुए देखे जा रही थी।

राजू इससे बेख़बर था कि उसके कमरे में कोई है।

रज्जो आज अपनी जिंदगी में दूसरी बार किसी लड़के का लण्ड देख रही थी।

पहली बार उसने लण्ड तब देखा था, जब उसका बाप उसकी माँ की चुदाई कर रहा था और चमेली अपनी गाण्ड को उछाल-उछाल कर अपने पति का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।

बस फर्क इतना था कि उसके बाप का लण्ड राजू के लण्ड से आधा भी नहीं था।

अपनी माँ की कामुक सिसकारियाँ सुन कर उससे उसी दिन पता चल गया था कि जब औरत की चुदाई होती है, तो औरत को कितना मजा आता है, बाकी रही-सही कसर उसकी सहेलियों ने पूरी कर दी थी।

जिसमें से कुछ उससे दो-तीन साल बड़ी थीं और उनकी शादी हो चुकी थी।

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रज्जो अक्सर उनकी चुदाई के किस्से सुन चुकी थी, पर आज राजू के विशाल लण्ड को देख कर उसकी चूत में एक बार फिर सरसराहट होने लगी।
रज्जो अक्सर अपनी सहेलयों से यह भी सुन चुकी थी कि लण्ड जितना बड़ा हो, उतना ही मज़ा आता है।

उसकी सहेलियाँ अकसर अपने पति के लण्ड के बारे में बात करती रहती थीं, जो अक्सर उसकी चूत में भी आग लगाए रखती थी।

यहाँ तो राजू का विशाल लण्ड उसकी आँखों के ठीक सामने था.. उसके हाथ-पैर अंजान सी खुमारी के कारण काँपने लगे।
जिसके चलते उसके हाथ में पकड़ी हुई थाली में हलचल हुई और राजू की आँखें खुल गईं।

राजू हड़बड़ा कर खड़ा हो गया, उसने देखा सामने रज्जो हाथ में खाने की थाली लिए खड़ी उसके लण्ड की तरफ आँखें फाड़े देख रही है।

जैसे ही दोनों के नज़रें मिलीं, रज्जो ने नज़रें झुका लीं और थाली को नीचे रख कर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गई।

राजू को समझ में ही नहीं आया कि आख़िर ये सब कैसे हो गया, पर अब वो कर भी क्या सकता था, उसने अपने पजामे को ऊपर करके बांधा और बाहर जाकर हाथ धोने के बाद आकर खाना खाने लगा।

खाना खाने के बाद राजू अपने झूटे बर्तन लेकर घर के आगे आ गया।

कान्ति खाना खाने के बाद कुसुम के कमरे में चली गई थी.. पर कुसुम अभी भी आँगन में लगे बड़े से पलंग पर बैठी हुई थी।

चमेली और रज्जो नीचे चटाई पर बैठे खाना खा रहे थे।

राजू ने अपने झूठे बर्तन रसोई में रख दिए और वापिस घर के पिछवाड़े की तरफ जाने लगा, पर कुसुम ने उसे रास्ते में ही आवाज़ दे कर रोक दिया और अपने पास बुला लिया।

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एक लम्बी कथा जारी है।