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गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ कुनबा 2

Gendamal halwai ka chudakkad kunba-2

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि सीमा चलती हुई ट्रेन में गेंदामल की मुठ्ठ मार रही थी और वो भी सब की नज़रों से बच कर, पर राजू की नज़र उस पर पड़ चुकी थी, जिससे देखते-देखते उसका लण्ड भी उसके पजामे में कब तन कर खड़ा हो गया.. उसे पता भी नहीं चला।

गेंदामल के विपरीत राजू अभी अपनी जवानी के दहलीज पर था और उसका लण्ड गेंदामल से 3 इंच बड़ा और कहीं ज्यादा मोटा था।

अपने सामने कामुक नज़ारा देख कर कब राजू का लण्ड खड़ा हो गया और कब उसका हाथ खुद ब खुद लण्ड के पास पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला।

उसने अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से भींच लिया और धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।

वो अपने सामने हो रहे गेंदामल और सीमा के कामुक खेल को देख कर ये भी भूल गया था कि उसके बगल में गेंदामल की बेटी दीपा बैठी हुई है।

वो ये सब देखते हुए, धीरे-धीरे अपने लण्ड को हिलाने लगा, उसका लण्ड पजामे को ऊपर उठाए हुए.. पूरी तरह से तना हुआ था।

दीपा जो कि सर झुकाए और आँखें बंद किए हुए उसके पास बैठी थी, उसने अचानक से अपनी आँखें खोलीं और जो नज़ारा उसके आँखों के सामने था, उसे देख कर मानो उसके साँसें अटक गई हों।

उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।

पजामे के ऊपर से राजू का विशाल लण्ड देखते ही, उसकी दिल के धड़कनें बढ़ गईं।

उसके बदन में अजीब सी सरसराहट होने लगी।

दोनों एकदम पास-पास बैठे थे।

जब राजू अपने लण्ड को हाथ से हिलाता था.. तब उसकी कोहनी दीपा के बगल से उसकी चूची के बिल्कुल पास रगड़ खाने लगी।

उसके पूरे बदन में अजीब सी मस्ती की लहर दौड़ गई।

राजू इस बात से बिल्कुल अंजान सीमा और गेंदामल की रासलीला को देखते हुए, अपने लण्ड को तेज़ी से हिलाए जा रहा था।

दीपा को एक और झटका तब लगा, जब उसने राजू की नज़रों का पीछा किया और राजू की नज़रों का पीछा करते हुए उसकी नज़रें जिस मुकाम पर पहुँची.. उसे देख कर तो जैसे दीपा के दिल की धड़कनें रुक गई हों।

वो अपनी नज़रें अपने पिता और नई सौतेली माँ से हटा नहीं पा रही थी।

अचानक से राजू का हाथ हिलना बंद हो गया, जब इसका अहसास दीपा को हुआ तो, वो एकदम से चौंक गई।

उसने धीरे से अपने चेहरे को राजू की तरफ घुमाया, जो उसकी तरफ ही देख रहा था। जैसे ही दोनों की नज़रें आपस में टकराईं, दीपा एकदम से झेंप गई।

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उसने अपने सर को झुका लिया, ना चाहते हुए भी उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, पर नीचे सर झुकाए हुए, दीपा के सामने दूसरा अलग ही नजारा था।

नीचे राजू का लण्ड उसके पजामे के अन्दर उभार बनाए हुए झटके खा रहा था।

जैसे-जैसे राजू का लण्ड झटके ख़ाता, दीपा का मन उछल जाता।

माहौल इस कदर गरम हो चुका था कि राजू को पता नहीं चला कि कब उसका हाथ पीछे से दीपा की कमर पर आ गया..!

जैसे ही दीपा की कमर पर राजू का हाथ पड़ा, दीपा का पूरा बदन काँप गया।

सामने उसके पिता का लण्ड उसकी नई सौतेली माँ हिला रही थी और नीचे राजू का लण्ड झटके खा रहा था। जिसे देख कर जवान कोरी चूत में सरसराहट होने लगी।

राजू का हाथ दीपा की कमर पर रेंग रहा था और दीपा का पूरा बदन मस्ती भरे आलम में थरथर काँप रहा था।

ये सब राजू के लिए भी बिल्कुल नया था, जिसने आज तक किसी लड़की या औरत को छूना तो दूर, आज तक आँख उठा कर बुरी नज़र से देखा तक नहीं था।

आज अपने सामने चल रहे कामुक खेल को देख कर वो भी बहक गया था..!

इस बात से अंजान कि वो सेठ की बेटी की कमर को सहला रहा है। अगर दीपा इस बात की शिकायत अपने पिता गेंदामल से कर देती तो, शायद राजू के खैर नहीं होती।

पर दीपा का हाल भी कुछ राजू जैसा ही था, आज जिंदगी में पहली बार वो किसी मर्द और औरत के कामुक खेल को अपनी आँखों से साफ़-साफ़ अपने सामने देख रही थी और दूसरी तरफ राजू का तना हुआ लण्ड उसके पजामे में फुंफकार रहा था।

दीपा अपनी कनखियों से नीचे राजू के लण्ड की तरफ देख रही थी। वो भी अपना आपा खोने लगी थी।

राजू के हाथ का स्पर्श उसे अन्दर तक हिला चुका था।

न ज़ाने क्यों.. पर उसका हाथ खुद ब खुद राजू की जांघ पर रेंगने लगा।

उसने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश कि पर कामुकता से अधीर हो चुकी दीपा का भी अपने पर बस नहीं चल रहा था।

उसकी सलवार के अन्दर उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी।

जैसे ही उसके काँपते हुए हाथों के ऊँगलियाँ राजू के लण्ड से टकराईं… राजू के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।

जिसे गेंदामल और सीमा तो नहीं सुन पाए, पर उसकी ये मस्ती भरी आवाज़ सुन कर कुसुम जो कि ऊंघ रही थी.. उसकी आँखें खुल गईं और जब उसकी नज़र राजू और दीपा पर पड़ी, तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।

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दीपा का हाथ राजू की जांघ पर था और उसकी हाथों की काँप रही ऊँगलियाँ धीरे-धीरे राजू के लण्ड पर रगड़ खा रही थीं।

वो एकदम हैरान रह गई.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये दीपा इतनी शरमाती है, वो खुले आम ट्रेन में ही, एक नौकर के लण्ड को अपने हाथ से छूने की कोशिश कर रही है।

आख़िर इतनी जल्दी उस नौकर ने दीपा पर क्या जादू कर दिया था, जो दीपा उससे इतना चिपक कर बैठी थी।

जब कुसुम ने दोनों की नज़रों का पीछा किया तो, उससे भी एक और झटका लगा। गेंदामल सीमा के सामने खड़ा हुआ अपने लण्ड को उससे रगड़वा रहा था।

‘कमीना साला..!’

कुसुम ने दिल ही दिल में गेंदामल को गाली दी- इसे ज़रा भी शरम नहीं है… ये भी नहीं देखता कि पास में जवान बेटी बैठी हुई है..!

पर अगले ही पल कुसुम के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।

उसका कारण ये था कि कुसुम दीपा के सौतेली माँ ही थी और जब से गेंदामल ने तीसरी शादी करने का फैसला किया था, तब से वो गेंदामल के खिलाफ थी, पर उससे चुप करवा दिया गया था।

गेंदामल के रुतबे के आगे किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी।

गेंदामल को वारिस देने में नाकामयाब हो चुकी कुसुम के लिए ये सबसे बड़ी हार थी।

कुसुम जानती थी कि गेंदामल अपनी बेटी दीपा को जी-जान से प्यार करता है। उसकी हर जरूरत को पूरा करता है और कुसुम यह देख कर बहुत खुश थी कि उसकी बेटी एक नौकर के साथ अपना मुँह काला करवा रही थी।

कुसुम को ना तो राजू की कोई परवाह थी और ना ही दीपा की उससे तो अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेना था।

चाहे वो कैसे भी हो…!

उधर दीपा का चेहरा सुर्ख लाल होकर दहक रहा था। इतनी सर्दी होने के बावजूद भी उसके चेहरे पर पसीना आ रहा था।

एक साइड बैठी कुसुम दीपा की हालत को बखूबी समझ रही थी। राजू का हाथ दीपा के कमर से थिरकता हुआ, उसके चूतड़ों पर आ गया।

दीपा के पूरे बदन में मस्ती के लहर दौड़ गई। उसकी आँखों की पलकें भारी होकर बंद होने लगीं।

जिसे देख कर कुसुम के होंठों की मुस्कान बढ़ती जा रही थी।

दीपा का बदन थरथर काँप रहा था।

राजू ने अपने हाथ फैला कर उसके चूतड़ को अपनी हथेली में भर कर ज़ोर से दबा दिया।

“उंह..”

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दीपा के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।

भले ही दीपा ये सब कुछ करना नहीं चाहती थी, पर उससे समय हालत ही कुछ ऐसे हो गए थे कि वो कुछ कर नहीं पा रही थी।

वो यह भी जानती थी कि अगर यह बात उसके पिता गेंदामल को पता चली, तो उसके पिता राजू को रास्ते में ट्रेन से नीचे फेंक देंगे। जिसके चलते दीपा थोड़ा सहम गई थी और दूसरा कुछ माहौल भी गर्म हो चुका था।

राजू ने अपने हाथ से धीरे-धीरे दीपा के चूतड़ों को मसलते हुए, अपने हाथ की उँगलियों को चूतड़ों के नीचे ले जाना शुरू कर दिया।

जैसे-जैसे राजू के हाथों की ऊँगलियाँ दीपा के चूतड़ों और संदूक के बीच घुस रही थीं, दीपा के बदन में नाचते हुए भी मस्ती के लहरें उमड़ने लगतीं, पर
दीपा का पूरा वजन संदूक पर था।

जिसके कारण राजू अपने हाथ की उँगलियों को उसके चूतड़ों के नीचे नहीं लेजा पा रहा था। दूसरी तरफ बैठी सीमा ये मंज़र देख कर मुस्करा रही थी।

सीमा ने अपना पहला दाँव खेला, उसने दीपा को आवाज़ लगाई- दीपा वो पानी की सुराही देना..!

कुसुम की आवाज़ सुन कर दीपा एकदम से हड़बड़ा गई। उसके चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया।

‘जी…जी.. अभी देती हूँ..!

यह कह कर दीपा पानी की सुराही को उठाने के लिए जैसे ही झुकी, उसके चूतड़ों और संदूक के बीच में जगह बन गई, जिसका फायदा काम-अधीर हो चुके राजू ने बखूबी उठाया और अपनी उँगलियों को दीपा के चूतड़ों के नीचे सरका दिया।

जैसे ही पानी की सुराही को उठा कर दीपा सीधी हुई, उसकी साँसें मानो अटक गईं।

उसके चूतड़ों के ठीक नीचे राजू का हाथ था।

कुसुम ने आगे बढ़ कर दीपा के हाथ से सुराही ली और जानबूझ कर दूसरी तरफ देखने लगी ताकि दीपा और राजू को शक ना हो कि वो उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रही है।

दूसरी तरफ गेंदामल और सीमा अपने काम में मशरूफ थे। उन्हें तो जैसे दीन-दुनिया की कोई खबर ही नहीं थी, पर इधर दीपा का बुरा हाल था।

राजू ने अपने हाथों की उँगलियों को दीपा के चूतड़ों की दरार में चलाना शुरू कर दिया।

दीपा एकदम मस्त हो चुकी थी। उसकी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं। राजू की ऊँगलियाँ दीपा के गाण्ड के छेद और चूत की फांकों से रगड़ खा रही थीं।