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गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ कुनबा-30

Gendamal Halwai Ka Chudakkad Kunba-30

गुंजा ने एक बार कमरे से बाहर झाँक कर देखा, बाहर दूर-दूर तक कोई नहीं था.. फिर गुंजा एक दीवार से सट गई और अपने लहँगे को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया।

यह देख कर रतन के दिल की धड़कनें और तेज हो गईं।
उसके सामने गुंजा के एकदम साफ़.. बिना झांटों वाली चूत थी.. जिसकी फाँकें आपस में सटी हुई थीं।

गुंजा की चूत देखते ही, रतन के दिमाग़ में कल रात देखी.. अपनी काकी शोभा की चूत आँखों के सामने घूम गई।

गुंजा की चूत की उलट शोभा की चूत बहुत ही घनी झाँटों से भरी हुई थी।

अपनी चूत की तरफ रतन को यूँ घूरता देख कर गुंजा के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई.. उसने रतन को इशारे से पास आने के लिए कहा।

रतन काँपते हुए क़दमों के साथ गुंजा की तरफ बढ़ा।

जैसे ही रतन गुंजा के पास पहुँचा, गुंजा ने रतन के कंधे पर हाथ रख कर उसने नीचे की ओर दबाया।

रतन गुंजा का इशारा तुरंत समझ गया और नीचे पैरों के बल बैठ गया।

अब गुंजा की चूत ठीक रतन के मुँह के सामने थी, गुंजा उसकी गरम साँसों को अपनी चूत पर महसूस करके मदहोश हुए जा रही थी।

उसने रतन के सर को पकड़ कर उसके चेहरे को अपनी चूत पर लगा दिया, उसका पूरा बदन मस्ती में काँप गया।

‘आह रतन ओह्ह.. चूस्स्स ना.. मेरी चूत ओह्ह…’

गुंजा ने कसमसाते हुए कहा और फिर रतन के सर को छोड़ कर अपने दोनों हाथों से अपनी चूत की फांकों को फैला दिया।

अब रतन के सामने गुंजा की चूत का लपलपाता छेद आ गया.. उसकी चूत का दाना एकदम फूला हुआ था।

गुंजा ने उसने अपनी ऊँगली से रगड़ते हुआ कहा- ले रतन चूस इसे मेरे जान… कब से मरी जा रही हूँ।

गुंजा की कामुक सिसकारियाँ रतन के ऊपर अपना जादू सा कर रही थीं और रतन मन्त्र-मुग्ध होकर अपने होंठों को उसकी चूत की तरफ बढ़ाने लगा।

गुंजा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर एक ज़ोर से ‘सस्स्स्स्सिईई’ के आवाज़ के साथ उसका पूरा बदन अकड़ गया..
रतन ने उसकी चूत के दाने को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।

गुंजा दीवार से पीठ टिका कर अपनी जाँघें फैलाए खड़ी थी और अपने बालों को मस्ती में नोचने लगी।

गुंजा- ओह्ह हाँ.. रतन ओह चूस.. ज़ोर से..इई आह्ह.. आह्ह.. मर..गइईई.. बहुत मज़ा आ रहा है.. ओ माआ.. ओहुम्ह ओह्ह हा..आँ चूस्स्स मेरी चूत को ह ह…

गुंजा की चूत से निकल रहे कामरस का स्वाद रतन थोड़ी देर के लिए अटपटा सा लगा, पर गुंजा की मदहोशी और मस्ती से भरी सिसकारियाँ उस पर अलग सा नशा कर रही थीं।

गुंजा कभी रतन के सर को अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लेती, तो कभी वो अपने बालों को नोचने लगती।

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रतन उसकी चूत को ऐसे चूस रहा था मानो कोई बच्चा माँ का दूध पीता हो.. गुंजा की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था और रतन को तो मानो कोई नई चीज़ मिल गई हो।

वो बड़ी तन्मयता के साथ उसकी चूत की दाने को चूस रहा था।

गुंजा का पूरा बदन दोहरा हुआ जा रहा था, फिर एकदम से गुंजा का बदन ढीला पड़ गया और उसके चेहरे पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
गुंजा को शांत देख कर रतन ने अपना चेहरा उसकी चूत से हटाया और खड़ा हो गया।

गुंजा ने अपनी वासना से भरी आँखों को खोल कर रतन की तरफ देखा।

उसके होंठों पर गुंजा की चूत से निकला हुआ कामरस लगा हुआ था। गुंजा ने अपने लहँगे को पकड़ कर उसके चेहरे को साफ़ किया।

इससे पहले कि गुंजा या रतन कुछ बोलती.. दूर खड़ी माँ ने रतन को चिल्लाते हुए आवाज़ लगाई।

वो रतन को घर चलने के लिए कह रही थी, उसकी माँ दूध दुह चुकी थी। बेचारा रतन मुँह लटका कर कमरे से निकल कर माँ की तरफ चल पड़ा।

चुदाई का जो मज़ा आज रतन को मिला था, वो उसी की याद में दिन भर इधर-उधर भटकता रहा।

रात ढल चुकी थी, सब लोग खाना खा कर अपने कमरों में जा चुके थे।

उधर रतन शोभा के कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ था और सोने की कोशिश कर रहा था।

इतने में शोभा कमरे में आ गई।

रतन बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसके बदन पर सिर्फ़ एक चड्डी थी, शायद गरमी के वजह से उसने कपड़े नहीं पहने थे।

वो अभी भी सुबह के घटना-क्रम में खोया हुआ था और उसका 5 इंच का लण्ड उस चड्डी को ऊपर उठाए हुए तना हुआ था।

जैसे ही शोभा दरवाजे बंद करके उसकी तरफ मुड़ी, तो सबसे पहले उसकी नज़र बिस्तर पर लेते हुए रतन पर पड़ी।

जो अपने ही ख्यालों की दुनिया में खोया हुआ था, फिर अचानक से उसकी नज़र रतन की चड्डी के तरफ पड़ी, जो आगे से फूली हुई थी।

शोभा के दिमाग़ में उसी पल आज सुबह हुई घटना गूँज गई और उसके आँखों के सामने वो नज़ारा आ गया.. जब उसने रतन के काले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे को देखा था।

आज उसके भतीजे का लण्ड फिर से सर उठाए हुआ था, जैसे वो अपनी काकी को सलामी दे रहा हो।

पर रतन तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं था, उससे ये भी नहीं पता था कि उसकी काकी कमरे में आ चुकी हैं।
अपने भतीजे का लण्ड यूँ चड्डी में खड़ा देख कर एक बार शोभा की आँखों में अजीब सी चमक आ गई और उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।

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शोभा- रतन बेटा.. कहाँ खोया हुआ है? दूध रखा है पी ले।

रतन शोभा की आवाज़ सुन कर एकदम से चौंकते हुए बोला- जी.. जी काकी जी।

जैसे ही रतन खड़ा होने को हुआ तो उसका ध्यान अपने लण्ड की तरफ गया जो एकदम तना हुआ था और उसकी चड्डी को फाड़ कर बाहर आने के लिए तैयार था।

रतन ने बिस्तर पर बैठते हुए, अपनी दोनों जाँघों को आपस में सटा लिया ताकि काकी की नज़र उस पर ना पड़ सके।

पर रतन नहीं जानता था कि उसकी काकी कब से उसके तने हुए लण्ड को देख कर ठंडी ‘आहें’ भर रही थी।

शोभा ने रतन को यूँ थोड़ा परेशान देख कर कहा- क्या हुआ रतन… परेशान क्यों है?

अब रतन बेचारा क्या कहे कि उसका लण्ड गुंजा की वजह से सुबह से खड़ा है, वो बोला- वो काकी मुझे पेशाब आ रही है।

शोभा ने हँसते हुए कहा- तो जा.. फिर पेशाब कर आ… कहीं बिस्तर मत गीला कर देना।

रतन ने थोड़ा खीजते हुए कहा- क्या काकी..

शोभा जानती थी कि रतन अंधेरे में अकेला बाहर नहीं जाता है, तो वो बोली- अच्छा चल आ.. मैं तेरे साथ चलती हूँ।

यह कहते हुए शोभा ने अपनी साड़ी उतार कर टाँग दी, अब उसके बदन पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट था।

एक बार तो रतन भी अपनी काकी के गदराए हुए बदन को देखे बिना नहीं रह सका।
एकदम साँचे में ढला हुआ बदन.. 38 नाप की चूचियाँ.. हल्का सा गदराया हुआ पेट.. कद साढ़े 5 फुट के करीब.. गोरा रंग.. चेहरा भी पूरी तरह से भरा हुआ ये सब आज दूसरी नजर से देखकर तो रतन की और बुरी हालत हो गई।

शोभा यह जान चुकी थी।
जब तक वो रतन की तरफ देख रही है.. वो खड़ा नहीं होगा.. इसलिए उसने पलट कर दरवाजे खोला और बाहर चली गई और बाहर से आवाज़ लगाई, ‘रतन जल्दी आ जा… मुझे बहुत नींद आ रही है..’

जैसे ही काकी बाहर गईं.. रतन भी उठ कर बाहर चला गया.. बाहर बहुत अंधेरा था इसलिए रतन का संकोच थोड़ा कम हो गया।

गुसलखाने के पास जाकर शोभा रतन की तरफ पलटी।

उसने देखा कि रतन उससे नजरें चुराने की कोशिश कर रहा है। यह देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने रतन को पेशाब करने के लिए कहा।
रतन जल्दी से गुसलखाने में घुस गया।
शोभा रतन में आए अचानक इस बदलाव से थोड़ी हैरान जरूर थी, पर कल रात से उसमें भी बदलाव आ चुका था।

रतन के चाचा की मौत के बाद से ही रतन उसके कमरे में सो रहा था, पर आज तक उसके मन में रतन के लिए कभी ऐसा विचार नहीं आया था।
पर कल रात से उसकी अन्दर की छुपी हुई वासना ने फिर से सर उठा लिया था।

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रतन गुसलखाने के अन्दर ठीक उसके सामने खड़ा था। उसकी पीठ शोभा की तरफ थी और रतन की चड्डी उसकी जाँघों तक नीचे उतरी हुई थी।

ये सब देख और रतन में आए बदलाव के बारे में सोच कर शोभा के मन में पता नहीं क्या आया, वो एकदम से गुसलखाने में घुस गई।

रतन अन्दर आई हुई शोभा को देखकर एकदम से चौंक गया और उसकी तरफ घबराते हुए देखने लगा। शोभा उसकी घबराहट ताड़ गई और उसकी ओर देखते हुए बोली- मुझे भी बहुत तेज पेशाब लगी थी।

यह कहते हुए.. उसने अपने पेटीकोट को पकड़ कर कमर तक उठा लिया और पैरों के बल नीचे बैठ गई।

भले ही बाहर अंधेरा था.. पर शोभा की झाँटों भरी चूत रतन से छुपी ना रह सकी।

फिर मूतने की तेज आवाज़ के साथ उसकी चूत से मूत की धार निकलने लगी, मूतने की आवाज सुन कर रतन का लण्ड और झटके खाने लगा।

शोभा ने देखा कि रतन मूत नहीं रहा है.. बस अपना लण्ड पकड़ कर खड़े हुए.. उसकी ओर चोर नज़रों से देख रहा है।

‘क्या हुआ.. पेशाब नहीं आ रही..?’ शोभा ने यूँ बैठे-बैठे ही कहा।

जिससे सुन कर राजू एकदम से हड़बड़ा गया और अपनी चड्डी ऊपर करके बिना कुछ बोले कमरे में चला गया।
शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

जब शोभा अन्दर आई तो उसने देखा कि रतन बिस्तर पर बैठा हुआ दूध पी रहा था।
अन्दर आने के बाद उसने दरवाजे बन्द किया और रतन की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली- दूध पी लिया?

रतन ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए खाली गिलास नीचे रख दिया।

शोभा अकसर कमरे में कपड़े बदलने के वक़्त लालटेन की रोशनी कम कर देती थी, पर आज उसने ऐसा नहीं किया और फिर अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
रतन उसके पीछे बैठा.. टेड़ी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था।

जैसे ही शोभा के बदन से उसका पेटीकोट अलग हुआ तो रतन का लण्ड फिर से उसकी चड्डी के अन्दर कुलाँचे भरने लगा।

सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी शोभा उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी.. उसकी कमर जो सांप की तरह बल खा रही थी।
उस पर से रतन चाह कर भी अपनी नज़र हटा नहीं पा रहा था।

शोभा ने अपना ब्लाउज टाँग कर दूसरा पतला सा ब्लाउज पहन लिया, पर उसके हुक बंद नहीं किए और फिर रतन की तरफ मुड़ी।

एक लम्बी कथा जारी है।