हिंदी सेक्स स्टोरी

हाथ को आई लंड को न लगी

Hath ko ayi lund ko na lagi

दोस्तो, मेरा नाम विनीत है और मैं अलीगढ़ उत्तर-प्रदेश का रहने वाला हूँ।

आजकल मैं दिल्ली में अपनी रातें काट रहा हूँ।

मैं दिखने में ज़्यादा अच्छा तो नही हूँ लेकिन जो उस दिन हुआ वो बिल्कुल भी अच्छा नहीं हुआ।

उसने मेरी रात की नींद जो उड़ा दी है।

समय को बेकार की बातों में क्यों बेकार करना, सीधे मेरी पहली कहानी की तरफ चलते हैं।

किस्सा करीब एक साल पहले का है जब मैं तिरुपति से वापस आ रहा था।

मैं अपनी दोस्त मंडली के साथ कुछ दिन की छुट्टियों मैं वहाँ गया था, भगवान जी को खुश करने।

लेकिन मुझे नहीं पता था भगवान मेरी इतनी जल्दी इच्छा पूरी कर देंगे।

हम लोग ट्रेन में स्लीपर क्लास से वापस आ रहे थे।

जहाँ मुझे मेरी पहली चूत मिली।

हम सब दोस्तो को साथ में सीट नहीं मिली थी।

एक सीट सबसे अलग थी।

यूँ तो मैं लड़कियों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था मगर वो दिन ही कुछ अलग था।

जैसे ही मैंने उसे देखा मैंने सोच लिया आज तो कुछ हो जाए इसे तो अपना बनाना ही है।

मैंने अपने दोस्तो से कहा तुम लोग साथ वाली सीट्स पर सो जाओ।

मैं अलग वाली सीट पर सो जाऊंगा और चला आया।

लड़की दिखने में तो सावली थी पर थी मस्त, मोटे-मोटे चूचे, मस्त गांड।

उसकी सीट नीचे की थी और मेरी उससे ऊपर वाली, जैसे होता है ना लड़का ऊपर लड़की नीचे।

उससे बातें करने के बहाने मैं उसी की सीट पर ही बैठ गया।

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धीरे-धीरे हम बातें करने लगे।

बीच-बीच में वो किसी को मेसेज कर रही थी।

मैंने कहा लगता है – अपने बॉय फ्रेंड को मेसेज कर रही हो।

वो हंस पड़ी।

कहते है ना लड़की हँसी तो समझो फँसी।

धीरे-धीरे हम मूवी की बातें करने लगे, मैंने उससे पूछा कि उसे कौन-कौन से हीरो पसंद है उसने रणबीर और इमरान का नाम लिया और धीरे से बोली कि आप एक दम रणबीर के जैसे लगते हो।

अब तो ग्रीन सिग्नल भी मिल गया था।

फिर क्या था?

मैं धीरे-धीरे खुलने लगा।

उसके पैरों पर धीरे-धीरे उंगलियाँ फिराने लगा।

उसने कुछ नहीं कहा।

वो अंजान बन रही थी, जैसे मैं कुछ कर ही नहीं रहा था।

लेकिन धीरे-धीरे उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।

मैंने फिर धीरे से अपना हाथ थोड़ा ऊपर बढ़ाया और उसकी जांघों से खेलने लगा।

मैं उसके साथ ऐसे खेल रहा था जैसे कोई बच्चों को सहलाता है।

तभी कुछ हल चल हुई, हम एक दूसरे से अलग हो गये।

हम समझ गये कि ये सही जगह नहीं है।

मैंने उससे धीरे से बाथरूम मैं आने के लिए कहा और खुद बाथरूम चला गया।

पीछे-पीछे वो भी अपनी खूबसूरत गांड हिलाते हुए आ गयी। अंदर आते ही मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों का रस पान करने लगा।

अब मैं उसके बूब्स पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगा।

उसके चुचे को देख कर कोई भी बता सकता था कि आम खाने को तैयार हो गये हैं।

मैंने देर ना करते हुए आमों का रस चूसना शुरू कर दिया।

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मेरे हाथ उसकी गरम भट्टी को सहला रहे थे।

जो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।

उसके हाथ भी मेरे लंड तक आ गये थे।

फिर धीरे से मैंने उसकी पैंटी नीचे करने की कोशिश की लेकिन वो कहने लगी कॉन्डोम है?

मैंने ना में गर्दन हिलाई।

अब वो मुझे बड़ी मासूमियत से देखने लगी।

उसकी आँखें ये ही कह रही थीं कि बिना कॉन्डोम के नहीं करूँगी।

मेरे को भी होश आया कि बिना कॉन्डोम के करना ठीक नहीं है।

हम इस तरह प्यासे के प्यासे रह गये और वो अचानक से बाथरूम से बाहर चली गयी।

उसकी आँखों में प्यास थी जो पूरी ना हो सकी।

और मैं भी अपना लंड हिलता रह गया अब तो मैं हमेशा अपने साथ कॉन्डोम रखता हूँ।

क्या पता कब जैकपॉट लग जाए?

जब में बाहर आया तो वो अपनी सीट पर नहीं थी।

अपना समान लेकर जा चुकी थी।

उसके बाद हमारी मुलाकात कभी नहीं हुई।

लेकिन उसकी वो नशीली आँखें आज भी मुझे सोने नही देती।

दोस्तो, आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी, मुझे मेल करके जरूर बतायें, इस पर भी आपके सुझाव भेजें।

मुझे आपके मेल का इन्तज़ार रहेगा।