कुंवारी लड़की के बूब्स चूस-चूस कर बड़े किए
यह कहानी मेरी मौसी की बेटी अंकिता के साथ हुई छेड़छाड़ की है। जहाँ अंकिता पूरी तरह से मेरे वश में थी, लेकिन मैं उसे नहीं चोद सका।
मैं आप सबसे क्या बोलूं… मेरा नाम रवि है। मैं हरियाणा से हूँ। 28 साल का हूँ। यह बात आज से दो साल पुरानी है। आप को सच लगे या झूठ, पर ये आप सब जानो… मैं सिर्फ सत्य ही लिख रहा हूँ।
एक बार मैं अपनी मौसी के घर गया था। मेरी मौसी दिल्ली में रहती हैं। उनके तीन बेटियाँ और एक बेटा है। जो बड़ी बेटी है… मैं उसका नाम नहीं लिख सकता हूँ। इसलिए नाम बदलकर लिख रहा हूँ। अंकिता… उसकी आयु 19 की है। वो 12वीं कक्षा में है।
मैं वहाँ कुछ दिनों के लिए गया था। उनके पास एक बड़ा सा हॉल टाइप का कमरा था। सब वहीं सोते थे। मुझे भी वहाँ सोना था।
मौसी खाना बना रही थीं, मौसा जी रात की ड्यूटी पर चले गए थे। मैं एक बड़ा सा कंबल लेकर ले गया और टीवी देख रहा था। अंकिता भी मेरे बराबर थी। बाकी और सब दूसरी तरफ एक ही कंबल में थे। सर्दी के दिन थे। अंकिता के पैर से मेरा पैर छू गया। उससे मेरे शरीर में उत्तेजना होने लगी। मेरा शरीर ऐसे गरम हो गया… जैसे मुझे बुखार हो गया हो।
इसके चलते अंकिता का हाथ मेरी ओर से छू गया। उसने लगा कि मुझे बुखार हो गया है। उसने कहा- भाई आपको बुखार है क्या?
मैंने बोला- नहीं तो…
उसकी जांघ और मेरी जांघ अभी भी एक साथ मिली हुई थीं। तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी तरफ देखा।
मैं उसे ही देख रहा था। मेरा लंड लोअर में ऊपर उठा हुआ था। इस बीच मैंने अंकिता से कहा- मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो।
तो वो कुछ नहीं बोली और मैंने थोड़ी हिम्मत करके उसकी कमर पर हाथ रख दिया। उसके मुँह से हल्की सी सिसकार की आवाज निकली।
मैंने उसके गले के पास से अंदर हाथ डालकर उसकी चुचियों को भी दबा दिया। उसे मजा आने लगा तो मैंने कंबल में अंदर अपना मुंह डालकर चुचियों को उसके ऊपर से बाहर निकालकर चूसना शुरू कर दिया।
उसने कुछ नहीं कहा… मेरी और हिम्मत बढ़ गई। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर काफी देर तक चूमा, साथ ही मुझे डर भी था कि कोई हमें देख न ले।
मैंने अपना चेहरा कंबल से बाहर निकाला और देखा कि सब टीवी देख रहे हैं। फिर मैंने अंकिता की शालवार में अपने हाथ अंदर कर दिए। उसकी चूत पर बाल थे… उसने कभी साफ नहीं किए थे। मैंने उससे इशारा करके पूछा तो उसने मुंडी ना में हिलाकर बताया कि नहीं काटे।
उसकी चूत गीली हो चुकी थी… उसके रस से भर चुकी थी। रस बाहर निकल रहा था। मेरी उंगली गीली हो गई थी। वो कुंवारी थी। मैंने उसकी चूत में एक उंगली डाली। चूत किसी भट्टी की तरह गरम हो रही थी। मैंने अपना हाथ बाहर निकाला और अपनी उंगली… जो उसकी चूत के रस से भीगी हुई थी… उसे मुँह में डाल दिया।
वाह.. इतना अच्छा स्वाद लगा कि मैं बता नहीं सकता।
अब मेरा तो बुरा हाल हो रहा था। लंड लोअर फाड़ कर आने को तैयार था। पर मैं क्या कर सकता था। मुझे उसकी चूत चाटने का मन था… लेकिन कमरे में सब थे। इसलिए कुछ नहीं कर सका। मैंने अपना लंड उसके हाथ में दिया। उसने अपना हाथ वापस खींच लिया।
मैंने दोबारा से उसका हाथ पकड़कर लंड उसके हाथ में दिया। अबकी बार उसने उसे पकड़ लिया। उसका हाथ बहुत ही कोमल था। हम दोनों काफी देर तक इस तरह रहे। मैंने अपनी उंगली से उसका पानी निकाल दिया… लेकिन मेरा पानी नहीं निकला था। वो उठी और टॉयलेट चली गई। फ्रेश होकर वापस अपनी जगह पर आ गई।
तबही मौसी जी ने सबको खाना लगा दिया था। हम सबने खाना खाया और सबके बिस्तर अलग-अलग लगा दिए गए। अब मैं अलग था… तीनों लड़कियाँ एक साथ थीं, उनका छोटा भाई मौसी के साथ ही सोता है।
मैं अलग लेते हुए था, रात तो जहन्नुम हो गई सुबह हुई.. तो सोचा आज कुछ बात बन जाए।
कहते हैं ना जिसका पाने का इंतज़ार करो… वो ज्यादा देर में मिलता है।
वही हुआ.. दिन बहुत बड़ा लगने लगा.. जाैसे-तैसे रात हुई।
सब कल की तरह चल रहा था। मौसी खाना बनाने में लगी हुई थीं। बाकी सब टीवी देख रहे थे। मैं भी टीवी देख रहा था और अंकिता कुछ देर बाद आकर मेरे पास ही लेट कर टीवी देखने लगी। सर्दी होने के कारण कंबल सब ने डाल लिया था।
अंकिता ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे से उसने कहा- आज आपका हाथ गर्म नहीं है। मैंने भी उसका हाथ दबाते हुए कहा- यहाँ गर्मी तो तुमहारी है।
उसने मुस्कुराकर अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। मैंने आराम से उसकी चुचियों पर हाथ रखा और दबा दिया, जिससे उसके मुँह से ‘ऊुएे..’ की आवाज निकली। मेरा लंड तो सब कुछ फाड़ कर बाहर आने को तैयार था।
मैंने प्यार से उसकी दोनों चुचियों को दबाना शुरू किया… वो आंखें बंद करके मम्मै दबाने का मजा ले रही थी। मेरे लंड का बुरा हाल हो रहा था। मेरा मन कर रहा था कि बस इसे यहीं अंदर चोद दूं पर सबके होने के कारण उचित नहीं था।
मुझे अपनी नहीं… अंकिता की ज्यादा चिंता थी… क्योंकि उस पर सब उंगली उठाते और मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरे कारण किसी के दामन पर दाग लगे। मैंने उसकी चुचियों को दबाते हुए मैं भी उसके साथ में लेट गया। मैंने कंबल में अपना सिर अंदर कर लिया, उसकी एक चुची उसके कमर से बाहर निकालकर चूसने लगा।
एक कुंवारी लड़की के चुचुक बहुत ही छोटे होते हैं। मैं उनको बड़े मजे से चूस रहा था। कुछ देर चूसने के बाद मैंने अपने एक हाथ को उसकी चूत पर लगा दिया… जो पहले से ही बहुत गीली हो चुकी थी और बत्ती की तरह गरम हो रही थी। अंकिता बस अपनी आँखें बंद करके थी। मैंने एक उंगली उसकी चूत में डाली और बाहर निकालकर उसके रस से सनी उंगली पहले अपने मुँह में डाल दी और फिर दोबारा उसकी चूत में अंदर कर दी।
अबकी बार मैंने चूत से उंगली निकालकर अंकिता के मुँह में डाल दी और उसने बड़े मजे से मेरी उंगली चूसी। हम दोनों काफी देर तक इसी को करते रहे।
मैं वहाँ 4 दिन तक रहा। हम दोनों इसी तरह एक-दूसरे के अंगों से खेलते रहे। चोदने का मौका ही नहीं मिला।
एक बार उसकी चाची की बेटी की शादी थी। मैं भी वहाँ गया था… मैंने सोचा क्यों न इसको कहीं बाहर ले जाकर चुदाई करूं… लेकिन उसका छोटा भाई ने साथ चलने भी ज़िद करके मेरी बाइक पर चढ़कर साथ में ही लड़ गया।
खैर.. मैं एक बार उसे अंदर भी ले गया। वहाँ भी कुछ नहीं हो सका। कोई फायदा नहीं हुआ। हम दोनों आज भी अधूरे हैं।
मुझे पता नहीं कि यहाँ पर आप सब को मेरी यह बात कैसी लगी होगी… लेकिन जो सच था वो मैंने लिखा है।