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कुतिया बना के चूत चोदी

(Kutiya Bana Kar Chut Chodi)

हाई दोस्तों, मेरा नाम अर्जुन राजपूत हैं और मैं छपरा का रहने वाला हूँ. मैं चूत मारने का बड़ा सौखीन हूँ और जहाँ चांस मिले वहाँ चूत चोदने के लिए तैयार होता हूँ. मित्रो यह बात पिछले साल की एक सत्य घटना के उपर आधारित हैं. जिसमे मैंने थोडा मसाला मिला के आप लोगो के समक्ष पेश कर रहा हूँ. लेकिन कथा का मूल आधार एक चुदाई की सच्ची कहानी हैं.

लास्ट इयर जून के अंत में बहुत बारिश हुई और मैंने और मेरा दोस्त कल्लू उसके गाँव हरियादपुर गए हुए थे. उसकी मंगनी की रसम थी और कुछ ही दिनों में प्रोग्राम था. बाकी के सभी दोस्त एकाद हफ्ते में आने वाले थे. लेकिन मेरा काम कम था इसलिए मैं उसके साथ चल पड़ा. हरियादपुर के छोटा गाँव हैं और उसकी बस्ती 1000 से भी कम हैं. कुछ पक्के मकानों को छोड़ के सभी कुटिया में रहते हैं. गाँव के लोगो की आमदनी मुख्यरूप से खेती से आती हैं. कल्लू का बाप यहाँ एक सरकारी मुलाजिम था और गाँव की एक रूम की स्कुल का वो कर्ताधर्ता था. कल्लू का मकान पक्का था. वैसे वो तो साल के 11 महीने छपरा में ही बिताता था. अगले दिन सुबह हम लोग हरियादपुर के पास आये एक बांध को देखने गए और वापस आने के समय मुझे बहुत प्यास लगी थी. रास्ते में मैंने एक कुटिया के बहार पानी का मटका देखा और दरवाजे को ठोक के अंदर आवाज दी, “कोई हैं.?”

अंदर से एक 28 साल की उम्र की औरत बहार आई, उसने हलके रंग की साडी पहनी हुई थी. पता नहीं क्यूँ कल्लू मुझे पीछे से बार बार कपडे खिंच के जाने को कह रहा था. औरत के आते ही मैं उसे कहा, “पानी मिल सकता हैं थोडा, मेरा गला सुख रहा हैं.”

इस औरत ने हंस के कहा, “क्यों नहीं, अभी देती हूँ.” उसने मटके को खोल के पानी निकाला और मुझे दिया. पानी पिते पीते मेरी और उसकी नजर एक हो गई. वो मेरे बदन को उपर से निचे तक देख रही थी. मुझे थोडा अजीब लगा लेकिन मैंने पानी पी के वहाँ से उसे थेंक्स कह के रास्ता नापा. वहाँ से निकलते ही कल्लू ने मुझे कहा, “साले पांच मिनिट रुक नहीं सकता था. क्या वही पानी पीना जरुरी था. ”

मैंने कल्लू की तरफ कतराती नजर से देखा और कहा, “अबे साले वहाँ पानी पिने से क्या आफत आ गई. और मुझे बहुत प्यास लगी थी यार.”

“अबे वो एक धंधेवाली का घर था. वो लंड और चूत के व्यापार में हैं.” कल्लू बोला.

मैंने एक पल के लिए उसे कुछ नहीं कहा और फिर बोला, “तो उसमे क्या हर्ज हैं. पानी तो कही भी पी सकते हैं. साले तो शहर में रह के भी देहाती सोच रखता हैं.”

कल्लू बोला, “अरे यह देहात हैं और यहाँ देहाती नहीं बने तो लोग जबान से ही गांड मार लेते हैं.”

मैंने कल्लू को कुछ नहीं कहा और हम लोग घर की और चल दिए. मुझे पता था की उससे मैं कितनी भी बहस कर लूँ लेकिन उसने अगर मेरी बात नहीं माननी हैं तो वो पूरी जिन्दगी नहीं मानेगा. लेकिन मेरे दिमाग में अब वो औरत घूम रही थी. अब मुझे पता चला की क्यों वो मुझे बारबार देख रही थी. अब मेरे मन में भी उसकी छायाकृति उभरने लगी, बड़ी आँखे, भरे हुए गाल, मस्त सुड़ोल शरीर और बड़े चुंचे अब जैसे की मेरे दिमाग से बहार आ रहे थे. वैसे पानी पिने के समय तो मैंने उसे इतने ध्यान से नहीं देखा था.

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अब मुझे तो रात में सोते समय भी उस औरत के विचार आने लगे थे. मैं सोच रहा था की अगर उसकी चूत चोदने को मिल जाए तो हरीयादपुर का सफ़र रंगीन बन जाएगा. कल्लू मेरी इसमें मदद करे इसके चांसिस ना के बराबर थे. गाँव के सरपंच का होने वाला दामाद और मास्टरजी का बेटा यह सब काम छपरा में करता हैं, यहाँ पर तो वो एक सुशिल और सज्जन इंसान हैं. मैं शाम को उठा और मोबाइल नेटवर्क का बहाना कर के बाइक ले के निकला. मैंने कल्लू को बोला वो घर पर ही रहे क्यूंकि महेमान आ जा रहे थे. कल्लू मेरी बात मान गया. मैंने बाइक को गाँव के बहार पीपल के निचे पार्क की और मैं फिर उस रंडी के घर की तरफ निकल पड़ा. मैंने देखा की अभी वो बहार बैठी सब्जी क़तर रही थी. उसने मेरी तरफ देखा और मैंने आँखों आँखों में ही उसे इशारा किया. उसने मुझे इशारे से घर में आने को कहा. वो उठ के घर में घुसी और दरवाजे को थोडा टेढ़ा कर दिया. मैं उसके पीछे पीछे इधर उधर देखता हुआ अंदर घुसा. अंदर जा के मैंने लकड़े के पलंग में बैठा और उड़ने दरवाजे को पूरा बंध किया. वो पीले रंग के ड्रेस में सज्ज थी. उसकी कथ्थई आँखे और भरे हुए चुंचे बहुत मादक लग रहे थे. उसने मेरी तरफ देख के पूछा,

“क्या हुआ बाबूजी, क्यों आना हुआ.”

मैंने शायरी वाले अंदाज में कहा, “प्यासा कुँए के पास नहीं आएगा तो कहा जाएंगा.”

उसने मस्तीवाली अदा से कहा, “पानी तो बहार ही हैं, ला दूँ.”

मैंने हँसते हुए उठ के उसे गले से लगा लिया और उसके चुंचे मसलते हुए कहा, “मुझे प्यार का पानी पिला दे अपनी चूत से जानेमन. बोल क्या लेगी.”

वो भी बड़ी चालाक थी, उसने मुझे उकसाते हुए कहा, “आप की प्यास बुझाने की क्या कीमत देंगे आप.”

मैंने जेब से 100 100 के तिन नोट निकाल के उसके हाथ में थमा दिए. उसने अपने बूब्स के उपर रखे हुए पर्स को निकाला और उसमे पैसे रख दिए. वो अपने कपडे उतारने जा रही थी, लेकिन मैंने उसके हाथ को पकड़ लिया. मुझे औरतो के कपडे खुद उतारने में बड़ा मजा आता हैं. मैं खुद पहले अपने कपडे उतार के पूरा नंगा हो गया और उसकी तरफ बढ़ा. उसके पास जा के मैंने उसके भरे हुए चुंचो को हाथ में लिया और जोर से दबाया. उसने भी मेरे लंड को हाथ में ले के उसे मसल दिया. मेरे लंड को उसका हाथ लगते ही अजब सी खुमारी हुई. मैंने उसके स्तन को दबाते हुए पीछे की डोरी खोली. उसके ड्रेस को उसके हाथ ऊँचे करा के मैंने उतारा और बोला, “दिखने में तो बड़े मस्त बूब्स हैं आप के डार्लिग. वैसे तुम्हारा नाम क्या हैं.”

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उसने लौड़े को हाथ से हिलाते हुए अपने सेक्सी आवाज में कहा, “मेरा नाम प्रिया हैं.”

मैंने अब उसके पीछे हाथ डाल के ब्रा का हुक खोला. उसके भारी स्तन तुरंत बहार झूलने लगे. ब्रा की साइज़ तो मैंने नहीं देखि लेकिन वो कम से कम 36D जरुर होगी. मैंने उसके चुंचो को अपने मुहं से चुसना चालू किया और साथ ही मैंने एक हाथ उसकी चूत के उपर भी रख दिया.वो कराहते हुए मेरे लौड़े को हिलाने लगी. कुछ 5 मिनिट में ही मैंने उसकी सलवार भी उतार डाली और उसने अंदर पहनी हुई सस्ती पेंटी उतार के उसकी हलकी हलकी झांटो वाली चूत को अपने हाथ से छू लिया. उसकी चूत पानी निकाल रही थी. क्यूंकि मैंने उसके स्तन चुसे थे उसकी चूत को भी अब लंड की जरुरत आन पड़ी थी. मैंने उसे निचे बिठाया और जैसे ही मैं अपना लंड उसके मुहं में देने जा रहा था, उसने कहा, “एक मिनिट बाबु जी.”

उसने बिस्तर के निचे हाथ डाला और सरकारी खाते से फ्री में मिलता कंडोम निकाला. उसने मेरे लंड के उपर कंडोम पहनाया और मुखमैथुन के लिए लंड को खिंचा.

प्रिया ने अब लंड को मुहं में लिया और उसे पूरा के पूरा जोर जोर से चूसने लगी. मुझे उसके लौड़े को चूसने से बहुत मजा आ रहा था. वो लंड के निचे गोलों को हाथ से मसाज दे राही थी और लंड को मस्त चूस्सा लगा रही थी. मैंने उसके माथे को हाथ में लिया और मैं उसके मुहं को जोर जोर से चोदने लगा. उसके मुहं से ग्ग्ग्ग ग्ग्ग्ग ग्ग्ग्ग ग्ग्ग्ग जैसे आवाज आ रही थी. लेकिन प्रीया थी बहुत अनुभव वाली क्यूंकि उसके मेरे लंड के अंदर जाने को आसन बनाने के लिए अपने गले का मार्ग खोल दिया था जैसे. वरना 8 इंच का लंड मुहं के अंदर पूरा के पूरा घुसना संभव ही नहीं था. मैंने उसके ऐसे ही 2 मिनिट तक भरपूर चोदा और फिर मैंने अपने लंड को मुहं से बाहर किया. प्रिया के दोनों होंठो पे बहुत सारा चिकना थूंक लगा हुआ था.

वो अब पलंग में अपनी टाँगे फैला के लेट गई. मैं उसकी टांगो के बिच में आ गया और उसकी चूत के होंठो के उपर लंड को रख दिया. प्रिया ने अपने हाथो से लंड को चूत के अंदर लिया और उसके सेट होते ही मैंने एक झटका दे दिया. लंड अंदर आधा घुस गया. प्रिया की चूत मस्त चिकनी थी और अंदर से गरम गरम भी. मैंने जैसे ही लंड को अंदर झटके दिए; प्रिया आह आह ओह ओह करने लगी. वैसे एक रंडी चुदवाते समय नहीं मोन करती हैं लेकिन मेरा लंड था ही इतना बड़ा के अच्छी अच्छी चूत इसके आगे पानी भरती थी. मैंने प्रिया को जोर जोर से ठोका और ठोकता ही रहा. उसकी चूत से 10 मिनिट की चुदाई के बाद झाग आने लगा और वो भी अपनी गांड को उठा उठा के मुझ से मजे लेने लगी. मैंने झुक के उसके स्तन फिर से मुहं में लिए और कस के उन्हें चूसने लगा. उसके निपल्स मस्त अकड चुके थे और वो मुझे बहुत ही स्वादिष्ट लग रहे थे. प्रिया उछल उछल के लंड के मजे ले रही थी. मैंने भी कस कस के उसकी चूत को ठोके रखा.

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मैंने अब अपना लंड प्रिया की चूत से बहार निकाला. लंड के उपर लगा कंडोम प्रिया ने बदला. मैंने उसे इशारा करते हुए उल्टा किया. वो अब कुतिया बन के अपनी गांड उठा के लेट गई. उसकी चूत से टपकता हुआ पानी मुझे और भी उत्तेजित कर रहा था. मैंने पीछे से उसकी चूत के अंदर लंड दिया और जोर जोर से उसके उपर उछलने लगा. प्रिया की चूत में पुरे का पूरा लंड घप घप होक ठेल रहा था मैं. उसको भी बहुत मजा आ रहा था, तभी तो वो भी अपनी गांड उठा उठा के लंड को और भी अंदर लेती जा रही थी. मैंने उसकी गांड के कुलो को हाथ से चौड़ा किया और उसकी चूत के अंदर बाहर होते हुए अपने लंड को देखने लगा. तभी मुझे लगा की अब मैंने झड़ने वाला हूँ. मैंने लंड के झटके और भी तीव्र कर दिए और पप्रिया भी मेरे लंड को अंदर के मसल खिंच के दबाने लगी. तभी मेरे लंड से 50 ग्राम जितना वीर्य निकला और पुरे का पूरा कंडोम भर गया. मैंने लंड की तह से कंडोम को पकड़ा और धीरे से लंड को बहार किया. प्रिया को मुझ से चुदाई का बहुत ही मजा आया.

उसने हँसते हुए कहा, “क्यों, बाबूजी प्यास बूझी के नहीं.”

मैंने कहा, “आज के लिए काफी हैं इतना, प्यास बूझी लेकिन कल इसी वक्त और प्यास लगेगी तो हम फिर कुँए के पास आएँगे.”

प्रिया बोली, “बाबूजी जब मन करे कुँए के अंदर अपना लोटा डाल के प्यास बुझा लेना.”

मेरे लिए उसने चाय बनाई और मैं चुपके से उसके वहाँ से निकल गया. पप्रिया की चूत का मजा मैंने फिर तो पुरे 4 दिन और लिया. 3 दिन के बाद दुसरे दोस्त भी आ गए और उन में से राकेश को भी मैं प्रिया के पास ले के गया. अब मैं इसी ताक में हूँ की कल्लू जल्द शादी करे और मुझे फिर से हरीयादपुर जाने का अवसर मिले……!