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मम्मी और दीदी के बिस्तर में 1

Mammi aur didi ke bistar mein-1

ये कहानी मुझे किसी ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर भेजी थी और उसका सम्पादन करके मैंने जस का तस उसी के शब्दों में आपके सामने प्रस्तुत कर दी है। आइए उसी के शब्दों में उसकी सच्चाई के इस भाग को जानते हैं।

मेरे घर में मैं, मेरी माँ, मेरी पत्नी और मेरी बहन है। मेरी बहन की शादी हो चुकी है और वो अपने ससुराल में रहती है। मैं अपनी माँ और पत्नी के साथ यहाँ हैदराबाद में रहता हूँ।

मेरी उम्र 28 साल की है और मेरी पत्नी 24 की है.. मेरी सास और मेरी साली अभी भी बनारस के पास एक गाँव में रहते हैं और वे लाग साल में 2-3 महीने हमारे यहाँ बिताती हैं। सच पूछो तो दोस्तों.. मेरा घर एक स्वर्ग है.. जहाँ किसी भी तरह की कोई मनाही नहीं है।

मैं आप को शुरू से ही ये सारी बातें बताता हूँ।

ये बातें मेरे बचपन की हैं.. घर पर मेरी माँ, मेरी दीदी और मैं सब साथ रहते थे।

मेरी उम्र करीब 18-19 के आस-पास थी.. मेरी लंबाई 5’7” की है।

मेरी दीदी की उम्र 22 साल की थी.. उसकी स्पोर्ट्स में रूचि थी और वो स्टेडियम जाती थी।

मेरी माँ टीचर है.. उसकी उम्र 37-38 की होगी.. मगर देखने में किसी भी हालत में 31-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी। माँ और दीदी एकदम गोरी हैं। माँ मोटी तो नहीं.. लेकिन भरे हुए शरीर वाली थीं और उनके चूतड़ चलने पर हिलते थे।

उनकी शादी बहुत जल्दी हो गई थी। मेरी माँ बहुत ही सुंदर और हँसमुख है.. वो जिंदगी का हर मज़ा लेने में विश्वास रखती हैं।

हालाँकि वो सबसे नहीं खुलती हैं.. पर मैंने उसे कभी किसी बात पर गुस्साते हुए नहीं देखा है।

ये बात उस समय कि जब मैं स्कूल में पढ़ता था और हर चीज को जानने के बारे में मेरी जिज्ञासा बढ़ रही थी.. ख़ासतौर से सेक्स के बारे में..

मेरे स्कूल के दोस्त अक्सर लड़की पटा कर मस्त रहते थे। उन्हीं में से दो-तीन दोस्तों ने अपने परिवार के साथ सेक्स की बातें भी बताईं.. तो मुझे बड़ा अज़ीब लगा। मैंने माँ को कभी उस नज़र से नहीं देखा था.. पर इन सब बातों को सुन-सुन कर मेरे मन में भी जिज्ञासा बढ़ने लगी और मैं अपनी माँ को ध्यान से देखने लगा। चूँकि गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं और मैं हमेशा घर पर ही रहता था।

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घर में मैं माँ के साथ ही सोता था और दीदी अपने कमरे में सोती थीं। माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं।

माँ, दीदी और मैं आपस में थोड़ा खुले हुए थे.. हालाँकि सेक्स एंजाय करने की कोई बात तो नहीं होती थी.. पर माँ कभी किसी चीज का बुरा नहीं मानती थीं और बड़े प्यार से मुझे और दीदी को कोई भी बात समझाती थीं।

कई बार अक्सर उत्तेजना की वजह से जब मेरा लंड खड़ा हो जाता था और माँ की नज़र उस पर पड़ जाती.. तो मुझे देख कर धीरे से मुस्कुरा देतीं और मेरे लंड की तरफ इशारा करके पूछतीं- कोई परेशानी तो नहीं है?

मैं कहता, “नहीं..”

तो वो कहतीं- पक्का.. कोई बात नहीं..?

मैं भी मुस्कुरा देता.. वो खुद कभी-कभी हम दोनों के सामने बिना शरमाए एक पैर पलंग पर रख कर साड़ी थोड़ा उठा देतीं और अन्दर हाथ डाल कर अपनी बुर खुजलाने लगतीं।

नहाते समय या हमारे सामने कपड़े बदलते वक़्त.. अगर उसका नंगा बदन दिखाई दे रहा हो.. तो भी कभी भी शरीर को ढँकने या छुपाने की ज़्यादा कोशिश नहीं की..

ऐसा नहीं था कि वो जानबूझ कर दिखाने की कोशिश करती हों.. क्योंकि इन सब बातों के बाद भी मैंने उसकी या दीदी की नंगी बुर नहीं देखी थी। बस वो हमेशा हमें नॉर्मल रहने को कहतीं और खुद भी वैसे ही रहती थीं। धीरे-धीरे मैं माँ के और करीब आने की कोशिश करने लगा और हिम्मत करके माँ से उस वक़्त सटने की कोशिश करता.. जब मेरे लंड खड़ा होता।

मेरा खड़ा लंड कई बार माँ के बदन से टच होता.. पर माँ कुछ नहीं बोलती थीं।

इसी तरह एक बार माँ रसोई में काम कर रही थीं और माँ के हिलते हुए चूतड़ देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया। मैंने ने अपनी किस्मत आज़माने की सोची और भूख लगने का बहाना करते हुए रसोई में पहुँच गया।

माँ से बोला- माँ भूख लगी है.. कुछ खाने को दो।

और ये कहते हुए माँ से पीछे से चिपक गया.. मेरा लंड उस समय पूरा खड़ा था और मैंने अपनी कमर पूरी तरह माँ के चूतड़ों से सटा रखी थी.. जिसके कारण मेरा लंड माँ के चूतड़ों के बीच थोड़ा सा घुस गया था।

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माँ हँसते हुए बोलीं- क्या बात है आज तो मेरे बेटे को बहुत भूख लगी है..

“हाँ माँ.. बहुत ज्यादा.. जल्दी से मुझे कुछ दो”

और मैंने माँ को और ज़ोर से पीछे से पकड़ लिया और उनके पेट पर अपने हाथों को कस कर दबा दिया। कस कर दबाने की वज़ह से माँ ने अपने चूतड़ थोड़ी पीछे की तरफ किए.. जिससे मेरा लंड थोड़ा और माँ के चूतड़ों के बीच में घुस गया। उत्तेजना की वज़ह से मेरा लंड झटके लेने लगा.. पर मैं वैसे ही चिपका रहा और माँ ने हँसते हुए मेरी तरफ देखा.. पर बोलीं कुछ नहीं…

फिर माँ ने जल्दी से मेरा खाना लगाया और थाली हाथ में लेकर बरामदे में आ गईं।

मैं भी उसके पीछे-पीछे आ गया.. खाना खाते हुए मैंने देखा.. माँ मुझे और मेरे लंड को देख कर धीरे-धीरे हँस रही थीं।

जब मैंने खाना खा लिया तो माँ बोलीं- अब तू जाकर आराम कर.. मैं काम कर के आती हूँ।

पर मुझे आराम कहाँ था.. मैं तो कमरे में आ कर आगे का प्लान बनाने लगा कि कैसे माँ को चोदा जाए.. क्योंकि आज की घटना के बाद मुझे पूरा विश्वास था कि अगर मैं कुछ करता भी हूँ.. तो माँ अगर मेरा साथ नहीं देगीं.. तो भी कम से कम नाराज़ नहीं होंगी।

फिर ये ही हरकत मैंने 5-6 बार की और माँ कुछ नहीं बोलीं.. तो मेरी हिम्मत बढ़ गई।

एक रात खाना खाने के बाद मैं कमरे में आकर लाइट ऑफ करके सोने का नाटक करने लगा.. थोड़ी देर बाद माँ आईं और मुझे सोता हुआ देख कर थोड़ी देर कमरे में कपड़े और सामान ठीक किया और फिर मेरे बगल में आकर सो गईं।

करीब एक घंटे के बाद जब मुझे विश्वास हो गया कि माँ अब सो गई होगीं.. तो मैं धीरे से माँ की ओर सरक गया और धीमे-धीमे अपना हाथ माँ के चूतड़ों पर रख कर माँ को देखने लगा।

जब माँ ने कोई हरकत नहीं की.. तो मैं उनके चूतड़ों को सहलाने लगा और उनकी साड़ी के ऊपर से ही दोनों चूतड़ों और गाण्ड को हाथ से धीमे-धीमे दबाने लगा। जब उसके बाद भी माँ ने कोई हरकत नहीं की तो मेरी हिम्मत थोड़ा और बढ़ी और मैंने माँ की साड़ी को हल्के-हल्के ऊपर खींचना शुरू किया।

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साड़ी ऊपर करते-करते जब साड़ी चूतड़ों तक पहुँच गई.. तो मैंने अपना हाथ माँ के चूतड़ों और गाण्ड के ऊपर रख कर.. थोड़ी देर माँ को देखने लगा.. पर माँ ने कोई हरकत नहीं की।

फिर मैं अपना हाथ उनकी गाण्ड के छेद से धीरे-धीरे आगे की ओर करने लगा, पर माँ की दोनों जाँघें आपस में सटी हुई थीं.. जिससे मैं उन्हें खोल नहीं पा रहा था।

फिर मैंने अपनी दो ऊँगलियां आगे की ओर बढ़ाईं तो मेरी साँस ही रुक गई।

मेरी ऊँगलियां माँ की बुर के ऊपर पहुँच गई थीं।

फिर मैंने धीरे-धीरे अपनी ऊँगलियों से माँ की बुर सहलाने लगा.. माँ की बुर पर बाल महसूस हो रहे थे।

चूँकि मेरे लंड पर भी झांटें थीं तो मैं समझ गया कि ये माँ की झांटें हैं। इतनी हरकत के बाद भी माँ कुछ नहीं कर रही थीं.. तो मैंने धीरे से अपनी पूरी हथेली माँ की बुर पर रख दी और बुर के दोनों होंठों को एक-एक कर के छूने लगा.. तभी मुझे महसूस हुआ कि माँ की बुर से कुछ मुलायम सा चमड़े का टुकड़ा लटक रहा है।

जब मैंने उसे हल्के से खींचा तो पता चला कि वो माँ की बुर की पूरी लंबाई के बराबर यानि ऊपर से नीचे तक की लंबाई में बाहर की तरफ निकला हुआ था और जबरदस्त मुलायम था।

उस समय मेरा लंड इतना टाइट हो गया था कि लगा जैसे फट जाएगा.. मैं धीरे से उठ कर बैठ गया और अपनी पैन्ट उतार कर लंड को माँ के चूतड़ से सटाने की कोशिश करने लगा… पर कर नहीं पाया।

तो मैं एक हाथ से माँ की बुर में ऊँगली डाल कर बाहर निकले चमड़े को सहलाता रहा और दूसरे हाथ से मुठ मारने लगा.. 2-3 मिनट में ही मैं झड़ गया।

पर जब तक मैं अपना गाढ़ा जूस रोक पाता.. वो माँ के चूतड़ों पर पूरा गिर चुका था। ये देख का मैं बहुत डर गया और चुपचाप पैन्ट पहन कर.. माँ को वैसा ही छोड़ कर सो गया।