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मेरी बुर साफ़ की जीजा जी ने ट्रेन में-2

(Meri Bur Saf Ki Jija Ji Ne Train Mein-2)

यही सोच कर जीजू को खुश करने का सोच लिया| जब कभी हम किसी पार्क में घुमने जाते, अपने बॉय फ्रेंड को मैं बस चूमती और अपनी चूचियाँ दबवा लेती थी|
वह हमेशा चाहता था मेरे साथ चुदाई करे पर मैं मना कर देती थी|

उस वक्त जीजू भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। और बोल रहे थे कि कितना चिकनी शरीर है|

हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था।

जीजू की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया (रिएक्शन) न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैंने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींच कर उनकी ज़िप को धीरे-धीरे खोल दिया।

जीजू इस पर भी कुछ कहने की बजाय मेरी कमर को कस-कस कर दबा रहे थे।

पैंट के नीचे उन्होंने चड्डी नहीं पहनी थी। मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी।

मैंने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंदर हाथ डालकर उनके लंड को बाहर खींच लिया।

अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो ना सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर-नीचे कर के उसकी लम्बाई-मोटाई को नापा।

सात-आठ इंच लम्बा और तीन इंच मोटा लंड था।                               “Meri Bur Saf Ki Jija”

उनका लंड बहुत गरम था ऐसा लग रहा था कि किसी लोहे की सलाख़ को आग में गरम कर के निकला गया है|

बजाय डर के, मेरे दिल के सारे तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में लंड था, उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी।

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इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर जीजू भी अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे।

वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई।

अब जीजू ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा।

उधर उन्होंने अपने हाथों को मेरी अनछुई चूचियों पर पहुँचाया इधर मैंने सिसकारी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया।

जीजू मेरी चूचियों को सहलाते-सहलाते धीरे-धीरे दबाने भी लगे थे। मैंने उनके लंड को गाल से सहलाया।

जीजू ने एक बार बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुँह से कराह निकल गई, तो मैं जीजू से बोली कि थोडा धीरे से दबाओ न जीजू दर्द होता है जोर से दबाने पर।

हम दोनों में इस समय भले ही बातचीत नहीं हो रही थी मगर एक-दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे।

जीजू एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी-थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं।                                        “Meri Bur Saf Ki Jija”

मैं उनके हाथ को सुविधा अनुसार मन चाही जगह पर पहुँचने देने के लिये अपने हाथ को नीचे लायी और पैंट की बेल्ट को खोल दिया।

उनका हाथ अंदर पहुँचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होंने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया।

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उनका हाथ जब और नीचे यानि जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण ना पहुँच सका तो वो हाथ को पीछे से खींच कर सामने की ओर लाये।

इस बार उन्होंने ने मेरी पैंट की ज़िप खुद खोली और मेरी बुर पर हाथ फिराया।

मैंने बहुत दिनों से बाल साफ़ नहीं किये थे इसलिए मेरी बुर पर घने बाल उग आये थे|

तो जीजू धीरे से बोले कि यह जंगल तो साफ कर लेतीं, मेरी जान|

बालों वाली बुर पर हाथ लगते ही मैं बेचैन हो गई। वो मेरी फूली हुई बुर को मुट्ठी में लेकर भींच रहे थे।

मैंने बेबसी से अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठा कर जीजू के लंड का सुपाड़ा चूमा और उसे मुँह में लेने की कोशिश की परंतु उसकी मोटाई के कारण मैंने उसे मुँह में लेना उचित न समझा और उसे जीभ निकाल कर चाटने लगी।

मेरी गर्म और खुरदुरी जीभ के स्पर्श से जीजू बुरी तरह आवेशित हो गये।

उन्होंने आवेश में भरकर मेरी गीली बुर को टटोलते हुये एक झटके से बुर में उंगली घुसा दी।

मैं सिसकारी भरकर उनके लंड सहित कमर से लिपट गयी।                           “Meri Bur Saf Ki Jija”

मेरा दिल कर रहा था कि जीजू फ़ौरन अपनी उंगली को निकाल कर मेरी बुर में अपना लंड ठूंस दें।

मेरी ये इच्छा भी जल्द ही पूरी हो गयी। जीजू अपने आप को रोक न सके और मेरी टांगों में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचने लगे।

मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपना सिर उनकी जांघों से उतारा और कम्बल के अंदर ही अंदर घूम गयी। अब मेरी टांगें जीजू की तरफ थीं और मेरा सिर बर्थ के दूसरे तरफ था।

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जीजू ने अब अपनी टांगों को मेरे बराबर में फिर मेरे कूल्हों को उठा कर अपनी टांगों पर चढ़ा लिया और धीरे-धीरे कर के पहले मेरी पैंट खींच कर उतार दी और उसके बाद मेरी पैंटी को भी खींच कर उतार दिया, अब मैं कम्बल में पूरी तरह नीचे से नंगी थी।

अब मेरी बारी थी, मैंने भी जीजू के पैंट को बहुत प्यार से उतार दिया।

अब जीजू ने थोड़ा आगे सरक कर मेरी टांगों को खींच कर अपनी कमर के इर्द-गिर्द करके पीछे की ओर लिपटवा दिया।

मेरा मन बहुत डर रहा था कि जीजू दीदी को रात में रुला देते थे पेल-पेल के मेरा क्या होगा आज?

इस समय मैं पूरी की पूरी उनकी टांगों पर बोझ बनी हुयी थी। मेरा सिर उनके पंजों पर रखा हुआ था।

मैंने ज़रा सा कम्बल हटा कर आसपास की सवारियों पर नज़र डाली सभी नींद में मस्त थे। किसी का भी ध्यान हमारी तरफ़ नहीं था।

फिर मेरी नज़र जीजू की तरफ पड़ी उनका चेहरा आवेश के कारण लाल हो रहा था। वो मेरी ओर ही देख रहे थे न जाने क्यों उनकी नज़रों से मुझे बहुत शरम आयी और मैंने वापस कम्बल के अंदर अपना मुँह छुपा लिया।                       “Meri Bur Saf Ki Jija”