हिंदी सेक्स स्टोरी

मेरी मुनिया उसका पप्पू-3

Meri Muniya Uska Pappu-3

मेरे शरीर में गुदगुदी सी होने लगी थी। मन कर रहा था कि शमशेर जल्दी से अपना लंड मेरी इस बिलबिलाती चूत में डाल कर मेरी चूत की आग को ठंडा कर दे। शमशेर अब मेरी चूत पर हाथ फिराने लगा। उसने एक हाथ से अपना लंड पकड़े उसे हिलाए जा रहा था। फिर उसने अपना लंड मेरी चूत के मुहाने पर रख दिया। मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था पर इस नये अनुभव से मैं रोमांच में डूब गई। मैं जानती थी पहली बार में बहुत दर्द होता है पर मैं उस मज़े को भी लेना चाहती थी।

मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और अपने दांत भींच लिए,“प्लीज शमशेर… कण्डोम लगा लेना !”

“पर कण्डोम से मज़ा नहीं आएगा !”

“ना बाबा मैं कोई रिस्क नहीं ले सकती !”

“चलो ठीक है।” कह कर पास पड़ी पैंट की जेब से कण्डोम का पैकेट निकाला।

“प्लीज धीरे करना… ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”

“मेरी रानी, तुम बिल्कुल चिंता मत करो !”

उसने कण्डोम अपने लंड पर चढ़ा लिया और फिर मेरे ऊपर आ गया। उसने अब एक हाथ मेरे सिर के नीचे लगाया और एक हाथ मेरी बगल के नीचे से करते हुए मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैंने डर के मारे अपनी चूत को अंदर से भींच लिया। इसके साथ ही उसने एक धक्का लगाया तो उसका सुपारा ऊपर की ओर फिसलता हुआ मेरे दाने से रगड़ खाने लगा। उसने ऐसा 2-3 बार किया। उसका लंड मेरे चूत रस से गीला हो गया। मैंने अब अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर दी।

शमशेर ने एक हाथ नीचे ले जाकर मेरी चूत की मखमली फाँकों को थोड़ा सा खोला और फिर छेद को टटोल कर अपने सुपारे को सही जगह लगा कार एक धक्का मारा।

धक्का इतना जबरदस्त था कि उसका आधा लंड मेरी झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर चला गया था। सच कहती हूँ मेरी भयंकर चीख निकल गई, मुझे लगा कोई गर्म सलाख मेरी चूत में घुस गई है।

“ओह… मैं मर जाऊँगी… प्लीज रुको….. ओह…. ” मैं बिलबिलाई।

“मेरी जान तुम्हें मरने कौन साला देगा… बस हो गया…” कहते कहते उसने 2-3 धक्के और लगा दिए और उसका 6.5 इंच का लंड पूरा मेरी चूत में फिट हो गया। मुझे बहुत तेज दर्द भी हो रहा था और जलन भी हो रही थी जैसे किसी ने मेरी चूत को अंदर से चीर दिया हो, कुछ गर्म गर्म सा भी लग रहा था, शायद मेरी कुंवारी झिल्ली फट गई थी।

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पर जो होना था हो चुका था।

कुछ देर वो मेरे ऊपर पड़ा रहा। मैं किसी घायल कबूतरी की तरह छटपटाने लगी पर उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में भरे रखा। थोड़ी देर बाद मुझे कुछ होश आया। अब दर्द भी थोड़ा कम हो गया था। मुझे अपनी चूत में ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अंदर मूसल ठोक रखा हो।

अब शमशेर ने अपने कूल्हे थोड़े ऊपर किए। मैंने सोचा वो बाहर निकाल लेगा। पर मेरा अंदाज़ा गलत निकला। उसने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर से एक धक्का लगाया। एक फक्च की आवाज़ निकली और फिर से पूरा लंड अंदर समा गया।

अब हौले-हौले वो अपने लंड को अंदर-बाहर करने लगा। मुझे भी अब कुछ मज़ा आने लगा था। मेरी कलिकाएँ उसके लंड के साथ अंदर बाहर होने लगी थी। किसी ने सच कहा है इस वर्जित फल खाने जैसा स्वाद दुनिया की किसी चीज में नहीं है।

मैंने भी अब अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर नीचे करना शुरू कार दिया। अब उसका ध्यान मेरे कसे हुए मम्मों पर गया। उसने एक हाथ से मेरे एक संतरे को पकड़कर मसलना चालू कर दिया। और दूसरे के निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। मैं उसके सिर पर हाथ फिराने लगी।

एक एक करके वो मेरे दोनों रसीले संतरों को साथ में चूसता रहा और ऊपर से धक्के भी लगता रहा। मेरी मीठी सीत्कारें निकलने लगी।

“क्यों मेरी जान, अब मज़ा आया या नहीं?”

“हाँ शमशेर… आह…”

“तुम पता नहीं क्यूँ उस लल्लू के पीछे इतनी दीवानी बनी घूम रही थी?”

“हम…” सच मैं तो निरी झल्ली ही थी।

फिर उसने अपना एक हाथ मेरे नितंबों के नीचे किया और मेरी गांड की दरार को सहलाने लगा। इससे पहले कि मैं कुछ समझती उसकी एक अंगुली मेरी गांड में घुस गई।

“उईईई … माँ……………” मेरे मुँह से अचानक निकल गया।

“एक बात बताऊँ?”

“ओहो…. अपनी अंगुली बाहर निकालो…. !”

“मेरी रानी तुम्हारी गांड तो लगता है तुम्हारी चूत से भी ज्यादा खूबसूरत है?”

“क्या मतलब…?”

“यार…. सुम्मी मैंने उस साले सुमित की बहुत गांड मारी है। उसके अलावा भी 4-5 लड़कों की गांड बहुत बार मारी है… पर…. सच कहता हूँ तुम्हारी इस गांड का जवाब ही नहीं है।”

सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। तो क्या सुमित…? “ओहो… नो…. ?” मेरे मुँह से निकाला।

“मैं सच कहता हूँ… बहुत मज़ा आता है। एक बार तुम भी करवा लो प्लीज?”

“शट अप…!”

“तुम तो खामखाँ नाराज़ हो रही हो।”

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“नो… मुझे यह सब नहीं करवाना !” मैंने उसका हाथ हटा दिया।

“चलो कोई बात नहीं !” कहकर उसने जोर जोर से मेरी चुदाई शुरू कर दी।

मैं आँखें बंद किए उस आनद के सागर में गोते लगाने लगी। मेरी चूत से दनादन रस निकल रहा था। अचानक मुझे लगा मेरा सिर घूमने लगा है और मेरी आँखों में सतरंगी तारे से जगमगाने लगे हैं। मेरे सारे शरीर में एक अनोखी तरंग सी उठने लगी है। यह तो ठीक वैसा ही अहसास था जब मैं अपनी चूत में देर तक अंगुली करने के बाद होता है। मेरा शरीर थोड़ा सा अकड़ा और फिर मेरी चूत में जैसे कोई उबाल सा आया और झर झर झरना सा बहाने लगा। इस आनंद को कोई भला शब्दों में कैसे बयान कर सकता है।

अब तक कोई 10-12 मिनट हो चुके थे। वो कभी मेरे गालों को चूमता कभी मेरे मम्मों को चूसता और कभी मेरे होंठों को अपने मुँह में भरकर किसी कुल्फी की मानिंद चूसता। अब मैंने भी अपने नितम्ब उठा उठा कार उसका साथ देना शुरू कर दिया।

अब उसके धक्कों की रफ्तार तेज हो गई। वो हांफने सा लगा था और मीठी आहें सी भरने लगा था…… “मेरी रानी … मेरी सुम्मी….. मैं भी जाने वाला हूँ….. मेरी जान…. आह….”

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मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और अपने नितंबों को उछालने लगी। उसने कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मुझे लगा मेरी चूत ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया है। उसके मुँह से भी गूर्र… गूर्र। की आवाज़ें सी आने लगी थी। उसके साथ ही मुझे लगा उसका लंड मेरी चूत के अंदर फूलने पिचकने लगा है। उसने 4-5 धक्के जोर जोर से लगाए फिर उसके धक्कों की रफ्तार धीमी पड़ती गई और उसने किसी भैंसे की तरह हुंकार सी भरी और एक अन्तिम धक्का लगाते हुए मेरे उपर गिर पड़ा।

मैंने अपनी चूत को अंदर सिकोड़ लिया। आह… उस संकोचन और जकड़न में कितना मज़ा था। बिना चुदाई के इसे अनुभव नहीं किया जा सकता। थोड़ी देर बाद वो मेरे ऊपर से उठ खड़ा हुआ।

मैं भी उठ बैठी। अब मेरा ध्यान उसके लंड पर गया। वो सिकुड़ सा गया था और उस पर मेरी चूत का रस और खून सा लगा था। वो बाथरूम चला गया। मैंने अब अपनी चूत रानी को देखा। वो सूज कर मोटी सी हो गई थी। दरार कुछ चौड़ी सी हो गई थी और फाँकों के दोनों तरफ खून भी लगा था, चादर भी गीली हो गई थी, उस पर भी खून के दाग से लगे थे।

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मैंने झट से अपने कपड़े पहन लिए। शमशेर अब वापस आ गया था।

“जान एक राउंड और नहीं खेलोगी?”

“नहीं, अब मुझे घर जाना है… तुमने मेरी हालत ही खराब कर दी है….. लगता है मैं 2-3 दिन ठीक से चल भी नहीं सकूंगी।”

“मेरी जान तुम तो मुझे रात को ही कहोगी… एक बार आ जाओ !” वो हँसने लगा। मेरी भी हंसी निकल गई।

“रात की बात रात को देखेंगे….. पर अब तो मुझे जाने दो !”

मैं अपने घर आ गई। शमशेर सच कहता था। रात को मुझे उसकी बहुत याद आई। फिर तो मैंने पूरे साल उससे जी भर कर चुदवाया। मैंने उसे हर आसन में चुदवाया और चुदाई के सभी रंगों को भोगा और अनुभव किया पर उसके बहुत मिन्नतें करने के बाद भी मैंने उसे अपनी गांड नहीं मारने दी। वो हर बार मेरी गांड मारने का जरूर कहता पर मैंने हर बार उसे मना कर दिया।

अगले साल पता नहीं क्यों वो पी.जी. करने दूसरे शहर चला गया। खैर अब मुझे पप्पुओं की क्या कमी थी?

यह थी मेरी कहानी !

ओह… एक बात तो मैं बताना ही भूल गई। मैंने बी.सी.ए. कम्प्लीट कर लिया है और एक कंपनी में जॉब भी लग गई है। मेरी शादी अगले महीने होने वाली है। मेरे पापा ने मेरे लिए एक अदद पप्पू ढूंढ लिया है। मैंने सुना है आजकल हर दंपति गांड चुदाई का जरूर आनन्द लेते हैं। क्या मेरा यह पप्पू भी मेरी गांड मारेगा? ना बाबा ! मुझे तो बहुत डर लगता है। क्या पता चूत की तरह उसमें भी खून निकले? मैं तो मर ही जाऊँगी !

आप क्या कहते हो ? क्या मुझे शादी से पहले गांड चुदाई का भी अनुभव और मज़ा ले लेना चाहिए ताकि जब मेरा पति मेरी गांड मारे तो मुझे कोई परेशानी ना हो?

आप बताएंगे ना?

आप की सलाह के इंतज़ार में…. सिमरन कौर

दोस्तो, मुझे मेल करना मत भूलना।