पड़ोसी की चुदाई

पड़ोसन की बड़ी चूची और मजेदार चूत

Padosan ki badi chuchi aur majedar chut

मेरी पड़ोसन बहुत मस्त है जो लगभग 32 साल की है और दो बच्चों की माँ है, रंग गोरा, शरीर भरा हुआ, न एकदम दुबला न एक दम मोटा-ताज़ा। मतलब बिल्कुल गज़ब की। उसकी चूचियाँ तो दो-दो किलो की है और उसके चुतड़ कुछ ज़्यादा ही बाहर निकले हुए हैं। मेरे ख़्याल से उसकी फिगर 36-32-31 तो जरुर होगी। मैं उसे चोदने के चक्कर में दो सालों से लगा था, और उसके नाम से मूठ मारा करता था। उसके पति की रेडीमेड कपड़ों की दुकान है वे अपना माल दिल्ली ख़ुद ही जाकर लेकर आते थे।

एक दिन वह मेरी माँ के पास किसी काम से आई उस समय मेरी माँ छत पर सुखाए कपड़े लेने गई थी। उसने आवाज लगाई तो मेरी माँ ने उसे अंदर बैठने के लिए कह दिया। मैं चारपाई पर लेता हुआ था वो मेरे पास आकर बैठ गई. मैं धीरे धीरे उसके पीछे उंगली लगाने लगा। उसने मेरा हाथ पीछे कर दिया और बोली – कोई आ जाएगा।
फिर मेरी हिम्मत बढ़ गई। मैंने उसकी चूची दबा दी। वह खड़ी हो गई। मैंने उसे बैठने के लिए कहा। उसने इंकार कर दिया। मैं उठकर उसके पास गया तो वो हंसकर बाहर जाने लगी लेकिन मैंने उसके हाथ को पकड़ लिया और उसे झटके से अपनी ओर खींच लिया। मैंने जमकर उसकी चूची दबाई और चूमा चाटी करने लगा। तभी सीड़ियों से माँ के कदमों की आवाजे आने लगी। मैं झट से चारपाई पर लेट गया और वो दरवाजे के पास ऐसे खड़ी हो गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मेरी माँ से बाते करते – करते वो मुझे कातिल नजरों से देख रही थी और बीच – बीच में मेरी माँ से नजरे बचाकर हँस रही थी।

थोड़ी देर बातें करके वो अपने घर जाते जाते मुझे तरफ देखते हुए ऐसे मुस्कुराई जैसे मानो उसने मुझे घर आने का न्योता दिया हो। मैं पागल की तरह उसके पीछे – पीछे उसके घर चला गया। वो मुझे आता देख अपने घर में अंदर वाले कमरे में चली गई। मैं भी सीधा अंदर ही चला गया और उसे पकड़ कर उसके गालों को चूमने लगा।
अचानक किसी के आने की आहट हुई। हम दोनों सहम गए। मुझे अंदर रहने इशारा करके वो बाहर आई तो देखा की पड़ोस की ही एक औरत थी, अपने बच्चे के लिए एक कुछ रेडीमेड कपड़े लेने आई थी जो उसने आर्डर पर मंगवाए थे। उसे उसके कपड़ो का बैग देकर जल्दी ही वापिस कर दिया और मुझे जल्दी से जाने के लिए कहने लगी। मेरे इंकार करने पर उसने वादा किया की फिर कभी मौका लगते ही मेरा काम पूरा कर देगी। मैं अपने घर आ गया।

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अगले दिन ही उसने मुझे इशारा करके बुला लिया। मेरे जाने पर उसने बताया की उसका पति दिल्ली गया है और शाम तक आएगा। मैं अंदर जाकर बैड पर लेट गया। वो बाहर का दरवाजा अंदर से बंद करके मेरे पास आ गई। मैंने एक हाथ उसके गले पर रख दिया और हाथ को नीचे खिसकाने लगा। अब मेरा हाथ ब्लाउज़ के हुक तक पहुँच गया। मैं आहिस्ते-आहिस्ते हुक खोलने लगा। उसने अपनी आँखे बंद कर ली। मैंने सारे हुक खोल दिए। ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को सहलाने लगा।
उसके स्तन एकदम मुलायम थे। पर ब्रा ने उन्हें ज़ोरों से दबा रखा था, इस कारण ऊपर पकड़ नहीं बन रही थी। मैं अपना हाथ उसके ब्लाउज़ के पीछे ले गया और ब्रा के हुक को भी खोल दिया। अब दोनों स्तन एकदम स्वतंत्र थे। मैं उन आज़ाद हो चुके बड़े-बड़े स्तनों को हल्के-हल्के सहलाने लगा, फिर मैं एक हाथ उनकी जाँघ पर ले गया और ऊपर की ओर ले जाने लगा। जिसके लंड में आग लगी हो वो कैसे रुक सकता है और लंड की आग को सिर्फ चूत का पानी ही बुझा सकता है।

मैं अपने हाथ को ऊपर ले जाने लगा। जैसे-जैसे मेरा हाथ चूत के पास जा रहा था, मेरा लंड और तेज़ हिचकोले मार रहा था।
अब मेरा हाथ उसकी पैन्टी तक जा पहुँचा था। पैन्टी के ऊपर से ही मैंने हाथ चूत के ऊपर रख दिया। चूत बहुत गीली थी और भट्टी की तरह तप रही थी। मैंने साड़ी को ऊपर कर दिया और पैन्टी को नीचे खिसकाने लगा। थोड़ी मेहनत के बाद मैं पैन्टी को टाँगों से अलग करने में कामयाब रहा।
अब मैं हाथ को चूत के ऊपर ले गया और चूत को प्यार से सहलाने लगा। मैंने एक हाथ उसकी कमर पर रखा और उन्हें सीधा करने लगा।
वो एक ही झटके से सीधी हो गई। मैं अपनी टाँग को उसकी टाँगों के बीच ले गया उसने अपनी टाँगों को फैला दिया। अब मैं नीचे खिसकने लगा और मैं जैसे ही चूत चाटने के लिए मुँह चूत के पास ले गया, उसने हाथ से चूत को ढँक लिया।

मेरा लंड क़ुतुबमीनार बन गया। जैसे ही वो बिस्तर से उठी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और उनके होंठों को चूमने लगा। वह भी मेरे होंठों पर टूट पड़ी। हम एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह निचोड़ने लगे।
मैं उनके होंठों को चूमते हुए अपने दोनों हाथ उनकी गांड तक ले गया और उन्हें उठा लिया। उसने अपने पैर मेरी कमर के गिर्द लपेट दिए। मैं उन्हें चूमते हुए ड्राईंगरूम तक ले आया उसे लेकर सोफे पर बैठ गया।
वो मेरी गोद में थी, ब्लाउज़ और ब्रा अभी भी उसके कंधों से लटक रहे थे। पहले मैंने ब्लाउज़ को निकाल फेंका, फिर ब्रा और एक चूची को हाथ से मसलने लगा और साथ ही दूसरी चूची को चाटने लगा।
अब साड़ी की बारी थी, मैंने साड़ी भी निकाल फेंकी, अब पेटीकोट बेचारे का भी शरीर पर क्या काम था। अब वो एकदम नंगी हो चुकी थी। लाल नाईट-बल्ब की रोशनी में उसका नंगा बदन पूर्णिमा में ताज़ की तरह चमक रहा था और इस वक्त मैं इस ताजमहल का मालिक था।

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अब वो मेरे कपड़े उतारने लगी। मेरे सारे कपड़े उन्होंने उतार दिए और मैं सिर्फ अपनी फ्रेंची अण्डरवियर में रह गया पर वह भी अधिक देर न रह सका। उन्होंने वह भी एक ही झटके में उतार फेंकी और फिर वो मेरे साढ़े पाँच इंच लम्बे विकराल लंड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
कभी लंड पर, तो कभी अंडकोष से सुपाड़े तक जीभ फिराती, कभी लंड को हल्के से काटती, सुपाड़े पर थूकती और फिर उसे चाट जाती। मेरा तो बुरा हाल कर दिया और मेरे लंड ने उसके मुँह पर अपनी पिचकारी मार दी। उनका पूरा चेहरा मेरे वीर्य से सन गया था। मैंने अपने दोनों हाथों से सारा वीर्य उनके चेहरे पर मल दिया।

उसने कहा – इतना माल? तेरा लंड है या वीर्य का टैंक?”
उसके ऐसा कहते ही मैंने उसको ज़मीन पर लिटा दिया और उनकी चूत पर टूट पड़ा, अपनी जीभ को चूत में जितना हो सकता था अन्दर डाल दिया और जीभ हिलाने लगा। चूत के गुलाबी दाने को जैसे ही मैं हल्के-हल्के काटता-चूसता, वह तड़प उठती और आआहहहहहह आआहह्ह्हहहह करने लगती।
उसने टाँगों से मेरे सिर को जकड़ लिया और टाँगों से ही सिर को चूत में दबाने लगी और बालों में हाथ फेरने लगी। मैं चूत-अमृत पीते हुए दोनों स्तनों को मसल रहा था… तभी अचानक उसका शरीर अकड़ने लगा उनकी चूत ज़ोरदार तरीके से झड़ने लगी।
मैंने चूत को चाटकर साफ कर दिया और उनके होंठों को चूमते हुए अपनी टाँगों से उनकी टाँगे चौड़ी कीं।

अब मेरा लंड उसकी चूत के ऊपर था। मैंने अपने हाथों को सीधा किया और धक्के मारने की मुद्रा में आ गया। अब मैं अपनी कमर को नीचे करता और लंड को चूत से स्पर्श करते ही ऊपर कर लेता। कुछ देर ऐसा करने के बाद वो बोली,”अब मत तड़पाओ, मेरी चूत में आग लग रही है, इसमें अपना लंड अब डाल दो और मेरी चूत की आग को शान्त करो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ।
इस बार मैंने लण्ड चूत पर रखा और धीरे-धीरे नीचे होने लगा और लण्ड चूत की गहराईयों में समाने लगा। चूत बिल्कुल गीली थी, एक ही बार में लण्ड जड़ तक चूत में समा गया और हमारी झाँटे आपस में मिल गईं। अब मेरे झटके शुरु हो गए और उसकी सिसकियाँ भी… आआआहहहहह अअआआआआहहहह करने लगी। कमरा उनकी सिसकियों से गूँज रहा था।
जब मेरा लण्ड उनकी चूत में जाता तो फच्च-फच्च और फक्क-फक्क की आवाज़ होती। मेरा लण्ड पूरा निकलता और एक ही झटके मे चूत में पूरा समा जाता। वह भी गाँड हिला-हिला कर मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने झटकों की रफ्तार बढ़ा दी। हम दोनों पसीने से नहा रहे थे। पंखे के चलने का कोई भी प्रभाव नहीं था।

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दोनों के चेहरे एकदम लाल हो रहे थे पर हम रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। झटके अनवरत जारी थे। कभी मैं ऊपर तो कभी वो ऊपर आ जाती। दोनों ही चुदाई का भरपूर मज़ा ले रहे थे। पूरे कमरे में बस कामदेव का राज था। हम दोनों एक-दूसरे की आग को बुझा रहे थे। तभी हमारे शरीर अकड़ने लगे।
दोनों झड़ने वाले थे। मैं लण्ड को बाहर निकालने वाला ही था कि उसने रोक दिया और बोली – “अपना सारा माल चूत के अन्दर ही छोड़ दो।”
मैंने भी झटके चालू रखे। हम दोनों ने एक-दूसरे को भींच लिया। उसने टाँगों और हाथों को मेरे शरीर पर लपेट दिया। मैंने उसके कंधों को कसकर पकड़ लिया और एक ज़ोरदार झटका मारा। मैं और वो एक ही साथ झड़े थे। उसकी चूत मेरे वीर्य से भर गई।
उसने मेरे लंड को चूस-चूस कर साफ कर दिया। उस दिन के बाद जब भी मौक़ा मिलता है मैं उसको छोड़ता नहीं हूँ।