हिंदी सेक्स स्टोरी

पहलवान की बीवी

(Pahlwan Ki Biwi)

हेल्लो दोस्तों, मेरा नाम अनुराग पाटिल हैं और मैं मिरज, महाराष्ट्र का रहने वाल हूँ. मुझे पहले से ही बोड़ी बील्डिंग करने का सौख था. मैंने इसलिए मिरज से 10 किमी दूर एक छोटे से गाँव के गुल्लू पहेलवान के पास ट्रेनिंग लेना चालू किया था. गुल्लू कोई साँढ से कम नहीं था. वह 34 साल का था. उसकी हाईट 6 फिट और चौड़ाई ऐसी थी की अच्छे खासे लोग भी उसके सामने बच्चे लगते थे. लेकिन उसकी बीवी शकुंतला को देख के लगता ही नहीं था की वो गुल्लू पहलवान की बीवी हैं. वो एक सेक्सी और सुड़ोल शरीर वाली थी. उसकी कमर 28 से ज्यादा नहीं थे और उसके बड़े बूब्स और गोल गांड देख के मैं अपना शिष्य धर्म पहले दें ही भूल गया था. मुझे शकुंतला की भोसड़ी देखनी थी एक बार. भोसड़ी इस लिए कहा, क्यूंकि गुल्लू जैसे सांढ से चुदने के बाद अब चूत तो कह ही नहीं जा सकती थी. मुझे बस एक बार शकुंतला की  भोसड़ी को देखना था. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. मुझे अभी 2 महीने हो गए थे और गुल्लू ने गांड टाईट कर रखी थी हमारी. क्यूंकि मैं फुल टाइम बोड़ी बिल्डिंग करता था इसलिए दुसरे लोगो की तरह मैं 1-2 घंटे नहीं पर 5 घंटे के लिए गुल्लू के यहाँ आता था. सुबह बाइक ले के आता और शाम को वापस मिरज चला जाता था. गुल्लू को जो पैसे देता था उसमे वो मुझे दोपहर का खाना भी देता था. उस दिन गुल्लू को किसी काम से कराड जाना था. उसने दोपहर के 1 बजे मुझे कुछ एकसरसाइज बताई और बोला की मैं अब शाम के बाद ही लौटूंगा इसलिए तुम यह कर के घर निकल जाना. मुझे लगा की वो अपनी बीवी को लेके जाएंगा, लेकिन मेरे आश्चर्य के बिच वो अकेला ही गया.

दोपहर के 1:45 हो गई थी, खाने का वक्त. तभी शकुंतला की आवाज आई, अनुराग आ जाओ खाने के लिए. मैंने लकड़े के एक्सरसाइज सामान को साइड में रखा और मैं मस्त गांड हिला के चलती शकुंतला के पीछे चलने लगा. उसकी मटकती गांड को देख के मुझे एक बार फिर से उसकी भोसड़ी देखने का मन करने लगा. भोसड़ी का गुल्लू किस्मतवाला था, जो उसे ऐसे सेक्सी शारीर का मजा लेने का अवसर मिलता था. मैंने हाथ धोए और टेबल के उपर जा के बैठ गया. इन दोनों को कोई बच्चा नहीं था और घर में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई नहीं था. मैंने देखा की उसने मेरे पसंद की चौली और रोटी बनाई थी, साथ में दही और केले भी काटे थे. उसने हलकी पिली ड्रेस पहनी थी जिसका गला काफी खुला था. मेरी नजर ना चाहते हुए भी उसके गले और फिर धीरे से उसकी निचे यानी के उसके बूब्स की तरफ जाने  लगी. आज तक गुल्लू पहलवान के घर होने की वजह से बात करने का मौका ही नहीं मिला था खुल के. हाँ, वो मेरी तरफ देख के स्माइल जरुर देती थी. मैंने भी उसे आज तक देख के खुश होता रहा था, भोसड़ी का गुल्लू यही मरा रहता था.

अब मेरी और शकुंतला की नजर मिलने लगी. एक चोर को जैसे दुसरे चोर की नजर पता होती हैं; इसी तरह मुझे भी लगा की शकुंतला चुपके से मुझे देख रही थी. मैंने उसे देखा और वो मेरी तरफ देख के हंस रही थी. मैंने एक दो बार देखा और सोचा की उस से बात कर के देखूं की क्या वो भोसड़ी दिखाएगी, लेकिन सीधे तो ऐसे बोल नहीं सकते इसलिए मैंने घुमा फिरा के बात करने का सोचा.

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मैं: तो आप को तो मैंने घर में ही देखा हैं, आप जॉब नहीं करती हैं.?

शकुंतला: मेरी किस्मत इस चार दिवारी में हैं इसलिए मैंने यही मिलूंगी ना अनुराग. (उसकी बातो में छिपा हुआ दर्द साफ़ महसूस हो रहा था.)

मैं: तो आप शादी से पहले जॉब करती थी.

शकुंतला: हाँ, दर असल मैं पूना की हूँ. गुल्लू मेरे मासा का भांजा था. और मेरे ना चाहते हुए भी इस के साथ शादी करनी पड़ी. मैं पूना में एक कंपनी में रिसेप्शनिस्ट थी.

ओह तो यह मामला था. कहाँ, एक ओफीस की रिसेप्स्नीस्ट और कहाँ गुल्लू पहलवान. वो तो भोसड़ी का शकल से ही गुंडा लगता था. मेरी मज़बूरी थी की इतने सस्ते में मुझे कोई और पहलवान कम से कम मिरज के एरिया में तो नहीं मिलने वाला था. वरना इस अकडू भोसड़ी वाले के पास मैंने कभी कुस्ती नहीं सीखनी थी. वैसे गुल्लू पहलवानी में अव्वल नम्बर था, बस नार्मल बातो में चूतिया था. मेरी नजर अब शकुंतला की आँखों में गड़ी हुई थी. वो भी मेरी तरफ आँखे गड़ा के देख रही थी. मैंने बात को आगे बढाई.

मैं: अच्छा, सोरी…मुझे पता नहीं था.

शकुंतला: नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं. जैसी मेरी किस्मत, मैंने थोड़ी सोचा था की बड़े शरीर वालो का सब कुछ बड़ा नही होता हैं. (शकुंतला एक तीर छोड़ बैठी थी अब तो. और अगर मैंने उसे जवाब नहीं दिया तो शायद यह गोल्डन चांस मेरी जिन्दगी में दुबारा कभी नहीं आना था.)

मैंने शकुंतला की तरफ देखा, उसकी आँखों में आवकार था. शायद वो मुझ से चुदने के लिए बेताब थी. मैंने उसे कहा: मैं समझा नहीं.

शकुंतला: अनुराग, मैं अब इसके आगे क्यां बताऊँ. तुम भले मना करो लेकिन मैं जानती हूँ की तुम्हे पता चल गया हैं. तुम अब ज्यादा भोले मत बनो.

भोसड़ी की शकुंतला सब जानती थी. और मुझे अब पक्का यकीं हो गया की उसे अपनी चूत मरवानी थी मुझ से और कुछ नहीं. मैंने उसे कहा: हाँ, मैं जानता हूँ, लेकिन…?

शकुंतला: लेकिन क्या…!

मैं: कुछ नहीं…!

शकुंतला: क्या मैं इतनी बुरी दिखती हूँ….!!!

बस अब सब कुछ मेरे बर्दास्त के बाहर हो रहा था. मेरे से रहा नहीं गया. मैंने उठ के शकुंतला के कंधे से उसे उठाया और उसके होंठो के उपर अपने होंठ लगा दिए. मेरे मुहं में उसके होंठ आ गए और उसने जरा भी प्रतिकार नहीं किया. मैंने उसकी जबान को जोर जोर से चूसने लगा. और मेरे हाथ भी उसके स्तन के ऊपर अपनेआप ही चले गए.

शकुंतला भी मेरे लंड को मसलने लगी. उसकी साँसे तेज हो चली थी, वो मेरे होंठो को जोर जोर से चूस रही थी. मैंने अब हाथ उसके बालो में डाले और उसे और भी कस के चूमने लगा. उसने मेरी एकसरसाइज करने की धोती की गांठ खोल दी. अंदर मैंने टाईट कपडा पहना था. (वह कपडा जो एकसरसाइज के लिए जरुरी होता हैं, ताकि गोले ढीले ना हो जाएँ.) शकुंतला का यह स्वरूप मेरे लिए बहुत रोद्र था. उसने अब धीरे से होंठो को छुडाया और निचे बैठ के उसने निचे के कपडे को खोल के मुझे केवल बनियान में खड़ा कर दिया. मैंने बनियान अपने हाथ से उतार दी.

शकुंतला के सामने मैं बिलकुल नग्न खड़ा था और मेरा लौड़ा उसके सामने तन गया था. उसकी भोसड़ी अगर अभी खुली होती तो उस भोसड़ी के आरपार कर देता मैं अपने लंड को. मैंने शकुंतला के ड्रेस को खोलने के लिए हाथ बढाया और धीरे से उसे उतार दिया. उसने अंदर कुछ नहीं पहना था; शायद उसने जानबूझ के ऐसा किया था ताकि मैं उत्तेजित हो जाऊं. मैंने उसके निचे के कपड़ो को भी उतार दिया. उसने अंदर लाल रंग की पेंटी पहनी थी. मुझे यकीं नहीं हो रहा था की जिस भोसड़ी को देखने के लिए मैं कितने दिनों से राह देख रहा था उसके और मेरे बिच में अब केवल एक लाल रंग की पेंटी पड़ी हैं. मैंने इस आखरी अड़चन को भी हाथ से हटाया. वाह्ह्ह्हह्ह्ह्हह…….शकुंतला की भोसड़ी के उपर तो मस्त बालो का जमावड़ा था, लेकिन शायद उसे बालवाली भोसड़ी रखने का सौख था. मैंने पेंटी को उसकी टाँगे उठा के निकाल फेंका. उसने मेरी तरफ देखा और बोली: अनुराग, कैसा लगा.

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मैं कुछ नहीं बोला और केवल हंसा. उसने मेरी और एक बार फिर देखा और फिर वो निचे बैठ गई. उसने लंड को सीधे मुहं में ले लिया और पुरे का पूरा जोर जोर से चूसने लगी. मित्रो उसकी चुसाई इतनी सेक्सी थी की मुझे स्वर्गीय अनुभूति हो रही थी. उसने लंड को और भी जोर जोर से चुसना और फिर बहार निकाल के हिलाना चालू किया. मुझे केवल आनंद का अहेसास हो रहा था उस वक्त.

शकुंतला मेरे लंड को ऐसे ही 5 मिनिट तक जोर जोर से चुस्ती रही. उसका मुहं थक भी नहीं रहा था. मैंने भी उसके मुहं को हाथो के बिच में लेके जोर जोर से उसे चोदना चालू कर दिया. उसके मुहं से आह आह आह आह की आवाज लंड के झटको से बदल के ग्गग्ग्ग्ग ग्ग्ग्ग गग्ग में तबदील होने लगी थी. मुझे लगा की मेरा लंड अब फव्वारा मार देगा इसलिए मैंने शकुंतला को कहा: अरे यार बस करो अब, नहीं तो मैं स्खलित हो जाऊँगा.

शकुंतला ने मुहं से लंड निकाल के कहा: छोड़ दो मेरे मुहं में ही.

मैंने कहा: ठीक हैं.

और दूसरी मिनिट में ही मेरा लंड शकुंतला के मुहं में 50 ग्राम जितना वीर्य निकाल बैठा. उसने एक एक बूंद अंदर ले ली और लंड के काने को जबान से चाट चाट के एक भी बूंद को व्यर्थ  नहीं होने दिया. उसने अब मेरे थोड़े ढीले पड़े लंड को अपने होठो से आजाद किया. उसने मुझे पूछा: चाय पिओगे.?

मैंने कहा: हाँ पिला दीजिए.

शकुंतला उठ के किचन में गई और मैं भी उसके पीछे पीछे किचन में गया. वो चाय बना ही रही थी और  मेरा लंड उसे नग्न देख के फिर से खड़ा हुआ. उसने फट से चाय मुझे दी. चाय ख़तम होते ही मैं उसे बाहों में उठा के बिस्तर पे ले गया.

अब शकुंतला अपन टाँगे फैला के लेट गई. उसकी सेक्सी भोसड़ी से पानी निकल रहा था, क्यूंकि वो भी काफी गरम हो चुकी थी. मैं उसकी दोनों टांगो के बिच में आ गया. उसने अपने हाथो से मेरे लंड को अपनी भोसड़ी के उपर सेट किया. मैंने एक झटका दे के आधे लंड को अंदर दे दिया. उसके मुहं से आह आह ओह ओह निकल गया.. लेकिन यह सब सुख के उदगार थे, ना की दुःख के….! उसने टाँगे और फैला दी और मैंने एक और झटके में पुरे लंड को भोसड़ी के अंदर डुबो दिया. अंदर जाने के बाद मेरे लंड को एक अजब गर्मी का अहेसास हो रहा था. मैंने अपना मुहं शकुंतला के चुंचो पेरखा और चूसने लगा. इधर मेरी कमर हिलने लगी थी और मेरा लंड भोसड़ी के अंदर बहार हो रहा था. शकुंतला को लंड कके झटको से बहुत मजा आ रही थी और वोह आह आह आह करती रही. मैंने उसकी कमर को पकड़ा और जोर से चोदने लगा, शकुंतला बोली: अनुराग फाड़ दो मेरी चूत को, तेरा पहेलवान कुछ नहीं कर पाता हैं. मुझे तेरे वीर्य से मजे लेने हैं. चोद मुझे, यास्स्स्स अय्स्स्स ओह ओह…..डाल और अंदर….मार दे मेरी गरम गरम चूत को. दे दे मुझे लंड चूत की गहराई तक.

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मैं उसकी बातें सुन के और भी उत्तेजित हूँ गया, मैंने उसे चोदते चोदते एक ऊँगली उसकी गांड में डाल दी. वो ओह ओह  आह आह करती हुई अपनी गांड उछाल रही थी और मैंने उसकी गांड में ऊँगली देते हुए उसकी भोसड़ी को फाड़ रहा था. उसकी साँसे तेज हो रही थी और हम दोनों का पसीना उसके पेट के उपर जमा हो रहा था. मैंने उसकी चूत से अब लंड निकाला और मैं निचे लेट गया. शकुंतला ने मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और वो धीरे से उसके उपर बैठ गई. उसने लंड को भोसड़ी के अंदर भर लिया और वोह अब उसर कूदने लगी. मेरा लौड़ा उसके पेट तक जा रहा होगा तभी तो वो अपने पेट के निचे के भाग को पकड़ के सहला रही थी. उसके झटके तीव्र होने लगे.

मैंने भी निचे से उसे झटके देने चालू किए. दोहरे झटको के चलते शकुंतला दो बार मेरे लंड के उपर झड गई. वो अब थक चुकी थी और उसकी स्पीड काफी कम हो गई थी. मैंने अब निचे से उसकी कमर को पकड़ा और लगा मारने उसकी भोसड़ी को जोर जोर से. मेरा लंड उसे जोर जोर से चोदने लगा और 2 मिनिट के अंदर जब मेरा वीर्य निकला तो शकुंतला ने चूत को टाईट कर के एक एक बूंद को अंदर ले लिया. वोह धीरे से लंड अपनी चूत से निकाल के पलंग के उपर लेट गई. मैंने उसकी जांघ सहलाने लगा और उसके बूब्स चूसने लगा. मुझे भी काफी थकान लगी थी. हम दोनों आधे घंटे तक सोये रहे.

मेरी नींद खुल गई आधे घंटे के बाद क्यूंकि मुझे मेरे लंड के उपर होंठो के चलने का अहेसास हो रहा था. शकुंतला उठ चुकी थी अपनी भोसड़ी में एक और राउंड के लिए. उसके बाद मैंने उठ के एक बार उसकी जम के चुदाई की. इस बार तो मैंने उसकी चुदाई 20 मिनिट से भी ज्यादा समय तक की क्यूंकि मेरा लंड दो बार पहले भी वीर्य छुड चूका था इसलिए इस बार ज्यादा टाइम लगना ही था. गुल्लू पहलवान के आने से पहले मैं बाइक ले के निकल पड़ा. इस दिन के बाद शकुंतला ने मेरा मोबाइल नम्बर भी ले लिया. अब मैंने गुल्लू के वहाँ कसरत करने नहीं जाता क्यूंकि मैं अब सिख गया हूँ. लेकिन जब तक मैंने उसके वहाँ था मैंने 4 बार शकुंतला की भोसड़ी मारी थी. अभी भी कभी कभी उसके फोन आते हैं….हम दोनों को तलाश हैं बस एक मौके की…..!!!!