हिंदी सेक्स स्टोरी

 सब्जीवाली की प्यास और चुदाई का मज़ा

मेरे एग्जाम लगभग खत्म हो चुके थे। बस एक आखिरी पेपर बाकी था, लेकिन वो 25 दिन बाद था। बीच में लंबी छुट्टी थी, तो मुझे वहीं रुकना पड़ा। मैं पढ़ाई के लिए अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर आया था। हम 7-8 लड़के एक बंगले में रहते थे, जैसे हॉस्टल में रहते हैं। बंगला कॉलेज के पास था, जो शहर से थोड़ा बाहर था। बाकी लड़कों के एग्जाम खत्म हो गए थे, तो वे अपने घर चले गए। अब बंगला पूरी तरह खाली था।

दिनभर बैठे-बैठे मैं बोर हो जाता था। इसलिए मैं बालकनी में बैठता, जहाँ से बाहर का नज़ारा दिखता और मन थोड़ा बहल जाता। रात को मस्त दारू पीकर सो जाता था।

एक सुबह मैं कचरा फेंकने बाहर निकला, पुराने कपड़ों में। लौटते वक्त मेरी नज़र पड़ी एक गेहुँए रंग की, गदराई औरत पर। सिर पर टोकरी लिए सब्ज़ियाँ बेच रही थी। उसे देखते ही मुझे पसंद आ गई। उसकी पसीने की बूँदें गले से नीचे ब्लाउज़ में जा रही थीं, जिससे उसके उभार साफ दिख रहे थे। उसकी कमर देखकर चाटने का मन करने लगा। चेहरा बहुत आकर्षक नहीं था, फिर भी कुछ तो बात थी। मैंने उसे रोका और शाम को चखने के लिए खीरा, गाजर, टमाटर लेने लगा।

मैंने उसका नाम पूछा। उसने बताया, “मीरा बाई।”

मैं – “आप यहाँ रोज़ आती हो?”

मीरा बाई – “क्या आप मुझसे हर रोज़ सामान लोगे?”

मैं – “हाँ, क्यों नहीं?”

वो मुस्कुराई और बोली, “फिर चिंता मत करो साहब, मैं आपके लिए हर रोज़ आऊँगी।”

थोड़ी बातचीत हुई तो उसने पानी माँगा। मैंने मौका देखते हुए उसे अंदर बुलाया। वो अंदर आ गई। मैंने उसके सामने कूलर ऑन किया तो उसका पल्लू उड़ गया। अब ब्लाउज़ में उसके निप्पल साफ दिखने लगे। ठंडी हवा के झोंके से उसके मुँह से “श्श्श्श्… आह्ह” निकल पड़ा। उसकी आवाज़ सुनकर मेरा लंड टाइट होने लगा। उसने पल्लू ठीक नहीं किया, शायद हवा का मज़ा ले रही थी।

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पानी देते वक्त मैं उसे ऊपर से देखने की कोशिश में था, और गलती से आधा पानी उसके ब्लाउज़ पर गिर गया। ब्लाउज़ भीग गया, और मैं वहीं देखता रहा। उसने मुझे देखा, हँसी, और पल्लू उठा लिया।

अब वो रोज़ आने लगी। मुझसे थोड़ी देर बातें करने लगी। बातों-बातों में पता चला कि उसका पति शराबी है। उसकी मेरी उम्र का एक लड़का और एक लड़की है, जिसकी अभी शादी हुई है। मैंने कहा, “तुम्हें देखकर नहीं लगता कि तुम दो बच्चों की माँ हो।”

वो हँस पड़ी। मैंने कहा, “यार, अच्छा सामान दिया करो, खीरे खट्टे आ रहे हैं।” वो हँसी और ऐसा इशारा किया जैसे पकड़ी गई हो। बोली, “मैं अपने पल्लू से पोंछती हूँ देने से पहले, शायद पसीने की वजह से ऐसा हो।”

तब मुझे समझ आया कि ये औरत लंड की भूखी है। शायद रात को वो खीरे अपनी चूत में लेती होगी और सुबह मुझे दे देती होगी। अगले दिन मैंने सीधे कह दिया।

मैं – “मीरा बाई, अपने बेवड़े पति के साथ दिन कैसे कटते हैं?”

मीरा बाई – “अब क्या करूँ, कहाँ जाऊँ, किससे कहूँ?”

मैं – “मैं हूँ न, मुझे सुनाओ। वैसे भी तुम्हारे खट्टे खीरे मैंने ही तो खाए हैं।”

मेरी बात सुनकर वो शरमा गई, लेकिन कुछ बोली नहीं। मुझे पता था, यही मौका है। मैंने उसे गले लगा लिया। वो छुड़ाने का नाटक करने लगी। मैंने एक हाथ से उसके उभार दबाए तो वो बोली, “ये क्या कर रहे हो? ऐसे मत करो, वरना शोर मचा दूँगी।”

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मैं थोड़ा डर गया, लेकिन मुझे वो चाहिए ही थी। मैंने 500 का नोट निकाला और कहा, “मुझे पता है, पैसों की ज़रूरत सबको होती है। हम दोनों एक-दूसरे के काम आ सकते हैं।”

मैंने देखा वो नोट को देख रही थी। मैंने पैसे लिए और उसके ब्लाउज़ में हाथ डालकर एक उभार दबा दिया। अब वो कुछ नहीं बोली। मैंने कहा, “क्या मीरा बाई, कुछ तो बोलो।”

मीरा बाई – “देखिए साहब, मैं वैसी औरत नहीं हूँ जैसा आप समझ रहे हैं। अगर किसी को पता चल गया तो बहुत बदनामी होगी।”

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मैंने उसे बाँहों में लिया, उसकी गर्दन पर चूमा और कहा, “आई लव यू मीरा बाई। जब पहली बार तुम्हें देखा, तभी से तुम्हारा दीवाना हूँ। मैं किसी को क्यों बताऊँगा? वैसे भी 5-10 दिन की बात है। फिर मैं अपने गाँव चला जाऊँगा, और यहाँ बाकी लड़के रहने आ जाएँगे। इसके आगे कुछ नहीं होगा।”

वो मेरी बाँहों में थी, लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी। मैंने उसके गाल पर चूमा और पूछा, “अब क्या हुआ? करना है या नहीं?”

वो शरमाई। मैंने उसे गोद में उठाया और अंदर ले गया। उसने आँखें बंद कर लीं। मैंने उसके ब्लाउज़ के हुक खोल दिए। उसके उभार आज़ाद हुए। मैं उन्हें चूसने लगा। उनमें पसीने की हल्की खटास थी। वो आँखें बंद किए तड़प रही थी, शायद पहली बार किसी गैर मर्द के साथ ऐसा कर रही थी।

मैंने उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर किया। उसकी झाँटों भरी चूत देख मैं खुद को रोक न सका। झाँटों को साइड कर जैसे ही मैंने उसकी चूत पर जीभ लगाई, वो तड़प उठी और मुझे रोकने लगी। उसने कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था। मैं उसकी चूत चाट रहा था, वो पागल हुई जा रही थी और जल्दी झड़ गई। मैं जीभ अंदर डालकर चाटता रहा।

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फिर मैंने कहा कि मेरा लंड चूसो। वो मना करने लगी। लेकिन मैं हवस में डूबा था। मैंने उसके पैर फैलाए और चूत पर लंड रगड़ने लगा। वो बोली, “अरे, क्यों सता रहे हो? अब डाल दो अंदर।”

जैसे ही मैंने धक्का मारा, वो चीख पड़ी। उसकी चूत टाइट थी, शायद सालों से किसी ने नहीं मारी थी। लेकिन गीलापन ऐसा था कि लंड आसानी से अंदर चला गया। 2-4 धक्कों में वो खुद गांड उछालकर मुझे अपनी चूत देने लगी। उस दिन मैंने उसे दो बार चोदा। अगले 5 दिन रोज़ चोदा। वो मेरा लंड चूसना सीख गई थी। फिर मैंने उसकी भूरी गांड भी चाटी।

मैंने उसे घर के हर कोने में, अलग-अलग पोज़ में चोदा। वो मेरा पानी पीने लगी थी। उसने कहा, “जाऊँ, बहुत मज़ा आता है। तुमने मुझे असली जीना सिखाया।”

अब मैं छुट्टियों में अपने घर आ गया हूँ, लेकिन उसकी याद आ रही है।