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ससुर जी का लंड महाराज-2

 Sasurji Ka Lund Maharaj- 2

जब मैं चलती थी तो जांघों तक मेरी टाँगे नंगी हो रहीं थी और मेरी डोलती हुई चूचियों और उस पर खड़ी चूरे रंग की डोडियाँ गाउन में से झलक रहीं थी।

पापाजी ने मुझे उन कपड़ों में देखा और एकटक देखते ही रहे। उनकी आँखों की चमक बता रही थी कि वह मेरे बिछाये जाल में फँस जायेंगे, मुझे सिर्फ कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा। जब मैंने पापाजी से बेटे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उनका ध्यान मेरी चूचियों की तरफ गया और वह उन्हें देखते हुए एकदम स्थिर हो गए।

मैंने कहा- पापाजी, यह सो गया है, लाइए मैं इस इसके बिस्तर पर सुला दूँ।

तब हड़बड़ा कर उन्होंने कहा- यह अभी-अभी सोया है, कच्ची नींद में है इसलिए इसे अभी यहीं सोने दे।

मैं “हाँ जी” कहती हुई अपने कमरे में चली गई। मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं बहुत देर तक ऐसे ही लेटी करवटें बदलती रही।

तभी मुझे याद आया कि मैंने बेटे को दूध तो पिलाया ही नहीं।

मैं उठी और पापाजी के कमरे में गई तो पाया कि वह भी सो गए हैं। तब मेरे मन में आया कि मैं भी इसी कमरे में सो जाती हूँ और मैं उनके साथ वाले बेड पर लेट गई। बेटे को अपने पास खींचा और गाउन में से चूचियाँ निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी। इतने में पापाजी ने नींद में ही करवट बदली और सीधे हो कर सोने लगे, तब मेरी नज़र उनकी लुंगी पर गई जो खुल कर अलग हो गई थी और वह बिल्कुल नग्न लेटे हुए थे, उनका लण्ड महाराज बड़े आराम से उनकी जांघों पर सोया हुआ था।

मेरा ध्यान बच्चे को दूध पिलाने में कम और लण्ड महाराज की ओर ज्यादा आकर्षित हो गया। मैं बहुत ध्यान से उसे और उसकी बनावट को देखती रही। पापाजी का लण्ड महाराज तो बहुत ही आकर्षक था। उसका आकार तो मैं ऊपर बता चुकी हूँ, पर उनके टट्टे भी तो कमाल के थे, लगभग तीन इंच साइज़ के गेंदों के बराबर होंगे। उनका लण्ड महाराज सोये होने के बाबजूद भी पांच इंच लंबा लग रहा था। ऊपर का सुपाड़ा तो ढका हुआ था लेकिन उसके आगे के आधा इंच भाग के ऊपर मांस नहीं था और उनका मूत्र और रस निकलने का छिद्र बिल्कुल साफ नज़र आ रहा था।

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मेरे बेटे का पेट भर चुका था इसलिए उसने चूची को छोड़ दिया था और सो गया था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी।

मैंने बच्चे को अलग से सुला दिया और वहीं बैठ कर पापाजी के उस हथियार को निहारती रही जो वहाँ लेटे लेटे मुझे चिढ़ा रहा था।

मैंने महसूस किया कि मैं अपनी तृष्णा को अब और नहीं दबा सकती थी और उस लण्ड महाराज को चूसना और उसे अपनी चूत में लेकर जिंदगी का मज़ा लेना चाहती हूँ, मैं अपना अकेलापन दूर करना चाहती हूँ, अपनी सेक्स की भूख मिटाना चाहती हूँ।

इसके लिए अब मुझे मेरे पति कि गैरहाजरी में भरोसे का और पूरा संतुष्ट करने वाला पुरुष और उसका यह हथियार मिल गया था। अब मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती थी और इसलिए मैंने अपनी सारी झिझक छोड़ी, अपना गाउन उतारा और सरक कर पापाजी की जांघों के पास आकर बैठ गई।

पापाजी जाग ना जाएँ इसलिए मैंने उनके लण्ड महाराज को हाथ से नहीं छुआ और अपने मुहँ को उसके पास ले जा कर उसे चूमने और जीभ से उसे चाटने लगी। शायद यह लण्ड महाराज चूमने और चाटने से खुश होने वाले नहीं थे और उसे तो चुसाई चाहिए थी, इसलिए उसने हिलना शुरू कर दिया।

उसकी इस हरकत से मैं थोड़ा घबराई, लेकिन फिर हिम्मत बांध कर लण्ड महाराज को हाथ से पकड़ा, ऊपर का मांस पीछे सरका कर सुपारे को बाहर निकाला और उसे अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू किया।

कुछ ही क्षणों में लण्ड महाराज खुश हो कर तन गए। तभी पापाजी का हाथ मेरे सिर पर पड़ा और वह उसे नीचे दबाने लगा और देखते ही देखते लण्ड महाराज मेरे मुँह से होते हुए मेरे गले तक पहुँच गया।

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मेरी हालत पतली हो गई थी, मेरी साँस उखड़ रही थी। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और चुसाई चालू रखी। करीब एक मिनट के बाद पापाजी का हाथ मेरे सिर से हट कर नीचे आ गया और वे मेरी चूचियों को पकड़ कर उन्हें दबाने लगे।

उनकी इस हरकत से मैं बहुत ही प्रसन हुई और मेरी चूत गीली होने लगी। फिर उन्होंने मेरी डोडियों को अपनी उंगलियों में दबा कर मसला, जिससे मैं गर्म होने लगी और मैं एक हाथ से अपनी चूत में खुजली एवं उंगली करने लगी।

मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था कि पापाजी उठ के बैठ गए। मेरी चूची से निकले दूध के कारण उनके हाथ गीले होने लगे थे, जिस से उनकी नींद खुल गई थी।

उन्होंने मुझे झटके के साथ अपने लण्ड महाराज से अलग कर दिया। फिर उन्होंने उठ कर लाईट जलाई और भौचक्के से मेरे नग्न शरीर को देखने लगे।

तभी उन्हें अपने नंगे होने का अहसास हुआ और फुर्ती से अपनी लुंगी उठा के पहन ली एवं मेरा गाउन मुझे पकड़ा दिया और बोले- यह क्या कर रही थी? जाओ कपड़े पहनो।

“पापाजी मैं तो वही कर रही थी जो आप चाहतें हैं।” मैंने जवाब दिया।

“मैंने ऐसा करने को कब कहा” पापाजी बोले।

“मैं तो बेटे को ले जाने के लिए आई थी, आपकी खुली हुई लुंगी देख कर उसे आपके ऊपर औढ़ा रही थी, तब आपने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने महाराज पर दबा दिया। मैं समझी कि आप इसकी मालिश चाहते हैं।” मैंने एकदम से झूठ बोल दिया।

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“तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और साफ़ मना कर देना चाहिए था।” पापाजी फिर बोले।

“मैंने आज तक आपका कोई भी आदेश या इशारा, कभी नहीं टाला तो यह कैसे न मानती?” मैंने उत्तर दिया।

“अरे मैं तो नींद के सपने में था जिसमें यह सब तुम्हारी सास कर रही थी, इसलिए मैंने ऐसा इशारा किया होगा।” पापाजी ने कहा।

“पापाजी तो क्या हो गया अगर मैंने इशारे को आपका आदेश समझ कर आपकी यह सेवा भी कर दी। आपका सपना और मेरा कर्तव्य दोनों पूरे हो गए।” मैंने कहा।

“अरी, तू मेरी बात क्यों नहीं समझ रही है। मैं तेरे साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता।” वे बोले।

“अब तो हम दोनों एक साथ यह कदम उठा चुके हैं, दोनों में से कोई एक भी कदम पीछे ले जाता है तो दूसरे को बुरा लगेगा। बताइये, अब हम यहाँ से आगे बढ़ने के अलावा और क्या कर सकते हैं?” मैं नादान बनते हुए बोली।

आगे की कहानी अगले भाग में-