शब्बो भाभी चुसवा आई किशमिश 2
Shabbo bhabhi chuswa aai kishmish-2
सलीम अपने जानदार लौड़े से अपनी भाभी की कमचुदी फ़ुद्दी को जोतने लगा, जैसे बीज बोने के लिये खेत तैयार कर रहा हो!
सलीम अपना खड़ा लंड धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहा था, थोड़ा नीचे होता और लण्ड को पूरा अन्दर पेल देता।
शब्बो को चीखने का मन कर रहा था, वो चाहती थी कि वो जो महसूस कर रही है, अपने इस बेटे जैसे देवर को चिल्ला चिल्ला कर बताये पर वो खुद को संभाल रही थी कि कहीं खेत के मजदूर दौड़ कर आ ना जाएँ।
जब सलीम को लगता कि वह झड़ने की कगार पर है तो वो अपने धक्कों की गति धीमी कर देता और कभी कभी तो बिल्कुल ही हिलना बन्द करके अपना लौड़ा भाभीजान की चूत में रख कर, बिना हिले-डुले दो-तीन मिनट आराम ले लेता।
ऐसा करने में उसे बड़ा मज़ा आता था क्योंकि जैसे ही सलीम हिलना बन्द करता तो शब्बो अपने चूतड़ों को आगे पीछे करके अपनी ठुकाई चालू रखती और सलीम की कमर को पकड़ कर अपने हाथों से उसे अंदर बाहर करने के लिए धक्का देती।
एक अनुभवी औरत की चुदाई करना तो कड़ी धूप में खेतों में काम करने से भी कहीं ज्यादा थका देने वाला काम था।
सलीम के पसीने और छक्के छूटने लगे, उसने भाभीजान को जोर से एक चुम्मी देकर अपना मुँह शब्बो के मुख पर गड़ा दिया।
सलीम ने अपने धक्कों को तेज किया और लण्ड ऊपर होने वजह से चूत में घुस जाता था और फट से दूसरा धक्का लगा जा रहा था।
शब्बो ने अपने दोनों हाथों से खटिया के दोनों सिरों को पकड़ लिया, बस जैसे ही एक धक्का जोर से सलीम ने लगाया कि उसी वक्त शब्बो की चूत की छूट हो गई, दो चार धक्के मारने के बाद सलीम ने भी पानी छोड़ दिया।
सलीम बिना संभले शब्बो की चूचियों पर जा गिरा उसकी टांगें सीधी हुई जिसकी वजह से शब्बो की टांगें हवा से नीचे आकर ज़मीन पर लग गई, दोनों की सांसें बड़ी तेज चल रही थी।
शब्बो ने सलीम को अपने ऊपर से हटाया और ठण्डी हुई उसकी चूत से निकलता काफी सारा पानी उसकी जांघों तक पहुँच गया।
उसने पास में परने को उठा कर अपनी चूत के अन्दर का सारा पानी साफ़ किया और कपड़े पहनने लगी।
सलीम वहीं नंगा पड़ा अपने सगे भाई की जोरू को देख रहा था और अपने लण्ड हाथ में लेकर हिला रहा था।
सलीम- रुको भाभीजान, आपको एक तोहफा देना है।
शब्बो रुक गई, सलीम ने चारपाई के नीचे पड़े एक डिब्बी को उठाया और शब्बो को दिया।
शब्बो ने डिब्बी को खोला, उसमें पायल का जोड़ा था जो काफी सुंदर लग रहा था, उसे देख कर शब्बो के मुख पर मुस्कान आई।
सलीम- भाभीजान आप भूल गई लेकिन मुझे बखूबी याद है कि आज आपका जन्मदिन है!
शब्बो- ये पायल तो बहोत बढ़िया है सलीम!!
सलीम- भाभीजान, आपको मेरा तोहफ़ा पसन्द आया, शुक्र है, मुझे औरतों की चीजों का ज्यादा पता नहीं है ना !
शब्बो- चल अभी तो मैं जा रही हूँ लेकिन तू खाना खा लियो !
सलीम- ठीक है भाभीजान, पर रात को कमरे में आ जाना! आपका जन्मदिन खटिया में लेट कर धूमधाम से मनाएँगे!
यह सुन कर शब्बो रोमांचित भी हो उठी, थोड़ी शरमा भी गई और तेजी से घर की ओर चल पड़ी।
लेकिन उसे क्या पता था कि सलीम ने जन्मदिन भाभीजान की गांड-चुदाई करके धूमधाम से मनाने का सोच के रखा था।
सलीम ने कपड़े पहने और खाना खाकर काम पर लग गया।
शाम को घर में सब आँगन में बैठे शाम की चाय पी रहे थे।
शब्बो की बेटी कहकशाँ किसी रिश्तेदार की शादी की तैयारियों में मदद कराने गई थी, वापस आई तो उसके हाथों में मेंहदी लगी थी।
वो अपनी अम्मी शब्बो को मेंहदी दिखाने लगी- अम्मीजान देखो ना… कैसी लगी है मेंहदी!
शब्बो- बहोत खूब, बहोत बढ़िया लगी है!
कहकशाँ- वो गुलबदन चाची ने शहर से खास ब्यूटीपार्लर वाली लड़की को बुलाया है।
शब्बो मुँह बिगाड़ के- हाँ, उनके घर पैसों के दरिया बहते हैं, गुलबदन का खसम पुलिस में जो है, पैसा तो होगा ही, और ऐसे मौकों पर जमकर उड़ाएँगे भी।
शब्बो पुराने दिनों की यादों में खो गई, जब उसे भी निकाह की मेंहदी लगाई गई थी, वो कितनी खुश थी, उसके दिल में कितने अरमान थे।
लेकिन सुहागरात को ही उन पर पानी फिर गया, जब आलम मियाँ शराब के नशे में चूर, तम्बाकू से बदबू मारते मुँह के साथ, बिना कुछ रोमांस किये, सीधा उस पर चढ़ गया था और आधे मिनट में ही झड़ कर बेहोश सा हो गया था।
वो तो शब्बो का नसीब अच्छा था कि सलीम जैसा समझदार देवर था जो उसका ख्याल भी रखता, और हर रूप से ‘संतुष्ट’ भी करता।
शब्बो ने मन में सोचा कि वो भी अपनी नई पायल बेटी को दिखाए लेकिन फिर यह ख्याल छोड़ दिया, यह सोच कर कि कहकशाँ भी सलीम से नई पायल, झुमके या चूड़ियाँ लाने की जिद पकड़ेगी और उनके घर की माली हालत कुछ ठीक नहीं थी।
वैसे तो बाप-दादा ढेर सारी जमीन जायदाद छोड़ गए थे लेकिन सलीम भाई आलम मियाँ ने थोड़ी जमीन छोड़ शराब और जुए में सब कुछ उड़ा दिया था।
वो तो अब सलीम बड़ा होकर खुद कामकाज देखने लगा, तब जाकर परिवार की गाड़ी पटरी पर आई, सलीम की मेहनत से उन्होंने थोड़ी और जमीन खरीदी, नया मकान भी बनाया और सरकारी कर्जे से ट्रेक्टर भी ले लिया।
कहकशाँ ने शब्बो का कंधा हिलाते हुए झकझोरा- अम्मीजान, किन ख्यालों में खो गई? खाना नहीं बनाना क्या?
शब्बो- हाँ हाँ बेटी, चलो।
रात के नौ बजने को आये, अपने जन्मदिन की खुशी में शब्बो ने सबके लिए खीर भी बनाई लेकिन सलीम अभी तक खेत से वापस नहीं आया था।
कहकशाँ तो खाना खाकर अपने कमरे में चली गई। घर में अभी भी टीवी नहीं था इसलिए मनोरंजन के नाम पर कहकशाँ केवल छिपछिप के सहेलियों से रोमेंटिक नोवल ले आती और देर रात तक अपने कमरे में पढ़ती, यदि कोई रोमेंटिक सीन आ जाए तो पढ़ते पढ़ते अपनी बुर को उंगली से सहलाती, उसमें उसे एक अजीब सा मजा आता।
वैसे वो अभी तक एकदम कुँवारी थी।
शब्बो भी रसोई में बाकी काम खत्म कर रही थी, बाहर से आलम मियाँ ने आवाज लगाई- मैं पन्द्रह मिनट में आता हूँ।
ऐसा बोल कर वो चला गया।
शब्बो भी समझती थी कि पन्द्रह मिनट का मतलब अब उसका मिंया पूरी रात अड्डे पर बैठ कर दारू पिएगा और टल्ली होके किसी नाली या झाड़ियो में गिर कर सो जाएगा.।
घर के सभी सदस्य भी यही चाहते थे कि आलम मियाँ घर से बाहर ही फिरता रहे, जब भी वो घर में होता, अक्सर छोटी छोटी बातों पे झगड़ा करना, गालियाँ बकना, मार-पिटाई करना ही उसको आता था।
सलीम जब से कमाने लगा, उसने गाँव में लगे शराब के अड्डे वाले को बोल दिया था कि मेरे भाई आके जितना पीना चाहे पीने देना, और महीने की पहली तारीख को हिसाब मुझसे कर लेना।
सलीम तो मन ही मन चाहता था कि बुढ्ढा कहीं जहरीली शराब पी कर मर जाए तो अच्छा, कम से कम सरकार की तरफ से चार-पांच लाख रूपये मिले तो खेती के साथ साथ, छोटी मोटी किराने दुकान शुरू कर दूँ और घर की चार चीज का भी इंतजाम हो जाए।