फ़ोन से मिली फ़ुद्दी-1
मैं जब दिल्ली पहली बार नौकरी करने आया तो मेरा यहाँ मन नहीं लगता था।
दिन तो दफ़्तर में कट जाता था पर रात काटनी बहुत ही मुश्किल हो जाती थी।
मैंने घर बात करने के लिए एक मोबाइल लिया और हमेशा घर बात किया करता।
दिल्ली में मेरे ज्यादा परिचित नहीं थे।
मैंने अपने दफ़्तर के एक लड़के का नंबर लिया था ताकि यदि कभी किसी कारण से दफ़्तर ना जा पाऊँ तो उसे बता दूँ।
एक दिन मुझे दफ़्तर जाने का मन नहीं हुआ तो मैंने उसे फ़ोन करने के लिए सोचा।
मैंने जब नंबर मिलाने की कोशिश की तो वो लगा नहीं।
मैंने देखा की गलती से मोबाइल के नौ ही नंबर सेव हुए हैं। अब मैं बहुत ही चिंतित हो गया।
मैं अपने मन से ही एक से नौ तक अंतिम नंबर में रखकर मिलाने लगा।
उस लड़के का नंबर तो नहीं मिला।
कई दूसरे लोगों से बात हुई जिनमें कुछ तो आदमी थे और कुछ लड़कियाँ या औरतें थीं और सभी ने गलत नंबर कहकर फ़ोन काट दिया।
मैं चिंतित हो गया। दफ़्तर का फ़ोन भी ख़राब था।
अब मैं कुछ कर भी नहीं सकता था। मैं यही चिंता करता हुआ सो गया।
करीब तीन बजे मेरे फ़ोन की घंटी बजी।
मेरे फ़ोन पर ज्यादातर मेरे घर से फ़ोन आता था।
मैंने आधी नींद में ही फ़ोन उठाया तो किसी लड़की की बहुत ही मधुर आवाज़ आई – हेल्लो!
मुझे लगा कि मैं सपना देख रहा हूँ कि कोई अप्सरा सी मधुर आवाज़ में मुझसे बात कर रहा है।
लेकिन दुबारा जब हेल्लो की आवाज़ आई तो मैं तुरंत नींद से जगा क्यूंकि यह मेरे घर से फ़ोन नहीं था।
मैंने जवाब में कहा – हेल्लो।
उधर से आवाज़ आई – आप कौन बोल रहे हैं?
मैंने कहा कि आपने फ़ोन किया है आप बताइए कि किसको फ़ोन किया है।
उसने फिर कहा कि आप कौन बोल रहे हैं?
मैंने कहा – आप बताइए किसको फ़ोन मिलाया है और कौन बोल रहे हैं?
वो चुप हो गयी। उधर से कोई आवाज़ नहीं आई तो मैंने कहा – अगर आप नहीं बोलेंगें तो मैं फ़ोन काट देता हूँ।
उधर से आवाज़ आई – मैं शीला बोल रही हूँ, और आप ने मुझे दस बजे फ़ोन किया था पर मैंने रोंग नंबर कहकर काट दिया था। मुझे आपकी आवाज़ बहुत ही अच्छी लगी थी और मैं आपसे बातें करना चाहती हूँ।
मैंने सोचा पता नहीं कौन है? इस शहर में मैं किसी को जानता भी तो नहीं हूँ।
मैंने भी तुरंत सोचा चलो यार, कोई भी हो बात करने में क्या जाता है।
उसने मुझे बताया – मैं एम बी ए कर रही हूँ और साथ ही जॉब भी करती हूँ।
मेरे बारे में पूछा तो मैंने भी बताया कि मैं भी जॉब करता हूँ।
करीब आधे घंटे हमारी बात हुई।
अब अक्सर हमारी बातें होने लगी।
रविवार को उसका फ़ोन आया कि आज मुझसे मिल सकते हो।
मैंने कहा – हाँ, आज दफ़्तर में छुट्टी है, मिल सकते है।
हमने मेट्रो स्टेशन पर मिलने का प्रोग्राम बनाया।
मैंने कहा कि अभी एक घंटे में राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पहुँच जाऊंगा।
उसने कहा कि ठीक है, आ जाओ और मुझे फ़ोन कर लेना, पहुँच कर।
मैं करीब एक घंटे में वहाँ पहुँच गया और उसे फ़ोन किया तो उसने उठाया नहीं।
मैंने कई बार फ़ोन किया पर कोई जवाब नहीं मिला।
मैंने कहा – आज उसने मुझे बेवकूफ बनाया है।
मैं वापस लौटने के बारे में सोचने लगा तभी एक लड़की मेरे पास आई और बोली – तुम राजेश हो ना?
मैं उस लड़की को देखता ही रह गया। क्या बला की ख़ूबसूरत थी।
पीले सलवार-क़मीज़ में क्या गज़ब लग रही थी।
मैं उसे देख ही रहा था कि उसने फिर से पूछा – आप राजेश ही हो न?
मैंने कहा – हाँ।
मैंने उसे वहीं मेट्रो स्टेशन पर ही कॉफी पीने के लिए कहा तो उसने मना नहीं किया और मेरे साथ कैफे कॉफी डे में आ गयी।
हमने करीब वहां एक घंटे बिताया फिर मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर कॉनट-प्लेस घूमे।
मैंने उससे पूछा कि कहाँ रहती हो? तो उसने बताया कि द्वारका में एक सहेली के साथ एक कमरे का फ्लैट लिया हुआ है किराये पर।
मैंने उसे बताया कि मैं लाजपत नगर में रहता हूँ और गुडगाँव में जॉब करता हूँ जो काफ़ी दूर पड़ता है।
मैं भी द्वारका में ही शिफ्ट होना चाहता हूँ। कोई अच्छा सा रूम मिले तो बताना।
उसने कहा – मेरे सामने वाले सोसाइटी में एक फ्लैट खाली हुआ है जिसे मेरी सहेली ने खाली किया है।
तुम देखना चाहते हो तो देख सकते हो।
मैंने कहा – ठीक है और उसके साथ द्वारका चला आया।
वह मुझे उस फ्लैट पर ले गयी क्यूंकि फ्लैट की चाभी उसी के पास थी।
मुझे वो फ्लैट पसंद आया और मैंने कहा कि मैं सोच कर बताऊंगा।
फिर मैंने कहा – ठीक है, मैं चलता हूँ तो उसने कहा कि चलो फ्लैट पर चलो, चाय पीकर जाना।
मैंने मना नहीं किया और उसके साथ-साथ चलने लगा।
मैं सोच रहा था कि उसकी सहेली भी वहीं होगी पर जब फ्लैट पर पहुँचा तो उसने अपने पर्स से चाभी निकलकर दरवाजा खोला तो मैं सोच में पड़ गया।