पड़ोसी की चुदाई

किरायेदार की कमसिन बुर

Kriyadar ki kamsin bur

मैं आप लोगों के सामने अपनी कहानी पेश कर रहा हूँ।

मेरा नाम रोहित है।

मैं जिला गोरख़पुर, उत्तर प्रदेश में रहता हूँ।

दिखने में साधारण हूँ।

बात उस समय कि है जब मेरी उम्र करीब 22 साल थी।

मेरी एक किरायेदर थी जिसका नाम सुनीता है जो देखने में सांवली है।

मैं और सुनीता एक-दूसरे से प्यार नहीं करते थे।

सुनीता उस समय 22 साल की थी।

जिसके कारण उसकी शादी नहीं हो रही थी।

इसलिए वो काफी उदास रहने लगी।

कई बार हम लोगों के पैर और हाथ एक-दूसरे से टकरा ज़ाते और आँखों-आँखों में कामभावना की झलक दिखाई दे जाती।

लेकिन उसके संस्कार उसे आगे बढने से रोक देते।

ऐसा करीब दो सालों तक चला।

न तो मैं उससे कुछ कह पा रहा था और न तो वो मुझसे कुछ कह पा रही थी।

मुझे कभी-कभी लगता था कि वो भी मुझसे चुदवाना चाहती है।

आग दोनों तरफ़ बराबर लगी थी।

एक दिन की बात है, हम लोग एक साथ ऊपर हाल में कैरम ख़ेल रहे थे।

उस दिन उसकी मम्मी के अलावा घर पर कोई नहीं था, हम लोगों ने एक-दूसरे को चोर नजरों से न जाने कितनी बार देखा।

अचानक मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसके हाथों पर तुरन्त एक चुम्मा ले लिया।

उस समय उसकी माता जी सो रही थीं।

लेकिन सुनीता वहां से तुरन्त चली गयी।

मैंने सोचा कि वो मुझसे नाराज हो गयी।

उस दिन मैंने उससे कोई बात नहीं की।

मैं भी डर गया था लेकिन मैंने हिम्मत करके उनसे बात की।

धीरे-धीरे हम लोगों ने एक-दूसरे को समझना शुरु किया।

मैंने उनके मन की बात को जानने के लिए चुपके से उनके किचन में एक चुदाई की कहानी वाली किताब रख दी।

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फिर मैंने उससे कुछ बना कर खिलाने के लिए कहा और साथ में किचन में चला गया।

कुछ ख़ाने के समान को ख़ोजने के बहाने मैंने किताब ढूंढ निकाल ली और उनको दिख़ाया।

किताब रख़कर मैं हाल में बैठ गया और उनको किताब के पन्नों को पलटते पाया.

जाहिर था किताब ने उसकी मन में दबी भावनाओं को बढा दिया।

करीब पांच या छ्ह दिनों बाद उसने किताब जला दी।

16 अगस्त, 2010 को मैंने उनसे रात में मेरे कमरे में आने के लिए कहा।

काफी समय बाद भी वो न आयी।

अगले दिन मैंने उससे पूछा।

मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि सुनीता अपने आप में काफी पिरपक्व थी।

आख़िर एक दिन सुनीता मेरे कमरे में आयी।

मुझे यकीन नहीं हुआ, मैंने उसे झट से अपनी बाहों में भर लिया।

यह मेरा पहला अनुभव था।

मैंने तुरन्त उनको किस करना चालू कर दिया।

फिर मैंने उसके होठों को अपनी जीभ से चाटना शुरु किया।

जैसे ही मैंने उसकी समीज़ निकालनी चाही तो उसने मुझे लाईट बन्द करने के लिए कहा – मैंने लाईट बन्द कर दी।

समीज़ निकालने के बाद मैंने लाईट आन कर दी।

उसने तुरन्त अपनी चूची जो ब्रा में थी, को हाथों से ढक लिया।

सुनीता उस समय बहुत अधिक शरमा रही थी।

फिर भी मैंने उसी दशा में उससे अपना हाथ हटाने को कहा।

काफी कोशिश के बाद उसने अपना हाथ हटाया।

मैंने उसकी ब्रा उतारी।

जैसे ही मैंने उसकी चूची को मुँह में लिया उसने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर उठा कर अपनी उत्तेजना जाहिर की।

उसकी कांखों पर काफी बाल थे।

मैंने कांखों पर अपनी जीभ रख दी और कांखों को चाटने लगा।

उसकी आँखों से आंसू निकल आए, दर्द के कारण नहीं बल्कि ख़ुशी से।

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इसलिए मैंने उनको माथे से लेकर सलवार बांधने की जगह तक अपनी जीभ से हर एक जगह चाटा।

अब बारी सलवार उतारने की थी।

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जैसे ही मैंने सलवार का नाडा ख़ोलने के लिए हाथ नाडे पर रख़ा।

सुनीता ने कहा – आप किस कर लीजिए लेकिन सलवार मत उतारिए।

इस पर मैंने कहा कि मैं केवल आपकी बुर को देख़ना चाहता हूँ, काफी कोशिश करने के बाद मुझे उसकी सलवार उतारने में सफलता मिली।

मैंने जिन्दगी में पहली बार बुर के ऊपर पैंटी के दर्शन हुए।

अब तो सुनीता के शरीर पर पैंटी के अलावा कोई कपड़ा नहीं बचा।

मुझे पैंटी को उतारने में आधे घंटे का समय लगा।

पैंटी उतारते ही बुर के आस-पास बहुत ही घनी झाटें तथा पैड को देख़ कर मेरा मन प्रफुल्लित हो गया।

मैंने पैड के बारे मे पूछा लेकिन पैड सुरक्षा के लिए लगाया था।

अब मैंने भी अपने कपडे उतार दिया।

मैंने जैसे ही बुर चाटने के लिए उसकी टांगों को फैलाया और बुर पर अपनी जीभ रखी, सुनीता अपनी गांड को नीचे से बार-बार ऊपर उठाने लगी।

करीब आधे घंटे तक बुर का स्वाद लेने के बाद एक बार फिर सिर से लेकर पैर तक हर अंग को चाटा।

लेकिन सुनीता ने मेरे लण्ड को केवल अपने हाथों से छूकर कुछ देर तक रगडा, चूसा नहीं।

मेरा लण्ड 5 इंच लम्बा और डेढ़ इन्च मोटा है।

मैंने अब सुनीता से एक बार पूछा कि क्या चुदवाना चाहती हो, उसने कहा जो आप को अच्छा लगे।

मैंने सुनीता की टांगों को मोडकर अपनी कांख़ों में दबा कर अपना लण्ड जैसे ही बुर पर लगाया, मुँह से सिसकारी निकल गयी।

सुनीता के मुँह से केवल आह ही निकला।

मैंने लण्ड को बुर मे डालने के लिए थोडा सा दबाव दिया, सुपाडा थोडा अन्दर गया, मुझे और सुनीता को दर्द हुआ।

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थोडी देर रुकने के बाद मैंने मैंने तीन से चार बार में लण्ड बुर की गहराई में उतार दिया।

सुनीता ने अपने आप पर काफी कन्ट्रोल किया और दर्द को सहते हुए हल्के-हल्के गांड को ऊपर हिलाना शुरु किया।

मैंने भी उसका पूरा साथ दिया और चुदाई प्रारम्भ की।

हर धक्के पर सुनीता के चेहरे पर दर्द और ख़ुशी का भाव साफ दिखाई दे रहा था।

करीब बीस मिनट के बाद मैंने अपना पानी पेट पर गिरा दिया और सुनीता को सहारा देकर बाथरुम में ले जाकर बुर और लण्ड की सफाई की और सुनीता ने पैड लगाकर अपने कुवांरी होने का प्रमाण दिया।