Bhabhi Sexपड़ोसी की चुदाई

हॉट पड़ोसन भाभी की चाहत

मेरा नाम अर्जुन है। मैं 29 साल का हूँ, लंबा-चौड़ा कद, चौड़ी छाती और अच्छी-खासी कसरती बदन का मालिक। लोग कहते हैं कि मेरी आँखों में एक अलग सी चमक है, जो किसी को भी अपनी ओर खींच लेती है। ये कहानी आज से तीन साल पहले की है, जब मैं दिल्ली में अपनी नई नौकरी के लिए एक किराए के मकान में शिफ्ट हुआ था। मेरा घर एक छोटी सी कॉलोनी में था, जहाँ हर सुबह छत पर कपड़े सुखाने की परंपरा सी थी।

मैं रोज सुबह नहा-धोकर, कपड़े सुखाने छत पर जाता था। वहाँ से आसपास की छतें साफ दिखती थीं। एक दिन मेरी नजर सामने वाली छत पर पड़ी, जहाँ एक औरत अपने गीले कपड़े फैला रही थी। उसकी उम्र करीब 32-33 साल की होगी। नाम था उसका रानी। लंबे, घने बाल उसकी कमर तक लहरा रहे थे, और उसकी देह इतनी सुडौल थी कि उसे देखते ही मेरे हाथ-पैर ढीले पड़ गए। उसकी कमर पतली, कूल्हे भरे हुए और सीना ऐसा कि साड़ी के नीचे से भी उसकी खूबसूरती छिप नहीं रही थी। उस दिन उसने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो हवा में लहरा रही थी।

मैं उसे देखता रहा। मेरी आँखें उसकी हर हरकत पर टिकी थीं। अचानक उसने पलटकर मुझे देखा। मेरे हाथ अनायास ही नीचे चले गए थे, और मैं शर्मिंदगी से पानी-पानी हो गया। उसने एक पल को मुझे घूरा, फिर बिना कुछ कहे नीचे चली गई। मैंने सोचा, “बस, अब तो गया। ये क्या सोचेगी मेरे बारे में?” उस पूरे दिन मैं बेचैन रहा।

अगले दिन मैं फिर छत पर गया। इस बार रानी पहले से वहाँ थी। आज उसने नीली साड़ी पहनी थी, जिसका पल्लू हल्का सा सरक रहा था। उसकी नाभि गहरी और गोल थी, और गीले बालों की बूँदें उसकी कमर पर गिर रही थीं। मैं उसे देखता रहा, और इस बार उसने मुझे फिर पकड़ लिया। लेकिन इस बार उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, एक हल्की सी मुस्कान थी। उसने अपने बालों को पीछे से उठाकर आगे किया और होंठों पर एक शरारती हँसी लाकर नीचे चली गई। मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं।

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कुछ दिनों तक यही सिलसिला चला। हमारी नजरें मिलतीं, वो मुस्कुराती, और मैं पागलों की तरह उसे ताकता रहता। एक दिन हिम्मत करके मैंने उसे इशारे से “हाय” कहा। उसने जवाब में अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और हल्के से सिर हिलाया। फिर उसने अपने फोन की ओर इशारा किया। मैं समझ गया। मैंने अपना नंबर एक कागज पर लिखा, उसे मोड़कर छत से नीचे फेंका। शाम को मेरा फोन बजा—उसका मैसेज था, “हाय, मैं रानी हूँ।”

बस, फिर क्या था। हमारी बातें शुरू हो गईं। फोन पर घंटों बतियाने लगे। वो शादीशुदा थी, लेकिन उसका पति ज्यादातर बाहर ही रहता था। उसकी आवाज में एक अजीब सी कशिश थी, जो मुझे हर बार बेकाबू कर देती। एक रात उसने कहा, “अर्जुन, कल मेरे घर पर कोई नहीं होगा। क्या तुम आ सकते हो?” मेरे तो जैसे होश उड़ गए। मैंने हाँ में सिर हिलाया, हालाँकि वो मुझे देख नहीं रही थी।

अगले दिन मैं शाम को उसके घर पहुँचा। उसने दरवाजा खोला। उसने काले रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे बदन पर बिजली सी चमक रही थी। उसने मुझे अंदर बुलाया और सोफे पर बिठाया। गर्मी का मौसम था, और उसका पंखा धीरे-धीरे चल रहा था। उसने अपना पल्लू हल्का सा गिराया, ताकि हवा लगे। मैं उसकी नंगी कमर को देखता रहा। उसकी त्वचा इतनी मुलायम थी कि मेरे हाथ खुद-ब-खुद उसकी ओर बढ़ गए।

मैंने उसकी जाँघ पर हाथ रखा। वो थोड़ा चौंकी, लेकिन कुछ नहीं बोली। मेरी उंगलियाँ धीरे-धीरे उसकी नाभि की ओर बढ़ीं। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा, “अर्जुन, थोड़ा रुक जाओ।” लेकिन उसकी आवाज में ना की जगह हाँ की गूँज थी। मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी और उसे अपनी बाँहों में खींच लिया। उसकी साँसें तेज हो गईं। मैंने उसके गले पर होंठ रखे और धीरे-धीरे चूमना शुरू किया। उसकी साड़ी का पल्लू पूरी तरह गिर गया। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, उसकी त्वचा आग की तरह गर्म थी।

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“रानी, तुम बहुत खूबसूरत हो,” मैंने कहा। उसने मेरी ओर देखा और शरमाते हुए कहा, “अर्जुन, ये गलत है।” लेकिन उसकी आँखें कुछ और कह रही थीं। मैंने उसकी साड़ी को धीरे-धीरे खोलना शुरू किया। उसका ब्लाउज पीछे से खुला हुआ था, और उसकी पीठ पर एक छोटा सा तिल था, जो उसे और भी आकर्षक बना रहा था। मैंने उसकी पीठ को चूमा, और वो सिहर उठी। उसने मुझे कसकर पकड़ लिया।

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मैंने उसे सोफे पर लिटाया और उसकी नाभि को चूमना शुरू किया। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। “अर्जुन… आह…” वो बस इतना ही कह पाई। मैंने उसकी साड़ी को पूरी तरह हटा दिया। उसका बदन मेरे सामने था—एकदम निखरा हुआ, जैसे कोई मूर्तिकार ने तराशा हो। मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा। उसने मेरी शर्ट उतार दी और मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी।

मेरा हाथ उसकी छाती पर गया। उसकी साँसें और तेज हो गईं। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोले और उसकी गोलाइयों को आजाद कर दिया। मैं उन्हें सहलाने लगा, और वो मेरे कानों को काटने लगी। हम दोनों एक-दूसरे में खो गए थे। मैंने अपनी पैंट उतारी और उसे अपनी ओर खींचा। उसने मेरे लंड को देखा और शरमाते हुए मुस्कुराई। मैंने उसे चूमते हुए धीरे से उसमें प्रवेश किया। उसकी एक हल्की सी चीख निकली, लेकिन फिर वो मेरे साथ लय में आ गई।

हम दोनों पसीने से तर थे। उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थीं। “अर्जुन, और तेज…” उसने कहा। मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। उसकी कमर मेरे साथ ताल मिला रही थी। करीब आधे घंटे तक हम दोनों एक-दूसरे में डूबे रहे। आखिरकार, मैंने उसे कसकर पकड़ा और हम दोनों एक साथ चरम पर पहुँच गए। मैं उसके ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।

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सुबह जब मैं उठा, वो मेरे बगल में सो रही थी। उसकी साड़ी बिस्तर पर बिखरी पड़ी थी। मैंने उसे चूमा और अपने घर चला आया। उसके बाद जब भी मौका मिलता, हम मिलते। हमारा रिश्ता एक सीक्रेट था, जो हम दोनों के बीच ही दफन था।