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दिसम्बर की वो सर्द रात

December ki wo sard raat

वो दिसम्बर की सर्द रात थी और रात के 12 बज चुके थे। मै जबलपुर स्टेशन के प्लेटफार्म पर खडा अपनी ट्रेन का इन्तजार कर रहा था|वैसे ट्रेन का समय रात 10.40  का था लेकिन ट्रेन लेट थी। कुछ समय पश्चात अनाउन्समेन्ट हुआ कि ट्रेन और ज्यादा हो गर्इ है अब यह रात 3 बजे के पहले नही आने वाली थी। ठंड के कारण मेरी हालत खराब हो रही थी तो मै एसी वेटीग रूम मे चला आया। मोबाइल  डिस्चार्ज होने को था।

अत: सबसे पहले उसे चार्जिंग पर लगाया और खाली सीट पर बैठ गया। मैने वेटीग रूम में नजर घुमाई कुछ इक्का दुक्का लोग ही नजर आये वैसे भी एसी वेटीग रूम मे गर्दी कम होती है। आज ठंड कुछ ज्यादा ही थी सो बैग से कंबल निकाल कर ओढ लिया।मोबाइल चेक किया अभी 50 प्रतिशत ही हुआ था सोचा चलेगा और व्हाटसएप आदि चेक करने लगा।  अभी कुछ समय ही बीता था कि एक कपल वेटिंग रूम मे दाखल हुआ।  आदमी दुबला पतला शायद बिमार था और उसकी बीबी उम्र लगभग 40 भरे बदन की सेक्सी महिला थी।

सेक्सी मै उन महिलाओं को कहता हूँ जिनको देखकर कुछ कुछ होने लगे। वह महिला और उसका पति मेरी बाजु वाली सीट पर बैठ गये।  पति शायद उनकी तबियत वाकई मे ठीक नही थी तो उनको चादर बिछाकर लिटा दिया और कंबल भी डाल दिया। कुछ समय बाद सामने बैठे लोग भी चले गये अब हम दोनों ही थे। मोबाइल  फिर डिस्चार्ज होने को था अत: सबसे पहले उसे चार्जिंग पर लगाया औरटाइमपास करने के लिये हम यूं ही बातचीत करने लगे। महिला का नाम कोमल था और उनके पति का नाम सुशांत था।  उनके पति वास्तव में बिमार थे और वे दोनो इसी ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे। मैने घडी देखी रात के 1.10 बज चुके थे।

ठंड काफी बढगई थी। कोमल ठंड से ठिठुर रही थी वैसे उसने शाल लपेट रखी थी लेकिन शायद वो पर्याप्त नही थी। मैने उनको कंबल मे आ जाने हेतू कहा किन्तु संकोच वश उसने मना कर दिया और बैग से एक चादर निकाल ली लेकिन इस कडकडाती ठंड में चादर से क्या होना था। उसने मेरी ओर देखा और मैने बगैर कोई बात किये शाल का एक छोर उन पर डाल दिया।  अब उनको कुछ राहत महसुस हुई लेकिन हम दोनों अलग अलग चेयर पर बैठे थे तो कंबल भी ठीक से कवर नही कर पा रहे थे इसलिये मैने उनको बेंच पर चलने को कहा और वो भी मान गई। अब हम दोनों एक ही कंबल के अंदर एक ही बेंच पर बैठे बातचीत कर रहे थे| इस दौरान मेरी कोहनी कर्इ बार उसके बूब्स को टच हुआ लेकिन वो कुछ नही बोली लेकिन उसके शरीर की उष्मा और खुशबु मुझे बेकाबू कर रही थी|कंबल ठीक करने के बहाने मैने कर्इ बार उसके उरोजो को कोहनी से प्रेस किया  लेकिन शायद उसको मजा आ रहा था और चुपचाप इसका मजा ले रही थी।

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समय धीरे धीरे आगे बढ रहा था।  अब करीब 1.45 बज चुके थे लेकिन अभी भी सवा घंटा बाकि था। ठंड अपने शबाब पर थी।  नींद हम दोनों को आ रही थी। लेकिन कंबल एक ही होने से मजबुरी थी।  यह सार्वजनिक जगह थी कोई  भी कभी भी आ सकता था इसलिये मैने चुपचाप बैठने का निश्चय किया लेकिन वो अब गर्म हो चुकि थी इसलिए वो खुद मेरे और करीब आगई एकदम चिपक गई ।मैने भी एक हाथ उसकी कमर को लपेट दिया और बाई ओर के बूब को हाथ से मसल दिया उसने धीरे से मेरी ओर देखा और मैने उनकी आखों मे वासना पढ ली। मैने उसको बेंच पर सो जाने के लिये कहा।  वो मेरी जांघ पर सर रखकर लेटगई  और थोडा सा कंबल मैने अपने पैरों पर ले लिया फिर दायें बायें देखकर वेटिग रूम का जायजा लिया लोग भी चले गये अब हम दोनों ही थे और उनके पति दुनिया से बेखबर सो रहे थे .मौका देख मैने उसकी आँखों मे देखा और एक हाथ सीथे उसके ब्लाउज के अंदर डाल दिया लेकिन ब्लाउज काफी टाइट था हाथ पुरा अंदर नही जा रहा था उसने मेरी समस्या को देखते हुए ब्लाउज के उपर के कुछ हुक खोल दिये।

अब मेरा हाथ अंदर पुरी गहाराई  तक जा कर उसके 36 साइज के उरोजो को मसल रहा था|लौडा तन कर खडा हो गया था| मै उसके बूब्स को चुसना चाहता था।  उसकी चुत को मसलना चाहता था| उसकी गरमा गरम चूत को चाटना चाहता था उसको चोदना चाहता था| वो भी अब गरम हो चुकि थी लेकिन जगह सही नही थी मैने उसका बर्थ नंबर लिया हम सब एक ही कोच मे थे लेकिन हमारी बर्थे बहुत दूर दूर थी।  वैसे भी एसी कोच मे कुछ कर पाना संभव नही होता|मैने महसूस किया कि अगर कुछ करना हो तो यही एक घंटा था। मैने उससे बात की||टायलेट का विचार मन मे आया लेकिन रेल्वे के टायलेट अमूमन गंदे ही होते है फिर भी मैने एक बार देख लेने का सोचा और टायलेट मे घुस गया टायलेट साफ नही था पर बहुत गंदा भी नही था| फिर मैने बाथरूम चेक किया। बाथरूम गिला था लेकिन साफ था| मैने सोचा यह ठीक रहेगा|वापस आकर मैने धीरे से उसके कान मे यह बात कह दीं|उसने हामी भर दी|सबसे पहले मै उस बाथरूम मे घुसा उसके कुछ समय बाद वो भी अंदर आ गई|उसके आते ही मैने उसको बाहों मे ले लिया और उसके होठों को चुमने लगा|उसने अपनी जीभ मेरे मुह मे डालकार गोल गोल घुमाने लगी|वो मुझे इन सब बातों की अभयस्त लगी।

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धीरे धीरे मेरे हाथ उसके ब्लाउज के अंदर घुसने लगे|उसने तुरंत अपना ब्लाउज और ब्रा निकाल दिया अब उसके बडे बडे उरोज और उस पर इमली की चटनी की तरह निप्पल||हाय ||मै तो पागलो कि भांति उस पर टूट पडा|उसको खूब जोर जोर से दबाया||कभी बायां||कभी दायां|||फिर उनको मुह मे लेकर चुसने लगा||काटने लगा||कोमल मेरा पुरा साथ दे रही थी||बार बार मोअन कर रही थी|उसने धीरे से हाथ बढाकर मेरा लन्ड अपने हाथ मे ले लिया||बडे हक से मानो कह रही हो ये अब मेरी प्रापर्टी है|अब मैने भी अपने कपडे निकाल कर पुरा नंगा हो गया| उसने बडे ध्यान से मेरा लण्ड देखा और एक हल्की सी मुस्कुरा दी||

उसने मेरा लण्ड अपने मुह मे ले लिया और बडे चाव से चुसने लगी। फिर धीरे से कान मे फुसफुसाकर बोली “अपने पास ज्यादा समय नहीं है इसको जल्दी से मेरी चूत मे डाल दों” मैने घडी देखी अभी आधा घंटा और बाकि था||मैने इसको फर्श पर लिटा दिया और उसकी चूत को चाटने लगा…अब तो वो जोर जोर से उछलने लगी||शी शी||फु …फू||करने लगी लेकिन मै अपने काम मे लगा रहा|आखिर वो झड गई। अब मैने भी ज्यादा देर न करने की सोची और लण्ड का सुपाडा उसके चूत पे रखकर एक जोरदार झटका मारा और पुरा लण्ड उसकी चूत मे समा गया।  अब मै लगातार धक्के लगा रहा था और वो फुसफुसाकर बोल रही थी और जोर से…और जोर से||दस मिनट तक धक्के लगाने के बाद वो बोली “गांड मारोगे क्या” अंधा क्या मांगे …मैने भी उसको डॉगी स्टाइल मे लेकर उसकी गांड मे लण्ड पेल दिया पंदरह बीस धक्को के बाद मैने भी अपना वीर्य उसकी गाण्ड मे छोड दिया|अब वो बहुत संतुष्ट नजर आ रही थी। जैसे बरसो की प्यास बुझी हो…फिर हमने अपने कपडे पहने||और बहार आ गये| ट्रेन के आने का एनाउन्समेन्ट चालू हो चुका था। हमने अपना अपना सामान उठाया और अपने प्लेटफार्म पर आ गये…|ट्रेन मे ज्यादा मौका नही था फिर भी हमने बहुत मस्ती की। ये कहानी बहुत आगे चली। लेकिन वह सब बाद में। कहानी कैसी लगी जरूर बतायें।