हिंदी सेक्स स्टोरी

गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ कुनबा 6

Gendamal halwai ka chudakkad kunba-6

अब दस बज चुके थे, गेंदामल अपनी दुकान पर जा चुका था।

उधर सब लोग नाश्ता कर चुके थे और चमेली राजू के लिए नाश्ता लेकर अभी पीछे जाने ही वाली थी कि कुसुम ने उससे आवाज़ देकर रोक लिया।
कुसुम- अरे ओ चमेली.. ज़रा इधर आ.. कहाँ जा रही है?

चमेली (कुसुम की तरफ जाते हुए)- वो मैं राजू को नाश्ता देने जा रही थी।

कुसुम- अच्छा ठीक है.. जा नास्ता देकर आ, मैं तुम्हारा अपने कमरे में इंतजार कर रही हूँ… एक ज़रूरी काम है तेरे से।

चमेली- जी दीदी.. मैं अभी आती हूँ।

चमेली नाश्ता लेकर पीछे चली गई, कुसुम अपने कमरे में आ गई।

उसके होंठों पर अजीब सी मुस्कान थी, पता नहीं.. उसके दिमाग़ में आज क्या चल रहा था।

थोड़ी देर बाद चमेली कुसुम के कमरे में आई।

चमेली- जी दीदी.. बताईए क्या काम है?

कुसुम- आ बैठ तो सही..

कुसुम बिस्तर पर बैठी थी, चमेली उसके सामने जाकर नीचे चटाई पर बैठ गई।

कुसुम- तुम्हें मेरा एक काम करना है।

चमेली- आप हुक्म करें दीदी।

कुसुम- मैं चाहती हूँ कि आज जब तुम दीपा के बालों में तेल लगाओ..तो उस समय उसकी मालिश भी कर देना।

चमेली- बस इतना सा काम… कर दूँगी दीदी।

कुसुम- अरी मैं उस ‘मालिश’ की बात कर रही हूँ, जो मैं तुमसे करवाती हूँ।

कुसुम की बात सुन कर चमेली थोड़ा झिझक गई और बोली।

चमेली- पर दीदी उसकी ‘वो’ मालिश करने की क्या जरूरत है अभी?

कुसुम- तू भी ना कभी-कभी बच्चों जैसी बात करती है, देख अब दीपा जवान होने लगी है। उसके बदन में भी आग भड़कने लगी होगी। अगर ऐसे मैं उसकी अच्छे से मालिश हो जाए, तो उसका तन भी ठंडा हो जाएगा और इससे बच्चे बुरे कामों की तरफ भी नहीं जाते.. समझीं!

चमेली- अच्छा दीदी… ये तो बहुत अच्छा सुझाव दिया है आपने.. सच में आपका कोई जवाब नहीं.. पर क्या वो मान जाएगी?

कुसुम- अरे तुम्हें नहीं पता.. तुम्हारे हाथों में तो जादू है। एक बार किसी के बदन को छू लेती हो, तो वो वहीं हथियार डाल देता है।

अच्छा जा.. अब वक्त खराब ना कर.. अभी मुझे उस नई आई महारानी को नहलाने के लिए पीछे भी ले जाना है।

चमेली- ठीक है दीदी.. मैं दीपा के कमरे में जाती हूँ।

चमेली के जाने के बाद कुसुम सीमा के कमरे में गई।

सीमा वहाँ पर अपने लिए कपड़े निकाल रही थी।

उस समय वो ब्लाउज और पेटीकोट पहने खड़ी थी, उसके बाल खुले हुए थे, जो उसकी पतली नागिन से कमर पर बल खा रहे थे।

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कुसुम को देख कर सीमा उसकी तरफ़ मुड़ी- आईए दीदी.. मैंने कपड़े निकाल लिए हैं।

कुसुम- तो चलो, फिर चल कर नहा लेते हैं।

सीमा- चलिए।

कुसुम सीमा को लेकर पीछे बने गुसलखाने की तरफ आ गई।

चमेली ने पहले से ही पानी गरम करके रख दिया था।

जैसे ही वो दोनों पीछे पहुँची, कुसुम की आँखें उस कमरे की ओर लग गईं।

अन्दर राजू खाना खा कर लेट गया था, सुबह से सामान बाहर निकाल कर काफ़ी थक चुका था।

जब कुसुम और सीमा के चलने से उनके पैरों की पायल की आवाज़ हुई, तो राजू उठ कर बैठ गया और दरवाजे पर आ कर बाहर देखने लगा।
बाहर दो जवान और हसीन औरतें खड़ी थीं।

कुसुम ने देखा कि राजू दरवाजे की आड़ से उनकी तरफ देख रहा है, पर उसने यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसने राजू को देख लिया है।

‘जाओ अन्दर जाकर नहा लो.. मैं यहीं बैठती हूँ।’ कुसुम से सीमा से कहा।

सीमा गुसलखाने में चली गई।

उसका दिमाग़ कभी दीपा की तरफ जाता कि चमेली ने अब तक अपना काम शुरू कर दिया होगा और कभी राजू की तरफ, जो पीछे खड़ा दरवाजे के ओट से उसे देख रहा था।

अचानक से कुसुम के दिमाग़ में पता नहीं क्या आया.. उसने भी साड़ी नहीं पहनी हुई थी, वो भी ब्लाउज और पेटीकोट में थी, पर उसने सर्दी से बचने के लिए एक शाल ओढ़ रखी थी। कुछ सोचने के बाद उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम अपने मन में सोचने लगी कि वहाँ चमेली तो ज़रूर आज दीपा के बदन में आग लगा देगी और वही आग आगे चल कर मेरी बेइज्जती का बदला लेगी, पर इधर तो आग मुझे ही लगानी पड़ेगी।

आग अगर दोनों तरफ बराबर लगाई जाए तो धमाका तो होगा ही।

ये सोच कर कुसुम खड़ी हुई और अपना शाल उतार कर वहाँ लगी रस्सी पर टांग दिया और फिर अपनी बाँहों को सर के ऊपर ले जाकर एक अंगड़ाई कुछ इस तरह से ली कि उसकी 38 साइज़ की मस्त चूचियां उभर कर और बाहर आ जाएँ।

अपने सामने यह हसीन नज़ारा देख कर राजू जो कल से परेशान था.. उसका और बुरा हाल हो गया।

उसके पजामे में हलचल होने लगी।

फिर कुसुम ने चोर नज़रों से उस कमरे की तरफ़ देखा.. राजू अभी भी वहीं खड़ा था और बड़ी ही हसरत भरी नज़रों से कुसुम की तरफ देख रहा था।

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फिर कुसुम ने उसकी तरफ पीठ की और कुछ देर बाद उसने अपने पेटीकोट को ऊपर उठाना चालू कर दिया, राजू के दिल के धड़कनें पूरी रफ़्तार से चलने लगी थीं।

उसके लण्ड में सनसनाहट होने लगी, कुसुम ने अपना पेटीकोट अपनी कमर तक पूरा चढ़ा लिया।

उफ़फ्फ़… राजू की आँखों के सामने क्या नज़ारा था..

रात को वो चमेली की गाण्ड को ठीक से नहीं देख पाया था, पर अभी सूरज के रोशनी में जब उसने कुसुम की गाण्ड को देखा, तो मानो जैसे उसकी साँसें अटक गई हों, एकदम गोल-गोल और मोटे चूतड़ उसके आँखों के सामने थे।

गाण्ड की दरार जो राजू बिल्कुल अच्छे से देख पा रहा था।

उसका मन तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना लण्ड उसकी गाण्ड की दरार में जाकर रगड़ना चालू कर दे!

पर अभी ये सब बहुत दूर की कौड़ी थी।

फिलहाल तो राजू वहीं खड़ा होकर अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।

कुसुम जानती थी कि पीछे खड़ा राजू उसके चूतड़ों को देख रहा है और वो चाहती भी यही थी।

वो नीचे पैरों के बल बैठ गई और उसने मूतना चालू कर दिया.. सर्दी की सुनहरी धूप में उसकी मूत की धार भी राजू को किसी सुनहरे रंग के झरने की तरह लग रही थी।

राजू का जो हाल था, वो तो राजू ही बता सकता है।

पेशाब करने के बाद कुसुम खड़ी हुई और पास पड़े एक कपड़े से अपनी चूत को साफ़ करने लगी।

उसने भी अपना पेटीकोट को नीचे करने के कोई जल्दबाज़ी नहीं की।

हालांकि कुसुम के दिल में अभी तक राजू के लिए कोई बात नहीं थी, वो ये सब इसलिए कर रही थी कि जोश में आकर दीपा और राजू कुछ ऐसा कर दें कि गेंदामल की इज्जत के धज्जियाँ उड़ जाएँ।

अपनी चूत को साफ़ करने के बाद उसने अपना पेटीकोट नीचे कर लिया, राजू के लिए जो लाइव शो चल रहा था, वो खत्म हो चुका था।

इधर राजू के लण्ड से कल से किस्मत कहर ढा रही थी।

उधर दूसरी तरफ दीपा के बदन में कल की आग आज कुछ ठंडी सी हो गई थी।

दीपा का आज तक किसी से कोई चक्कर नहीं चला था.. होता भी कैसे.. वो घर से बहुत कम ही बाहर निकलती थी।

वैसे भी गेंदामल ये सब करने की आज्ञा भी नहीं देता था।

अगर वो बाहर जाती तो भी कोई ना कोई साथ में ज़रूर होता।

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उधर दीपा बिस्तर के किनारे बैठी हुई है, उसकी पीठ किनारे की तरफ है और चमेली उसके बालों में तेल लगा रही थी।

चमेली ने देखा कि दीपा बहुत गुमसुम सी है।

चमेली (दीपा के बालों में तेल लगाते हुए)- क्या बात है.. आज हमारी राजकुमारी बहुत गुमसुम क्यों है?

दीपा (जैसे अभी-अभी नींद से जागी हो)- नहीं.. वो वो.. कल बहुत थक गई थी ना.. इसलिए पूरा बदन दु:ख रहा है काकी।

चमेली- ओह.. अच्छा ये बात है, अगर पहले बता देती तो मैं कब का राजकुमारी के बदन का दर्द दूर कर देती.. चलो आज आपकी मालिश कर देती हूँ।

दीपा- मालिश..!

चमेली- हाँ.. बड़ी दीदी तो मुझसे हफ्ते में एक-दो बार तो ज़रूर करा लेती हैं, आप भी एक बार करवा के देखो, अगर बार-बार ना कहो तो कहना।

दीपा- ठीक है काकी… तो फिर आज आप मेरी भी मालिश कर दो।

चमेली- ठीक है कर देती हूँ, राजकुमारी जी।

यह कह कर चमेली ने मुस्कुराते हुए कमरा के एक कोने में पढ़ी चटाई को उठा कर नीचे बिछा दिया और उस पर एक तकिया लगा दिया।

चमेली- आप यहाँ लेट जाएँ।

दीपा बिस्तर से उठी और नीचे चटाई पर बैठ गई।

चमेली ने कमरा का दरवाजा बन्द किया और दीपा के पीछे नीचे बैठ गई। चमेली के हाथ पहले ही तेल से सने हुए थे। चमेली ने दीपा के खुले हुए बालों को एक तरफ किया और उसके कंधों को धीरे-धीरे दबाते हुए सहलाने लगी।

चमेली की ऊँगलियाँ दीपा के कंधों से नीचे दीपा के खुले हुए गले तक जा रही थीं।

चमेली के मुलायम हाथों ने अपना जादू दिखाया, दीपा की आँखें इतनी मस्त मालिश से बंद होने लगीं।

दीपा के कंधों को थोड़ी देर दबाने के बाद चमेली ने अपने हाथों को उसके कंधों से सरका कर और नीचे कर दिया।

अब उसके हाथ दीपा के आगे की तरफ के खुले हिस्से की मालिश कर रहे थे।

चमेली अपने घुटनों के बल बैठी थी, दीपा ने अपना सर चमेली के छाती पर टिका दिया, जिससे चमेली के 38 नाप की चूचियां भी दब गईं और उसके मुँह से ‘आहह’ निकल गई।

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एक लम्बी कथा जारी है।