हिंदी सेक्स स्टोरी

सविता आंटी ने जमकर पिया मेरे लंड का जूस

पढ़ें अशोक की कामुक कहानी, जिसमें उसने गरीब जूस वाली सविता आंटी को पटाया और उसकी चूत चोदकर अपना माल पिलाया। हवस, जबरदस्ती और जंगल में चुदाई से भरी ये सेक्स स्टोरी आपको उत्तेजित कर देगी!

मेरा नाम अशोक है। उम्र 28 साल, बदन गठीला, लंबा-चौड़ा, सीना चौड़ा और उस पर काले लंबे-लंबे बाल जो पेट तक लहराते हैं। मेरा लंड—6 इंच लंबा, 5 इंच मोटा—हर औरत की नजर का केंद्र बन जाता है। कुल मिलाकर मेरी पर्सनैलिटी ऐसी है कि कोई भी औरत मुझे देखकर अपनी चूत में एक अजीब सी गुदगुदी महसूस करे। और हाँ, “मेरे लंड का जूस आंटी जमकर पीती है।”

हर सुबह ऑफिस जाते वक्त रास्ते में एक गन्ने के जूस की ठेली पड़ती है। वहाँ एक 55-60 साल का बूढ़ा, कमजोर सा इंसान गन्ने का जूस बेचता है। उसका शरीर टूटा हुआ, गाल पिचके हुए, हाथ कांपते हुए, जैसे कोई बीमारी उसे खाए जा रही हो। मैं कभी-कभी उससे जूस पी लेता हूँ। उसकी बीवी उसकी मदद करती है—नाम है सविता, उम्र होगी करीब 48-50 साल। वो भी उतनी ही कमजोर दिखती है। गाल धंसे हुए, पतले-पतले हाथ, गले की हड्डियाँ साफ झलकती हैं, आँखें अंदर धंसी हुईं, बूब्स लटके हुए जैसे उनकी जवानी किसी ने चूस ली हो। रंग काला, कूल्हे छोटे, पूरी तरह कुपोषण का शिकार। “मेरे लंड का जूस” उसे देखकर भी मेरे अंदर हवस जाग उठती है।

लोगों को उसकी हालत पर तरस आएगा, लेकिन मैं हवस का पुजारी हूँ। उसकी ये कमजोर हालत, गरीबी से टूटी हुई शक्ल—पता नहीं क्यों, मुझे उसमें एक अजीब सा आकर्षण दिखा। मैंने सोच लिया, इसे चखना है।

एक दिन मैं उसकी ठेली पर रुका। उस दिन उसका पति नहीं था। सविता अकेली जूस निकाल रही थी। उसने हरी साड़ी पहनी थी, साथ में हरा ब्लाउज़, जिसमें से उसकी सफेद ब्रा साफ झलक रही थी। पतले हाथों में पुरानी चूड़ियाँ, गंदे फटे पैरों में पुरानी पायल—वो ढीली-ढाली सी मेरे लिए जूस बना रही थी। कोई खास आकर्षण नहीं था उसमें, लेकिन मेरा लंड उसे देखकर टनटना उठा। मैंने ठान लिया—इसे पटाकर चोदना ही है। “मेरे लंड का जूस।”

मैं: “आज अंकल नहीं हैं? कहाँ गए?”
सविता: “हाँ, मजदूरी करने गए हैं।”
मैं: “तेरा नाम क्या है?”
सविता: “सविता। क्यों पूछ रहा है?”
मैं: “यूँ ही मन किया। नाम नहीं पूछ सकता क्या?”
सविता: “तुझे क्या मतलब? जूस पी और चलता बन।”
मैं: “गुस्सा क्यों हो रही हो आंटी? वैसे जूस कमाल का बनाया है तूने। अंकल तो बेकार बनाते हैं। तेरे हाथ का जादू है ये।”
सविता: “ठीक है, 20 रुपये दे दे।”
मैं: “एक गिलास और पिला दे आंटी।”

वो थोड़ा झिझकी, फिर बोली: “रुक, निकालना पड़ेगा।”
मैं: “आराम से निकाल आंटी। वैसे, रहती कहाँ है तू?”
सविता: “तुझे क्या मतलब? जहाँ भी रहती हूँ, तेरे काम का नहीं।”
मैं: “अरे, इतना मस्त जूस बनाने वाली का पता तो होना चाहिए। कभी ठेली न लगी तो तेरे घर जूस पीने आ जाऊँगा।”
सविता: “घर में नहीं बनाते हम। यहाँ पीना है तो पी।”
मैं: “कोई बेटा-बेटी है तेरे?”
सविता: “ज्यादा सवाल मत पूछ। जूस पी और निकल। हाँ, एक बेटा है, तेरे जितना बड़ा। मंडी में आम बेचता है। नाला बस्ती में रहते हैं हम, यहाँ से 2 किलोमीटर दूर।”
मैं: “तेरी हालत ऐसी क्यों है आंटी? बीमार लगती है।”
सविता: “बीमार नहीं हूँ। गरीबी ने ऐसा बना दिया।”
मैं: “चल, आज से मैं एक गिलास जूस के 40 रुपये दूंगा तुझे।”
सविता: “ऐसा क्यों रे? मेरा आदमी गुस्सा करेगा। वो बहुत खुद्दार है।”
मैं: “उसे थोड़े ही दूंगा। तुझे दूंगा। चुपके से रख लेना।”
सविता: “ठीक है, पर ध्यान से देना। उसे पता चला तो मुझे पीटेगा। वैसे भी वो रोज दारू पीकर रात में मुझे मारता है।”
मैं: “इतना हरामी है वो? चल आंटी, वादा रहा—आज से वो तुझे नहीं पीटेगा।” “मेरे लंड का जूस।”

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सविता: “वो कैसे?”
मैं: “मैं उसे सबक सिखा दूंगा।”
सविता: “ऐसा मत कर बेटा। उसे पता चला तो और मुसीबत होगी। वैसे तेरा नाम क्या है?”
मैं: “अशोक। तू टेंशन मत ले आंटी, मैं अपने तरीके से सब संभाल लूंगा।”
सविता: “ठीक है, पर ये सब मेरे लिए क्यों कर रहा है?”
मैं: “मुझे तेरी हालत पर दया आ गई। गरीबों की मदद करना मेरा शौक है। इसलिए तेरा पता पूछा, ताकि कभी जरूरत पड़ी तो पैसे दे सकूं।”
सविता: “नाला बस्ती में आ जाना। किसी से पूछ लेना—सविता का झोपड़ा कहाँ है, सब बता देंगे।”
मैं: “ठीक है आंटी। चलता हूँ। अपना ख्याल रख, कुछ खा-पिया कर। बहुत कमजोर हो गई है। कल फिर आऊँगा।”
सविता: “ठीक है बेटा। कल पक्का आना।”

मैंने उसे आँख मारी और वहाँ से निकल गया। वो थोड़ा सकपकाई, पर शर्मीली सी मुस्कान दे दी।

उसी रात मैं नाला बस्ती के पास सविता के पति का इंतजार कर रहा था। अचानक वो लड़खड़ाता हुआ विक्रम से उतरा। दारू के नशे में धुत था। जैसे ही वो अपनी गली की ओर मुड़ा, मैंने उसे धर लिया। लात-घूँसे बरसाने शुरू कर दिए। वो रोने लगा, माफी माँगने लगा। “मेरे लंड का जूस।”

गन्ने वाला: “माफ कर दे भाई। मत मार। छोड़ दे मुझे।”
मैं: “तेरी माँ का भोसड़ा, सविता को रोज मारता है हरामी। आज मर्द से पाला पड़ा तो गांड फट गई? बोल, अब मारेगा उसे?”
गन्ने वाला: “नहीं बेटा, आज से कभी हाथ नहीं उठाऊँगा। माफ कर दे इस बूढ़े को।”
मैं: “और सुन, उसे बताया कि मैंने तुझे पीटा तो कल फिर पड़ेगा। समझा?”
गन्ने वाला: “हाँ बेटा, समझ गया। अब छोड़ दे।”
मैं: “निकल मादरचोद।”

अगले दिन जब मैं ठेली पर पहुँचा, सविता खुश दिख रही थी। उसका पति भी साथ था, पर चुपचाप खड़ा था। मैंने जूस माँगा। सविता और मैं आँखों से इशारे कर रहे थे। मैंने उसे आगे मिलने का इशारा किया। जूस पीने के बाद मैं बाइक लेकर आगे बढ़ा और उसका इंतजार करने लगा।

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सविता आई। आज उसने लाल साड़ी पहनी थी, लाल ब्लाउज़, काली ब्रा के स्ट्रैप कंधों पर दिख रहे थे। होंठों पर हल्की लिपस्टिक—लग रहा था मेरे लिए सजी थी। “मेरे लंड का जूस।”

सविता: “जूस पी लिया? बुड्ढे ने कल मुझे नहीं मारा। अब क्या काम है? जल्दी बता, उसे बोला है थोड़ी देर में आती हूँ।”
मैं: “तुझे पैसे देने थे। वैसे घर कब जायेगी? अकेली कब होगी?”
सविता: “क्यों? घर में क्या करना है?”
मैं: “पैसे देने हैं।”
सविता: “अभी दे दे। 5 बजे जाऊँगी। बुड्ढा 9 बजे आता है।”
मैं: “नहीं आंटी, घर में दूंगा। चल, पीछे बैठ। तुझे घुमा लाता हूँ।”
सविता: “टाइम नहीं है। बुड्ढा इंतजार करेगा।”
मैं: “कुछ नहीं होगा। वो बोलेगा तो मैं संभाल लूंगा। बैठ।”

वो बाइक पर बैठ गई। मैं उसे ठेली के सामने से ले गया, ताकि बुड्ढा उसे मेरे साथ देख ले। वो मना करती रही, पर मैंने जबरदस्ती उसे दिखाया। बुड्ढे ने देख लिया। मैंने उसे सलाम ठोका और ठेली पर रुक गया।

मैं: “अंकल, 2 गिलास जूस बना।”
अंकल: “बेटा, ये पीछे कौन है?”
मैं: “ऐसे पूछते हैं किसी की बीवी के बारे में, भेनचोद? मेरी बीवी है। जूस बना, वरना यहीं मारूंगा।”
अंकल: “माफ कर दे बेटा। गलती हो गई।”

हमने जूस पिया। सविता ने पल्लू से मुँह छिपाया हुआ था। फिर मैं उसे 80 की स्पीड से लेकर निकल गया।

सविता: “ये क्या पागलपन है? मुझे फँसा दिया। अब बुड्ढा क्या बोलेगा?”
मैं: “कुछ नहीं बोलेगा। मैं संभाल लूंगा।”
सविता: “और तू गाली क्यों दे रहा था? वो मेरे पति हैं।”
मैं: “तू टेंशन मत ले। चुपचाप बैठ। तुझे घुमाता हूँ।” “मेरे लंड का जूस।”

मैं उसे एक सुनसान जंगल में ले गया।

सविता: “यहाँ क्यों लाया? मुझे ठेली पर छोड़ दे।”
मैं: “रुक आंटी। इतना डर मत।”

मैंने बाइक झाड़ियों में रोकी और उसे पकड़कर उसके होंठ चूम लिए। वो छटपटाई, उसके होंठ से खून निकल आया।

सविता: “हरामी! ये क्या कर रहा है? मुझे छोड़ दे, वरना चिल्लाऊँगी।”
मैं: “सविता, सुन। तू मुझे बहुत सेक्सी लगती है। एक बार करने दे। तुझे भी मज़ा आएगा।”
सविता: “शर्म नहीं आती? मेरी उम्र तेरी माँ जितनी है। ये गलत है। मुझे छोड़ दे।”

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मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो छूटने की कोशिश करती रही, पर मेरी ताकत के आगे उसकी कमजोर हड्डियाँ हार गईं। मैंने उसकी साड़ी और ब्लाउज़ उतार दिया। अब वो काली ब्रा में थी, नीचे कुछ नहीं। उसका कमजोर शरीर, लटके बूब्स, काले निप्पल, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ, पुरानी पायल—वो मेरे सामने नंगी रो रही थी। उसने चिल्लाना शुरू किया। गुस्से में मैंने उसके गाल पर 4 थप्पड़ जड़ दिए। वो सुन्न पड़ गई। “मेरे लंड का जूस।”

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मैं: “चिल्लाई तो यहीं जंगल में मार डालूँगा।”
सविता (रोते हुए): “बेटा, ऐसा मत कर। मैं तेरी माँ जैसी हूँ। छोड़ दे।”
मैं: “चुप हो जा। मज़े लेने दे। ज्यादा होशियारी की तो नंगी छोड़ दूंगा। समझी?”

वो गिड़गिड़ाती रही। मैंने अपना लंड बाहर निकाला। उसे देखकर वो घबरा गई। मैंने उसकी बालों भरी चूत में लंड सटाया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। वो चीख पड़ी। मेरा लंड उसकी बूढ़ी चूत में समा गया।

सविता: “अह्ह्ह्ह… उईईई… मर गई मैं… रहम कर…”
मैं: “अह्ह्ह… ओये होये… तेरी चूत गज़ब है आंटी…”

15 मिनट तक मैंने उसे तेज़ रफ्तार से चोदा। वो बेहोश हो गई। उसकी कमजोरी मेरे लंड को बर्दाश्त नहीं कर सकी। बेहोशी में भी मैंने उसे चोदा और उसकी चूत में झड़ गया। थोड़ी देर बाद पानी डालकर उसे होश में लाया।

मैं: “कैसी है जान? मेरा माल तेरी चूत में छोड़ दिया।”
सविता: “हाय अम्मा… दर्द हो रहा है। अंदर क्यों छोड़ा? अब पेट से हुई तो?”
मैं: “होने दे। मैं पाल लूंगा। अब मुँह खोल।”

उसने मुँह खोला तो मैंने लंड उसके मुँह में डाल दिया।

मैं: “चूस इसे। इसमें और माल है।”

मैंने उसके मुँह की चुदाई की और गले तक लंड ठूंसकर झड़ गया। वो मेरा सारा माल पी गई। थककर वो कपड़े पहनने लगी। मैं उसे ठेली पर छोड़कर आँख मारते हुए चला गया। “मेरे लंड का जूस आंटी जमकर पीती है।”