नौकर-नौकरानी चुदाई

मेरी साली ने अपनी चूत चुदाई नौकर से-2

(Meri Sali Ne Chut Chudai Naukar Se-2)

पापा उठ कर मम्मी के दोनों टांगों के बीच आ गए, चूत पूरी तरह से लौड़ा निगलने को आतुर थी पर पापा शायद दूसरे मूड में थे। वो अभी मम्मी को और थोड़ी देर सताना चाह रहे थे। उन्होंने फुद्दी को ढूँढा और दो अंगुली से उस स्थान को चौड़ा कर फुद्दी पर लौड़े से थपकी देने लगे, हर थपकी के साथ चूतड़ कूद कर साथ देती.
थोड़ी देर तक यही क्रम चलता रहा।

मम्मी को बोलना पड़ा कि अब छोड़ो खेलना, चोदो जल्दी से, नहीं तो मैं बिना चुदे ही रस छोड़ दूँगी, फिर चोदते रहना एक ठंडी रंडी को।
बिना देर किए पापा ने मम्मी की चूत की दरार को और चौड़ा किया, अपने लंड से उसी फांक को रगड़ने लगे।

इधर मैं भी अपने दो अंगुली से अपनी फांक को रगड़ने लगी थी, मम्मी पापा की चुदाई, काम लीला को देखते देखते मेरी बुर खूब रस छोड़ कर मेरे पैंटी को गीली कर चुकी थी।
धीरे से अंगुली को अपनी बुर के अंदर बाहर करने लगी, अपना जी-स्पॉट खोज कर उसे सहलाने लगी।

ज्यों ही पापा का लौड़ा मम्मी की गुफा में घुसा, फच्चाक की ध्वनि उस कमरे में फैल गयी, रात्रि की शांति को फच्चाक फच्च का शोर तोड़ रहा था, पापा के हर वार का जवाब मम्मी चूतड़ उठा उठा कर दे रही थी।

इधर मेरी हालात खराब हो रही थी, मेरी बुर में अजीब से सनसनाहट हो रही थी, शायद चूतरस निकलना चाह रहा था। उधर जितना जोर लगा कर पापा चोद रहे थे, उसके दुगुने जोर से मम्मी के चूतड़ उछल कर लंड को निगले जा रहे थे। कामुकता भरी सिसकारियाँ, फच्च फच्च का ध्वनि पूरे कमरे को मादक बना रही थी।

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मम्मी ने अपने बाहुपाश में पापा को ले रखा था और जोर से अपने कलेजे से चिपका रखा था मानो पापा को अपने अंदर घुसा लें. मम्मी पापा दोनों के मुँह से घुँ घुँ की आवाज आने लगी, मम्मी ने बाहुपाश के बाद अपनी दोनों टांगों को उठाते हुए पापा की दोनों टांगों को अपनी जकड़न में ले लिया.
अब पापा मम्मी को चोद नहीं पा रहे थे इतना कस कर मम्मी ने पापा को जकड़ रखा था।

मम्मी थोड़ी ही देर में अकड़ के पस्त हो गई, पापा ने भी अपने वीर्य का फव्वारा मम्मी की चूत में छोड़ दिए और बगल में निढाल पड़ गए।
इधर मैं भी अपने रस से पूरे पैंटी को गीली कर पस्त हो गयी।

“पर दीदी, जो सुरसुरी उस समय बुर में पैदा हुई थी, वो बुर झड़ने के बाद भी खत्म नहीं हुई। उसी खाज को शांत करने के लिए महेश के लंड से अपने चूत को फड़वा के आ रही हूँ।”

फिर अपर्णा ने अपनी कहानी जारी रखते हुए कहना शुरु किया:

डेली रूटीन की तरह आज भी मैं झाड़ू लगा रही थी और मेरे पीछे पीछे महेश पौंछा लगा रहा था। पौंछा लगाते समय घर के सभी सदस्यों को सख्त हिदायत थी कि कोई भी गीले फर्श पर नहीं चल सकता था अन्यथा घर का पौंछा उसे ही लगाना पड़ेगा।
इस कानून के कारण कोई भी उस समय चलता फिरता नहीं था।

जब महेश पौंछा लगा रहा होता तो वह घुटने के बल बैठ कर आगे वाले एक हाथ पर शरीर का भार टिकाए दूसरे हाथ से पौंछा लगाता था। उसका घोड़ा सा लौड़ा घड़ी के पेंडुलम की तरह डोलते रहता था।
कभी कभी मैं जानबूझ कर तो कभी गलती से उसके लंड को झाडू से हिला दिया करती थी। वो केवल कहता- हय दीदी, ये क्या कर देती हो? सुनसान जगह है, सांपवा फुफकारने लगेगा तो बिल खोजने लगेगा, मुश्किल हो जाएगा कंट्रोल करना।
देहाती भाषा में कहे वाक्य पर मैं हँस देती थी।

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कभी जान बूझ कर उसकी एड़ी पर बैठ जाती जिससे पूरी एड़ी मेरी बुर की फांक में घुस जाती थी, बुर की गर्मी को वह सहज महसूस कर लेता और अपनी गांड को पीछे धक्का देता तो दोनों का गांड आपस में आलिंगन करने लगता।
यह सिलसिला बहुत दिनों से चल रहा है पर बात चुदाई तक नहीं पहुँची।

रात की घटना के कारण मेरे बुर में जो खाज उत्पन्न हुई, वह एक बार झड़ने के बाद भी खत्म नहीं हुई तो सोचा कि आज अपनी चूत को लंड दिलवा ही दूँ। आज घर के दरवाजे की तरफ से झाडू लगाने लगी और महेश उसी तरफ से पौंछा लगा रहा था जिससे घर में घुसने की कोई हिमाकत न करे।
धीरे धीरे मैं चौकी के नीचे चली गयी और महेश पर बिगड़ने लगी कि क्या तुम देखते हो देखो कितना मकड़ा का जाला यहाँ लगा हुआ है.
वह चौकी के नीचे आया और बोला- लाओ दीदी झाडू, मैं झाड़ देता हूँ।

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वह झाडू लगा रहा था, तभी मैंने छटपटाते हुए कहा- महेश, लगता है मकड़ा मेरे पायजामे में घुस गया है!
उसने भी फटाक से पायजामे का नाड़ा खोला और पैंटी सहित उसे निकाल दिया, मेरी बुर पर एक चपत लगाते हुए कहा- हय एक मकड़ा को मार दिया।

चपत लगते ही बुर की सुरसुरी पूरे शरीर में दौड़ गई। वो अपने मुँह को मेरी बुर के उपर रख कर जीभ से सहलाने लगा। मैं ऊपर से गुस्सा होने का दिखावा करने लगी कि ‘क्या कर रहे हो महेश?’ पर शरीर साथ नहीं दे रहा था, मेरी टांगें अपने आप फैल रही थी।
उसने कहा- दीदी मकड़वा का जहर पोंछ रहे हैं, नहीं तो यहाँ फफोला हो जाएगा!

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जब मैं पूर्ण गरम हो गयी तो उसने अपना लंड बड़े बेदर्दी से बुर का सील तोड़ते हुए अंदर घुसा दिया। मेरी चुत की चुदायी बहुत देर तक चलती रही, चौकी के नीचे से हर धक्के पर चट चट की आवाज आ रही थी।
अंत में शरीर कांप कांप कर चूत रस निकाल दिया जो पूरे फर्श पर बिखेर गया। मेरी चूत की खाज तब जाकर शांत हुई।

दर्द और मजा का सम्मिश्रण था चुदाई में… मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी तो अपने दर्द को होंठ काट कर सहन किया।
झड़ने के बाद उसने मेरी चूत को जीभ से चाट कर सुखा दिया, बाद में जब वह चूत चाट रहा था तो पूरा शरीर सिहर रहा था।

इधर मैं फोन पर अपनी साली की चुत चुदाई की प्यारी बातों को सुन सुन कर मुठ मार कर झड़ता रहा, शायद मेरा भी पूरा पायजामा गीला हो गया था।
अपर्णा फिर बोली- ममता दीदी, आपको अपना प्रॉमिस याद है न?
“हाँ री, पूरा याद है, जितना मिला है उससे दुगुणा मजा मैं तुझे दूँगी।”