मम्मी को ठोकते हुए फूफा
मैंने अपनी मम्मी को फूफा के साथ देखा: एक सच्ची कहानी।ये बात तब की है जब मेरे पापा आर्मी में थे। वो महीनों तक घर से दूर रहते थे, और हमारा गुजारा उनके भेजे हुए मनी ऑर्डर से चलता था। लेकिन एक बार किसी वजह से पापा का मनी ऑर्डर नहीं आया। उस वक्त हमारी हालत बहुत खराब हो गई थी। मम्मी दिन-रात पैसे की चिंता में डूबी रहती थीं। ऐसे में पापा के जीजा, यानी मेरे फूफा, हमारे घर आने लगे। वो आमतौर पर हर 15 दिन में शनिवार को जरूर आते थे। उनकी उम्र करीब 62 साल थी, जबकि मम्मी सिर्फ 32 की थीं—जवान, खूबसूरत और नाजुक।
एक शनिवार को फूफा फिर आए। मम्मी उस दिन बहुत परेशान थीं। रात का खाना खत्म होने के बाद मम्मी ने हिम्मत जुटाकर उनसे बात की। “भाईसाहब, मुझे 3000 रुपये की सख्त जरूरत है,” मम्मी ने धीमी आवाज में कहा। फूफा ने थोड़ा सोचा और बोले, “ठीक है, लेकिन रात साढ़े दस बजे मेरे कमरे में आना।” मम्मी चुपचाप सहम गईं। मैं और मम्मी एक ही बेडरूम में सोते थे, जबकि फूफा के लिए ड्रॉइंग रूम में दीवान पर बिस्तर लगाया गया था। खाना खाकर मैं लेट गया, लेकिन नींद नहीं आई। बेडरूम में नाइट बल्ब की हल्की रोशनी थी। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मम्मी चुपचाप उठीं और ड्रॉइंग रूम की ओर चली गईं। उनकी हरी साड़ी और काला ब्लाउज हवा में हल्का-हल्का लहरा रहा था। गर्मियों की रात थी, और मेरे मन में एक अजीब सी उत्सुकता जाग उठी।
मैं दो मिनट बाद उनके पीछे गया और ड्रॉइंग रूम के बाहर खड़ा हो गया। पर्दा हवा से थोड़ा-थोड़ा हिल रहा था, जिससे अंदर का नजारा साफ दिखाई दे रहा था। फूफा ने अपने बैग से नोटों की एक गड्डी निकाली और मम्मी के हाथ में रख दी। मम्मी चौंक गईं, “ये तो बहुत ज्यादा हैं!” फूफा ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, पर इसके बदले मेरा एक काम कर दो।” मम्मी ने हैरानी से पूछा, “क्या काम?” जवाब देने की बजाय फूफा ने मम्मी का हाथ पकड़ लिया और उन्हें अपनी बांहों में खींच लिया। मम्मी घबरा गईं, “भाईसाहब, मुझे छोड़ दो! मुझे सिर्फ 3000 चाहिए।” लेकिन फूफा ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने मम्मी की साड़ी खींच दी। अब मम्मी सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में खड़ी थीं। उनका जूड़ा अभी भी सजा हुआ था, और गोरी त्वचा रात की रोशनी में चमक रही थी।
फूफा ने मम्मी को पीछे से जकड़ लिया और उनके कूल्हों पर हाथ फेरने लगे। मम्मी छूटने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन फूफा का जोर बढ़ता जा रहा था। वो बार-बार मम्मी को चूम रहे थे। “कोई देख लेगा,” मम्मी ने डरते हुए कहा। “सब सो गए हैं,” फूफा ने लापरवाही से जवाब दिया। फिर उन्होंने मम्मी के पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया। मम्मी पूरी तरह नंगे हो गईं। “भाईजी, मैं आपकी बेटी की तरह हूं,” मम्मी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, पर फूफा पर कोई असर नहीं हुआ।
फूफा ने अपनी बनियान और लुंगी उतार दी। उनका शरीर बूढ़ा लेकिन ताकतवर था। उन्होंने मम्मी को सोफे पर बैठा दिया और खुद फर्श पर घुटनों के बल बैठ गए। फिर मम्मी की जांघों के बीच अपना मुंह लगा दिया। मम्मी का विरोध धीरे-धीरे कम होने लगा। शायद मजबूरी थी, या फिर कुछ और। फूफा पूरी शिद्दत से मम्मी को चूम रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी एक उंगली मम्मी के नाजुक हिस्से में डाल दी। मम्मी के मुंह से हल्की चीख निकली। फूफा ने उंगली तेजी से चलानी शुरू की। मम्मी ने अनायास अपनी टांगें फैला दीं। कुछ ही पलों में मम्मी का शरीर अकड़ने लगा। फूफा ने उंगली निकालकर फिर से मुंह लगा दिया। ऐसा लगा जैसे वो मम्मी के शरीर से कुछ पी रहे हों।
फिर फूफा ने मम्मी को फर्श पर घुटनों के बल बिठाया और अपना मोटा, काला लंड उनके मुंह में डाल दिया। वो करीब 8 इंच का होगा। मम्मी उसे मजबूरी में चूसने लगीं, जैसे कोई बच्चा कुल्फी खाता हो। फूफा उनके बालों से खेल रहे थे। थोड़ी देर बाद मम्मी ने कहा, “भाईजी, अब जाने दो।” लेकिन फूफा नहीं माने। उन्होंने मम्मी को खड़ा किया और उनके गोरे कूल्हों को सहलाने लगे। मम्मी अब भी छूटने की कोशिश कर रही थीं, पर कमजोर पड़ती जा रही थीं।
आखिरकार फूफा ने मम्मी को दीवान पर लिटा दिया और उनके ऊपर चढ़ गए। मम्मी की टांगें अपने हाथों में पकड़कर हवा में उठा दीं। मैं खिड़की के पास खड़ा था, सिर्फ दो फीट की दूरी पर। मम्मी की गोरी जांघों के बीच का नजारा मेरे लिए बिल्कुल नया था। फूफा ने मम्मी को पूरी तरह खोल दिया था। वो अपना लंड अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मम्मी हर बार हिल जाती थीं। “भाईजी, मुझे बख्श दो, ये मेरे बस का नहीं,” मम्मी बार-बार कह रही थीं। पर फूफा ने उनकी एक न सुनी। आखिरकार एक जोरदार धक्के के साथ उन्होंने अपना लंड मम्मी के अंदर डाल दिया। मम्मी की चीख निकल गई। “माया, मेरी जान, क्या हुआ?” फूफा ने पूछा। “बहुत मोटा है,” मम्मी ने सिसकते हुए कहा।
फूफा ने धीरे-धीरे गति बढ़ाई। मम्मी की सिसकियां अब “आह… आह…” में बदल गई थीं। उनका शरीर फूफा के नीचे कांप रहा था। फूफा का काला, मोटा लंड अंदर-बाहर हो रहा था। करीब 15 मिनट तक ये सब चलता रहा। फिर फूफा ने एक गहरी सांस ली, उनका शरीर सख्त हो गया, और वो मम्मी के अंदर रुक गए। थोड़ी देर बाद जब उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला, तो मम्मी के शरीर से गाढ़ा, सफेद पदार्थ बहने लगा। मम्मी थककर चूर हो चुकी थीं। फूफा ने अपनी लुंगी से सब साफ किया और मम्मी के पास लेट गए।
“कैसा लगा, माया?” फूफा ने पूछा। मम्मी ने उनका सीना सहलाते हुए कहा, “भाईजी, तुममें बहुत जान है। इसके पापा तो 3-4 मिनट में थक जाते हैं। उन्होंने मुझे कभी ऐसा अहसास नहीं दिया। उनका साइज भी तुम्हारे आधे से कम है।” ये सुनकर मैं हैरान रह गया। मम्मी जैसी नाजुक औरत को इसमें मजा कैसे आया? उनकी सिसकियां, वो हवा में उठी टांगें—ये सब मेरे दिमाग में घूमने लगा।
फूफा ने कहा, “माया, तुझे मेरा देखकर डर नहीं लगा?” मम्मी हल्के से मुस्कुराईं, “पहले लगा कि तुम मुझे तोड़ दोगे, पर फिर ऐसा मजा आया कि सब भूल गई।” फूफा बोले, “2 साल से मैंने किसी औरत को हाथ नहीं लगाया। तेरा शरीर देखकर मैं पिघल गया।” उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि सेक्स में सचमुच कुछ खास है।
फूफा ने मम्मी को अपने पास सोने को कहा, पर मम्मी मानी नहीं। वो उठीं, कपड़े पहने, और फूफा की छाती पर एक चुम्बन देकर चली आईं। मैं जल्दी से बेडरूम में जाकर लेट गया। मम्मी कुछ मिनट बाद आईं और चुपचाप सो गईं। अगले दिन रविवार था। फूफा सुबह बस से अपने घर चले गए। मैं उन्हें बस स्टैंड तक छोड़ने गया। जब लौटा, तो मम्मी नहाकर तरोताजा लग रही थीं। वो गुनगुना रही थीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैं अगले शनिवार का इंतजार करने लगा।