सच्चा प्यार
हेलो दोस्तो,
आप सभी को मेरा नमस्कार|
मेरा नाम अंकित है|
मेरी उम्र बीस साल है और मैं सोनीपत का रहने वाला हूँ|
आज मेरे भी मन में आया कि अपने जीवन की कहानी भी आप सबके सामने रखूं|
हालाँकि इसमे कुछ खास बात नहीं है|
शायद आप में से बहुतों को पसंद ना आए पर मैं अपने जीवन की सच्चाई बता रहा हूँ|
मैं शुरू से ही थोड़े शर्मीले स्वभाव का रहा हूँ शायद इसीलिए अभी तक मैं सेक्स का मज़ा नहीं ले सका हूँ|
पर ये बात नहीं थी कि मुझे मोका नहीं मिला, बस ये समझ लीजिए कि मेरी ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ कि जिसके बाद मैंने कभी किसी के बारे में सोचा ही नहीं|
मुझे आज भी याद है वो दिन जब मुझे मेरा पहला और आख़िरी प्यार मिला था|
बात उस समय की है जब मैं ग्यारवीं कक्षा में पढ़ता था|
मुझे अपने बुआ के लड़के के साथ उसके एक दोस्त की शादी में जाना पड़ा|
शादी एक होटेल में थी|
हम दोनों भाई भी ढंग से बन-ठन कर गये थे|
सब अपने आप में ही खोये हुए से लग रहे थे|
हमने जैसे ही दरवाजे से एंट्री की तो एक सुंदर सी लड़की मेरे से टकरा गयी|
उसको संभालने के चक्कर में मैं गिर गया|
क्या कहूँ यारों, मैं तो जैसे खो सा गया था उसे देख कर|
बिल्कुल परी सी लग रही थी|
गोरा रंग, पतली कमर, गोल-गोल बूब्स|
होंठ जैसे रस से भरी ख़ान हो, और गुलाबी रंग का लहंगा उस परी की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था|
तब तो उसने कुछ नहीं कहा|
बस सॉरी बोला और चली गयी|
पर मेरी नज़र उससे हटने का नाम ही नहीं ले रही थी|
तभी मेरे भाई ने मुझे नींद से जगाया और हम अंदर की तरफ चले गये|
पर मेरी नज़रें उसे ही ढूंढ रही थी|
फिर हम भाई के दोस्त के पास जाकर बैठ गये|
मैं तो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि किसी तरीके से मुझे वो लड़की फिर से मिल जाए|
पंद्रह मिनट बाद वो लड़की सामने से आती दिखी और सीधे हमारे और ही आने लगी|
जैसे ही वो हमारे पास आकर रुकी मेरी तो सांस ही अटक गयी थी|
उसने दूल्हे की तरफ़ देखा और बोला – भैया, मुझे कुछ सामान लाना है और कोई भी मेरे साथ मार्केट नहीं जा रहा है|
किसी को मेरे साथ भेज दो ना प्लीज़ भैया, तब भाई के दोस्त ने हमारा पहली बार परिचय करवाया और मुझे उसके साथ जाने को बोला|
असल में मैं तो मौका देख रहा था तो फट से हाँ कर दी|
तब मुझे उसका नाम पता चला उसका नाम था प्रीति जैसी प्यारी वो थी ठीक वैसा ही नाम उसको मिला था|
फिर मैं उसको लेकर मार्केट गया|
बाइक पर वो मेरे से चिपक कर बैठी थी|
मुझे भी मज़ा आ रहा था|
रास्ते में हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी थी|
उसको शॉपिंग करवाने के बाद हम लोग वापस होटेल आ गये पर हमारा ध्यान एक-दूसरे की तरफ़ कुछ ज़्यादा ही हो गया था|
वो भी बार-बार मुझे देख कर स्माइल कर रही थी और मैं भी|
बस पता नहीं क्यों कुछ ही पलो में वो अपनी सी लगने लगी थी|
शादी के काम-काज भी चल रहे थे पर हम दोनों किसी और ही काम में बिज़ी थे|
ऐसे ही रात हो गयी और फेरे होने के बाद सब लोग खाने के लिए चले गये|
मुझे भूख नहीं थी तो मैं बाहर गार्डन में आकर बैठ गया|
रात को भी उसी होटेल में रुकना था तो इसीलिए मैं सोच रहा था कि कैसे प्रीति से अपने दिल की बात कहूँ?
ऐसे सोचते हुए तीस मिनट से ज़्यादा हो गये कि मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी|
मैने सोचा होगा कोई और मैं फिर से अपनी सोच में डूब गया|
करीब पंद्रह मिनट बाद पीछे से आवाज़ आई – क्या बात है, जनाब खाना नहीं खाना क्या?
मैने पीछे मूड़ के देखा तो प्रीति मेरे पीछे ही खड़ी थी|
उसके हाथ में एक प्लेट में खाना था|
मैने बोला – आप कब आये? आप खा लीजिए मुझे अभी नहीं खाना मेरा मन नहीं है|
इतना बोलते ही वो मेरे पास आई और प्लेट मेरे हाथों में रख कर बोली – हम जिसे अपना मानते हैं उसे खाना जरूर खिलाते हैं|
तो मैने कहा – आप हमें अपना कब से मानने लग गये?
अभी तो हम ठीक ढंग से दोस्त भी नहीं बने हैं|
तो उसने कहा कि क्यों? अपना मानने के लिए दोस्त ही जरूरी होता है और भी कुछ होता है|
मैने पूछा – क्या?
काफ़ी समय तक वो कुछ नहीं बोली|
फिर एक दम से मुझे गले लगा लिया और कहा – प्यार का रिश्ता|
मैं नहीं जानती की तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे पर पहली ही मुलाकात में तुम मुझे अच्छे लगने लगे थे|
मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ अंकित|
ये सब सुनकर मेरे से तो कुछ भी नहीं कहा गया|
बस मैंने भी उसे ज़ोर से गले लगा लिया ना जाने कितनी देर हम ऐसे ही लिपटे रहे|
फिर मैने थोड़ी सी हिम्मत की और उसके सिर को अपने हाथो में लिया और उसके कोमल-कोमल होंठो पर अपने होंठ रख दिए|
थोड़ी देर हम ऐसे ही किस करते रहे|
फिर एक दम से वो अलग होकर अंदर भाग गयी|
मैं भी हैरान हो गया कि एक दम से क्या हो गया?
थोड़ी देर बाद मैं भी अंदर गया लेकिन मुझे वो कहीं भी दिखाई नहीं दी|
मैने जाकर अपने भाई को सब कुछ बताया और कहा कि मेरा मूड ठीक नहीं है, मैं सोने जा रहा हूँ और कह कर अपने रूम में आ गया|
करीब एक घंटे बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया|
मैने जैसे ही दरवाजा खोला प्रीति एक दम से भागती हुई अंदर घुसी और दरवाजा लॉक कर दिया|
उसके हाथ मैं अब फिर खाने की प्लेट थी|
इससे पहले की मैं कुछ कहता उसने प्लेट साइड में रखी और मेरे से लिपट कर किस करने लगी|
कुछ देर बाद अलग हुई और बोली – सॉरी, मैं उस टाइम थोड़ा डर गयी थी|
मैने फिर से उसे बाहों में लेते हुए कहा – कोई बात नहीं जानू, मैं समझ सकता हूँ|
फिर उसने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया और जाते जाते मुझसे वादा लिया कि मैं हमेशा उससे प्यार करूँगा और ज़रूर मिलूँगा|
उसके अगले दिन हम अपने अपने घर आ गये और हमारी फोन पर बात होने लगी|
ऐसे ही समय बीतता गया और हम दोनो बारवी क्लास में आ गये|
तब तक हमने एक-दूसरे को इतना मान लिया था कि जैसे एक जिस्म दो जान पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था|
1 जन्वरी को वो घर से कही जा रही थी और उसको किसी कार् ने टक्कर मार दी|
उसके दो दिन बाद उसने अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर ली और मैं आज तक उसे प्यार करता हूँ|