हिंदी सेक्स स्टोरी

शादी का मंडप और चुदाई-2

(Shadi Ka Mandup Aur Chudai-2)

चूमते चूमते मेरे तो बदन में हलचल होने लगी और मैंने महसूस किया कि शेर सिंह का पाजामा भी टाईट होने लगा था। मैंने ही हाथ आगे बढ़ाया और पाजामे में ही उसका लंड पकड़ लिया।
उसने मेरी आँखों में देखा और पूछा- चाहिए?
मैंने हाँ में सर हिलाया।

उसने मेरे लहंगे के ऊपर से ही मेरे दोनों चूतड़ सहलाए और मुझे घुमा दिया, मेरा चेहरा पंडाल की तरफ कर दिया। मैंने छतरी के बने हुये दो खंबों का सहारा लिया तो शेर सिंह ने पीछे से मेरे सारा घागरा उठा कर मेरी कमर पे रख दिया। मैं थोड़ा सा और आगे को झुक गई ताकि मेरी गांड और शेर सिंह की तरफ हो जाए, और मैं अपनी टाँगें भी खोल कर खड़ी हो गई।

शेर सिंह ने अपना पायजामे का नाड़ा खोला, और अपना पाजामा और चड्डी नीचे को सरका दी, अपने लंड पर हल्का सा थूक लगाया और पीछे से मेरी चूत में धकेल दिया। मोटा खुरदुरा सा टोपा मेरी चूत में थोड़ा अटक कर घुसा, मुझे हल्की से तकलीफ हुई, मगर फिर भी अच्छा लगा।

ऊपर से मैं पूरी शादी को देख रही थी, मैंने देखा मेरे पति भी वहीं घूम रहे हैं, एक दो औरतों से जैसे उन्होंने मेरे बारे में पूछा, मैंने ऊपर से चिल्ला कर कहा- अजी मैं यहाँ हूँ, ऊपर!
मगर शादी के शोर शराबे में चौथी मंज़िल की आवाज़ नीचे कहाँ सुनती।

शेर सिंह मुझे चोदता रहा और मैं ऊपर से यूं ही अपनी मज़ाक में अपने पति को और बाकी सबको शादी में घूमते फिरते देखती रही। मेरे लिए शादी नहीं, सेक्स महत्त्वपूर्ण था, और शेर सिंह नहीं उसका लंड महत्त्वपूर्ण था।शेर सिंह ने अपना पायजामे का नाड़ा खोला, और अपना पाजामा और चड्डी नीचे को सरका दी, अपने लंड पर हल्का सा थूक लगाया और पीछे से मेरी चूत में धकेल दिया. आप इस कहानी को HotSexStory.Xyz में पढ़ रहे हैं।

शेर सिंह मुझे बड़े अच्छे से चोदा और अपना माल मेरी चूत के अंदर ही गिराया। जब वो झड़ गया तो हम चुपचाप नीचे उतर आए।

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मगर रास्ते में मैंने शेर सिंह को कह दिया- अभी एक बार से मेरा मन नहीं भरा है, मुझे ये सब फिर से चाहिए.
मैंने कहा तो शेर सिंह बोला- चिंता मत करो मेरी जान, आज सारी रात मैं तुम्हारे साथ हूँ, जितनी बार कहोगी, मैं उतनी बार तुम्हें संतुष्ट करूंगा।

अभी मैं एक बार और सेक्स करना चाहती थी, मगर शेर सिंह नहीं माना तो मैं मजबूरन उसके साथ नीचे आ गई। उसके बाद मैं अपने पति से मिली, तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया- अरे कहाँ चली गई थी मेरी जान, मैं तो बहुत मिस कर रहा था तुम्हें!
उन्होंने मुझे गले से लगा कर मुझे कसा, तो शेर सिंह के वीर्य मेरी चूत से चू कर मेरे घुटनों तक जाता मुझे महसूस हुआ। मैंने भी उन्हें थोड़ा कस कर आलिंगन किया और बोली- अरे क्या बताऊँ, मुझे तो चंदा के काम से फुर्सत नहीं मिल रही, कभी ये करो, कभी वो करो।

मेरे पति बोले- तो यार फ्री कब होगी, मेरा दिल कर रहा है, तुम्हें किसी अकेली जगह लेजा कर खूब प्यार करूँ।
मैंने कहा- रुको एक मिनट मैं आती हूँ।

अपने पति को छोड़ कर मैं सीधी बाथरूम में गई, पहले मैंने अपनी चूत को अच्छे से पानी से धोया और फिर कपड़े से सुखाया। शेर सिंह के पहनाया मंगल सूत्र उतार कर बाथरूम में ही रख दिया। और फिर से फ्रेश होकर बाहर आई।
मैंने अपने पति का हाथ पकड़ा और उन्हें वहीं ऊपर शिखर पर ले गई। वहाँ जाकर मैंने उनको गले से लगा लिया। सबके बीच, सबसे दूर ऐसी जगह देख कर मेरे पति बहुत खुश हुये- अरे वाह, क्या जगह ढूँढी है, यहाँ तो हम सबको देख सकते हैं पर हमे कोई नहीं देख सकता।

मगर मैंने बात करने की बजाए अपना घागरा ऊपर उठाया, और फिर से उसी जगह उसी पोज में आ गई, मेरे पति ने मेरी हालत देखी, तो बोले- लगता है, तुम्हें भी बड़ी इच्छा हो रही थी सेक्स की?
और उन्होंने भी अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया।

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कोई 5 मिनट की चुदाई चली, मगर इस चुदाई में वो मज़ा नहीं था जो शेर सिंह की चुदाई में था। पति को भी सेक्स किए काफी दिन हो गए थे, तो बस 5 मिनट में ही वो अपनी सारी गर्मी मेरी चूत में ही निकाल गए।
मुझे बेशक इस सेक्स से कोई मज़ा नहीं आया, मगर हाँ, मेरी चूत की खुजली को थोड़ा आराम आया।

उसके बाद हम दोनों नीचे आ गए।

करीब सुबह चार बजे मुझे शेर सिंह फिर से वहीं ऊपर ले गया, और इस बार उसने करीब 35 मिनट लगातार मुझे नीचे लेटा कर मुझे चोदा। क्या मस्त और क्या खूब चुदाई की मेरी। मेरा 4 बार पानी गिरा, मगर वो फिर भी डटा रहा।
करीब 35 मिनट बाद जब वो थक कर झड़ा तो मेरी चूत को पूरा भर दिया उसने अपने माल से। मैं नीचे लेटी पसीने पसीने हो रही थी, उसकी तो हालत ही बहुत बिगड़ गई थी, पगड़ी उतार दी, कपड़े उतार दिये, सांस तेज़, दिल की धड़कन तेज़।

झड़ने के बाद वो तो जैसे गिर ही गया।
मैं उठी और अपने आप को ठीक करके वापिस नीचे आ गई। उसके बाद मैं चंदा की विदाई में शामिल हो गई। फिर करीब 6 बजे अपने कमरे में सोने चली गई।

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दोपहर के 12 बजे मेरे पति ने मुझे जगाया, मेरा सारा बदन जैसे टूट रहा था। उसके बाद चाय पीकर फ्रेश हो कर मैं फिर से तैयार हो कर परिवार में घुलमिल गई।

अगले दिन शेर सिंह नहीं मिला. जिस दिन हम वापिस आने वाले थे, वो मिला, अकेले में लेजा कर मुझसे बोला- आज आ जा रही हैं?
मैंने कहा- हाँ, जाना तो पड़ेगा।
वो बोला- फिर मिलोगी?
मैंने कहा- अब मिले बिना रहा भी न जाएगा।
वो बोला- ठीक है, कभी मौका लगा तो मैं भी मिलने आऊँगा आपसे।

फिर मुझे अपने गले से लगाया और कहा- आज जाने से पहले एक आखिरी बार!
कहते हुये उसने अपनी पैन्ट खोली, मुझे लगा शायद फिर से सेक्स करेगा, मैंने कहा- नहीं शेर सिंह जी, इतना टाईम नहीं है मेरे पास!
वो बोला- अरे नहीं, चोदना नहीं है, सिर्फ थोड़ा सा चूस जाओ।

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मैंने नीचे बैठ कर 1 मिनट उसका लंड चूसा। उसका काला, नाड़ीदार, खुरदुरा सा लंड फिर से खड़ा हो गया। मेरा दिल तो किया के उसका लंड चूसती ही रहूँ और आखरी बार फिर से एक बार इस से चुदवा कर जाऊँ, मगर ये संभव नहीं था।

मैं उठी और खुद ही एक बार शेर सिंह के होंठो को चूमा और दौड़ कर बाहर आ गई। शेर सिंह मेरे पीछे नहीं आया।

मैं अपने घर पहुंची, उसके बाद फिर से वही रूटीन ज़िंदगी। रात को पति से सेक्स, दिन में चाचाजी से सेक्स। मगर शेर सिंह शेर सिंह था, उसके जैसे मज़ा, और कोई नहीं दे सका मुझे।