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सुमित की शादी का सफर-2

Sumit ki shadi ka safar-2

इसबार मैंने हिम्मत करके उसका नाम पूछ लिया. जहा वो खाना खा रही थी वहीं चला गया और पूछा “आप क्या लेंगी और….. कुछ लाऊँ स्वीट्स या स्पेशल आइटम आपके लिए…

भीड़ बहुत थी उस शादी मैं वो मेरे पास आ गई और चुपचाप खड़ी होकर खाना खाने लगी. मैंने उसको पूछा “आप इस ड्रेस मैं बहुत सुंदर लग रही है.. मेरा नाम देव है आपका नाम जान सकता हूँ…” फिर भी चुप रही वो और एक बार बड़े तीखे नैन करके देखा. हलके से मुस्कुराते हुए बोली” अभी नही सिर्फ़ हाल चाल जानना था सो जान लिया”

मैंने उसका नाम वहीँ उसकी सहेलियों से पता कर लिया और उसका एड्रेस भी पता कर लिया था. उसका नाम मीनू था. वो मेरे घर के ही पास रहती थी. पंजाबी फॅमिली की लड़की थी. सिंपल सोबर छरहरी दिखती थी. उसकी लम्बाई मेरे लायक फिट थी उसके बूब्स थोड़े छोटे ३२ के करीब होंगे और पतला छरहरा बदन तीखे नैन-नक्श थे उसके. वो मेरे मन को बहुत भा गई थी. शादी से लौट के मैंने उस रात मीनू के नाम के कई बार मुट्ठ मारी. मै उसको पटाने का बहुत अवसर खोजा करता था वो मेरे घर के सामने से रोज निकलती थी पर हम बात नही कर पाते थे. ऐसा होते होते करीबन १ साल बीत गया.

एक बार मै दिल्ली जा रहा था गोंडवाना एक्सप्रेस से. स्टेशन पर गाड़ी आने मैं कुछ देर बाकी थी शादियों का सीज़न चल रहा था काफ़ी भीड़ थी. मेरा रिज़र्वेशन स्लीपर में था. तभी मुझे मीनू दिखी, साथ में उसका भाई और सभी फॅमिली मेम्बेर्स भी थे। उसके भाई से मेरी जान पहचान थी सो हम दोनों बात करने लगे. मैंने पूछा “कहा जा रहे हो” तो बोले “मौसी के यहां शादी है दिल्ली मैं वहीँ जा रहे है”.

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मुझ से पूछा ” देव जी आप कहा जा रहे हो”

मैंने कहा ” दिल्ली जा रहा हूँ थोड़ा काम है और एक दोस्त की शादी भी अटेण्ड करनी है”

इतने में ट्रेन आने का अनौंसमेंट हो चुका था। उनके साथ बहुत सामान था, मेरे साथ सिर्फ़ एक एयर बैग था उन्होंने मेरे से सामान गाड़ी में चढाने की रेकुएस्ट करी गाड़ी प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी यात्री इधर उधर अपनी सीट तलाशने के लिए बेतहाशा भाग रहे थे बहुत भीड़ थी. मीनू के भाई ने बताया की इसी कोच में चढना है तो हम फटाफट उनका सामान चढाने मैं बीजी हो गए. उनका सामान गाड़ी के अंदर करके उनकी सीट्स पर सामान एडजस्ट करने लगा मैंने अपना बैग भी उन्ही की सीट पर रख दिया था मुझे अपनी सीट पर जाने की कोई हड़बड़ी नही थी क्योंकि बीना जंक्शन तक तो गोंडवाना एक्सप्रेस मैं अपनी सीट का रिज़र्वेशन तो भूल जाना ही बेहतर होता है. क्योंकि डेली पैसेन्जर्स भी बहुत ट्रेवल करते है इस ट्रेन से सो मै उनका सामान एडजस्ट करता रहा.

गाड़ी सागर स्टेशन से रवाना हो चुकी थी. मै पसीने मैं तरबतर हो गया था. अब तक गाड़ी ने अच्छी खासी स्पीड पकड़ ली थी. मीनू की पूरी फॅमिली सेट हो चुकी थी और उनका सामान भी. गाड़ी बीना 9 बजे रात को पहुचती थी और फिर वहा से दूसरी गोंडवाना मैं जुड़ कर दिल्ली जाती थी. इसलिए बीना मैं भीड़ कम हो जाती है. मै सबका सामान सेट करके थोड़ा चैन की साँस लेने कम्पार्ट्मेन्ट के गेट पर आ गया फिर साथ खड़े एक मुसाफिर से पूछा “यह कौन सा कोच है ” उसने घमंडी सा रिप्लाई करते हुए कहा एस ४…. तुम्हें कौन सो छाने ( आपको कौन सा कोच चाहिए)” “अरे गुरु जोई चाने थो …. जौन मैं हम ठाडे है ….. (बुन्देलखंडी) (यही चाहिए था जिसमे हम खड़े है)”

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मैंने अपनी टिकेट पर सीट नम्बर और कोच देखा तो यही कोच था जिसमे मीनू थी बस मेरी बर्थ गेट के बगल वाली सबसे ऊपर की बर्थ थी. बीना मैं मैंने हल्का सा नाश्ता किया और घूमने फिरने लगा. मुझे अपने बैग का बिल्कुल भी ख्याल नही था. बिना से गाड़ी चली तो ठण्ड थोडी बढ गई थी मुझे अपने बैग का ख्याल आया. मै उनकी सीट के पास गया तो मैंने “पूछा मेरा बैग कहा रख दिया.” मीनू की कजिन बोली ” आप यहां कोई बैग नही छोड़ गए आप तो हमारा सामान चढवा रहे थे उस समय आपके पास कोई बैग नही था” जबकि मुझे ख्याल था की मैंने बैग मीनू की सीट पर रखा था. वो लोग बोली की आपका बैग सागर मैं ही छूट गया लगता है.

मैंने कहा कोई बात नही. उन्होंने पूछा कि आपकी कौन सी बर्थ है मैंने कहा इसी कोच मैं लास्ट वाली. मीनू की मम्मी बोली “बेटा अब जो हो गया तो हो गया जाने दो ठण्ड बहुत हो रही है ऐसा करो मेरे पास एक कम्बल एक्स्ट्रा है वो तुम ले लो”

मैंने कहा “जी कोई बात नहीं मै मैनेज कर लूँगा”

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” ऐसे कैसे मनेज कर लोगे यहां कोई मार्केट या घर थोड़े ही किसी का जो तुमको मिल जाएगा ठण्ड बहुत है ले लो” मीनू की मम्मी ने कहा.

“मुझे नींद वैसे भी नहीं आना है रात तो ऐसे ही आंखों मैं ही कट जायेगी..” मैंने मीनू की ऑर देखते हुए कहा. मीनू बुरा सा मुह बनके दूसरे तरफ़ देखने लगी.

ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर दौडी जा रही थी. मुझे ठण्ड भी लग रही थी तभी मीनू की मम्मी ने कम्बल निकालना शुरू किया तो मीनू ने पहली बार बोला. रुको मम्मी मै अपना कम्बल दे देती हूँ और मै वो वाला ओढ लूंगी. मीनू ने अपना कम्बल और बिछा हुआ चादर दोनों दे दी….. मुझे बिन मांगे मुराद मिल गई क्योंकि मीनू के शरीर की खुशबू उस कम्बल और चादर मैं समां चुकी थी. मै फटाफट वो कम्बल लेकर अपनी सीट पर आ गया

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… मुझे नींद तो आने वाली नहीं थी आँखों मैं मीनू की मुनिया और उसका चेहरा घूम रहा था. मै मीनू के कम्बल और चादर को सूंघ रहा था उसमे से काफी अच्छी सुंगंध आ रही थी. मैं मीनू का बदन अपने शरीर से लिपटा हुआ महसूस करने लगा और उसकी कल्पनों मैं खोने लगा.. मीनू और मै एक ही कम्बल मै नंगे लेटे हुए है मै मीनू के बूब्स चूस रहा हूँ और वो मेरे मस्त लौडे को खिला रही है. मेरा लंड मै जवानी आने लगी थी जिसको मै अपने हाथ से सहलाते हुए आँखे बंद किए गोंडवाना एक्सप्रेस की सीट पर लेटा हुआ मीनू के शरीर को महसूस कर रहा था.