चिकनी चूत का पहला रस: सिखा की हॉट चुदाई कहानी
दोस्तों, चिकनी चूत के पुजारी का आप सभी को नमस्कार! मेरा नाम राहुल है, और आज मैं अपनी सहेली सिखा की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसकी chudai अभी तक बाकी थी। सिखा मेरी गर्लफ्रेंड थी, और हमारे बीच कामसीन रिश्ता कई सालों से था। मैं उसकी चिकनी चूत में ऊँगली कई बार कर चुका था, पर उसे चोदने का मौका अभी तक नहीं मिला था। हम दोनों विपरीत लिंगी थे, और इस रिश्ते का अपना अलग ही mazaa था। सिखा ने मुझे बताया था कि वो अपनी चूत की खुजली कभी डिल्डो से मिटाती है, तो कभी खुली जगह पर हल्की ऊँगली ठूंस देती है। उसकी चिकनी चूत में कितनी आग थी, ये साफ था। पहले मैं सोचता था कि ये सब sex अपनी बीवी के साथ करूँगा, पर अब मेरा मन बदल चुका था। मैं उसकी चूत के लिए उतना ही भूखा था, जितना वो सम्भोग के वक्त असली लंड की चाह रखती थी।
सिखा और मेरी दोस्ती की शुरुआत
सिखा मेरी कॉलेज की दोस्त थी। वो गोरी, लंबी, और मस्त फिगर वाली लड़की थी। उसकी चूचियाँ गोल और भरी हुई थीं, और उसकी चिकनी चूत की बात ही अलग थी। हमारी दोस्ती तब शुरू हुई जब हम एक प्रोजेक्ट पर साथ काम कर रहे थे। धीरे-धीरे हम करीब आए। पहले तो सिर्फ बातें होती थीं—पढ़ाई, फिल्में, दोस्त। फिर एक दिन पार्क में बैठे हुए उसने मेरे हाथ पर हाथ रखा। उसकी छुअन से मेरे शरीर में करंट दौड़ गया। उस दिन से हमारी चुम्मा-चाटी शुरू हुई। हम अक्सर कॉलेज के बाद किसी सुनसान जगह पर मिलते, एक-दूसरे को चूमते, और हल्की-फुल्की शरारत करते।
मैं जानता था कि सिखा की चूत में आग है। वो मुझे बताती थी कि जब लंड नहीं मिलता, तो वो डिल्डो से खेलती है। उसकी बातें सुनकर मेरा लंड तन जाता। मैं कई बार उसकी जाँघों को सहलाते हुए उसकी चूत में ऊँगली कर चुका था। उसकी सिसकियाँ—आह, ऊह—मुझे पागल कर देती थीं। पर चोदने का मौका नहीं मिला था। मैं डरता भी था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। पर उसकी चिकनी चूत की चाहत मेरे दिल-दिमाग पर छा गई थी।
प्लान और मौके की तलाश
एक दिन मैंने सोच लिया कि अब सिखा को चोदना ही है। मैंने जानबूझकर बहाना बनाया। अपने दोस्त के फ्लैट की चाबी ली, जो उस दिन शहर से बाहर था। मैंने सिखा को फोन किया, “आज कुछ खास करना है, मेरे दोस्त के घर चलें?” वो थोड़ा हिचकिचाई, पर मेरे मनाने पर मान गई। शाम को हम वहाँ पहुँचे। फ्लैट खाली था, सिर्फ मैं और सिखा। हम सोफे पर बैठे, हर रोज की तरह बातें शुरू हुईं। बातों-बातों में मैंने उसका हाथ पकड़ा, उसे अपनी ओर खींचा। उसने मुस्कुराते हुए मेरी आँखों में देखा। मैंने उसके होंठों पर एक हल्का सा kiss किया। वो शरमा गई, पर पीछे नहीं हटी।
हमारी चुम्मा-चाटी शुरू हो गई। मैंने उसके गालों को चूमा, फिर उसकी गर्दन पर होंठ रखे। उसकी साँसें तेज होने लगीं। मेरे हाथ उसकी जाँघों पर गए, मैंने उन्हें सहलाया। उसकी सलवार के ऊपर से उसकी चूत की गर्मी महसूस हुई। मैंने उसकी कमर को भींचते हुए एक गहरी चुम्मी ली। वो भी मेरा साथ देने लगी। हमारी चुम्मा-चाटी इतनी जोरदार हुई कि मैं खुद को रोक न सका। मेरे हाथ उसके गुप्तांगों को सहलाने लगे। मैंने उसकी सलवार का नाड़ा ढीला किया, उसकी जाँघें नंगी कर दीं। उसकी गोरी, चिकनी जाँघें देखकर मेरा लंड पैंट में तन गया।
मदहोशी और चिकनी चूत का खेल
मैंने सिखा की कुर्ती ऊपर की। उसकी ब्रा में कैद चूचियाँ बाहर निकलने को बेताब थीं। मैंने कुर्ती उतारी, फिर ब्रा के हुक खोले। उसके मोटे, गोल चूचों को देखकर मेरे मुँह में पानी आ गया। मैंने एक चूची को हाथ में लिया, उसे दबाया, फिर मुँह में भरकर चूसने लगा। सिखा की सिसकियाँ शुरू हो गईं—आह, ऊह। मैं बारी-बारी दोनों चूचियाँ चूसने लगा। वो मदहोश हो रही थी। मैंने उसकी सलवार और पैंटी भी उतार दी। अब वो मेरे सामने पूरी नंगी थी। उसकी चिकनी चूत देखकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
मैं नीचे झुका, उसकी चूत की फाँकों को सहलाया। उसकी गर्मी मेरे हाथों में महसूस हुई। मैंने थूक लगाया, अपनी उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा। सिखा की साँसें और तेज हो गईं। वो बोली, “राहुल, क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “तेरी चूत का रस चख रहा हूँ।” वो सिसकियाँ लेने लगी। मैंने अपनी पैंट खोली। मेरा लोहे जैसा कड़ा लंड बाहर आया, जो कब से चूत के लिए तड़प रहा था। मैंने उसे सिखा की चिकनी चूत पर रखा और धीरे से अंदर डाला। लंड के टोपे के अंदर जाते ही वो चीख पड़ी, “आह, ऊह, दर्द हो रहा है।” मैंने कहा, “पहली बार थोड़ा दर्द होता है, बस थोड़ा बर्दाश्त कर।”
पहला रस और जन्नत का सुकून
मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। सिखा की चूत टाइट थी, पर उसकी गीलापन ने लंड को रास्ता दे दिया। मैं उसकी चूत को चोदने लगा। टकराव की कामुक आवाजें—थप-थप—कमरे में गूँजने लगीं। सिखा भी गांड हिलाकर मेरा साथ दे रही थी। वो बोली, “और जोर से, राहुल।” मैंने स्पीड बढ़ाई। उसकी सिसकियाँ—आह, ऊह, हाय—मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। मैं उसकी चूचियाँ दबाते हुए, उसकी चूत में लंड पेलता रहा। करीब 20 मिनट तक ये सिलसिला चला। मैं अपनी परम सीमा पर पहुँच गया। मेरे मुँह से भी सिसकियाँ निकलने लगीं—आह, उफ।
मुझे जन्नत का सुकून मिल रहा था। मैंने आँखें बंद कीं और अपने लंड की पिचकारी छोड़ दी। सिखा की चिकनी चूत में मेरा रस बरस रहा था। उसकी भीगी जाँघों के बीच मैंने लंड को पूरा खाली कर दिया। वो भी मेरे साथ झड़ गई थी। हम दोनों पसीने से तर थे। उसकी साँसें अभी भी तेज थीं। मैंने उसकी चूत को सहलाया, उसका रस मेरे हाथों में लगा। हमने जवानी के इस मिलन को भरपूर जिया। थोड़ी देर तक हम लेटे रहे, एक-दूसरे को चूमते रहे। फिर कपड़े पहने और घर चले गए।
नया सिलसिला और चुदाई की आग
उस दिन के बाद मैं और सिखा इस आग में जलने का लुत्फ उठाने लगे। हम अक्सर दोस्त के फ्लैट पर मिलते। कभी पार्क की झाड़ियों में, कभी सुनसान गलियों में—जहाँ मौका मिलता, चुम्मा-चाटी और चुदाई का खेल चलता। सिखा की चिकनी चूत का पहला रस मैंने चखा था, और वो स्वाद मेरे दिल-दिमाग में बस गया। दोस्तों, ये थी मेरी और सिखा की hot कहानी। आपको कैसी लगी?