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वो पहली बार, मौसी की चूत का स्वाद-1

(Mausi Ki Chudai Kahani: Vo pehli bar, chut ka swad-1)

सभी लंडधारियों और टपकती हुई चुतों को मेरे खड़े लंड का प्रणाम।
दोस्तो, यह मौसी की चुदाई की हिंदी सेक्स कहानी मेरी और मेरी दूर की प्यासी मौसी के बीच बने संबंध की सच्ची घटना है। वो मुझसे 13 साल बड़ी है। उन्होंने मुझे पहली बार सेक्स करने को उकसाया और पहली बार मुझे अपनी गर्म चूत का रस चखाया जिसका मैं दीवाना हो गया।
इस कहानी में मैं आपसे ये सारा फसाना साझा करूँगा। मुझे उम्मीद है आप सबको मेरी यह आप बीती पसंद आएगी।

मेरा नाम प्रिंस है, उम्र 23 साल, लंबाई 5’11” और स्वस्थ शरीर का मालिक हूँ, देखने में अच्छा खासा हूँ। मेरे लंड की लंबाई 6.5″ और परिधि (गोलाई) 4.5″ है जो किसी भी औरत को भरपूर तरीके से संतुष्ट कर सकता है।
आज मैं पहली बार हिंदी में कहानी लिख रहा हूँ और वो भी चुदाई की। अगर लिखने में कोई गलती हो जाए, तो माफ कर देना।

यह मेरा सेक्स का पहला अनुभव था। यह एक सच्ची घटना है, जो मेरे साथ पिछले साल जून माह में घटित हुई।

मैं उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का रहने वाला हूँ। मैं काफी समय से अंतरवासना पर सेक्स कहानी पढ़ता था और सेक्सी विडियो भी देखता था और तब से ही हस्तमैथुन भी सीख चुका हूँ। मुझे सेक्स करने का बहुत मन करता था, लेकिन पहले कभी मौका नहीं मिला था।

बात तब की है जब मैं अपनी मौसी के घर 1 महीने के लिए छुट्टी मनाने गया हुआ था। वहाँ का माहौल काफी अच्छा था, सब मेरा बहुत ख्याल रखते थे, मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरा भी वहाँ काफी मन लग रहा था।
वहाँ मेरे मौसा, मौसी, उनका एक लड़का, मौसा का छोटा भाई जो एक पियक्कड़ था और उसकी पत्नी और उनके 2 बच्चे थे।

मौसी की देवरानी को भी मैं मौसी ही बुलाता था। उनका नाम कविता (बदला हुआ नाम) है। उनकी उम्र लगभग 36 साल, रंग गोरा और छरहरी काया थी। दो बच्चों के होने के बाद भी वे ज्यादा उम्र की नहीं लगती थी। उनका फ़िगर लगभग 32-28-34 होगा। उनका पति रोज दारू पी के टल्ली रहता था इसलिए वो उनसे असंतुष्ट थी और उनसे परेशान रहती थी। आप इस कहानी को HotSexStory.Xyz में पढ़ रहे हैं।

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मेरी मौसी का लड़का यानि मेरा भाई नौकरी की वजह से घर से दूर शहर में अपनी पत्नी के साथ रहता था, केवल रविवार को ही वे लोग घर आते थे। कविता मौसी के बच्चे भी गर्मियों की छुट्टियों के कारण अपने मामा के यहाँ गए हुए थे।
मेरी सगी मौसी के टी.वी. में बस दूरदर्शन चलता था। जबकि छोटी मौसी के कमरे में एक बड़ा रंगीन टीवी रखा हुआ था और टाटा स्काई भी लगा हुआ था। तो मैं वहाँ रोज टीवी देख़ने चला जाता था।

कुछ दिन तक सब कुछ सही रहा लेकिन फिर कविता मौसी रोज मुझे छेड़ने लगी, कभी गले लगा लेना, कभी पैरों से पैरों को लगाना। मेरा रोम रोम खड़ा होने लगता था। मेरा लिंग तनाव में आ जाता था। मुझे लगने लगा कि ये मुझसे कुछ चाहती है। मन तो करता था पकड़ के चोद दूँ, पर मौसी के रिश्ते की वजह से मैंने बात को मन में ही दबा के रखा।
मुझे लगा कि कभी ये मेरा वहम हो और कहीं लेने के देने ना पड़ जायें, इसलिए मैंने कोई हरकत नहीं की।

ऐसा 4-5 दिनों तक चलता रहा। उनकी हरकटें बढ़ती ही जा रही थी, मैं कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था तो मैं उनसे दूर रहने लगा।

फिर एक दिन उन्होंने वो काम किया जिससे मेरा शक यकीन में बदल गया।

सुबह का समय था, मैं सोया हुआ था, मुझे सपने में कोई होठों पर किस कर रहा था। तभी मेरी आँख खुली, तो मालूम हुआ वो कोई सपना नहीं था बल्कि कविता मौसी ही मुझे किस कर रही थी। उन्होंने मेरे जागने के बाद भी एक बार मेरे होठों को चूमा और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गयी।

मेरे होश उड़ गए; नींद गायब हो गयी; मुझे कुछ समझ नहीं आया; दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी।
फिर मैं उस दिन उनके पास नहीं गया इस डर से कि किसी को कुछ पता न चल जाए।

अगले दिन छोटी मौसी को कुछ खरीदने पास के शहर जाना था। घर में और कोई ऐसा नहीं था जो बाइक चला सके क्योंकि दोनों लड़के बाहर थे और मौसा को बाइक चलानी नहीं आती थी। तो मौसी ने उनको शॉपिंग कराने मुझे भेज दिया बाइक से।
पहले तो मैंने ना-नुकुर की, फिर मौसी के जोर देने पे चला गया।

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वो उनके घर से शहर तक का 20 किमी का सफर था। गांव निकलते ही कविता मौसी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। वो मुझसे बिल्कुल चिपक के बैठ गयी, मुझे कस के पकड़ लिया और अपनी चुचियों को मेरी कमर पर दबाने और रगड़ने लगी।

मेरे तन में सरसाराहट होने लगी। वे अपने हाथ को मेरी शर्ट के अंदर डाल कर मेरी छाती पे फिराने लगी। अब मेरा खुद से कंट्रोल ख़त्म होने लगा।

फिर तो उन्होंने और आग लगा दी, मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही दबाने लगी। अब मैं अपने वश में ना रहा; मन कर रहा था उनको वहीं पटक कर चोद दूँ। बस फिर सोच लिया जब कुआँ खुद प्यासे के पास आ रहा है तो क्यों रुकना … अब तो आग दोनों तरफ लग चुकी थी।

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बस जैसे तैसे हमने शॉपिंग की और वापस आ गए। अब मेरे मन से भी डर ख़त्म हो चुका था और हम आपस में खुल चुके थे। फिर जब भी मौका मिलता, हम चूमाचाटी करने लगते। छोटी मौसी बहुत गरम हो जाती थी। मैं उनके चुचे दबा देता और चूत को कपड़ों के ऊपर से ही सहला देता था, वो भी मेरा लंड मुट्ठी में भर लेती थी। इसी तरह हम मजे कर रहे थे। अब आग बढ़ती जा रही थी; हमें सही मौके की तलाश थी।

और 1 दिन मौका हमारे हाथ लगा। मेरी मौसी अपनी सहेली के घर पड़ोस में चली गई और मौसा सो रहे थे। कविता के पति की हमें कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वे हमेशा पी के रात को ही आते थे और आते ही सो जाते थे।
और अभी तो दोपहर ही हुई थी, गेट बंद थे तो अचानक कोई नहीं आ सकता था।

मैं लेटा हुआ था आँखे बंद करके, हल्की सी नींद आ गयी थी और कविता मौसी नहाने गयी हुई थी। कुछ देर बाद गीले बाल मेरे चेहरे पर महसूस हुए।
उफ्फ…
शैम्पू की मस्‍त खुशबू आ रही थी।

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मैंने आँखें खोली तो देखा कि मौसी नहा कर आ गयी थी और गुलाबी सूट सलवार में थी। गोरा बदन और उस पर गुलाबी रंग … बिल्कुल कयामत लग रही थी। उनकी यह हरकत मेरे जिगर में आग लगा गयी। मेरे लंड का तो बुरा हाल हो गया था। मौसी आइने के सामने चली गयी और बालों में कंघी करने लगी।

मैं उनके पास चला गया और उनको पीछे से पकड़ लिया। मौसी के जिस्म की खुशबू मेरी सांसों में समाने लगी। मेरा लिंग उनके बदन की गर्मी से खड़ा होने लगा और उनकी गांड की दरार में टक्कर मारने लगा।
मैं उनके बाल हटाकर उनके कंधे और कमर को चूमने लगा। मुआआआ … आआआह … और मेरे हाथ उनके पेट पर घूमने लगे। वो भी गर्म होने लगी थी।

मैंने उनके कंधे को चूमा, फिर उनके कान को दाँत से हल्का सा खींचा उसको चूमा और कान में जीभ डाल के घुमाने लगा। साथ में एक हाथ से चुचे दबाने लगा और दूसरे हाथ से सलवार के ऊपर से चूत को सहलाने लगा, तो महसूस हुआ कि उन्होंने पैंटी नहीं पहनी हुई थी।