मौसी से सेक्स ज्ञान-3
मौसी ने पानी डाल कर कर मुझे खूब नहलाया। मैं तौलिया लपेट कर चड्डी उतारने लगा लेकिन जानबूझ कर चड्डी उतारते समय तौलिया गिरा दिया, मौसी जी सामने ही खड़ी थी। मेरा मूसल जैसा लण्ड देख कर उनके होश उड़ गए, वे आँखें फाड़ फाड़ कर मेरा विशाल लण्ड देखती रही।
मैं बोल पड़ा- ओह… वेरी सारी मौसी जी…सारी…
“अरे बस..बस.. बचपन में कई बार देखा है तुम्हें ऐसे.. शर्माने की कोई बात नहीं है ! जाओ बैठो, मैं नाश्ता देती हूँ।”
“आप जाइए, मैं चड्डी धोकर डाल दूँ, फिर आता हूँ.. ” मैंने कहा।
मैं कर दूँगी, तुम जाओ…” वो बोली और मेरी चड्डी उठाकर साबुन लगाने लगी..
मैंने देखा कि चड्डी में वीर्य के दाग साफ़ चमक रहे थे पर मौसी तो सब जानती थी इसलिए वो मुझसे बिना कुछ पूछे उन दागों को रगड़ने लगी।
मेरा लण्ड फिर झटके लेने लगा था… पर तभी काम वाली आ गई थी इसलिए अब तो मुझे बेचैनी से रात का इंतज़ार था जब मौसी जी मेरे पास लेटने वाली थी !
दोपहर में मम्मी पर आ गई इसलिए मैंने अपने एक दोस्त के घर जाकर ब्लू फिल्म देखी, शाम को खाना खाकर जैसे ही सब सोने के लिए ऊपर छत पर गए तो मैंने थोड़ी देर के लिए किताब खोली पर मन कहीं ओर था इसलिए जल्दी ही किताब एक ओर रख कर मैंने लाईट बुझा दी और लण्ड हाथ में पकड़ कर मैं लेट कर मौसी के आने का इन्तज़ार करने लगा।
मैंने वैसलीन की शीशी पहले से सिरहाने रख ली थी, मुझे पूरा विश्वास था कि आज मेरे मूसल जैसे लण्ड को देखने के बाद मौसी की चूत में खुजली जरूर हो रही होगी।
ऊपर मौसी की बातें करने और हंसने की आवाजें आ रही थी, मैं बेचैन सा करवटें बदल रहा था।
करीब एक घंटे के बाद मैंने किसी के छत से उतरने की आवाज सुनी। मेरे कमरे का दरवाजा खुला, मौसी ही थी !
उन्होंने कमरे की बत्ती जलाई, एक नज़र मुझे देखा और मुस्कुराई।
मैंने आँखें बंद किये हुए चोरी से देखा, वो गुलाबी मैक्सी में थी, उनके बड़े बड़े चूतड़ और मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ साफ़ चमक रही थी।
मेरे लण्ड ने झटके लेने शुरू कर दिये, मौसी ने लाइट बुझाई और बाथरूम में घुस गई। उनके मूतने की आवाज रात के सन्नाटे में कमरे में साफ़ सुनाई दी। मन तो किया बाथरूम में मूतते हुए पकड़ कर उनको अध-मूता ही चोदना शुरू कर दूँ या उनके नमकीन मूत से तर बुर को भीतर तक जबान डाल कर चाटूँ।
लेकिन चुदने से पहले औरत खुल कर मूत ले तो अच्छा रहता है।
मौसी मूत कर मेरे बिस्तर पर आकर मेरे ही पास लेट गई, मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा। मैंने अपने फड़कते हुए टन्नाये लण्ड को अपनी दोनों टांगों के बीच दबा लिया। मैं चाहता था कि शुरुआत मौसी की तरफ से हो।
दो मिनट बीते थे कि मैंने अपने सीने पर मौसी जी का हाथ रेंगते हुए महसूस किया। वो मेरे सीने में आ रहे हल्के-हल्के बालों सो सहलाते हुए अपना हाथ मेरे लण्ड की तरफ ले जाने लगी, मैं समझ गया कि मेरे लण्ड का जादू इन पर चल गया है लेकिन मैं अपने खड़े लण्ड को उनको अभी पकड़ाना नहीं चाहता था इसलिए मैं उनकी तरफ पीठ करके घूम कर लेट गया मैं ने फ्रेंची और कट वाली बनियान पहन रखी थी।
मौसी ने भी मेरी तरफ करवट लेकर अपनी मैक्सी पेट तक उठा कर अपनी फूली हुई दहकती चूत को मेरे पिछवाड़े से सटा दिया वो मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए हल्के से कराह रही थी।
उन्होंने दूसरे हाथ से मेरा चेहरा अपनी ओर घुमाया और मेरे होंठों पर चुम्बन करने लगी। मेर लिए अब बर्दाश्त करना असंभव था, मैंने उनकी और करवट बदली अब मैं और वो आमने-सामने थे।
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों को मलना शुरू किया और मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए।
मैंने बिना देर किए उनकी चूचियों को मैक्सी के ऊपर से हौले हौले मसलना शुरू कर दिया और उनके होंठों को भी चूसने लगा।
मौसी तो जैसे मस्ती में मदहोश थी, मेरे चूची दबाने से मिलने वाले सुख में वो इतना डूबीं थी कि वो भूल गईं कि मैं जाग रहा हूँ।
उनके होंठ चूसते हुए मैंने अपना दूसरा हाथ उनकी गर्म चूत पर रख दिया, ऐसा लगा जैसे हाथ को किसी हीटर पर रख दिया हो !
मौसी मीठा सा कराह रही थी, उनकी मदहोशी का फायदा उठाते हुए मैंने एक उंगली उनकी चूत में घुसेड़ दी।
मौसी को अब करेंट लगा था, चौंक कर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया- मुन्ना… ओ.. ओ मुन्ना…? वो फ़ुसफुसाई।
मैंने उनकी चूचियों को कसकर मसल दिया और होंठों को अपने होंठों में लेकर कस कर चूसा। मौसी के मुँह से एक सीत्कार निकली।
“नहीं… बस… और कुछ मत बोलो मेरी जान !” मैंने उनके कान में कहा।
उनको मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी पर उनको उत्तेज़क जवाब अच्छा जरूर लगा- माही… मैं हूँ मौसी…
“हाँ ! पर दिन के उजाले में… रात को अब तुम सिर्फ मेरा माल हो… मेरी जान..! कल रात तुमने मुझे अपना गुलाम जो बनाया है…!”
“तो क्या कल रात तुम?”… वो चौंक पड़ी।
“हाँ, मैं जाग रहा था और तड़पता रहा सारी रात ! पर अब नहीं… !” कह कर मैं मौसी के ऊपर आ गया और एक झटके में उनकी मैक्सी को पूरा ऊपर करते हुए उनकी गोल-गोल चूचियों को कस कर पकड़ कर जो मसलना शुरू किया तो मौसी ना नहीं कर पाई- “हाय धीरे माही… तुम नहीं जानते मैं कितना अकेली हूँ ! इसीलिए मैं कंट्रोल नहीं कर पाई और तुमको…!”उनको मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी पर उनको उत्तेज़क जवाब अच्छा जरूर लगा- माही… मैं हूँ मौसी…
“हाँ ! पर दिन के उजाले में… रात को अब तुम सिर्फ मेरा माल हो… मेरी जान..! कल रात तुमने मुझे अपना गुलाम जो बनाया है…!”
“तो क्या कल रात तुम?”… वो चौंक पड़ी।
“हाँ, मैं जाग रहा था और तड़पता रहा सारी रात ! पर अब नहीं… !” कह कर मैं मौसी के ऊपर आ गया और एक झटके में उनकी मैक्सी को पूरा ऊपर करते हुए उनकी गोल-गोल चूचियों को कस कर पकड़ कर जो मसलना शुरू किया तो मौसी ना नहीं कर पाई- “हाय धीरे माही… तुम नहीं जानते मैं कितना अकेली हूँ ! इसीलिए मैं कंट्रोल नहीं कर पाई और तुमको…!”
अगले भाग में कहानी समाप्त-