अच्छा इंसान बना कर अपनी चूत चोदने दिया गर्लफ्रेंड ने
लखन, एक बेरोजगार नौजवान, और तृप्ति की सेक्सी कहानी, जहाँ प्यार और वासना का मेल हुआ। पढ़ें कैसे तृप्ति ने लखन को अच्छा इंसान बनाया और अपनी चूत चोदने दिया। हॉट और रोमांचक देसी सेक्स स्टोरी।
मेरा नाम लखन है, और मैं लखनऊ का रहने वाला हूँ। एक बेरोजगार नौजवान, जिसके पास न काम था, न ठिकाना। दिन की शुरुआत अपने दोस्त संदीप की दुकान पर बैठने से होती और शाम ढलते-ढलते अपने घर की चौखट पर कदम रखता। घरवाले ताने मारते—क्या संदीप की दुकान पर नौकरी करता है, या वो तुझे कुछ पैसे देता है? मेरे पिताजी तो मुझसे इतना चिढ़ते थे कि मेरी सूरत देखना भी गवारा न करते। एक दिन गुस्से में मैंने कह दिया, “मैं आपका घर छोड़कर चला जाऊँगा!” उन्होंने तपाक से जवाब दिया, “अभी निकल जा, तुझे यहाँ रहने की जरूरत ही क्या है?” उस दिन लगा जैसे मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मैंने बैग उठाया और संदीप के पास ही रहने चला गया। मम्मी कभी-कभी पूछतीं, “घर क्यों नहीं आता?” मैं टाल देता, “अब नहीं आऊँगा।”
संदीप की दुकान मेरे लिए दूसरा घर बन गई थी। वहीं बैठे-बैठे मैं जिंदगी के खालीपन को भूलने की कोशिश करता। तभी मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी—तृप्ति। वो अक्सर दुकान पर सामान लेने आती थी। पहली बार उसे देखा तो दिल में कुछ हलचल-सी हुई। उसकी आँखों में काजल, होंठों पर हल्की मुस्कान, और चाल में वो ठसक—मैं बस देखता रह गया। मन में ख्याल आया कि उससे बात करूँ, पर डर था कि कहीं वो पूछ न ले, “तू करता क्या है?” एक बेरोजगार लड़के की क्या औकात कि उससे प्यार जताए। फिर भी, मैं खुद को रोक न सका। एक दिन हिम्मत जुटाकर कह ही दिया, “तृप्ति, तुम मुझे अच्छी लगती हो।”
वो हँसी, लेकिन उसकी हँसी में तंज था। “मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है, लखन। तुम एक नंबर के आवारा हो, अपने घर में भी नहीं रहते।” मैं हैरान रह गया। “ये सब तुझे कैसे पता?” उसने कहा, “क्या मैं इस कॉलोनी में नहीं रहती? यहाँ सबकी खबर रहती है। आज के बाद मुझसे बात मत करना, और न ही मैं यहाँ सामान लेने आऊँगी।” उसकी बातों ने दिल पर चोट की, और मैंने उसे भूलने की ठान ली।
पर किस्मत को कुछ और मंजूर था। एक दिन दुकान पर बैठा था कि तृप्ति किसी लड़के के साथ बाइक पर आई। उसे किसी और के साथ देखकर जलन की आग भड़क उठी। मैंने मन में कसम खाई—तृप्ति को अपना बनाकर रहूँगा। फिर एक मौका मिला, मैंने उससे बात की। वो गुस्से में बोली, “मेरे जीवन से तुझे क्या लेना-देना? मैं जिसके साथ चाहूँ घूमूँ।” मैंने उसका हाथ पकड़ा, पर उसने मुझे जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। वो थप्पड़ मेरे चेहरे से ज्यादा मेरे अहम को चोट पहुँचाया। भीड़ में मेरी बेइज्जती हो गई।
वक्त बीता। तृप्ति जिस रोहित से प्यार करती थी, उसकी असलियत मेरे सामने थी। मैंने उसे दूसरी लड़की के साथ देखा था। जब ये बात तृप्ति को बताई, तो वो भड़क गई। “तू रोहित को बदनाम करना चाहता है? वो मुझसे बहुत प्यार करता है।” मैंने कहा, “तू गलत समझ रही है, वो वैसा नहीं जैसा तू सोचती है।” पर वो नहीं मानी। फिर एक दिन सच उसके सामने आया—रोहित का झूठ खुल गया। वो टूट गई, और मैंने उसका साथ दिया। धीरे-धीरे हम दोस्त बने, और दोस्ती गहरी होती चली गई।
तृप्ति को जब मेरी सच्चाई पता चली, तो उसका नजरिया बदला। वो बोली, “तू इतना बुरा नहीं जितना मैं समझती थी।” उसकी मदद से मुझे नौकरी मिली। मैं अब संदीप के साथ नहीं, अपने घर लौट गया। मम्मी-पिताजी भी खुश थे। तृप्ति मेरी जिंदगी में रोशनी बनकर आई। एक दिन वो बोली, “लखन, तू अब अच्छा इंसान बन गया है। मैं तुझसे बहुत खुश हूँ।” उसकी बातों में गर्माहट थी, और मेरे दिल में पहले से ही उसके लिए आग सुलग रही थी।
एक शाम उसने मुझे अपने घर बुलाया। मैं हैरान था कि वो क्यों बुला रही है। जब पहुँचा, तो उसने कहा, “लखन, तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो। पता नहीं कब से मेरा दिल तुम्हारे लिए धड़कने लगा।” उसकी बातें सुनकर मैंने उसे बाहों में भर लिया। उसकी साँसें मेरे गले से टकराईं, और मेरे हाथ उसके कंधों से होते हुए उसकी कमर तक पहुँच गए। वो बोली, “आज तूने मुझे अपना लिया, मैं बहुत खुश हूँ।” मैंने कहा, “नहीं तृप्ति, तूने मुझे अपनाया है।”
उसके होंठों को चूमते हुए मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को सरकाया। उसके उन्नत स्तनों को देखकर मेरे होश उड़ गए। मैंने उन्हें हौले से दबाया, तो उसकी सिसकियाँ निकल पड़ीं। “लखन, आज मुझे रोकना मत। जो करना है, कर ले।” उसकी इजाजत ने मेरे अंदर की आग को और भड़का दिया। मैंने उसके ब्लाउज को खोला, और उसके गुलाबी निप्पल्स को मुँह में लेकर चूसने लगा। वो कराह उठी, “आह… कितना अच्छा लग रहा है।” मेरे दाँतों से हल्की-हल्की लव बाइट्स उसके स्तनों पर निशान छोड़ रही थीं। उसकी साँसें तेज होती जा रही थीं।
मैं नीचे सरका, उसकी साड़ी को ऊपर उठाकर उसकी जाँघों को सहलाने लगा। उसकी चूत को देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया। मैंने अपनी जीभ से उसकी नरम, गीली चूत को चाटना शुरू किया। वो चीख पड़ी, “लखन, अपनी जीभ अंदर डाल दो!” मैंने उसकी बात मानी और जीभ को उसकी चूत की गहराइयों तक ले गया। उसका पानी मेरे मुँह में आने लगा—नमकीन, गर्म, और उत्तेजक। वो काँप रही थी, और मैं उसकी हर सिसकी से और जोश में आ रहा था।
जब वो पूरी तरह गर्म हो गई, उसने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगी। “डाल दो, लखन!” उसकी आवाज में वासना थी। मैंने अपने मोटे, तने हुए लंड को उसकी टाइट चूत में धीरे से घुसाया। वो चिल्लाई, “आह… तेरा लंड कितना तगड़ा है! अंदर जाते ही तहलका मचा दिया।” मैंने कहा, “थोड़ा सब्र कर, मजा आने लगेगा।” फिर मैंने धक्के तेज कर दिए। उसकी चूत का पानी बह रहा था, और उसकी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उसकी टाइट योनि मेरे लंड को जकड़ रही थी, और हर धक्के में मुझे स्वर्ग का एहसास हो रहा था।
मैंने उसके पैरों को ऊपर उठाया, उन्हें कंधों पर रखकर और गहरे धक्के मारे। मेरा लंड उसकी चूत में चिकनाहट के साथ अंदर-बाहर हो रहा था। उसकी गर्म योनि से पानी की फुहारें निकल रही थीं। वो बोली, “मैं झड़ने वाली हूँ, लखन!” पर मैं रुका नहीं। मैं उसे और तेजी से चोदता रहा। वो चीख रही थी, “तूने पहले ही सोच लिया था न कि मेरी चूत मारेगा?” मैंने हँसते हुए कहा, “हाँ, तृप्ति। मुझे पता था एक दिन तू मेरी होगी।” वो बोली, “अब हमेशा मुझे चोदते रहना।”
आखिर में मेरा वीर्य उसकी चूत में गिरा। मैंने लंड बाहर निकाला और उसे बाहों में भर लिया। हम दोनों की साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं। वो मेरे सीने पर सर रखकर बोली, “लखन, तू सच में अच्छा इंसान बन गया। और अब तू मेरा है।” मैंने उसे चूमा और कहा, “और तू मेरी।” उस रात हमारी मोहब्बत और वासना का मेल एक नया रंग ले आया—गहरा, गर्म, और अनंत।