उज्जैन की कामुक कहानी: दीदी के साथ पहला अनुभव
पढ़ें आशु और उसकी तलाकशुदा दीदी की सबसे हसीन और कामुक कहानी, जो उज्जैन में घटी। जवानी की आग, नहाते हुए चोरी-छिपे नजारे, और एक रात जो दोनों को करीब ले आई। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आपको रोमांचित कर देगी!
हेलो दोस्तों, मैं आज आपके साथ अपनी जिंदगी का सबसे हसीन और कामुक अनुभव साझा करने जा रहा हूँ। मेरा नाम आशु है, और मेरा लंड 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा है, जो किसी भी औरत की प्यास बुझाने के लिए काफी है। ये कहानी उज्जैन की है, जहाँ मैं और मेरी दीदी रहते हैं। दीदी का फिगर 34-32-36 है, और उनकी गोल-मटोल, रसीली गांड को देखकर तो मैं हमेशा पागल हो जाता हूँ। बचपन में मैं उन्हें अपनी सगी बहन की तरह मानता था, कभी गलत नजरों से नहीं देखा। लेकिन जैसे ही मैंने जवानी की दहलीज पर कदम रखा, मेरे अंदर की आग भड़कने लगी। मैं लड़कियों को देखने लगा, उनके जिस्म के बारे में सोचने लगा। धीरे-धीरे मैं अपने दोस्तों के बीच सबसे बिगड़ा हुआ लड़का बन गया। सेक्स की दुनिया में मैंने हर चीज सीख ली थी, और अब बस एक मौके की तलाश थी कि कब ये आग किसी के साथ बिस्तर पर बुझाऊँ।
जब मैं 19 साल का हुआ, तब मेरी जिंदगी में वो पल आया, जिसने सब कुछ बदल दिया। मेरी दीदी तलाकशुदा थीं। उनके पति उन्हें मारते-पीटते थे, जिसके चलते दीदी ने उन्हें तलाक दे दिया। दीदी मेरे मामा की बेटी थीं और मामा के घर में ही रहती थीं, जो ठीक हमारे घर के पीछे था। हमने दोनों घरों के बीच की दीवार तोड़कर एक गेट बनवा लिया था, जिससे आना-जाना आसान था। एक दिन की बात है, शाम का वक्त था। मामा-मामी बाजार गए थे, और मम्मी ने कहा कि उनकी कोई किताब शायद मामा के घर छूट गई है, जाकर ले आ। मैंने हामी भरी और पीछे के गेट से मामा के घर पहुँच गया।
अंदर जाकर मैंने आवाज लगाई, “मामा, मामी?” लेकिन कोई जवाब नहीं आया। फिर मैं दीदी के कमरे की तरफ बढ़ा। उनके कमरे का दरवाजा हल्का-सा खुला था, और अंदर से पानी की छप-छप की आवाज आ रही थी। मुझे अंदाजा हो गया कि दीदी नहा रही हैं। मेरे मन में शैतान जागा। एक तरफ दिल कह रहा था कि ये गलत है, वो मेरी दीदी है। लेकिन दूसरी तरफ जिस्म की आग मुझे बेकाबू कर रही थी। मैंने हिम्मत जुटाई और उनके कमरे के बाहर से आवाज लगाई, “दीदी, आप अंदर हैं क्या?”
“आशु, तू है? हाँ, 5 मिनट रुक, मैं आ रही हूँ। तू कमरे में बैठ जा,” दीदी की आवाज आई। मैं उनके बेड पर बैठ गया, लेकिन मेरी नजरें बाथरूम के दरवाजे पर टिक गईं। उस पुराने दरवाजे में छोटे-छोटे छेद थे, जैसे गांव के घरों में आमतौर पर होते हैं। मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा और चुपके से उस छेद में झाँकने लगा।
जो मैंने देखा, वो मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं था। दीदी पूरी नंगी थीं। पानी की बूँदें उनके गोरे जिस्म पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। उनके चेहरे से लेकर गर्दन, फिर उनके भरे हुए स्तनों तक पानी की धार बह रही थी। उनके भूरे निप्पल्स को देखकर मेरा लंड पलभर में टाइट हो गया। पानी उनके पेट से होता हुआ उनकी साफ, चिकनी चूत पर जा रहा था, और फिर उनकी रसीली जाँघों को भिगोता हुआ नीचे गिर रहा था। मैं तो जैसे पत्थर बन गया। मेरा लंड अब जींस फाड़ने को तैयार था।
मैंने चुपके से अपना लंड बाहर निकाला और वहीं दरवाजे के पास मुठ मारने लगा। कुछ ही पलों में मैं झड़ गया, और जल्दी-जल्दी सब साफ करके बेड पर वापस बैठ गया। तभी दीदी बाहर आईं। उन्होंने एक ढीला-सा टॉप और केप्री पहनी थी। टॉप इतना पतला था कि साफ पता चल रहा था कि उन्होंने अंदर कुछ नहीं पहना। “क्या हुआ, आशु? कोई काम था?” दीदी ने पूछा।
“हाँ, दीदी, मम्मी की किताब यहीं छूट गई थी, वही लेने आया हूँ,” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा।
“अच्छा, रुक, मैं लाती हूँ,” कहकर दीदी किताब लेने चली गईं। मैं किताब लेकर घर लौट आया, लेकिन मेरा दिमाग उसी नजारे में खोया रहा।
उस दिन के बाद मेरा रुटीन बन गया। मैं हर रोज किसी न किसी बहाने मामा के घर जाता। कभी दीदी को नहाते हुए देखने का मौका मिलता, तो मैं उनकी नंगी जवानी के मजे लेता। नहीं तो मामा के साथ बाहर बैठकर बातें करता और चला आता। लेकिन अब मेरे दिमाग में बस एक ही ख्याल था—दीदी को चोदना है। मैं हर रात उनके बारे में सोचकर मुठ मारता और यही प्लान बनाता कि कैसे उन्हें अपने नीचे लाऊँ।
फिर एक दिन मौका मिल ही गया। हमारे परिवार में किसी की मृत्यु हो गई थी, और मम्मी-पापा, मामा-मामी तीन दिन के लिए बाहर चले गए। उस वक्त सर्दी का मौसम था। मम्मी ने मुझे दीदी के हवाले कर दिया और चली गईं। मैंने मन ही मन सोच लिया कि यही मौका है। सुबह-सुबह मैंने फिर दीदी को नहाते हुए देखा और मुठ मारकर अपनी आग को थोड़ा शांत किया। फिर हमने साथ में नाश्ता किया और टीवी देखने लगे। बातों-बातों में दीदी ने मेरी गर्लफ्रेंड्स के बारे में पूछा। मैंने हँसते हुए कहा, “अभी तो कोई नहीं है, दीदी। लेकिन भविष्य में ढेर सारी बनाऊँगा।”
दीदी ने मजाक में कहा, “आशु, तू तो बहुत बिगड़ रहा है।”
हम दोनों हँसने लगे। फिर दोपहर में लंच के बाद हम मेरे घर गए और कंप्यूटर पर गेम खेलने लगे। दीदी ने पूछा, “तेरे पास कोई अच्छी मूवी है क्या?”
“हाँ, दीदी, आप सर्च कर लो,” मैंने कहा और बाहर चला गया, क्योंकि कुछ मेहमान आए थे। मैंने उन्हें टाल दिया और वापस अंदर आया। लेकिन जो मैंने देखा, उसने मुझे चौंका दिया। दीदी ने मेरी पॉर्न मूवीज का फोल्डर खोल रखा था।
“ये क्या है, आशु?” दीदी ने गुस्से में पूछा।
मैं हड़बड़ा गया। “दीदी, वो… वो बस…”
“बस क्या? अभी ये सब डिलीट कर, वरना मैं बुआ को बता दूँगी,” दीदी ने धमकी दी।
मैंने जल्दी-जल्दी सारी फाइल्स रिसाइकल बिन में डाल दीं, लेकिन बाद में चुपके से रिस्टोर भी कर लिया। फिर हम दीदी के घर वापस गए। वो अपने लैपटॉप पर कुछ फाइल्स कॉपी कर रही थीं, जो मेरे कंप्यूटर से लाई थीं। मैं बाहर टीवी देखने लगा। आधे घंटे बाद दीदी ने मुझे बुलाया, “आशु, इधर आ, ये गेम इंस्टॉल नहीं हो रहा।”
मैं गया और गेम इंस्टॉल करने लगा। दीदी बाथरूम चली गईं। मैंने उनके लैपटॉप पर नजर दौड़ाई, और चौंक गया। मेरी पॉर्न मूवीज का फोल्डर उनके लैपटॉप में था। अब समझ आया कि दीदी ने चुपके से सारी मूवीज कॉपी कर ली थीं। मैंने कुछ नहीं कहा और गेम इंस्टॉल करके बाहर चला गया।
रात हुई। हमने डिनर किया और फिर टीवी देखने बैठे। रात के करीब 11 बज रहे थे। मैंने मौका देखकर पूछ लिया, “दीदी, वो मेरा पॉर्न फोल्डर आपके लैपटॉप में क्या कर रहा है?”
दीदी एकदम घबरा गईं। “कौन-सा फोल्डर?” उन्होंने नाटक किया, लेकिन जल्दी ही पकड़ी गईं। वो रोने लगीं और बोलीं, “आशु, मैं बहुत परेशान हूँ। मेरे पति ने मुझे कभी प्यार नहीं किया। मैं सेक्स के लिए तड़प रही हूँ।”
उनके आँसुओं ने मेरा दिल पिघला दिया। मैं धीरे से उनके पास सोफे पर बैठ गया और उन्हें गले लगा लिया। “दीदी, रो मत,” मैंने कहा, लेकिन वो नहीं रुकीं। फिर मैंने हिम्मत करके उनके होंठों पर एक हल्का-सा चुम्बन दे दिया और दूर हट गया। लेकिन दीदी ने मेरा सिर पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया। हम दोनों एक-दूसरे के होंठों में खो गए। वो चुम्बन इतना गहरा और कामुक था कि हम 15-20 मिनट तक एक-दूसरे को चूमते रहे।
मैंने धीरे से दीदी का टॉप उतारा। उन्होंने मेरी टी-शर्ट खींच दी। फिर मैंने उनकी ब्रा उतारी, और उनके गोल, रसीले स्तनों को देखकर मेरी साँसें थम गईं। मैंने उन्हें गोद में उठाया और बेडरूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। मैं उनके पूरे जिस्म पर चुम्बनों की बौछार करने लगा—उनकी नाजुक गर्दन, उनकी गहरी नाभि, और फिर उनके मखमली स्तनों को मुँह में लेकर चूसने लगा। दीदी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… आशु… और… और कर…”
मैंने उनका पजामा और पैंटी एक साथ उतार दी। अब वो मेरे सामने पूरी नंगी थीं। मैं भी अपने कपड़े उतारकर नंगा हो गया। दीदी ने मेरा लंड पकड़ा और उसे मसलने लगीं। उनका मुलायम हाथ मेरे लंड पर जादू कर रहा था। फिर वो नीचे झुकीं और मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया। ओह्ह… क्या गर्मी थी उनके मुँह में! वो मेरे लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे कोई प्यासा पानी पी रहा हो। मैं सिसकारियाँ ले रहा था, “दीदी… और चूसो… आह्ह… मेरी रानी…”
कुछ ही मिनटों में मैं उनके मुँह में झड़ गया। दीदी ने मेरा सारा वीर्य पी लिया और होंठ चाटते हुए मुझे देखकर मुस्कुराईं। अब मेरी बारी थी। मैंने दीदी को लिटाया और उनकी रसीली चूत पर अपना मुँह रख दिया। जैसे ही मेरी जीभ ने उनकी चूत को छुआ, दीदी की सिसकारी निकल पड़ी, “आह्ह… आशु… हाय… क्या कर रहा है…” मैं उनकी चूत को चाटने लगा, उनके दाने को जीभ से सहलाने लगा। दीदी तड़प रही थीं, और कुछ ही देर में वो मेरे मुँह में झड़ गईं। मैंने उनका सारा रस पी लिया।
मेरा लंड अब फिर से तैयार था। मैंने दीदी की टाँगें फैलाईं और उनकी चूत पर अपना लंड सेट किया। एक हल्का-सा धक्का मारा, तो लंड थोड़ा अंदर गया। दीदी की चीख निकल गई, “आह्ह… दर्द हो रहा है…” लेकिन वो बोलीं, “रुक मत, आशु… आज मुझे पूरा चाहिए…” मैंने एक और जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। दीदी की आँखों में आँसू थे, लेकिन चेहरे पर सुकून भी था।
मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। दीदी की सिसकारियाँ अब मजे में बदल गई थीं, “आह्ह… आशु… और तेज… मेरे भाई… चोद दे मुझे…” वो भी अपनी कमर उठाकर मेरा साथ दे रही थीं। कमरे में हमारी साँसों की आवाज और बेड की चरमराहट गूँज रही थी। 20-25 मिनट तक मैंने उन्हें चोदा, और फिर हम दोनों एक साथ झड़ गए। मैं दीदी के ऊपर ही लेट गया, और हम दोनों रजाई ओढ़कर नंगे ही सो गए।
सुबह दीदी ने मुझे एक गहरा चुम्बन देकर उठाया। उस दिन के बाद से जब भी हमें मौका मिलता, हम अपनी आग को एक-दूसरे में बुझाते। दीदी मेरी बहन से मेरी रानी बन गईं, और हमारी ये कामुक कहानी आज भी जारी है।