नौकर-नौकरानी चुदाई

मालकिन की गांड नसीब हुई

हेलो दोस्तों, आज मैं आपको अपनी एक सच्ची और दिलचस्प कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे दिल के किसी कोने में बस चुकी है। मेरा नाम राहुल है, उम्र 28 साल, और मैं पुणे में रहता हूँ। मेरी हाइट 5 फुट 8 इंच है, और मैं दिखने में काफ़ी स्मार्ट और गुड लुकिंग हूँ। मेरा काम मार्केटिंग का है, जिसके चलते मुझे अक्सर पुणे से बाहर जाना पड़ता है। ये कहानी उस वक़्त की है जब मैं काम के सिलसिले में मुंबई गया था, और वहाँ मुझे दो महीने रुकना था।

मुंबई में मैं अपने एक दोस्त के रिश्तेदार के घर किराएदार बनकर रहने लगा। उस घर में मिस्टर अनिल जाधव थे, जो 40 साल के थे, उनकी वाइफ मिस सुजाता, जो 37 साल की थीं, और उनकी एक बेटी रूपा, जो कॉलेज में पढ़ती थी। रूपा पुणे के किसी हॉस्टल में रहती थी और छुट्टियों में ही घर आती थी। जब मैं वहाँ पहुँचा, तो घर में सिर्फ़ अंकल और आंटी ही थे।

उन्होंने मुझे एक अलग रूम दे दिया, जहाँ मेरा सारा सामान रखा रहता था। रूम में एक कपबोर्ड भी था, और सब कुछ काफ़ी व्यवस्थित था। शुरू-शुरू में मैं उनसे काफ़ी शरमाता था, लेकिन धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी, और मैं उनके साथ घुलमिल गया। आंटी का खाना इतना लाजवाब था कि लगता था जैसे घर का खाना खा रहा हूँ। अंकल का स्वभाव भी बहुत अच्छा था, और वो मुझे अपने बेटे की तरह मानते थे।

मेरा रूटीन वही था—सुबह 10 बजे ऑफिस जाना, शाम 7 बजे घर लौटना। फिर हम सब साथ में खाना खाते, थोड़ी बातचीत होती, और मैं अपने रूम में सोने चला जाता। लेकिन एक बात मुझे हमेशा खटकती थी—आंटी की नजरें। वो कभी-कभी मुझे ऐसी नजरो से देखती थीं कि मेरे बदन में सिहरन दौड़ जाती थी। उनकी आँखों में एक अजीब सी प्यास थी, जो मुझे बेचैन कर देती थी।

सुजाता आंटी को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो 37 साल की हैं और एक कॉलेज जाने वाली लड़की की माँ हैं। उनका फिगर थोड़ा भरा हुआ था, लेकिन एकदम टाइट और सेक्सी। उनकी कर्वी कमर, भरी-भरी गांड, और वो उभरे हुए बूब्स—सब कुछ ऐसा था कि कोई भी मर्द पागल हो जाए। शुरू में उनकी इन हरकतों से मैं शरमा जाता था। जब वो मेरी तरफ देखतीं, तो मैं नजरें झुका लेता। कभी-कभी तो अंकल के सामने ही वो मुझे घूरती थीं, और मैं डर के मारे काँप जाता था। लेकिन वो बातें इतनी प्यारी और मीठी करती थीं कि मैं उनके जाल में धीरे-धीरे फंसता चला गया।

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घर में कोई पाबंदी नहीं थी। मैं जब चाहे किचन में जाता, कुछ भी खाता, और वो दोनों मुझे बड़े प्यार से रखते थे। लेकिन आंटी की वो नजरे, वो मुस्कान, और वो हल्का-हल्का छूना—सब कुछ मेरे दिल में आग लगाने के लिए काफ़ी था।

वो रात जो बदल गई

एक शाम मैं ऑफिस से लौटा तो आंटी ने दरवाजा खोला। मैं फ्रेश होकर सोफे पर बैठ गया। मैंने पूछा, “अंकल कहाँ हैं?” आंटी ने मुस्कुराते हुए बताया कि अंकल अपने दोस्त के बेटे को देखने हॉस्पिटल गए हैं और रातभर वहीं रुकेंगे। फिर उन्होंने कहा कि मुझे अंकल को खाना देने हॉस्पिटल जाना है। मैंने कहा, “आंटी, आप रुकिए, मैं चला जाता हूँ।”

मैं जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचा। वहाँ काफ़ी भीड़ थी। मैंने अंकल को टिफिन दिया, थोड़ी देर बात की, और खाली टिफिन लेकर घर लौट आया। भूख के मारे मेरा बुरा हाल था। घर पहुँचते ही मैंने और आंटी ने साथ में खाना खाया। खाना खाने के बाद मैं टीवी देखने लगा, और आंटी अपना काम निपटाने लगीं। लेकिन बार-बार वो मेरी तरफ देख रही थीं—वो नजरे, वो प्यासी नजरे, जिनमें एक अजीब सी आग थी।

अचानक आंटी मेरे पास आकर सोफे पर बैठ गईं। उन्होंने सलवार-कुर्ता पहना था, लेकिन दुपट्टा नहीं लिया था। उनका टाइट कुर्ता उनके कर्व्स को और उभार रहा था। मैं चुप रहा, लेकिन मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। थोड़ी देर बाद वो बोलीं, “बेटा, दूध पियोगे?” उनकी आवाज़ में एक अजीब सी नरमी थी। मैंने हाँ में सिर हिलाया। वो हंसते हुए किचन में चली गईं।

मुझसे रहा नहीं गया। मैं भी उनके पीछे किचन में चला गया। वो दूध गर्म कर रही थीं, और मुझे देखकर मुस्कुराने लगीं। उनकी जीभ धीरे-से उनके होंठों पर घूमी, और मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। मैंने हिम्मत जुटाई और उनके पास जाकर उनके कंधों पर हाथ रख दिया। फिर धीरे-धीरे मेरे हाथ उनकी गोल-मटोल, मुलायम गांड पर चले गए। मैंने उन्हें अपनी तरफ खींचा।

वो शर्माते हुए बोलीं, “बेटा, ये क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “कुछ नहीं, आंटी।” फिर मैंने हल्के से उनकी कमर को सहलाया। वो बोलीं, “शर्म करो, मैं तुमसे उम्र में इतनी बड़ी हूँ।” मैंने तपाक से जवाब दिया, “तो रोज़ मेरी तरफ ऐसी नजरो से देखते वक़्त आपको शर्म नहीं आती?”

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वो चुप हो गईं। मैंने मौका देखा और उन्हें ज़ोर से अपनी बाँहों में खींच लिया। उनके होंठों को मैंने अपने होंठों से चूमना शुरू किया। पहले तो वो थोड़ा विरोध करती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे वो मेरी बाँहों में पिघलने लगीं। मैंने उनके कुर्ते को धीरे-धीरे ऊपर उठाया, और वो भी अब अपने कपड़े उतारने में मेरी मदद करने लगीं।

मैंने कहा, “चुदवाना है तो इतने नखरे क्यों?” वो बोलीं, “राहुल, मैंने आज तक तुम्हारे अंकल के सिवा किसी और से नहीं किया।” मैंने हंसते हुए कहा, “एक बार मेरा लंड ले लोगी, फिर किसी और की तरफ देखोगी भी नहीं।”

ये सुनकर उनकी आँखों में एक चमक सी आ गई। उन्होंने मेरी पैंट की ज़िप खोली और मेरा लंड बाहर निकाला। जैसे ही उन्होंने मेरा 7 इंच का मोटा लंड देखा, उनकी आँखें चमक उठीं। वो बोलीं, “हाय राम, इतना बड़ा? मुझे तो यही चाहिए था।” फिर वो पागलों की तरह मेरे लंड को चूमने लगीं, चूसने लगीं। उनके होंठ मेरे लंड पर ऐसे चल रहे थे जैसे कोई भूखा शेर शिकार पर टूट पड़ा हो।

मुझे भी मज़ा आने लगा। मैंने उन्हें उठाया और सोफे पर लेटा दिया। उनकी चूत पहले से ही गीली थी। मैंने अपनी उंगलियाँ उनकी चूत में डालीं और हिलाने लगा। वो सिसकारियाँ भरने लगीं, “आह्ह… राहुल… और करो… हाय…” उनकी गांड हवा में उछल रही थी, और वो पागलों की तरह मचल रही थीं।

फिर वो चिल्लाईं, “बस अब और मत तड़पाओ… डाल दो अपना लंड… फाड़ दो मेरी चूत को!” मैंने भी देर न की। मैंने अपना लंड उनकी चूत पर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। वो चीख पड़ीं, “हाय… कितना मोटा है… आह्ह… चोदो मुझे… ज़ोर से चोदो!”

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मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू किए। उनकी चूत इतनी गर्म और टाइट थी कि मुझे स्वर्ग का मज़ा आ रहा था। वो अपनी गांड उछाल-उछालकर मेरा साथ दे रही थीं और चिल्ला रही थीं, “हाय… राहुल… और ज़ोर से… फाड़ दो… आज सारी रात चोदो मुझे!” मैं भी पूरे जोश में था। मैंने उनकी टाँगें ऊपर उठाईं और और गहरे धक्के मारने लगा।

कुछ देर बाद वो शांत पड़ गईं। मैंने पूछा, “क्या हुआ, आंटी?” वो हाँफते हुए बोलीं, “बस थक गई, बेटा।” मैंने हंसते हुए कहा, “अरे, अभी तो सारी रात चुदवाने की बात कर रही थीं!” वो बोलीं, “वो तो मैं जोश में थी।”

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मैंने कहा, “मैं तो अभी भी जोश में हूँ। चलो, आज तुम्हारी गांड भी मार लेता हूँ। तुम्हारी गांड तो कमाल की है।” वो घबरा गईं, “नहीं राहुल, बहुत दर्द होगा।” मैंने कहा, “एक बार ट्राई करो, मज़ा आएगा।” मैंने उन्हें पलटा और उनकी गांड के छेद पर थोड़ा तेल लगाया। फिर धीरे-धीरे अपना लंड उनकी गांड में डाला।

पहले तो वो चिल्लाईं, “हाय… दर्द हो रहा है… निकालो!” लेकिन थोड़ी देर बाद वो भी मज़े लेने लगीं। उनकी गांड इतनी टाइट थी कि मेरा लंड मानो स्वर्ग में था। वो अब अपनी गांड ऊपर-नीचे करके मेरा साथ दे रही थीं। मैंने कहा, “देखा, कितना मज़ा आ रहा है?” वो बोलीं, “हाँ बेटा, तुम्हारे अंकल ने आज तक मेरी गांड नहीं मारी। तुम पहले मर्द हो जिसे मेरी गांड नसीब हुई।”

ये सुनकर मेरा जोश और बढ़ गया। मैंने ज़ोर-ज़ोर से उनकी गांड मारी, और आखिरकार मेरा पानी उनकी गांड में ही निकल गया। उनकी गांड मेरे माल से भर गई। मैं थककर उनकी गांड पर ही लेट गया। उस रात हम दोनों नंगे ही एक-दूसरे से चिपककर सो गए।

अगली सुबह और उसके बाद

सुबह जब हम उठे, तो हमने साथ में बाथरूम में नहाया। वहाँ भी मैंने उन्हें एक बार फिर चोदा। उनकी चूत और गांड अब मेरे लंड की दीवानी हो चुकी थीं। अगले दो महीनों में मैंने उन्हें हर मौके पर चोदा। जब भी अंकल बाहर जाते, आंटी नंगी होकर मेरे पास आ जातीं। मैं हंसकर कहता, “इतनी बड़ी होकर घर में नंगी घूमती हो?” वो हंसकर जवाब देतीं, “बड़े बच्चे तो नंगे ही अच्छे लगते हैं।”

उन दो महीनों में हमने हर तरह से मज़े लिए। आंटी की प्यासी चूत और टाइट गांड ने मुझे ऐसा दीवाना बनाया कि मैं आज भी उन पलों को याद करके मचल उठता हूँ।