होली के बहाने भाभी की चुदाई-2
भाभी: “रहने दो, तुम्हें तो बस अपनी मर्दानगी दिखानी है, अपनी भाभी से कोई मतलब नहीं!”
मैं: “अरे भाभी, माफ कर दो ना अब!”
भाभी: “पहले मेरी आँख साफ करो, फिर देखती हूँ कि माफी के लायक हो या नहीं।”
भाभी मुँह धोकर वापस आईं और मेरे पास आकर बैठ गईं। बोलीं, “चलो, लग जाओ काम पर!”
मैं: “अच्छा, अपनी उँगली से आँख को ठीक से खोलो ना।”
भाभी: “तुम ही करो, मुझसे नहीं होगा।”
मैं: “मुझसे भी तो नहीं बनेगा!”
भाभी: “मुझे नहीं पता, जल्दी करो!”
मैं: “ठीक है, कोशिश करता हूँ।”
झिझकते हुए मैंने उनके गाल पर हाथ रखा और उनकी आँख खोली। भाभी ने एक गहरी साँस भरी।
भाभी: “कुछ दिखा?”
मैं: “नहीं दिख रहा।”
भाभी: “इतनी दूर से क्या दिखेगा? पास आओ!”
मैं थोड़ा पास गया।
भाभी: “अरे, शरमा क्यों रहे हो? रंग लगाने के लिए तो मुझ पर चढ़ गए थे! और पास आओ, तब दिखेगा।”
मैं और नजदीक गया।
भाभी: “तुम शरमाते ही रहो, मैं खुद पास आती हूँ।”
और फिर भाभी मुझसे सटकर बैठ गईं। उनकी जाँघ मेरी जाँघ से छू रही थी। मुझे अजीब सा लगा। तभी उन्होंने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया। मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। मैं झिझकने लगा—आखिर वो मेरी भाभी थीं।
मैं: “भाभी, आपकी आँख में तो कुछ भी नहीं है।”
भाभी: “ठीक से देखो जरा!”
मैं: “नहीं, सच में कुछ नहीं है। आप नहा लो, फ्रेश लगेगा। जो भी होगा, शायद निकल जाए।”
भाभी: “क्या नहा लो? इतना रंग लगाया है तुमने कि साफ करते-करते दिन निकल जाएगा।”
मैं: “हाँ, तो आपने कौन सा कम लगाया है? मुझसे तो साफ भी नहीं होगा। अब आप ही साफ करवाओ!”
भाभी: “अच्छा जी! और तुमने जहाँ-तहाँ रंग लगाया है मुझे, उसका क्या? वो भी तुम साफ करोगे?”
मैं: “आपने ही तो शुरुआत की थी। आपने भी तो ऐसी जगह रंग लगाया है, तो आप साफ करो!”
भाभी: “अच्छा जी! अगर मुझे ही साफ करना है, तो रुको, और लगा देती हूँ!”
मैं: “नहीं भाभी, अब और नहीं!”
वो रंग लेने जा ही रही थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।
भाभी: “मेरा हाथ छोड़ो, अभी बताती हूँ तुम्हें!”
मैं: “नहीं, अब और नहीं!”
वो हाथ छुड़ाने लगीं। इसी खींचातानी में हम फिर से नीचे गिर गए। शायद उन्होंने जान-बूझकर ऐसा किया। इस बार मैं नीचे था और वो मेरे ऊपर। उनकी चूत मेरी जाँघ पर थी और मेरा लंड उनकी नाभि को छू रहा था। हमारी नज़रें मिलीं। वो मेरी आँखों में देखती रहीं। अचानक मेरी नजर उनकी चूचियों पर गई, जो ब्लाउज़ से बाहर झाँक रही थीं। उस नज़ारे ने मेरे अंदर आग लगा दी। मेरा लंड खड़ा हो गया और उनकी नाभि में हल्का-हल्का घुसने लगा। भाभी को सब महसूस हो रहा था, पर वो उठी नहीं। बस मेरी आँखों में देखती रहीं और गहरी साँसें लेने लगीं।
अब मेरे अंदर की हवस जाग चुकी थी। मैंने उन्हें कसकर पकड़ लिया और अपने पैरों से उनके पैरों को जकड़ लिया। उन्होंने कुछ नहीं कहा। मुझे लगा शायद वो भी यही चाहती हैं। मैंने और देर न करते हुए उनके होंठों पर अपनी जीभ फेरी। उन्होंने अपना मुँह खोल दिया। फिर मैंने जीभ अंदर डालकर उनके होंठ चूसने शुरू कर दिए। उधर भाभी अपनी नाभि को मेरे लंड पर रगड़ने लगीं।
मैंने एक हाथ उनकी गांड पर रखा और मसलने लगा। वो गहरी साँसें भरने लगीं। धीरे से मैंने साड़ी के अंदर हाथ डाला और उनकी गांड के छेद को सहलाने लगा। वो मेरे मुँह में अपनी जीभ घुमाने लगीं। फिर मैंने उन्हें गोद में उठाया और बाथरूम में ले गया। शॉवर चालू कर दिया। वो मेरे होंठ चूसती रहीं। मैंने उनके ब्लाउज़ के हुक खोलकर उनकी चूचियाँ आज़ाद कर दीं। दोनों हाथों से उन्हें मसलने लगा। वो “आह… उफ्फ…” करने लगीं। उनकी आवाज़ ने मुझे और उत्तेजित कर दिया। मैंने उनकी साड़ी खोलकर उन्हें नंगा कर दिया। फिर भाभी ने मुझे धक्का देकर मेरे कपड़े उतार दिए। देखते ही देखते मैं भी नंगा हो गया।
अब मैंने उन्हें दीवार से सटा दिया और उनकी चूचियाँ मसलते हुए होंठ चूसने लगा। मेरा लंड उनकी चूत और नाभि के बीच नाच रहा था। मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उनकी चूत रगड़नी शुरू की। वो उत्तेजना में मेरे लंड को मसलने लगीं। फिर मैंने अपनी उँगली उनकी चूत में डाल दी और अंदर-बाहर करने लगा। वो “आह… आह…” करके मज़े लेने लगीं।
अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनकी टाँगें गोद में उठाईं और उनकी चूत में लंड डाल दिया। वो ज़ोर से चिल्लाईं, “आह्ह, रिकी! आराम से करो!” पर मैंने उनकी एक न सुनी और ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। वो भी मज़े से चुदवाने लगीं। कुछ देर बाद मैंने उन्हें घुमाया और पीछे से उनकी चूत में लंड डालकर चोदने लगा। करीब 15-20 मिनट तक ऐसे ही चुदाई चलती रही। फिर मेरा माल निकलने वाला था। मैंने कहा, “भाभी, अंदर ही निकाल दूँ?”
भाभी बोलीं, “नहीं, मैं मुँह में लूँगी।”
वो नीचे बैठ गईं और मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगीं। करीब 5 मिनट बाद मैंने अपना माल उनके मुँह में निकाल दिया। उन्होंने सारा पी लिया।
तभी मेरा फोन बजने लगा। हमें अपनी चुदाई वहीं रोकनी पड़ी।
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