Bhabhi Sex

होली के बहाने भाभी की चुदाई-1

हाय दोस्तों, मेरा नाम रिकी है। मैं 23 साल का हूँ और मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ। वैसे तो मैं ग्रेजुएट इंजीनियर हूँ, लेकिन इन दिनों सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटा हुआ हूँ। दिखने में मैं ठीक-ठाक हूँ—खुद की तारीफ करना तो बनता नहीं, है ना? मेरा रंग गेहुँआ है, कद 5 फीट 10 इंच, और शरीर एकदम फिट—शायद इसलिए क्योंकि स्पोर्ट्स में हमेशा एक्टिव रहा हूँ। और हाँ, जो चीज़ आप सबको सबसे ज़्यादा प्यारी लगती है, उसका साइज़ है 6.2 इंच—बस इतना ही बताऊँगा अभी!

पिछले दो साल से मैं दिल्ली में रह रहा हूँ, किराए के कमरे में। वहाँ की बिल्डिंग में कई खूबसूरत लोग रहते हैं, लेकिन मेरी कहानी उन “माल” की नहीं है। ये कहानी उस वक्त की है जब मैं 18 साल का था। तब मैं पोर्न देखा करता था, लेकिन किसी पराई औरत के बारे में ऐसे खयाल नहीं लाता था। ये बात अगस्त की है, जब गणपति विसर्जन का मौका था। मेरे बड़े पापा—यानी ताऊ जी—ने मुझे अपने घर बुलाया था। मैं उनका लाडला था, तो वहाँ खूब प्यार-दुलार मिलता था। उनके बेटे की उम्र 31 साल है, शादी को सात साल हो चुके थे—मतलब ये घटना शादी के दो साल बाद की है। उनकी बेटी 34 की है और शादीशुदा है।

अब कहानी की असली हीरोइन की बात करते हैं—मेरी भाभी, यानी ताऊ जी की बहू। उनका नाम कृतिका है, पर सब प्यार से उन्हें “किट्टू” बुलाते हैं। उस वक्त उनकी उम्र 29 थी। उनका एक 3 साल का बेटा भी है—कौन जाने, शायद मेरा ही हो! भाभी दिखने में कमाल की हैं—गोरी-चिट्टी, मलाई जैसी त्वचा, और जिस्म ऐसा कि रुई सा मुलायम। उनका फिगर उस वक्त 34C-28-34 था—हाँ, मैंने खुद नापा था! अब शायद 34D-30-36 हो। लंबे, घने काले बाल उनकी कमर तक लहराते हैं, बड़ी-बड़ी काली आँखें, और रसीले लाल होंठ—उन्हें देखकर किसी का भी मन डोल जाए। वो मुझे हमेशा छेड़ती रहती थीं, शायद इसलिए कि मैं घर का लाडला था।

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तो चलिए, अब असली कहानी पर आते हैं। उस दिन गणपति विसर्जन के जुलूस में हम सब होली खेल रहे थे—वैसे ही जैसे हर जगह होता है। मैं एक कोने में खड़ा सब देख रहा था, क्योंकि मुझे होली खेलना कुछ खास पसंद नहीं था। तभी पता नहीं भाभी कब पीछे से आईं और उन्होंने मेरे गालों पर रंग मल दिया। फिर तो पूरा पैकेट ही मेरे सिर पर उड़ेल दिया! मैं हक्का-बक्का रह गया—समझ ही नहीं पाया कि क्या करूँ।

फिर वो मुझे चिढ़ाने लगीं। अब मेरे अंदर भी बदले की आग भड़क उठी। मैंने सोचा, मौका मिलते ही हिसाब बराबर करूँगा। थोड़ी देर बाद जब भाभी अकेली खड़ी थीं, मैं चुपके से पीछे गया और उनके ऊपर रंग डालने ही वाला था कि उन्होंने मुझे देख लिया। मेरा हाथ पकड़ लिया और बोलीं,
“क्या हुआ भाभी, अब डर क्यों रही हो? मुझे भी तो रंग लगाने दो!”
“अरे, मैं पहले ही इतनी रंग-बिरंगी हो गई हूँ, अब और नहीं!”
“पर आपने मुझे लगाया तो मैं भी लगाऊँगा!”
“हाँ तो क्या हुआ? तुम साफ-सुथरे खड़े थे, इसलिए मैंने तुम्हें भी कलरफुल कर दिया।”
“अच्छा, तो अब मेरा बदला लेने का हक बनता है!”
“अरे जाओ, बच्चों को रंग लगाओ। बड़े आए मुझसे बदला लेने वाले! पहले बड़े हो जाओ, फिर आना।”
“मैं बच्चा नहीं हूँ!”
“अरे, तुम तो एकदम छोटे बच्चे हो!”
“रुकिए, अभी दिखाता हूँ!”

बस फिर क्या था, मैंने जबरदस्ती उनके ऊपर रंग डालने की कोशिश की। वो मेरा हाथ पकड़े रहीं, और इसी खींचातानी में हम दोनों नीचे गिर पड़े। मेरा एक पैर उनकी जाँघों के बीच चला गया और एक हाथ गलती से उनकी छाती पर। उस पल हमारी नज़रें मिलीं। उनकी गहरी आँखों में मैं खो सा गया। मेरे अंदर अजीब सी हरकत होने लगी—लंड खड़ा हो गया और उनकी जाँघ से रगड़ने लगा। मुझे होश ही नहीं रहा। अचानक भाभी ने मुझे धक्का देकर अलग करने की कोशिश की, पर मैं तो रंग लगाने के चक्कर में था। इसी धक्कम-धक्की में मेरा लंड उनकी जाँघ से सरकता हुआ उनकी चूत के पास जा पहुँचा। अब तो ऐसा लग रहा था जैसे वो वहाँ नाच रहा हो। फिर अचानक भाभी की पकड़ ढीली पड़ गई, उनकी आँखें बंद हो गईं। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है।

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खैर, मैंने मौका देखकर उन्हें ढेर सारा रंग लगा दिया और उठ खड़ा हुआ। बोला, “देख लिया ना, मैं बच्चा नहीं हूँ। रंग लगा ही दिया!” पर भाभी के मन में रंग की नहीं, शायद किसी और आग की चिंगारी भड़क चुकी थी। मैं वहाँ से जाने लगा तो भाभी ने पीछे से आकर मेरी पैंट के अंदर रंग डाल दिया। मैंने भी जवाब में उनकी साड़ी के अंदर रंग डाला। वो कहाँ मानने वाली थीं—उन्होंने फिर से मेरी पैंट में आगे की तरफ रंग डाल दिया। अब मैं पीछे क्यों रहता? मैंने उनके ब्लाउज़ में रंग भर दिया।

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होली खेलते-खेलते शायद उनके अंदर कुछ और ही जाग गया। अचानक भाभी बोलीं, “मेरी आँख में रंग चला गया!” सबने कहा कि वो घर चली जाएँ। उन्होंने कहा, “जिसने ऐसा किया, वही मुझे छोड़ने जाएगा”—यानी मैं।

हम दोनों घर पहुँचे। उस वक्त घर खाली था—सब जुलूस में गए थे।
मैंने कहा, “भाभी, जल्दी मुँह धो लो, वरना आँख में और रंग जा सकता है।”
“जाएगा ही, तुम्हारा रंग जो है!”
“सॉरी भाभी, मैंने जानबूझकर नहीं किया।”

बाकी कहानी अगले हिस्से में…