सेक्सी दीदी की चुदाई की
नमस्ते दोस्तों, आप सब कैसे हैं? मेरा नाम मोहित है और मैं दिल्ली में रहता हूँ। यहाँ पर ये मेरी पहली कहानी है: सेक्सी दीदी के साथ प्यार भरा रिश्ता।
ये बात उन दिनों की है जब मैं 19 साल का था। कॉलेज के एग्जाम खत्म होने के बाद मेरे पास दो महीने की छुट्टियाँ थीं। मैंने सोचा कि इन छुट्टियों में अपनी दीदी के घर जाऊँगा। दीदी शादीशुदा थीं और दो बच्चों की माँ भी थीं। उनकी उम्र 32 साल थी। जीजाजी का प्रॉपर्टी डीलिंग का बिजनेस था। दीदी भी दिल्ली में ही रहती थीं। उनका रंग एकदम गोरा था, फिगर नॉर्मल था, लेकिन उनके चूचे किसी 18 साल की लड़की जैसे टाइट थे। और उनकी गांड, माशाअल्लाह, इतनी मोटी और उभरी हुई थी कि देखते ही मन ललचा जाए। दीदी के घर आए मुझे एक हफ्ता हो गया था। वो मेरा बहुत ख्याल रखती थीं। मेरे मन में भी उनके लिए कोई गलत ख्याल नहीं था। मैं उन्हें अपनी बड़ी बहन ही मानता था। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि सब बदल गया।
उस दिन दीदी अपने छोटे बेटे को दूध पिला रही थीं। मैं अभी बाहर से आया था। जैसे ही अंदर गया, मैंने देखा कि दीदी अपने बेटे को दूध पिला रही थीं। मैं वहीं बैठ गया। दीदी भी आराम से उसे दूध पिलाती रहीं। तभी मेरी नजर उनके एक चूचे पर पड़ी। उनका रंग बिल्कुल दूध जैसा था, निप्पल ज्यादा बड़ा नहीं था, और चूचे इतने टाइट थे कि देखते ही कुछ समझ नहीं आया। अचानक मेरे अंदर का मर्द जाग उठा। उस रात सोते वक्त भी मेरे दिमाग में दीदी के चूचे घूमते रहे। मैं उनके साथ अंतरंग होने के सपने देखने लगा और पहली बार उनके नाम की मुठ मारी।
अगले दिन सुबह जब मैं उठा, तो दीदी मेरे कमरे में सफाई कर रही थीं। उनकी क्लीवेज साफ दिख रही थी। मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया। मैंने खुद को कंट्रोल किया और नहा-धोकर नाश्ते की टेबल पर आ गया। दीदी के बड़े बेटे की छुट्टियाँ खत्म हो गई थीं। जीजाजी को उसे हॉस्टल छोड़ने कोटा जाना था। जीजाजी ने मुझसे साथ चलने को कहा, लेकिन दीदी बोलीं, “इसे यहीं रहने दो, मेरे साथ काम में हाथ बँटाने वाला कोई नहीं होगा।” जीजाजी मान गए और चले गए। अब घर पर सिर्फ मैं और दीदी रह गए थे। मैंने सोचा कि आज अच्छा मौका है।
दोपहर का टाइम था और गर्मी भी बहुत थी। दीदी ने अपने लिए चाय बनाई और मेरे लिए ठंडी लस्सी। छोटे को गोद में लेकर चाय पीने लगीं। अचानक छोटे ने चाय के कप पर हाथ मार दिया और चाय सीधे दीदी के हाथ और जांघों पर गिर गई। दीदी चिल्ला उठीं और फटाफट बाथरूम में जाकर ठंडा पानी डाला। फिर कपड़े बदलकर वापस आईं। लेकिन उनके हाथों और जांघों पर जलन अभी भी थी। मैंने कहा, “दीदी, आप कोई लोशन वगैरह लगा लो, आराम मिलेगा।” दीदी बोलीं, “लोशन कैसे लगाऊँ? मेरे हाथों में जलन हो रही है, और चाय哪儿 गिरी है, वहाँ किसी और से भी लोशन नहीं लगवा सकती।”
मैंने कहा, “दीदी, मैं लगा देता हूँ। आखिर मैं आपका भाई ही तो हूँ।” जलन ज्यादा होने की वजह से दीदी मान गईं। मेरे तो जैसे लड्डू फूट पड़े, लेकिन मैंने अपनी खुशी छुपा ली। दीदी ने सलवार उतारते हुए कहा, “मोहित, ये बात हमारे बीच ही रहनी चाहिए।” मैंने कहा, “दीदी, आप फिकर मत करो।”
दीदी ने सलवार उतारी। अंदर उन्होंने नीली पैंटी पहनी थी। क्या गोरी-गोरी जांघें थीं उनकी! हल्के-हल्के बाल उन पर बहुत अच्छे लग रहे थे। और उनके चूतड़ इतने टाइट थे कि मन कर रहा था बस मसल दूँ। मैंने दीदी से लेटने को कहा और एक लोशन ले आया। उनकी जांघों के पास लगाने लगा। मेरा हाथ उनकी पैंटी से ज्यादा दूर नहीं था। मैंने कहा, “दीदी, पैंटी की स्ट्रिप के नीचे भी थोड़ा लाल हो रहा है, वहाँ भी लगा दूँ?” दीदी बोलीं, “ध्यान से लगाना। तुम मेरे भाई हो, अपनी सीमा का ख्याल रखना।” जैसे ही मैंने पैंटी के नीचे हाथ डाला, दीदी के मुँह से “आह्ह” निकल गई। मैंने पूछा, “दीदी, दर्द हो रहा है?” उन्होंने कहा, “नहीं, कुछ नहीं, तू लोशन लगा।” लोशन लगाते-लगाते दीदी को नींद आ गई और वो गहरी नींद में सो गईं।
मेरे लिए ये सुनहरा मौका था। मैंने धीरे-धीरे उनकी पैंटी सरका दी। मेरे सामने अब दीदी की गोरी, हल्के बालों वाली चूत थी। मैं तो पागल हो गया। पहली बार किसी लड़की की चूत को इतने करीब से देखा था। मैंने उस पर हाथ फेरना शुरू किया। लेकिन तभी मुझे लगा कि कुछ करने से पहले उनकी सहमति लेनी चाहिए। मैंने दीदी को धीरे से जगाया। वो नींद से उठीं और हैरान होकर बोलीं, “ये क्या कर रहे हो? मैं तुम्हारी बहन हूँ।”
मैं पहले तो डर गया, फिर हिम्मत करके बोला, “दीदी, जो हो गया सो हो गया। अब प्लीज एक बार मुझे आपके साथ प्यार करने दो।” दीदी बोलीं, “ये गलत है, मैं तेरी सगी बहन हूँ।” मैंने कहा, “दीदी, प्लीज, बस एक बार। मैंने कभी किसी के साथ ऐसा नहीं किया। और वैसे भी आप मेरे सामने एक्सपोज हो चुकी हैं।” मेरे बार-बार कहने पर दीदी मान गईं, लेकिन बोलीं, “ये बस एक बार होगा। इसके बाद तुम कल ही यहाँ से चले जाओगे। और किसी से कुछ नहीं कहोगे, प्रॉमिस?” मैंने कहा, “प्रॉमिस।”
फिर दीदी ने अपनी कमीज और ब्रा भी उतार दी। वाह, क्या मोटे-मोटे चूचे थे! मैंने काफी देर तक उनके चूचों को दबाया और उनसे खेला। फिर दीदी बोलीं, “अब जल्दी से काम करो।” वो सीधे लेट गईं और अपनी टाँगें फैला दीं। मैंने अपना लंड निकाला और उनकी टाँगों के बीच आ गया। एक हाथ से लंड को पकड़कर उनकी चूत में डाला और उनके ऊपर लेट गया। फिर धक्के मारने लगा। दीदी भी नीचे से सपोर्ट कर रही थीं और अपनी गांड उछाल-उछाल कर मज़े ले रही थीं। मुझे तो जैसे जन्नत मिल गई। करीब 30 मिनट बाद मैंने कहा, “दीदी, निकलने वाला है, बाहर निकालूँ?” दीदी बोलीं, “नहीं, मेरा भी होने वाला है। रुक मत, अंदर ही डाल दे। मुझे अपने बच्चे की माँ बना दे।”
मेरा निकल गया और दीदी का भी। हम कुछ देर एक-दूसरे के ऊपर ऐसे ही पड़े रहे। मेरा ढीला पड़ा लंड अभी भी उनकी चूत में था। थोड़ी देर बाद मैंने कहा, “दीदी, प्लीज एक बार गांड भी मारने दो।” दीदी बोलीं, “ठीक है, लेकिन आराम से डालना, मेरा पहला टाइम है।” मैंने थूक लगाकर उनका छेद फैलाया और धीरे-धीरे लंड डाला। दीदी को थोड़ा दर्द हुआ, लेकिन फिर मैंने पूरा घुसा दिया। वो चिल्ला उठीं। मैंने गांड मारना शुरू किया। घप-घप की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। 10 मिनट बाद मेरा फिर निकल गया और मैं सो गया।
जब उठा तो देखा दीदी भी नंगी सो रही थीं। उन्हें नंगा देखकर मैंने उनकी चूत पर फिर मुठ मार दी। वो जाग गईं और मेरा स्पर्म साफ करने लगीं। मैंने कहा, “दीदी, मैं कल सुबह चला जाऊँगा।” दीदी ने मुस्कुराकर कहा, “तेरे जीजाजी चार दिन बाद आएँगे, तब तक मेरा क्या होगा?” मैं समझ गया और उनके ऊपर लेट गया। उस रात हमने तीन बार सेक्स किया और खूब मज़े लिए।
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