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जीजा ने मेरी चूत पावरोटी की तरह फुला दी चोद-चोद के

आँचल की नशीली सेक्स कहानी, जिसमें जीजा ने उसकी कुंवारी चूत को चोद-चोद कर पावरोटी की तरह फुला दिया। वासना, जुनून और हसीन पलों से भरी इस कहानी को पढ़ें और डूब जाएँ कामुकता की दुनिया में।

मेरा नाम आँचल है, और ये मेरी जिंदगी का वो हसीन पल है, जिसने मेरे जिस्म और दिल पर हमेशा के लिए एक नशीली छाप छोड़ दी। ये कहानी उस वक्त की है, जब मेरी दीदी की नई-नई शादी हुई थी। मैं अपनी दीदी के साथ उनके ससुराल गई थी। उस वक्त मेरी उम्र मुश्किल से 18 साल रही होगी, लेकिन मेरा जिस्म किसी उम्र की सीमा को नहीं मानता था। मेरे बूब्स इतने भारी और रसीले थे कि दीदी के बूब्स भी उनके सामने फीके लगते। मेरी गांड, बिना छुए ही, इतनी भरी-भरी और उभरी हुई थी कि हर कदम पर लचकती थी, जैसे कोई न्योता दे रही हो।

जब मैं दीदी के ससुराल पहुंची, तो पहली रात जीजा ने दीदी को इतना प्यार किया कि उनकी चीखें और सिसकियाँ कमरे की दीवारों से टकराकर मेरे कानों तक पहुंचीं। मैं अपने कमरे में अकेली लेटी थी, और मेरे जिस्म में एक अजीब सी हलचल होने लगी। मन में वासना की लहरें उठने लगीं, और मेरी चूत धीरे-धीरे गीली होने लगी। अगले दिन सुबह, जब मैं जीजा से मिली, उनकी नजरें मेरे जिस्म पर टिक गईं। उनकी आँखों में वो भूख थी, जो मेरे मन की आग को और भड़का रही थी। मैं जानती थी, वो मुझे चाहते हैं, और सच कहूँ तो मेरे दिल में भी वही आग सुलग रही थी।

पर घर में मेहमानों की भीड़ थी। हर तरफ रिश्तेदार, हँसी-मजाक, और शादी का उल्लास। मौका मिलना मुश्किल था। फिर भी, जीजा की नजरें मेरे पीछे-पीछे थीं। एक दिन, जब मैं किचन में अकेली थी, जीजा चुपके से आए। उनके हाथ मेरे बूब्स पर पड़े, और उन्होंने उन्हें ऐसे दबाया, जैसे कोई भूखा शिकारी अपना शिकार पकड़ ले। मेरी साँसें तेज हो गईं, चूत में गीलापन बढ़ गया, और मैंने महसूस किया कि मेरा पानी टपकने लगा है। मैंने उनकी तरफ देखा, मेरी आँखों में भी वही वासना थी, लेकिन मौका अधूरा था। मैंने खुद को संभाला और वहाँ से निकल गई, पर मन में आग और तेज हो चुकी थी।

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मौका मिला, और आग भड़की

दो दिन बाद, आखिरकार वो रात आई, जिसका मुझे इंतजार था। गर्मी का मौसम था, और मैंने फैसला किया कि आज छत पर सोऊँगी। जीजा की बुआ भी छत पर सोने वाली थीं, लेकिन मैंने जीजा को इशारा कर दिया, “आज रात मैं छत पर हूँ, अगर दिल करे तो आ जाना।” रात के करीब एक बजे, जब चाँद की रोशनी छत पर बिखरी हुई थी, जीजा चुपके से आए। मैंने उन्हें देखा, और मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ गया। बुआ पास में सो रही थीं, लेकिन मेरी वासना अब हद पार कर चुकी थी। मैं धीरे से उठी और छत के किनारे बने छोटे से कमरे की तरफ बढ़ गई। जीजा ने फुसफुसाकर कहा, “वहाँ चलो, आँचल।”

मैं दबे पाँव कमरे में घुसी। जैसे ही मैं अंदर पहुंची, जीजा ने दरवाजा बंद किया और मुझ पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े। उनकी साँसें गर्म थीं, और उनकी आँखों में वो जुनून था, जो मुझे पिघला रहा था। उन्होंने मेरी ब्रा को एक झटके में फाड़ दिया। मेरे भारी बूब्स आजाद हो गए, और जीजा ने उन्हें दोनों हाथों से मसलना शुरू कर दिया। उनकी जीभ मेरे निप्पल्स पर फिरने लगी, और वो उन्हें ऐसे चूस रहे थे, जैसे कोई बच्चा अपनी प्यास बुझा रहा हो। उनका एक हाथ मेरी चूत पर गया, और जैसे ही उन्होंने मेरी गीली चूत को रगड़ा, मेरी सिसकियाँ निकलने लगीं।

मेरी चूत पावरोटी की तरह फुल चुकी थी

मेरी चूत अब इतनी गीली थी कि उसका पानी मेरी जाँघों तक बह रहा था। मैंने जीजा के लंड को अपने हाथ में लिया। ओह, वो कितना मोटा और लंबा था! मेरी हथेली में उसकी गर्मी और ताकत महसूस हो रही थी। मैंने उसे ऊपर-नीचे करना शुरू किया, और जीजा की सिसकियाँ मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूँजने लगीं। मैं डर भी रही थी कि इतना बड़ा लंड मेरी कुंवारी चूत में कैसे समाएगा, लेकिन मेरी वासना अब डर से कहीं बड़ी थी।

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जीजा ने मुझे पास ही पड़े लकड़ी के तख्त पर लिटा दिया। मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उन्होंने मेरी टाँगें फैलाईं और अपने मोटे लंड का सुपारा मेरी चूत पर रखा। उसका गर्म स्पर्श मेरे जिस्म में आग लगा रहा था। जीजा ने धीरे से लंड को मेरी चूत में सरकाना शुरू किया। मेरी चूत का चिपचिपा पानी उसे आसानी से अंदर ले जा रहा था। फिर, अचानक, जीजा ने एक जोरदार धक्का मारा। मेरे मुँह से चीख निकलने वाली थी, लेकिन जीजा ने पहले से ही मेरा मुँह अपने हाथ से दबा रखा था। मेरी आवाज मेरे गले में ही दबकर रह गई।

मेरी चूत में उनका पूरा लंड समा चुका था

दर्द इतना तेज था कि मेरी आँखों में आँसू आ गए। मेरी कुंवारी चूत की सील टूट चुकी थी, और जीजा का मोटा लंड मेरे अंदर गहरे तक धँस गया था। मैं तड़प रही थी, लेकिन जीजा अनुभवी थे। उन्होंने अपने लंड को थोड़ी देर हिलाया नहीं, बस मेरे बूब्स को चूसते रहे, मेरे निप्पल्स को अपनी जीभ से सहलाते रहे। धीरे-धीरे मेरा दर्द कम होने लगा, और मेरे जिस्म में फिर से वासना की लहरें उठने लगीं। जीजा की जीभ जब मेरे बूब्स पर फिसलती, तो मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ जाता।

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अब मैं खुद ही नीचे से अपनी कमर हिलाने लगी। जीजा समझ गए कि अब मैं तैयार हूँ। उन्होंने धक्के शुरू किए—पहले धीमे, फिर तेज, और फिर इतने जोरदार कि पूरा कमरा हमारी साँसों और जिस्मों की टक्कर की आवाज से गूँजने लगा। मेरी चूत अब दर्द नहीं, बल्कि मजे की सैर कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि जीजा का लंड मेरी चूत को नहीं, मेरी आत्मा को छू रहा हो। मैं भी नीचे से अपनी गांड उछाल-उछाल कर उनका साथ दे रही थी। हर धक्के में उनका लंड मेरी बच्चेदानी को ठोकर मार रहा था, और मैं उस दर्द और मजे के मिश्रण में खो गई थी।

पहली बार का वो मज़ा

कुछ देर बाद, मेरे जिस्म में एक अजीब सी सिहरन होने लगी। मेरी साँसें और तेज हो गईं, और मेरे पैर काँपने लगे। ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा वजूद किसी और दुनिया में चला गया हो। मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और उसी पल जीजा का गर्म-गर्म वीर्य मेरी चूत में बरसने लगा। वो गर्माहट, वो एहसास—मैं बता नहीं सकती कि उसने मेरे जिस्म को कितना सुकून और मज़ा दिया। जीजा मेरे ऊपर लेट गए, उनकी साँसें मेरे गालों को छू रही थीं, और मैं उनकी बाहों में खोई हुई थी।

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उस रात के बाद, मेरी चूत सचमुच पावरोटी की तरह फूल गई थी—न सिर्फ जीजा के मोटे लंड की वजह से, बल्कि उस जुनून और प्यार की वजह से, जो हमने उस कमरे में बाँटा था।