माँ की चुदाई

सेक्सी धोबन और उसका बेटा-14

Sexy Dhoban Aur Uska Beta-14

मैने अब अपना ध्यान निपल पे कर दिया और निपल को मुँह में भर कर अपनी जीभ उसके चारो तरफ गोल गोल घूमते हुए चूसने लगा. मैं अपनी जीभ को निपल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था. निपल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए निपल को चूसने पर माँ एकदम मस्त हो जा रही थी और उसके मुँह से निकलने वाली सिसकिया इसकी गवाही दे रही थी. मैं उसकी चीखे और सिसकिया सुन कर पहले पहल तो डर गया था पर माँ के द्वारा ये समझाए जाने पर की ऐसी चीखे और सिसकिया इस बात को बतला रही है कि उसे मज़ा आ रहा है तो फिर दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था.

जिस चूची को मैं चूस रहा था वो अब पूरी तरह से मेरे लार और थूक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी फिर भी मैं उसे चूसे जा रहा था, तभी माँ ने मेरे सिर को अपनी उस चूची से हटा के अपनी दूसरी चूची की तरफ करते हुए कहा ” खाली इसी चूची को चूस्ता रहेगा, दूसरी को भी चूस, उसमे भी वही स्वाद है”, फिर अपनी दूसरी चुची को मेरे मुँह में घुसाते हुए बोली “इसको भी चूस चूस के लाल कर दे मेरे लाल, दूध निकल दे मेरे सैय्या, एकदम आम के जैसे चूस और सारा रस निकल दे अपनी माँ की चुचियों का, किसी काम की ऩही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आएँगी” मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चुची दबाते हुए दूसरी को पूरे मनोयोग से चूसने लगा. माँ सिसकिया ले रही थी और चुसवा रही थी .

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कभी कभी अपना हाथ मेरे कमर के पास ले जा के मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड़ रही थी कभी अपने हाथो से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी. इस तरह काफ़ी देर तक मैं उसकी चुचियों को चूसता रहा, फिर माँ ने खुद अपने हाथो से मेरा सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी. माँ की बायीं चुची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी जबकि दाहिनी चुची पर लगा थूक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचिया लाल हो चुकी थी, और निपलो का रंग हल्का काला से पूरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चूसने पर खून का दौरा भर जाने के कारण हुआ था).
माँ ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खीच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुंबन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली “खाली दूध ही पियेगा या मालपुआ भी खायेगा , देख तेरा मालपुआ तेरा इंतेज़ार कर रहा है राजा”

मैने भी माँ के होंठो का चुंबन लिया और फिर उसके भरे भरे गालो को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूमा और फिर धीरे से बोला “ओह माँ तुम सच में बहुत सुंदर हो”

इस पर माँ ने पुछा – “क्यों मज़ा आया ना चूसने में”
“हा माँ , गजब का मज़ा आया, मुझे आज तक ऐसा मज़ा कभी ऩही आया था”.

तब माँ ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा ” नीचे और भी मज़ा आएगा, यहाँ तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है, आजा बेटे आज तुझे असली मालपुआ खिलती हूँ ”

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मैं धीरे से खिसक कर माँ के पैरो पास आ गया. माँ ने अपने पैरो को घुटने के पास से मोड कर फैला दिया और बोली “यहाँ , बीच में, दोनो पैर के बीच में आ के बैठ तब ठीक से देख पाएगा अपनी माँ का खजाना”

मैं उठ कर माँ के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका, सामने मेरे वो चीज़ थी जिसको देखने के लिए मैं मरा जा रहा था. माँ ने अपनी दोनो जांघें फैला दी और अपने हाथो को अपने बुर के उपर रख कर बोली “ले देख ले अपना मालपुआ, अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा”

मेरी खुशी का तो ठिकाना ऩही था. सामने माँ की खुली जाँघो के बीच झांटों का एक तिकोना सा बना हुआ था. इस तिकोने झांटों के जंगल के बीच में से माँ की फूली हुए गुलाबी बुर का चीड़ झाँक रहा था जैसे बादलों के झुरमुट में से चाँद झांकता है. मैने अपने हाथो को माँ के चिकने जाँघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया. उसके बुर के बाल बहुत बड़े बड़े ऩही थे छोटे छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकीर से चीरी हुई थी. मैने अपने दाहिने हाथ को जाँघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा “माँ मैं इसे छू लूँ ?…….”
“छू ले, तेरे छुने के लिए ही तो खोल के बैठी हूँ ”

मैने अपने हाथो को माँ की चूत को उपर रख दिया. झांट के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे और ऐसा लग रहा थे, हालाँकि आम तौर पर झांट के बाल मोटे होते है और उसके झांट के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे. हल्के हल्के मैं उन बालो पर हाथ फिरते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रहा था. अब चूत की दरार और उसकी मोटी मोटी फांके स्पष्ट रूप से दिख रही थी. माँ का बुर एक फूला हुआ और गद्देदार पावरोटी की तरह लगता था. चूत की मोटी मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी. मेरे से रहा ऩही गया और मैं बोल पडा “ओह मा ये तो सचमुच में मालपुए के जैसा फूला हुआ है”.
“हाँ बेटा यही तो तेरा असली मालपुआ है. आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे यही खाना”
“हाँ माँ . मैं तो हमेशा यही मालपुआ खाउंगा , ओह माँ देखो ना इस से तो रस भी निकल रहा है” (चूत से रिस्ते हुए पानी को देख कर मैने कहा).

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“बेटा यही तो असली माल है हम औरतो का, ये रस मैं तुझे अपनी बुर की थाली में सज़ा कर खिलाउंगी , दोनो फाँक को खोल के देख कैसा दिखता है, हाथ से दोनो फाँक पकड़ कर खीच कर बुर को चीर कर देख”

कहानी जारी है……