सेक्सी धोबन और उसका बेटा-3
इधर मा मेरी तरफ देखती हुई अपने हाथो को उपर उठा उठा के अपने कांख की सफाई करती कभी अपने हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के छाती को साफ करती कभी जाँघों के बीच हाथ घुसा के खूब तेज़ी से हाथ चलने लगती, दूर से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मूठ मार रही है और शायद मारती भी होगी. कभी कभी वो भी खड़े हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटिकोट जो की उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने के कारण मेरी हालत और ज्यादा खराब कर देता था. पेटिकोट चिपकने के कारण उसकी बड़ी बड़ी चुचिया नुमाया हो जाती थी.
कपडे के उपर से उसके बड़े बड़े मोटे मोटे निपल तक दिखने लगते थे. पेटिकोट उसके चूतडों से चिपक कर उसके गांड के दरार में फंसा हुआ होता था और उसके बड़े बड़े चूतर साफ साफ दिखाई देते रहते थे. वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खडी हो के डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नज़ारा करवाती जाती. मैं तो वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मार लेता था. हालांकि मूठ मारना मेरी आदत नही थी . घर पर मैं ये काम कभी नही करता था पर जब से मा के स्वाभाव में चेंज आया था नदी पर मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मज़बूर हो जाता था. अब तो घर पर मैं जब भी स्त्री करने बैठता तो मुझे बोलती जाती “देख ध्यान से स्त्री करियो . पिछली बार शयामा बोल रही थी की उसके ब्लाउज ठीक से स्त्री नही थे”
मैं भी बोल पड़ता “ठीक है. कर दूँगा, इतना छोटा सा ब्लाउज तो पहनती है, ढंग से स्त्री भी नही हो पाती. , पता नही कैसे काम चलती है इतने छोटे से ब्लाउज में” तो माँ बोलती “अरे उसकी चूचियां ज़यादा बड़ी थोड़े ही है जो वो बड़ा ब्लाउज पहनेगी, हाँ उसकी सास के ब्लाउज बहुत बड़े बड़े है बुधिया की चूची पहाड़ जैसी है. ” कह कर माँ हंसने लगती. फिर मेरे से बोलती”तू सबके ब्लाउज की लंबाई चौड़ाई देखता रहता है क्या या फिर स्त्री करता है”.मैं क्या बोलता चुपचाप सिर झुका कर स्त्री करते हुए धीरे से बोलता “अर्रे देखता कौन है, नज़र चली जाती है, बस”. स्त्री करते करते मेरा पूरा बदन पसीने से नहा जाता था. मैं केवल लूँगी पहने स्त्री कर रहा होता था. माँ मुझे पसीने से नहाए हुए देख कर बोलती “छोड़ , अब तू कुछ आराम कर ले. तब तक मैं स्त्री करती हू,” मा ये काम करने लगती. थोरी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी साडी खोल कर एक ओर फेक देती और बोलती “बरी गर्मी है रे, पता नही तू कैसे कर लेता है इतने कपरो की स्त्री मेरे से तो ये गर्मी बर्दस्त नही होती” इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभि और मोटे चुचो को देखता हुआ बोलता, “ठंडा कर दू तुझे”?
“कैसे करेगा ठंडा”? ”
डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झल देता हू”, फैन चलाने पर तो स्त्री ही ठंडी पर जाएगी”.
रहने दे तेरे डंडे वाले पँखे से भी कुछ नही होने जाने का, छोटा सा तो पंखा है तेरा”. कह कर अपने हाथ उपर उठा कर माथे पर छलक आए पसीने को पोछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पूरी भीग गई है. और उसके गर्देन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउज के अंदर उसके दोनो चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लाउज को भींगा रहा होता. घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी इस कारण से उसके पतले ब्लाउज को पसीना पूरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचिया उसके ब्लाउज के उपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो हल्के रंगा का ब्लाउज पहनी होती तो उसके मोटे मोटे भूरे रंग के निपल नज़र आने लगते.
ये देख कर मेरा लंड खडा होने लगता था. कभी कभी वो स्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटिकोट को उठा के पसीना पोछने के लिए अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इंतेज़ार में बैठा रहता था, क्योंकि इस वक़्त उसकी आँखे तो पेटिकोट से ढक जाती थी पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसका टाँगे पूरा जांघ तक नंगी हो जाती थी और मैं बिना अपनी नज़रो को चुराए उसके गोरी चिटी मखमली जाँघों को तो जी भर के देखता था. माँ अपने चेहरे का पसीना अपनी आँखे बंद कर के पूरे आराम से पोछती थी और मुझे उसके मोटे कंडली के खम्भे जैसे जांघों को पूरा नज़ारा दिखाती थी. रात में जब खाना खाने का टाइम आता तो मैं नहा धो कर किचन में आ जाता, खाना खाने के लिए. मा भी वही बैठा के मुझे गरम गरम रोटिया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो पेटिकोट और ब्लाउज में ही होती थी . क्यों की किचन में गर्मी होती थी और उसने एक छोटा सा पल्लू अपने कंधो पर डाल रखा होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोछती रहती और खाना खिलती जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.
मैने मज़ाक करते हुए बोलता ” सच में मा तुम तो गरम स्त्री (वुमन) हो”. वो पहले तो कुछ साँझ नही पाती फिर जब उसकी समझ में आता की मैं आइरन स्त्री ना कह के उसे स्त्री कह रहा हू तो वो हसने लगती और कहती “हा मैं गरम इस्त्री हू”, और अपना चेहरा आगे करके बोलती “देख कितना पसीना आ रहा है, मेरी गर्मी दूर कर दे” ”
मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठंडी चीज़ खाया कर”
“अच्छा , कौन से ठंडी चीज़ मैं खाऊं कि मेरी गर्मी दूर हो जाएगी”
“केले और बैगन की सब्जिया खाया कर”
इस पर मा का चेहरा लाल हो जाता था और वो सिर झुका लेती और
धीरे से बोलती ” अर्रे केले और बैगान की सब्जी तो मुझे भी अच्छी लगती है पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सब्जिया लाने से रहा, ना तो उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगन”.
“तू फिकर मत कर . मैं ला दूँगा तेरे लिए”
“अच्छा बेटा है तू, मा का कितना ध्यान रखता है”
मैं खाना ख़तम करते हुए बोलता, “चल अब खाना तो हो गया ख़तम, तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले”, “अर्रे नही अभी तो तेरा बापू देसी चढ़ा के आता होगा, उसको खिला दूँगी तब खूँगी, तब तक नहा लेती हू” तू जा और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है”. मुझे भी ध्यान आ गया की हाँ कल तो नदी पर भी जाना है मैं छत पर चला गया. गर्मियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे.
कहानी जारी है……