माँ की चुदाई

सेक्सी धोबन और उसका बेटा-7

Sexy Dhoban Aur Uska Beta-7

मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था मैं भला क्या जवाब देता कुछ समझ में ही नही आ रहा था की क्या करू क्या ना करू, उपर से मज़ा इतना आ रहा था की जान निकली जा रही थी. तभी वो हल्का सा आगे की ओर सरकी और झुकी, आगे झुकते ही उनका आँचल उनके ब्लाउज पर से सरक गया. पर उन्होने कोई प्रयास ऩही किया उसको ठीक करने का. अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी. मेरी आँखो के सामने उनकी नारियल के जैसी सख़्त चुचिया जिनको सपने में देख कर मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था और जिनको दूर से देख कर ही तड़पता रहता था नुमाया थी.

भले ही चूचियां अभी भी ब्लाउज में ही क़ैद थी परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके उपर से ही लगाया जा सकता था. ब्लाउज के उपरी भाग से उनकी चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा गोरा हिस्सा नज़र आ रहा था. हलकी चुचियों को बहुत बड़ा तो ऩही कहा जा सकता पर, उतनी बड़ी तो थी ही जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन का हो सकता है . मेरा मतलब है की इतनी बड़ी जितनी की आप के हाथो में ना आए पर इतनी बड़ी भी ऩही की आप को दो दो हाथो से पकड़ना पड़े और फिर भी आपके हाथ ना आए. एकदम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी और सामने की ओर निकली हुई थी. मेरी आँखे तो हटाए ऩही हट रही थी. तभी मा ने अपने हाथो को मेरे लंड पर थोरा ज़ोर से दबाते हुए पुछा “बोल ना दबाउ क्या और”

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” मा छोडो ना”

उन्होने ने ज़ोर से मेरे लंड को मुट्ठी में भर लिया,

” मा छोडो ना बहुत गुदगुदी होती है ”

“तो होने दे ना, तू खाली बोल दबाऊं या ऩही”

” दबाओ, मा मस्लो”

“अब आया ना रास्ते पर”

” मा तुम्हारे हाथो में तो जादू है ”

“जादू हाथो में है या फिर इसमे है (अपने ब्लाउज की तरफ इशारा कर के पुछा)

” मा तुम तो बस”

“शरमाता क्यों हाई, बोल ना क्या अच्छा लग रहा है ”

“माँ मैं क्या बोलू”

“क्यों क्या अच्छा लग रहा है ?”, “अर्रे अब बोल भी दे शरमाता क्यों है ”

“माँ अच्छा लग रहा है ”

“तो फिर शर्मा क्यों रहा था बोलने में, फिर मा ने बड़े आराम से मेरे पूरे लंड को मुट्ठी के अंदर क़ैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलना शुरू कर दिया.

“तू तो पूरा जवान हो गया है रे”

“हाँ मा”

” पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू तो, अब तो बर्दाश्त भी ऩही होता होगा, कैसे करता है”

“क्या मा”

“वही, बर्दाश्त, और क्या, तुझे तो अब छेद चाहिए, समझा?

छेद मतलब “? मा, ऩही समझा”

“क्या उल्लू लड़का है रे तू, छेद मतलब ऩही सकझता”

मैने नाटक करते हुए कहा “ऩही मा ऩही समझता”.

इस पर मा हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और बोली “चल समझ जाएगा, फिर उसने अपने हाथो को तेज़ी से मेरे लंड पर चलाने लगी. मारे गुदगुदी और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. समझ में ऩही आ रहा था क्या करू, दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढ़ा कर मा के दोनो चुचियों को कस के पकड़ लूँ और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाऊं . लेकिन डर रहा था की कही बुरा ना मान जाए. इसी चक्कर में मैने कराहते हुए सहारा लेने के लिए सामने बैठी मा के कंधे पर अपने दोनो हाथ रख दिए. वो बोली तो कुछ ऩही पर अपनी नज़रे उपर कर के मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली “क्यों मज़ा आ रहा है की ऩही””

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हाँ , मा मज़े की तो बस पूछो मत बहुत मज़ा आ रहा है” मैं बोला. इस पर मा ने अपने हाथ और तेज़ी से चलना शुरू कर दिया और बोली “साले हरामी कही का, मैं जब नहाती हू तब घूर घूर के मुझे देखता रहता है, मैं जब सो रही थी तो मेरे चुचे दबा रहा था और, और अभी मज़े से मूठ मरवा रहा है, कमीने तेरे को शरम ऩही
आती” मेरा तो होश ही उड़ गया ये मा क्या बोल रही थी. पर मैने देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाए जा रहा था. तभी मा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर हंसने लगी और हँसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड़ लगा दिया. मैने कभी भी इस से पहले मा को ना तो ऐसे बोलते देखा था ना ही इस तरह से व्यवहार करते हुए नही देखा था इसलिए मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था. पर उनके हसते हुए थप्पड़ लगाने पर तो मुझे और भी ज़यादा आशचर्य हुआ की आख़िर ये चाहती क्या है. और मैने बोला की “माफ़ कर दो मा अगर कोई ग़लती हो गई हो तो” . इस पर मा ने मेरे गालो को हल्के सहलाते हुए कहा की “ग़लती तो तू कर बैठा है बेटे अब, केवल ग़लती की सज़ा मिलेगी तुझे,”

मैने कहा “क्या ग़लती हो गई मेरे से मा”

सबसे बरी ग़लती तो ये है की तू खाली घूर घूर के देखता है बस, करता धरता तो कुछ है ऩही, खाली घूर घूर के कितने दिन देखता रहेगा” .

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“क्या करू मा, मेरी तो कुचछ समझ में ऩही आ रहा”

“साले बेवकूफ़ की औलाद, अर्रे करने के लिए इतना कुछ है और तुझे समझ में ही ऩही आ रहा है”,

“क्या मा बताओ ना, ”

“देख अभी जैसे की तेरा मन कर रहा है की तू मेरे अनारो से खेले,
उन्हे दबाए, मगर तू ऩही वो काम ना कर के केवल मुझे घूरे जा रहा है, बोल तेरा मन कर रहा है की ऩही, बोल ना”

“हाँ , मा मन तो मेरे बहुत कर रहा है,

“तो फिर दबा ना, मैं जैसे तेरे औज़ार से खेल रही हू वैसे ही तू मेरे समान से खेल, दबा बेटा दबा, बस फिर क्या था मेरी तो बांछे खिल गई मैने दोनो हथेलियो में दोनो चुचो को थाम लिया और हल्के हल्के उन्हे दबाने लगा., मा बोली “शाबाश , ऐसे ही दबाने का. जितना दबाने का मन उतना दबा ले, कर ले मज़े.

कहानी जारी है……