चुदाई की कहानियाँ

हिंदी सेक्स स्टोरी: अस्पताल से शुरू हुई प्यार और चुदाई की आग

मैं अपनी बीमार बुआ को शहर के एक नामी अस्पताल में भर्ती कराने गया था। वहाँ दिन-रात उनकी सेवा करते हुए मेरी मुलाकात एक लड़के से हुई, जिसकी माँ भी उसी वार्ड में भर्ती थी। अस्पताल की उदास और ठंडी हवाओं के बीच हमारी दोस्ती पनपने लगी। वह उसी शहर का था, उसकी बातों में एक अजीब-सा जादू था जो मेरे तनाव को हल्का कर देता था। फिर एक दिन, उसी वार्ड में एक ऐसी लड़की आई कि मेरे होश उड़ गए। उसकी खूबसूरती किसी सपने से कम न थी—लंबे, घने काले बाल हवा में लहराते हुए, गहरी कजरारी आँखें जो सीधे दिल को भेदती थीं, और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान जो शहद से भी मीठी लगती थी। उसका चेहरा ऐसा कि जैसे चाँदनी रात में खिले फूल की तरह चमक रहा हो। मैं उसे देखता ही रह गया, और जब उसकी नजर मुझसे टकराई, तो उसकी मुस्कुराहट ने मेरे सीने में एक जलती हुई लौ जगा दी। उसने मुझे ऐसे देखा जैसे हम बरसों से एक-दूसरे की चाहत में तड़प रहे हों। हिम्मत करके मैंने उसकी तरफ आँख मारी, और जवाब में उसकी शरारती हँसी ने मेरे दिल की धड़कनों को और तेज कर दिया।

बाद में पता चला कि वह मेरे नए दोस्त की बहन थी। अब वह हर रोज अस्पताल आने लगी, और हर बार उसकी मौजूदगी मेरे लिए एक नशीली शराब की तरह हो गई। उसकी खुशबू, उसकी चाल, और उसकी आँखों की चमक—सब कुछ मुझे अपनी ओर खींच रहा था। एक दिन मैंने ठान लिया कि उससे बात करूँगा। थोड़ा हकलाते हुए, दिल की धड़कनों को काबू में रखते हुए मैंने उसका नंबर माँगा। उसने हँसते हुए मुझे नंबर दे दिया, और उस रात से हमारी बातें शुरू हुईं। उसकी आवाज़ में एक मादक कशिश थी—हर शब्द मेरे कानों में शहद की तरह घुलता था। रातें छोटी पड़ने लगीं, और उसकी बातों ने मुझे इस कदर जकड़ लिया कि मैं हर पल उसे और करीब महसूस करने लगा। बातों-बातों में उसने अपने घर का पता बता दिया, और मेरे दिल में एक शैतानी ख्याल कौंध गया। एक दिन मौका देखकर मैं उसके घर पहुँच गया। किस्मत से वह अकेली थी। दरवाजा खुलते ही उसकी आँखों में वही शरारत भरी चमक थी, और उसकी साँसों की गर्मी ने हवा को भारी कर दिया। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया, और उसके रसीले, गुलाबी होंठों को चूमना शुरू कर दिया। हमारी जीभें एक-दूसरे से टकराईं, जैसे दो तूफान आपस में भिड़ गए हों। उसका गर्म, मुलायम बदन मेरे सीने से चिपक गया, और मेरे हाथ उसके कर्व्स पर फिसलने लगे—उसकी कमर, उसके कूल्हे, सब कुछ किसी मूर्तिकार की कृति की तरह परफेक्ट था।

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वह एक पल को मुझसे अलग होना चाहती थी, शायद शर्मिंदगी में, लेकिन उसकी साँसें और उसकी आँखों की प्यास कुछ और कह रही थीं। मैंने उसे और जोर से जकड़ लिया, और धीरे-धीरे हमारे कपड़े फर्श पर बिखर गए। चाँदनी की रोशनी में उसका नंगा जिस्म दमक रहा था—उसकी चूचियाँ सख्त, गोल और रसीली, जैसे दो पके आम मुझे ललकार रहे हों। उसकी नाजुक कमर से नीचे की तरफ बढ़ते कूल्हे किसी शराब के प्याले की तरह नशीले थे। मैंने उसके होंठों को चूसा, फिर उसकी चूचियों को मुँह में लिया—उनके नर्म उभारों को चूमता, चाटता, और हल्के से काटता। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं—“आह्ह… ऊऊऊ… और जोर से…”। मेरी उँगलियाँ उसकी चूत तक पहुँचीं, जो पहले से ही गीली थी—उसका गर्म रस मेरी उँगलियों पर चिपक गया, और उसकी महक ने मुझे और पागल कर दिया। उसने मेरे लंड को हाथ में लिया—8 इंच का मोटा, तना हुआ लंड उसके हाथों में फुफकार उठा। मैंने उसे अपने लंड को मुँह में लेने को कहा, और वह किसी जादूगरनी की तरह उसे चूसने लगी। उसकी जीभ मेरे लंड के चारों ओर लपेट रही थी, और बीच-बीच में वह फुसफुसाती, “आई विल किल यू… फक मी हार्ड… और जोर से!” उसकी आवाज़ में वह जुनून था जो मेरे खून को उबाल रहा था।

मैंने सोचा, आज इसे ऐसा मजा दूँगा कि वह मुझे हर साँस में याद करे। मेरा लंड अब पूरी तरह तैयार था—मोटा, लंबा, और गर्मागर्म। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया, उसकी टाँगें चौड़ी कीं, और अपना लंड उसकी टाइट चूत में डाल दिया। पहला धक्का मारते ही वह चीख पड़ी—“ऊऊऊ… आआआह… ईईई!” उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड पूरा अंदर जाने में वक्त लगा। चार-पाँच धक्कों में उसकी चूत से खून की बूँदें टपकने लगीं—शायद उसकी पहली बार थी। लेकिन उसकी सिसकारियाँ और तेज होती गईं—“और जोर से… फाड़ दो मुझे!” मैंने रफ्तार बढ़ाई, और 15 मिनट तक उसे चोदता रहा—हर धक्के के साथ उसका बदन थरथराता था, उसकी चूचियाँ हिलती थीं, और उसकी आँखें मस्ती में डूब रही थीं। आखिरकार मैं झड़ गया, और वह फिर मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी, जैसे उसे अभी और भूख हो। उसकी चूत का गीलापन और उसकी हरकतें बता रही थीं कि उसकी आग अभी बुझी नहीं थी।

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मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया—इस बार और सख्त, और गर्म। मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी चूत में लंड पेल दिया। उसकी गोल, नर्म गांड मेरे सामने थी, और मैंने उसे थप्पड़ मारते हुए धक्के शुरू किए। कभी धीरे-धीरे, कभी तेज, कभी उसकी चूचियों को मसलते हुए, तो कभी उसके बाल खींचते हुए—20-25 मिनट तक मैंने उसे चोदा। उसकी चीखें और मेरी साँसें पूरे कमरे में गूँज रही थीं—“हाँ… और तेज… मार डालो मुझे!” जब मैं दोबारा झड़ा, तो वह भी थरथराते हुए झड़ गई—उसके चेहरे पर संतुष्टि की लाली छा गई थी। उसने मेरे सीने पर सिर रखा और हाँफते हुए कहा, “तुमने मुझे जला डाला… ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला।” उसकी चूत का स्वाद, उसकी गर्मी, और उसकी सिसकारियाँ—सब कुछ मेरे जहन में नशे की तरह बसा हुआ है। हम आज भी संपर्क में हैं, और जब भी मौका मिलता है, यह आग फिर से भड़क उठती है—हर बार पहले से ज्यादा गर्म, ज्यादा जंगली, और ज्यादा नशीली।