राज और निशा की गर्म कामुक कहानी
मैं 35 का हूँ, और मेरी जिंदगी का एक ही मकसद रहा है—बॉडी फिट रहे, और सामने वाली खुश रहे। चाहे आँखें खुली हों या बंद, 18 साल की उम्र से लेकर आज तक, मेरी नजरें हमेशा औरतों की खूबसूरती, खासकर उनके मम्मों के साइज और वजन को नापने में मशगूल रहती हैं। पुराने शास्त्रों में कहा गया है, “संभोग से पहले रति-क्रीड़ा अनिवार्य है। बिना रति-क्रीड़ा के मनुष्य और पशु के संभोग में भला क्या अंतर?”
मेरी बड़ी साली की बेटी, निशा, बैंगलोर में ही रहती है। उसकी उम्र अब 24 साल, शादीशुदा, दो बच्चों की माँ, और पति एक बिजनेसमैन। मैं अक्सर उसके घर आता-जाता रहता हूँ। ये बात तीन साल पहले की है, गर्मियों के दिन थे। तब निशा 21 की थी। उसका शरीर भरा-भरा, गदराया हुआ, लंबाई 5 फीट 5 इंच। मम्मे बड़े, गोल-गोल, उभरे हुए, और नितंब इतने कामुक कि देखते ही मन डोल जाए। कुल मिलाकर, वो पंजाबी जाटनी जैसी लगती थी—भरपूर जवानी का आलम। मेरे सामने ही वो बचपन से जवानी की दहलीज पर आई थी। वो स्वभाव से कामुक नहीं, लेकिन मिलनसार और खुशमिजाज जरूर थी। हम दोनों पहले से ही काफी फ्रैंक थे।
निशा तीन कमरों के फ्लैट में रहती थी। उस दिन सुबह 11 बजे मैंने बेल बजाई। निशा ने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही चहक उठी, “अहा, राज अंकल, आप?” उसकी खुशी साफ झलक रही थी। “खुशामदीद!” उसने मेरा हाथ पकड़कर सोफे पर बिठाया और पानी लाने चली गई। “राज अंकल, सब कैसा चल रहा है? आज इधर का रुख कैसे किया? लगता है, 6-8 महीने बाद हम मिल रहे हैं, है ना?”
“हाँ, निशा। तुम्हें देखे एक अरसा हो गया था। आज अचानक तुम्हारी याद आई, और लो, अब तुम्हारे सामने हूँ।” वो मेरे सामने सलवार-कमीज में बैठी थी। मेरी नजरें पहले उसके चेहरे पर टिकीं, फिर धीरे-धीरे उसके मम्मों पर सरक गईं, और फिर नीचे उसके पैरों तक चली गईं। उसकी आँखें मेरी नजरों को पढ़ रही थीं। “क्या देख रहे हो, इतनी गहरी नजर से?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, निशा। शादी से पहले भी तुम खूबसूरत थीं, लेकिन अब, एक बेटे की माँ बनकर, तुम और भी ज्यादा हसीन हो गई हो।”
“अंकल, मैं आपकी रग-रग से वाकिफ हूँ,” उसने ठहाका लगाते हुए कहा। “आप लड़कियों को बहलाने-फुसलाने में माहिर हैं। आपकी निगाहें हमेशा उनकी गोल… गोल… चीजों पर टिकी रहती हैं, और जीभ होंठों पर फिरती रहती है। कोई लड़की आपके साथ आधा घंटा भी चैन से नहीं बैठ सकती।”
“मैं सीरियस हूँ, निशा,” मैंने कहा। वो हँसते हुए किचन की ओर चली गई। उसका बेटा, जो तब एक साल का था, बेडरूम में सो रहा था। कुछ देर बाद वो चाय लेकर आई, टेबल पर रखी, और एक कप मुझे थमाकर सामने बैठ गई। “अंकल, अगर आपने जो कहा वो सच है, तो थैंक यू फॉर द कॉम्प्लिमेंट्स।”
“निशा, मैं अपने अल्फाज नहीं बदलता। जो सच है, वो कह दिया।”
वो अब अपने पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक सामने लगे शीशे में निहार रही थी। उसके चेहरे पर लाली छा गई, और आँखों में चमक आ गई। चाय पीते वक्त उसने कहा, “राज अंकल, जबसे मैंने होश संभाला, आपको योगाभ्यास में ही डूबा देखा है। सुबह-सवेरे उठकर बस इसी में लग जाते हो। ये आपकी हिम्मत है। मुझे मालूम है, आपके भीतर आतंरिक शक्ति बहुत है। आप कुछ करने से पहले सोचते नहीं, बस कर डालते हो।”
“मस्का मत लगाओ,” मैंने हँसते हुए कहा। “हाँ, अगर तुम भी योगासन शुरू कर दो, तो तुम्हारी काया ही बदल जाएगी। तुम खुद को पहचान नहीं पाओगी।”
“अंकल, मैं इस झंझट में नहीं पड़ती,” उसने कहा। (वो मुझसे 3 इंच लंबी और 10 किलो भारी थी।) “छोड़ो इस बात को। तुम बताओ, रात को सुकून से सोती हो ना? हबी तुम्हें वक्त तो देता होगा?”
उसने उदासी भरे लहजे में कहा, “अंकल, उनके पास वक्त कहाँ? रात को देर से आते हैं, खाना खाया, और सो गए। वो कहते हैं, ‘निशा, तुम्हें बेटा दे दिया, उससे तुम्हारी बोरियत कम हो जाएगी।'”
हमारी बातें चलती रहीं, और समय बीतता गया। दोपहर का 1 बज चुका था। “अंकल, आप नहा लो। बाथरूम की चिटकनी काम नहीं कर रही, लेकिन दरवाजा बंद हो जाता है। मैं तब तक रसोई में काम करती हूँ।”
मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद किया, कपड़े उतारे, और शॉवर खोल लिया। पूरे बदन पर साबुन लगाया। रोज की तरह, मैंने अपने लिंग को 3-4 बार साबुन लगाकर मला, धोया, फिर मला। इस तरह मलते-मलते खून नसों में तेजी से दौड़ने लगा। लिंग का अगला हिस्सा लाल हो गया, और वो मोटा और लंबा होता गया। मेरा ध्यान सिर्फ उसी पर था। (मेरे लिंग का अगला हिस्सा गोरा और पीछला हिस्सा काला है, आज भी।) मैंने फिर शॉवर खोला और पूरे शरीर को पानी से साफ किया। अचानक नजर पड़ी—बाथरूम का दरवाजा हल्का-सा खुला था, और निशा खड़ी होकर ये सब देख रही थी।
“ओ बेवकूफ!” मैंने चिल्लाया।
वो खिखिलाकर हँसी और दरवाजा बंद कर दिया। मैंने शरीर पोंछकर लुंगी बाँधी और बाहर आकर सोफे पर बैठ गया। हम दोनों आमने-सामने बैठकर खाना खा रहे थे। खाना खत्म होने के बाद उसने कहा, “अंकल, मेरी बेवकूफी के लिए बहुत सॉरी।” फिर मेरे कान में फुसफुसाई, “लेकिन जबसे आपने अपने शरीर पर साबुन लगाना शुरू किया, मुझे बहुत मजा आया।”
“निशा, ये गलत है। तुम मेरी बेटी हो।”
“अच्छा, मेरे बाप, सॉरी,” उसने मेरी जाँघ पर चुटकी काटते हुए कहा। तभी उसके बेटे की नींद खुल गई, और रोने की आवाज आई। वो बेडरूम की ओर गई, बेटे को उठाकर पेशाब कराया, मुँह साफ किया, और उसे गोद में लेकर बेडरूम में चली गई।
कुछ देर बाद उसने पुकारा, “अंकल, आप भी इधर आ जाइए हमारे पास। अकेले बैठकर बोर हो जाएँगे।”
मैं उसके पास गया और पलंग के एक कोने पर उकड़ूँ बैठ गया। फिर बेटे को उठाया, प्यार किया, चूमा। बच्चा हँसने लगा। अचानक उसने मेरे नंगे पेट पर पेशाब कर दिया, और मेरी लुंगी गीली हो गई।
“ओह, नटखट, तुमने नाना को नहला दिया। नाना तो पहले ही नहा चुके हैं,” मैंने हँसते हुए कहा।
“कोई बात नहीं, ये तो बच्चा है,” निशा बोली। “यहाँ तो बड़ी-बड़ी लड़कियों ने मेरी लुंगी गीली कर रखी है।”
“अंकल, आपका इशारा मेरी ओर है,” उसने हँसते हुए कहा। “जब मैं छोटी थी और आप हमारे यहाँ आते थे, मैं आपके साथ सोती थी। मम्मी ने कई बार बताया कि मैं सोते-सोते आपकी लुंगी में पेशाब कर देती थी। मुझे होश ही नहीं रहता था।”
उसने ये बात कह तो दी, लेकिन मेरी नजर उसकी सलवार के बीच, उस खास जगह (V) पर थी। जब उसने देखा कि मेरी नजर कहाँ टिकी है, तो उसकी नजर भी वहीँ चली गई। अपने शब्दों को याद कर वो शरम से झुक गई।
कुछ पल बाद उसने कहा, “इसके दूध पीने का समय हो गया है।” उसने मेरी गोद से बेटे को उठाकर अपनी गोद में लिटा लिया। मैं बाथरूम जाकर शरीर साफ करके दूसरी लुंगी बाँधकर वापस बेड पर बैठ गया।
(दृश्य) निशा अपनी दो उंगलियों से मम्मे को दबाए हुए उसे बेटे के मुँह में डाले थी। बच्चा दूध चूस रहा था, ‘ट्ट्टूज़’ की आवाज के साथ। उसका एक हाथ मम्मे पर फिर रहा था। कमीज़ ऊपर होने की वजह से दूसरा मम्मा आधा नंगा था, और उसका पेट पूरी तरह उघड़ा हुआ। मेरी नजर वहीं टिक गई।
“अंकल, क्या कुछ दिख रहा है, जो आप इतने गौर से देख रहे हो?” उसने पूछा।
“निशा, मेरे सामने बहुत सुंदर दृश्य है। मैं सोच रहा हूँ कि दूध पिलाते वक्त एक माँ कितनी प्रसन्न और तृप्त होती होगी।”
“क्यों नहीं,” उसने कहा। “जब दूध भर जाता है, तो दर्द होता है। जब बच्चे को दूध पिलाती हूँ, तो दिल में गुदगुदी होती है, आनंद मिलता है, और दर्द धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।”
मैंने मजाक में, उसके मम्मों की ओर इशारा करते हुए कहा, “लाओ, मैं भी तुम्हारा दर्द कम कर दूँ?”
ये सुनते ही उसके गाल लाल हो गए, और बदन में सिहरन-सी दौड़ गई। शायद बाथरूम वाला साबुन लगाने का दृश्य उसके सामने आ गया था। उसकी आँखें बंद हो गईं, और उसने दुपट्टे से मुँह ढक लिया। ये उसकी स्वीकृति थी।
अब मेरी नजरें उसके बदन को कामुकता भरी नजरों से देख रही थीं। मेरा लिंग हिलने लगा, तनकर लुंगी में तंबू बन गया। उसने दुपट्टा हटाकर उस तंबू को देखा, फिर मेरी आँखों की ओर। हमारी नजरें मिलीं, और उसने झट से अपने चेहरे को बाजुओं से छुपा लिया। उसका बदन अब फड़कने लगा था। कुछ पल वो ऐसे ही बैठी रही।
बेटा दूध पीते-पीते सो गया था। उसने मेरे सामने ही अपनी चूची बेटे के मुँह से निकाली और कमीज़ नीचे कर दी। फिर बेटे को पलंग पर लिटा दिया। अब मेरा शरीर धीरे-धीरे उसके करीब सरक रहा था। हम एक-दूसरे के बिल्कुल नजदीक थे। मैं उसकी आँखों में देख रहा था। मेरे हाथ उसके गालों पर आ गए। उसके होंठ फड़फड़ा रहे थे। काम-वासना हमारे शरीर में अंगड़ाइयाँ ले रही थी।
वो उठी, पलंग की दूसरी तरफ गई, और मुझे बाजू से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। मुस्कुराते हुए मेरे कान में बोली, “राजजी… आइए… अब आपकी बारी है दूध पीने की।”
“अच्छाजी,” मैंने कहा। वो सीधी लेट गई। मैं उसकी दाहिनी ओर लेटा, फिर उसके बदन को अपनी ओर कर लिया। बिना सोचे, उसके गालों पर चुम्बनों की बौछार कर दी। फिर उसके होंठों पर होंठ रखे और जीभ उसके मुँह में सरका दी। उसने मेरी जीभ को चूसना शुरू कर दिया। मैं उसके होंठों का रस पी रहा था, और वो मेरी जीभ से शरबत ग्रहण कर रही थी। उसका पूरा शरीर मेरे शरीर में समाने की कोशिश कर रहा था। उसकी बायीं जाँघ मेरी दाहिनी जाँघ पर आ चुकी थी। उसका बदन मस्ती से फड़क रहा था।
कुछ देर बाद उसने मेरे कान में धीरे से कहा, “राजजी, मैं आज अपना शरीर आपको समर्पित करती हूँ, अपनी इच्छा से। मेरे बदन को अपने प्यार से नहला दो।”
“माय लव, अब दो शरीर एक होंगे। इसकी अनुभूति तुम्हें हमेशा रहेगी।”
उसने अपने पूरे बदन को ढीला छोड़ दिया। खुशी में न समा पाई। शरारत से उसने मेरी छाती को दोनों हाथों से दबोच लिया। मेरी छाती गुदगुदाई, भारी-भारी सी। मुझे जोश आ गया। अब हमारे बीच शर्म और हया नाम की कोई चीज नहीं थी। वो मेरी छाती को और जोर से मसलने लगी, दाँतों से काटने लगी। मुझे दर्द होने लगा। फिर उसने मेरा हाथ अपने मम्मों पर रख दिया। मेरा ध्यान दर्द से हटकर उसके मम्मों पर चला गया।
अब मेरे लिए सब्र रखना मुश्किल हो गया था। मैंने उसकी कमीज़ ऊपर सरकाई और खींचकर उतार दी, उसके बदन को आजाद कर दिया। उसे सीधा पीठ के बल लिटाया, और अब मैं उसके ऊपर था। निशा का ऊपरी आधा बदन नंगा, और मेरा भी। माथे पर माथा, होंठों पर होंठ, छाती से वक्षस्थल, पेट से पेट, नाभि पर नाभि, योनि के ऊपर लिंग, जाँघों पर जाँघें, घुटनों पर घुटने, टाँगों से टाँगें, और पैरों से पैर—हमारे हर अंग एक-दूसरे से मिल गए, जैसे दोनों शरीर एक-दूसरे में समा गए हों। इस शारीरिक स्थिति में उसका पूरा बदन फड़कने लगा। भीतरी शरीर जाग रहा था, जिससे उसे एक तड़पन की अनुभूति हो रही थी।
मैंने पहले उसके होंठों को अपनी जीभ से गीला किया। गालों पर हल्की आवाज के चुम्बन, फिर भारी आवाज के चुम्बन बरसाए। फिर उसके रसीले होंठों का रस पीने के लिए उन्हें भींचकर चूसना शुरू किया। उसके अधर फड़कने लगे, मुँह खुल गया। उसकी जीभ मेरे मुँह में जाने को बेताब थी। ये निमंत्रण था। मैंने उसकी जीभ को चूसते-चूसते अपने मुँह के भीतर खींच लिया। फिर अपनी जीभ से उसकी जीभ को रगड़ते हुए घुमाना शुरू किया। उसकी जीभ को मैं और गहराई में घसीट रहा था। “उन्ह…उन्ह…उन्ह…” मदहोशी की आवाज कहीं दूर से आई। वो छटपटा रही थी। मेरी छाती को जोर-जोर से पीट रही थी।
मैंने उसकी जीभ को आजाद किया। वो लंबी-लंबी साँसें ले रही थी, और उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं कुछ पल रुका, फिर अपने होंठ उसके गाल पर रख दिए। मेरा एक हाथ उसके मम्मों पर था। उसके मम्मे धक-धक कर रहे थे। जब उसकी साँसें सामान्य हुईं, तो मैंने उसके बालों के नीचे दोनों हाथ डालकर उसकी गर्दन को चूमा, ठोड़ी को, कान के पीछे को। उस पर एक मस्ती सी छा गई।
“राजजी, मैं पागल हो जाऊँगी। आपकी हर हरकत में नशा है। मेरे शरीर में तूफान बरप रहा है। ऐसी शारीरिक अनुभूति मुझे आज से पहले कभी नहीं हुई… यू आर डिफरेंट।”
मैंने उसके उरोजों को अपने हाथों में ले लिया। मेरी नजरें उसके मम्मों की गोलाईयाँ नाप रही थीं। हाथ चारों ओर घूम रहे थे। मेरा मुँह मम्मों के ऊपर झुका, होंठ खुल गए, मेरी जीभ उसके चूचक पर फिसलने लगी, फिर दूसरे चूचक पर, बारी-बारी। फिर मैंने मम्मे को दोनों हाथों से कप करते हुए अपने मुँह के भीतर खींच लिया। प्राणिक क्रिया से और गहराई तक ले गया। रुककर अपनी जीभ और तालू से चूचक को चूसने लगा। चूसते-चूसते मम्मे से दूध निकलना शुरू हो गया, और मैं उसे पी रहा था। दूध धीरे-धीरे मेरे गले के नीचे उतर रहा था।
वो इस अनुभव से मचल उठी। उसका शरीर ऊपर-नीचे हो रहा था, सरूर में डूब रहा था। “ओह्ह्ह… हाय… छोड़िए… लगाइए अपने मुँह में…”
पहला मम्मा मेरे मुँह से बाहर था, तो उसने अपने हाथों से दूसरा मम्मा पकड़कर मेरे खुले मुँह में सरका दिया। जब मम्मे का ज्यादातर हिस्सा मेरे मुँह के भीतर मानसिक शक्ति से खींच लिया गया, मेरा मुँह गोल-गोल हो गया। चूचक मेरी जीभ के काफी भीतर तक पहुँच चुका था। जीभ अब कसकर चूचक को चूस रही थी।
पहले की तरह अब दूध की धारा मम्मे से बहने लगी, जिसे पीते हुए मेरे शरीर में मस्ती छा रही थी। वो फड़फड़ा रही थी, अपने नितंब जोर-जोर से ऊपर-नीचे पटक रही थी। उसकी योनि मेरे लिंग को पीड़ित कर रही थी। (वो अभी भी सलवार में थी, और मैं लुंगी में।)
“आह्ह्ह… छोड़िए भी…” जैसे ही मेरा ध्यान उसकी उछल-कूद की ओर गया, मेरा मुँह ढीला हो गया। उसने फौरन मम्मे को बाहर खींच लिया।
“बेशरम, बेहया, बदतमीज कहीं के… मेरे मम्मों को निचोड़ डालोगे क्या?” उसने ठंडी साँस भरते हुए कहा। “आगे चलो… मैं बेसब्र हो रही हूँ।”
“अच्छा जी,” मैंने कहा। अब मेरा सिर उसकी नाभि के पास था। मैंने अपनी जीभ को उसकी नाभि के भीतर घुमाना शुरू किया, फिर पेट पर चुम्बनों की बरसात कर दी। वो थरथराई, फड़फड़ाई, उत्तेजित होने लगी। काम-वासना अब उसके पूरे शरीर में चक्कर काट रही थी।
उसने हाथ नीचे करके मेरी लुंगी की गाँठ खोल दी और उसे परे कर दिया। मेरा शरीर जोश से भर रहा था। नाभि के भीतर घर्षण करते हुए मेरी जीभ मजा ले रही थी, और वो काम के आवेश में उत्तेजित हो रही थी। मेरे दोनों हाथ अभी भी उसके चूचकों को मसल रहे थे।
उसने मेरे कान की ओर मुँह करके कहा, “राजजी, सलवार का नाड़ा खोलिए ना, प्लीज। मेरा शरीर बेसब्र, बेकाबू हो रहा है। पूरे बदन में आग फैल रही है। आगे चलिए ना, प्लीज?”
“नहीं, माय लव,” मैंने कहा। “नाड़ा खोलने की देर है कि हम दोनों खुद को रोक नहीं पाएँगे। तुम्हें मालूम है इसका क्या परिणाम होगा?”
“क्या?” उसने पूछा।
“खतरा है… फिर बाप-बेटी का रिश्ता खत्म हो जाएगा।”
“तो अभी कौन-सा बाप-बेटी का रिश्ता चल रहा है?” उसने कहा। “होने दो रिश्ता खत्म। बहुत दिनों से इच्छा थी कि कब आपसे संभोग करके मेरा बदन तृप्त होगा। आज मौका मिल ही गया। अब पीछे मत हटिए। मेरे साथ संभोग करिए। मेरे बदन में काम जागृत करके आग जला दी है, तो अब मेरी योनि के भीतर गर्भाशय में अपने वीर्य की बरसात करके मुझे नहला दो।”
उसकी ये बातें सुनकर मेरे शरीर में बिजली-सी दौड़ गई। मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खींचा, और उसे नीचे सरका दिया। उसका नंगा बदन मेरे सामने था, जैसे कोई मखमली चादर बिछी हो। मेरी उंगलियाँ उसके शरीर पर फिसल रही थीं, जैसे कोई संगीतकार सितार के तार छेड़ रहा हो। उसकी साँसें तेज हो रही थीं, और उसका बदन मेरे स्पर्श से थरथरा रहा था।
मैंने अपने होंठ उसकी योनि के पास ले गए। मेरी जीभ ने धीरे-धीरे उसकी नाजुक त्वचा को छुआ। वो सिहर उठी, और उसकी साँसें और तेज हो गईं। “राजजी… ओह… ये क्या कर रहे हो… मैं मर जाऊँगी…” उसकी आवाज में मस्ती और बेकरारी थी।
मैंने अपनी जीभ को और गहराई में ले गया, और उसकी योनि के रस को चखा। उसका स्वाद मेरे होश उड़ा रहा था। वो अपने नितंब ऊपर-नीचे कर रही थी, जैसे मेरे हर स्पर्श के साथ वो और गहराई में डूबना चाहती हो।
“राजजी… अब और नहीं… मैं… मैं बेकाबू हो रही हूँ…” उसने कराहते हुए कहा।
मैंने अपना लिंग उसके योनि के प्रवेशद्वार पर रखा। धीरे-धीरे मैंने उसे भीतर सरकाया। उसकी आँखें बंद थीं, और उसके होंठ फड़फड़ा रहे थे। जैसे-जैसे मैं और गहराई में गया, उसका बदन फड़कने लगा। “ओह… राजजी… ये… ये अनुभूति… मैं… मैं इसे बयान नहीं कर सकती…”
हम दोनों अब एक लय में थे। हमारे शरीर एक-दूसरे में समा रहे थे। हर धक्के के साथ उसकी साँसें और तेज हो रही थीं। उसने अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिए, और मैं उसके हर स्पर्श को महसूस कर रहा था।
“राजजी… और तेज… और… मैं… मैं अब नहीं रुक सकती…” उसकी आवाज में एक मादक बेकरारी थी।
मैंने अपनी गति बढ़ा दी। हम दोनों अब काम-वासना के सागर में डूब चुके थे। उसका बदन मेरे नीचे थरथरा रहा था, और मैं उसकी हर साँस, हर कराह को अपने भीतर समेट रहा था।
अचानक उसने मुझे और जोर से जकड़ लिया। “राजजी… मैं… मैं…” उसकी आवाज रुक गई, और उसका बदन एक तीव्र कंपन के साथ शांत हो गया। मैं भी उसी पल अपने चरम पर पहुँच गया, और मेरे वीर्य ने उसके गर्भाशय को नहला दिया।
हम दोनों कुछ पल वैसे ही पड़े रहे, एक-दूसरे की बाँहों में। उसकी साँसें धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं। उसने मेरी ओर देखा, और एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, “राजजी… ये… ये जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था।”
मैंने उसके माथे पर एक हल्का-सा चुम्बन दिया और कहा, “माय लव, ये सिर्फ शुरुआत है।”